अर्थात-जो भगवान शंकर गोदावरी नदी के पवित्र तट पर स्थित स्वच्छ सह्मद्रि पर्वत के शिखर पर निवास करते है, जिनके दर्शन से सारे पाप नष्ट हो जाते है, उन्हीं त्रयम्बकेश्वर भगवान की हम स्तुति करते हैं।
महाराष्ट्र प्रदेश के नाशिक नगर से दक्षिण की ओर लगभग 30 किलोमीटर दूर त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग अवस्थित है, नाशिक नगर में गोदावरी तट पर हर बारहवें वर्ष महाकुंभ पर्व हुआ करता है और इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन किये बिना कुंभ के स्नान का पुण्य प्राप्त नहीं होता, यह ज्योतिर्लिंग तीर्थ जागृत शिव स्थान माना जाता है, 18 वीं सदी में पेशवा बालाजी राव ने शिवलिंग पर एक भव्य मंदिर का निर्माण कराया जिसके चारों ओर विस्तृत परकोटा है।
मंदिर की दीवारों पर सुन्दर शिल्पकारी देखने को मिलती है, इस ज्योतिर्लिंग के मंदिर के अंदर एक छोटे से गड्ढे में तीन छोटे-छोटे लिंग अवस्थित है, जो परमेश्वर की तीन शक्तियां- ब्रह्मा, विष्णु, महेश के प्रतीक माने जाते है, यह एक मात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है, जहां त्रिमूर्ति देव यानि कि ब्रह्मा, विष्णु, शिव के लिंग स्वरूप है।
तीनों लिंगो को चांदी से सुशोभित किया गया है, निरंतर पवित्र गोदावरी नदी का जल अविरल रूप से प्रवाहित रहता है। ऐसे त्रयम्बकेश्वर के दर्शन सदा आनन्दमयी होते हैं।
त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग का प्राकृतिक भाव प्राचीनकाल में एक परम धार्मिक गौतम ऋषि थे, उनकी पत्नी अहिल्या भी धार्मिक एवं परोपकारी प्रवृत्ति की थी गौतम ऋषि ने दक्षिण दिशा में ब्रह्मगिरी पर्वत पर दस हजार वर्ष तक तप किया एक बार पानी न बरसने से उस क्षेत्र में भयंकर अकाल पड़ा, प्राणियों के कष्ट से दुःखी होकर गौतम ऋषि ने वरूण देव की कठोर तपस्या की। प्रसन्न होकर वरूण देव प्रगट हुए और उन्होंने गौतम ऋषि से एक सरोवर बनाने को कहा और उस सरोवर को दिव्य अक्षय जल से भर दिया, अक्षय जल से सभी प्राणी तृप्त हुए और फल, फूल, फसल, अन्न आदि भी उत्पन्न होने लगे।
गौतम ऋषि की ख्याति से आस-पास के अन्य ऋषि क्षुब्ध हुए और उन्होंने षड़यंत्र रचकर गौतम ऋषि पर गौहत्या के पाप आरोपित करते रहें, तब गौतम ऋषि ने ब्रह्मगिरि पर्वत पर कठोर तपस्या की और एक करोड़ पार्थिव शिवलिंगों का पूजन किया। प्रसन्न शिव ने प्रकट होकर गौतम ऋषि को पुण्यात्मक स्वरूप में शक्तियों से अभिभूत किया। तब ऋषि तथा देवों की प्रार्थना पर त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग अक्षय जल स्वरूप में प्रतिष्ठित हुए।
एक अन्य जनश्रुति कथा के अनुसार यहां ज्योतिर्लिंग से पूर्व ऋषि गौतम का आश्रम हुआ करता था। गौतम ऋषि के ज्ञान, भक्ति तथा तपस्या से सन्तुष्ट हुए वरूण देव ने उन्हें एक अक्षय अन्नघट दिया था, इस अन्नघट के द्वारा गौतम ऋषि भूखे प्राणियों को निरंतर भोजन कराते रहते थे।
अन्य ऋषियों ने ईर्ष्या दग्घ होकर उस अन्नक्षेत्र में एक मरणासन्न गाय को घुसा दिया गौतम ऋषि ने घास के एक तृण से कोमलता से उस गो को हटाना चाहा तो वह गो गिर कर मर गई। गोहत्या के पाप से प्रायश्चित करने के लिए गौतम ऋषि ने शिव की उग्र तपस्या की।
प्रसन्न शिव ने गौतम को पापमुक्ति करने के लिए गंगा को वहां भेजा और मनुष्यों के त्राण के लिए गंगा को वहीं बने रहने का निर्देश दिया। यही गंगा, गोमती गंगा या गोदावरी है। स्वयं शिव भी गंगा के समीप त्रयम्बकेश्वर के रूप में अवस्थित हुए।
त्रयम्बकेश्वर मंदिर के पास तीन पर्वत स्थित है, जिन्हें ब्रह्मगिरी, नीलगिरी और गंगा द्वार के नाम से जाना जाता है, ब्रह्मगिरी को शिव स्वरूप माना जाता है। नीलगिरी पर्वत पर नीलाम्बिका देवी और दत्तात्रेय गुरु का मंदिर है गंगा द्वार पर देवी गोदावरीमय गंगा का मंदिर है।
ब्रह्मागिरी पर्वत के ऊपर जाने के लिए सात सौ सीढि़याँ है, वहीं ऊपर रामकुंड और लक्ष्मण कुंड मिलते हैं। आगे गोमुखी से गोदावरी नदी निकलते हुए दर्शन देती है। गोदावरी नदी के किनारे स्थित त्रयम्बकेश्वर मंदिर काले पत्थरों से बड़ी प्राचीन स्थापत्य कला से बना है।
मंदिर भव्य और अद्भुत है। मंदिर प्रांगण में ही पंचकोशी में कालसर्प शांति, अकाल मृत्यु दोष, त्रिपिंडी विधि और नारायण नागबलि की पूजा संपन्न होती है। जिनके यह दोष होते हैं यहां उन्हें इन दोषों से मुक्ति प्राप्त होती है।
निधि श्रीमाली
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