नित्य प्रभु-स्मरण करें- प्रतिदिन प्रार्थना, स्तुति प्रभु के ध्यान के लिये कुछ समय (कम-से-कम आधा घण्टा) अवश्य दें। परिवार में हर सप्ताह सामूहिक सत्संग, भजन, कीर्तन आदि के लिये समय निश्चित करें। प्रतिदिन कार्य आरम्भ करने से पूर्व माता-पिता, आपने गुरु को नित्य प्रणाम करें क्योंकि प्रभु की कृपा एवं पूज्य जनों के आशीर्वाद से ही हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है।
अपने काम को श्रेष्ठ माने- अक्सर ऐसा होता है कि जो जिस काम को करता है, वह उस काम से खुश नहीं होता। नौकरी वाले को व्यवसाय में तथा व्यवसाय वाले को नौकरी में अधिक लाभ दिखायी देता है। नौकरी वाले को जीवन पराधीन लगता है। व्यापारी को जीवन में घाटे की चिन्ता रहती है और दुकान में कार्य के लिये समय भी अधिक देना पड़ता है। किसान को लगता है कि खेती से आय कम होती है व मेहनत ज्यादा करनी पड़ती है। इस तरह सभी को अपने-अपने कार्य में असन्तोष महसूस होता है। किंतु यदि आप पूरे जीवन में खुशी चाहते हैं तो अपने काम से प्यार करें, अपने कार्य को ही श्रेष्ठ मानें, क्योंकि कर्म ही पूजा है।
कर्तव्य पालन जरूरी है- माता-पिता के प्रति, भाई के प्रति, पत्नी के प्रति, मित्र के प्रति, बच्चों के प्रति क्या कर्तव्य हैं? यह जानना तथा उस पर आचरण करना बुद्धिमानी है तथा जीवन को उन्नत बनाने के लिये विशेष महत्त्वपूर्ण है। रामायण हमें कर्तव्य पालन की शिक्षा देती है। तुलसीदास जी ने रामायण में लिखा है-‘रघुकुल रीति सदा चलि आई। प्रान जाहुँ बरू बचन न जाई।। जिसको वचन दें, उसे अवश्य पूरा करें।
वचन- पालन से ही समाज में आपकी विश्वसनीयता बढ़ती है। आपकी प्रतिष्ठा बढ़ेगी तो आपकी उन्नति को कोई नहीं रोक सकता। अतः सदा मन, कर्म और वचन से अपने कर्तव्य को पूरा करना चाहिये। समय का सदुपयोग करें- समय का सदुपयोग कर प्रत्येक कार्य को समय पर पूर्ण किया जा सकता है। जिस कार्य को करें पहले उसे पूरा करके दूसरा कार्य प्रारम्भ करे।
कार्यालय, समारोह और यात्रा आदि के लिये निश्चित समय पर पहुँचकर समय की पाबन्दी का ध्यान रखना ही सफलता की निशानी है। आलस्य या व्यर्थ की बातों में समय का दुरूपयोग होता है। अतः समय बरबाद नही करना चाहिये। वर्तमान समय को इतना खूबसूरत बना लें कि इन सुनहरे दिनों को कभी भुला न सकें।
अपने कार्य में व्यस्त रहें- एकाकीपन को दूर करने का सर्वोत्तम तरीका है- कार्य व्यस्तता। सदा कार्य में व्यस्त रहने से खुशी मिलती है। अपने कार्यों को सकारात्मक ढंग से पूरा करके आप अधिक सक्षम हो सकते हैं। प्रतिदिन एक घण्टा कम सोने से आप अपने जीवन में कार्य के लिये पाँच साल बढ़ा सकते हैं। जितने भी महापुरुष हुए हैं वे सदैव अपने लक्ष्य के प्रति सचेत एवं सतर्क रहे हैं। उनकी कार्य के प्रति समर्पित भावना से ही उन्हें कठिन कार्यों में भी सफलता प्राप्त हो सकी।
आध्यात्मिक बनिये– विलासिता सत्य की प्रप्ति के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है। विलासिता परित्याग कर व्यक्ति आध्यात्म की ओर बढ़ सकता है एवं दृढ़ विश्वास की उच्च स्थिति को प्राप्त कर सकता है। इन्द्रियों की आसक्ति से ऊपर उठिये, तभी जीवन में आगे बढ़ सकेंगे। भौतिक पदार्थ क्षणभंगुर हैं, हम उन्हें वस्तुतः अपना नहीं कह सकते, वह तो केवल अल्प समय के लिये हमारे पास रहते हैं, किंतु आध्यात्मिक की उपलब्धियां स्थायी होती हैं, जो हमेशा हमारे साथ रहती हैं।
