शास्त्र अनेक हैं और प्रत्येक शास्त्र अपनी उपासना पद्धति एक-दूसरे से अलग रखते हैं, इसी विभिन्न्ता ने आगे चल कर हिन्दू समाज को सम्प्रदाय में विभक्त कर दिया- वैष्णव, शैव, स्वामी नारायण, रामानन्द वल्लभ, श्री समर्थ वैखानस, इत्यादि सम्प्रदाय तो कुछ उदाहरण हैं। पूजा साधना अनुष्ठान की विविधताओं से ही हिन्दू संस्कृति का विकास हुआ, वहीं कुछ आपसी संघर्ष से धार्मिक गुट बन गये जो शिव की साधना करने लगा, उसने अन्य देवी-देवताओं को छोड़ दिया तो नाथ सम्प्रदाय में कुछ और ही प्रकार की उपासना होने लगी।
इन सब स्थितियों के बावजूद केवल एक देव है, जिनके सम्बन्ध में न तो कोई संघर्ष है, न ही वैचारिक भेद और जिन्हें प्रत्येक सम्प्रदाय द्वारा सर्वोपरि देव माना गया है, वे देव हैं श्री हनुमान! नाम भिन्न हो सकते हैं, लेकिन श्री हनुमान की स्तुति सभी अवश्य करते हैं और इनका महत्व कितना विशाल है कि अपनी सरलता के कारण श्री हनुमान जन-जन के देव बन गये, ऐसा कोई गांव या शहर नहीं होगा, जहां श्री हनुमान का मन्दिर न हो, उनकी पूजा नहीं की जाती हो, वीर देव के रूप में स्थान हैं तो कहीं जागते देवता के रूप में तो कहीं महावीर के रूप में देवालय हैं, यहां तक कि झाड़-फूंक, भूत पिशाच-प्रेत, जनपीड़क अपदेवता के नाश हेतु भी हनुमान को सर्वप्रथम याद किया जाता है, जन-जन में यह भाव स्थायी रूप से विद्यमान है कि जय हनुमान जय महावीर जय बालाजी का स्मरण ही भय मुक्त कर देता है।
श्री हनुमान को अष्ट सिद्धि प्रदाता भी कहा जाता है जिनमें अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, वशित्व ये आठों सिद्धियां हनुमान जी के पास थी और जैसा कि शास्त्रोक्त कथन हैं कि जैसे देव की पूजा साधना करते हैं, वैसी ही सिद्धि प्राप्त होती है तो इन आठ यौगिक सिद्धियों की प्राप्ति भी हनुमान साधना से ही सम्भव हैं, इसमें कोई संदेह नही।
तारसारोपनिशद में लिखा है-
अर्थात् परब्रह्म नारायण शिव स्वरूप हनुमान ही हैं शिव के ग्यारह रूद्र स्वरूपों में ग्यारहवें रूद्र हैं हनुमान, जो कि शत्रु संहारकर्त्ता, बलशाली और इच्छानुसार कार्य करने वाले हैं। हनुमान साधना में मूर्ति साधना भी की जाती है और मान्त्रिक साधना या तान्त्रिक साधना भी की जाती है, इसी कारण रामायण में लिखा है कि परबह्मा रूद्र हनुमान की महिमा उन्हीं की कृपा से समझ में आ सकती है, वे सर्व मंगल निधि सच्चिदानन्द परमब्रह्य रूद्र रूप हैं तो ओंकार स्वरूप पूर्ण ब्रह्म भी हैं।
किसी भी मंगलवार के दिन आप यह साधना शुरू कर सकते हैं इसके अतिरिक्त शनिवार को भी हनुमान साधना का विधान हैं। मंगलवार पवन पुत्र का दिन है इस दिन साधक साधना के दिये गये सभी नियमों का पालन करते हुए विशेष अनुष्ठान अवश्य सम्पन्न करें।