भौतिक चीजों में अनासक्ति से ही आध्यात्मिक उपलब्धि प्राप्त की जा सकती है तथा जीवन को आनन्दमय बना सकते है। आत्म नियंत्रण करिये- आत्म नियन्त्रण द्वारा मनुष्य ऊँचाईयों के शिखर तक पहुँच सकता है। प्रत्येक व्यक्ति में बहुत कुछ कर सकने की क्षमता होती है। उसकी उन्नति का सबसे बड़ा रहस्य है आत्म नियन्त्रण यही मनुष्य को आगे बढ़ने की पहली सीढ़ी है। इसलिये जिस व्यक्ति ने आत्म नियन्त्रण कर लिया, उसे अवश्य सफलता मिलती है। जो व्यक्ति आत्म नियन्त्रण कर लेता है, वही क्रोध पर नियन्त्रण कर सकता है।
आत्म निरक्षण करियें- आत्म निरक्षण एवं आत्म-सुधार करके अपनी छोटी-छोटी गलतियों को पहचानकार उन्हें दुबारा नहीं दोहरायें, तभी जीवन में उन्नति कर सकतें हैं। आप हर सप्ताह अपनी प्रगति का मूल्यांकन करें तथा यह मालूम करें कि आपने कब कौन-सी गलती की और भविष्य में उसे न करने का संकल्प करें।
आवश्यकताएँ कम करिये- दूसरों की देखा-देखी अपनी आवश्यकतायें बढ़ाकर आय से अधिक खर्च बढ़ाना क्या उचित है? अपनी आय से अधिक खर्च नहीं करें। हमें ध्यान रखना चाहिये कि जितनी हमारी आवश्यकता कम होगी, उतनी चिन्ता भी कम होगी और सन्तोष अधिक होगा। सिर्फ आवश्यक वस्तुओं की ही खरीददारी करें, घर को म्यूजियम न बनायें।
आदर्श मित्र चुनें- मित्र क्या है? वह एक ऐसा व्यक्ति है, जिसके साथ आप स्वयं निडर हो जाते हैं। मित्र वह है, जिसके सामने आप अपने दिल की बातें को प्रकट कर सकते हैं। एक मित्र-विहीन व्यक्ति ऐसा है जिसका बायाँ हाथ है, लेकिन दायाँ नहीं। कोई भी व्यक्ति बिना मित्र के बेकार है। आदर्श मित्र वही है, जो अपने मित्रों के प्रति वफादार रहे। मित्र ज्यादा न हों केवल दो-चार विश्वसनीय मित्र ही रखें। मित्र ऐसा हो जो सबके प्रति सद्भावना एवं ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ की कामना रखें। सुख की अपेक्षा दुःख में आपका अधिक साथ दें।
सबके प्रति सद्भावना रखें- दूसरों के साथ वही व्यवहार करें- जैसा आप अपने लिये चाहते हैं। बहस का कोई फायदा नहीं होता, ईमानदारी से सामने वाले व्यक्ति का नजरिया समझने की कोशिश करें। सामने वाले व्याक्ति के विचारों और इच्छाओं के प्रति सहानुभूति प्रदर्शित करें। दूसरे व्यक्ति के विचारों के प्रति सम्मान दिखायें। यदि वे गलत भी हों तो तत्काल उसे एकान्त में समझायें। अगर गलती आपकी हो तो तत्काल अपनी गलती मान लें। दूसरों की छोटा-सी दयालुता को न भूलें, अपने छोटे-से उपकार को भी याद न रखें। किसी के प्रति दुर्भावना, कठोरता तथा कटुता की भावना नहीं होनी चाहियें। सबके प्रति सद्धाभवान हो।
मुस्कुराने की आदत डालें- आपकी मुस्कुराहट आपकी सद्भावना का सन्देश है। आगन्तुक का मुस्कुराते हुए स्वागत करें। मुस्कुराते रहेंगे तो तनाव एवं चिन्ताग्रस्त नहीं होंगें। गुलाब के पुष्प की भाँति चेहरे पर सदा मुस्कान रखें। सदा हँसते-मुस्कुराते रहेंगे तो सभी आपको पसन्द करेंगे। आपकी पाचन शक्ति भी बढ़ेगी तथा आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा।
उत्साहवर्धन करें- दूसरों को प्रोत्साहित कीजिये ताकि उनका उत्साहवर्धन हो। सराहना और प्रोत्साहन के द्वारा लोगों से कठिन कार्य भी कराये जा सकते हैं। दिल खोलकर तारीफ करना तथा मुक्त कण्ठ से प्रशंसा, सराहना करना उत्साहवर्धन में सहायक होता है। सच्ची प्रशंसा करने की आदत डालें। दूसरों की गलतियाँ सबके सामने न बतायें। किसी की आलोचना करने से पहले अपनी गलतियों पर ध्यान दें। अच्छें कार्य करने वालों के छोटे-से कार्य की भी प्रशंसा करें और मुक्त कण्ठ से सराहना करेंगे तो वह आपका कहा काम खुशी-खुशी करेगा। कार्य पूर्ण होने पर धन्यवाद एवं आभार प्रकट करना भी न भूलें।