1- हनुमान साधना के दिन प्रत्येक कार्य में शुद्धता होना आवश्यक है, जो भी प्रसाद नैवेद्य अर्पित करे वह शुद्ध होना चाहिए।
2- नैवेद्य में प्रातः पूजन में गुड़ या नारियल का गोला, लड्डू, घी और गेहूं की रोटी का चुरमा अथवा केला का नैवेध अर्पित कर सकते हैं।
3- साधना काल में घी का दीपक प्रज्ज्वलित करें।
4- साधना के दिवस साधक ब्रह्मचर्य का पूर्ण रूप से पालन करें और जो नैवेद्य अर्पित किया है, उसे स्वयं ग्रहण करें।
5- हनुमान सेवा पूजा के प्रत्यक्ष उदाहरण है, अतः साधक द्वारा पूजा में पूर्ण श्रद्धा और सेवा भाव होना चाहिए।
लाल वस्त्र धारण कर दक्षिणाभिमुख होकर वीरासन में बैठ जायें। अपने सामने चौकी को सिन्दूर से पवित्र कर हनुमान का चित्र स्थापित करें। किसी पात्र में यंत्र व सामग्री को स्थापित कर लें। दाहिने हाथ में जल लेकर संकल्प करें कि मैं अमुक नाम का व्यक्ति अमुक प्रयोजन से यह अनुष्ठान प्रारम्भ कर रहा हूं। इसके बाद हनुमान का सकाम भाव से ध्यान करें दोनों आंखें बन्द कर कुछ देर तक उनके स्वरूप का स्मरण करें तथा उनसे आशीर्वाद की कामना करें। हनुमान का ध्यान मंत्र इस प्रकार हैं।
उद्यन्मार्तण्ड कोटि प्रकट रूचियुतं चारू वीरासनस्थं मौन्जी यज्ञोपवीतारूण रूचिर शिखा शोभितं कुण्डलांकम्।
भक्तानाकमश्टदं तं प्रणत मुनिजनं वेदनाद प्रमोदं, ध्यायेद् नित्यं विधेयं प्लवगकुलपतिं गोश्पदी भूतवारिम्।
उदय होते हुए करोड़ो सूर्यां जैसे तेजस्वी, मनोनम, वीर आसन में स्थित, मुंज की मेखला और यज्ञोपवीत धारण किये हुए कुण्डल से शोभित, मुनियों द्वारा वंदित, वेद नाद से प्रहर्शित, वानरकुल स्वामी, समुद्र को एक पैर से लांघने वाले, देवता स्वरूप, भक्तों को अभीष्ट फल देने वाले हनुमान मेरी रक्षा करें।
हनुमान शक्तिशाली पराक्रमी संकटों का नाश करने वाले और दुःखों को दुर करने वाले महावीर हैं, इनके नाम का स्मरण ही साहस और शक्ति प्रदान करने वाले देव है।
सर्व प्रर्थम गुरू पूजन करें उसके बाद हनुमान यंत्र पर सिन्दूर अच्छी तरह से लगा दें। फिर गुड़, घी, आटे से बनें नैवेद्य का भोग लगायें। फिर एक माला गुरू मंत्र जप कर हनुमान शक्ति माला से निम्न मंत्र का 11 माला मंत्र जप करें-
मंत्र जप करने के तुरन्त बाद पूजा स्थान में वहीं भूमि पर सो जायें। यह रात्रि कालीन साधना हैं। इस प्रकार नित्य 11 दिनों तक करें। जो नैवेद्य हनुमान जी के सामने रखा है, वह स्वयं ग्रहण करें। इसी साधना से साधकों ने बडी विपत्तियों को सरलता से टाला है, भयंकर रोगों से छुटकारा पाया है, दण्ड पाये व्यक्तियों को इस साधना से निदान मिल सका है, वास्तव में ही यह साधना अपने आप में अचूक और अद्वितीय है।
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