सन्तोषी बनें- कहावत है-सन्तोषी सदा सुखी। धनोपार्जन के लिये गलत तरीके एवं भाग-दौड़ से आप तनाव ग्रस्त हो सकतें हैं, क्योंकि जरूरतें खत्म हो सकती हैं पर लालच नहीं। जो थोडे़ से सन्तुष्ट है, उसके पास सब कुछ है। जीवन जीना एक ऐसी कला है, जिसमें कम साधनों से जीवन को आनन्दमय बनाया जा सकता है। संग्रह की प्रवृति कभी नहीं रखें।
उपकारक भूल जायें- अरस्तू के अनुसार आदर्श व्यक्ति वह है, जिसको दूसरों का उपकार करने में सुख मिले और जो दूसरो के उपकारो को स्वीकार करने में लज्जा महसूस न करे, क्योंकि दूसरों का उपकार करना आपके विराट व्यक्तित्व का परिचायक है।
विचारों का आदान प्रदान करें- यदि आपके पास एक रूपया है और मेरे पास भी एक रूपया है और हम एक-दूसरे से रूपये बदल लेते हैं तो भी हम दोनों के पास एक-एक रूपया ही रहता है, किंतु यदि आपके पास कोई बेहतर विचार है और मेरे पास कोई दूसरा विचार है और हम आपस में विचार बदल लेते हैं तो हम दोनों के पास दो बेहतर विचार हो जाते हैं। इसलिये विचारों के विनिमय से अपने ज्ञान की वृद्धि करें।
गलती से सबक सीखें- गलती मनुष्य से होती है, विश्व में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है, जिससे गलती नहीं हुई हो। गलती से सबक सीखना चाहिये वैसी गलती दुबारा नहीं हो, यह ध्यान रखना चाहिये। ठोकर खाकर दुबारा ठोकर न खायें, इसी में बुद्धिमानी है।
अहंकार न करें- मैं ही अधिक बुद्धिमान् एवं सर्वगुण सम्पन्न हूँ- यही मनुष्य का सबसे बड़ा भ्रम है। उन्नति के रास्तों में सबसे बड़ी बाधा अपने को अपनी योग्यता से अधिक प्रदर्शन की भावना होती है। सदैव दूसरों से सीख् ने की भावना होनी चाहिये। तभी निरन्तर ज्ञान में वृद्धि होगी तथा प्रगति की ओर कदम बढ़ेंगे। रावण एवं कंस का सर्वनाश उनके अहंकार के द्वारा ही हुआ था।
क्रोध पर नियन्त्रण करिये- क्रोध मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। क्रोध पूर्ण व्यवहार से क्रोध पर नियन्त्रण नहीं किया जा सकता है। अतः सब तरह से बौखलाहट तथा दुर्व्यवहार का परित्यागा कीजिये। शान्तचित्त, आत्म निर्भर और दयालु बने रहिये।
निन्दा न करें- बुराई मत करो, निन्दा मत करो, शिकायत मत करो। प्रशंसा और चापलूसी में अन्तर है। एक सच्ची होती है, दूसरी झूठी। एक दिल से निकलती है, दूसरी बनावटी होती है। आलोचना से कोई सुधरता नहीं है, अपितु सम्बन्ध बिगड़ते हैं। किसी भी व्यक्ति की निन्दा, आलोचना, टीका-टिप्पणी न करें, इससे कोई फायदा नहीं होता है, बल्कि मनमुटाव हो जाता है।
प्रत्येक पाप, दुराचार से बचिये- यह न सोचें कि छोटे-छोट दुराचार, पाप, चोरी आदि में कोई दोष नहीं हैं। जैसे बूँद-बूँदसे घड़ा भरता है, वैसे ही छोटे-छोटे पाप एवं दुराचारों से हमारा चरित्र गिर जाता है और हम दूसरों की नजरों में गिर जाते हैं। दूसरों का हमारे प्रति आदर-सम्मान कम हो जाता है। इसलिये छोटे-छोटे दोषों को भी भयंकर अपराध समझकर उनका परित्याग करना चाहिये।
शरीर को निरोगी रखें- सबसे महत्वपूर्ण बात है शरीर को निरोगी रखना। शरीर को निरोगी रखने के लिये नित्य सूर्योदय से पहले उठना, प्रातः भ्रमण करना, व्यायाम, योग, प्राणायाम करना जरूरी है। गरिष्ठ भोजन, मांसाहार, अण्डे, धूम्रपान, मदिरापान, फास्ट फूड, कोल्डड्रिंक, तम्बाखू, पान-मसाले, गुटखा आदि का सेवन कभी न करें। स्वच्छ हवा, शुद्ध पानी, गाय का दूध, अंकुरित अनाज, फल, कच्ची सब्जियों के सलाद का सेवन करने से ही सदा निरोगी रह सकते हैं, अतः इनका ही ज्यादा-से-ज्यादा उपयोग करना चाहिये।
आप भी इन सूत्रों को अपने दैनिक जीवन में अपना कर सफलता के शिखर पर पहुँच सकते हैं तथा जीवन को आनन्दमय बना सकते हैं।
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