आम सभी फलों में श्रेष्ठ और महत्वपूर्ण फल हैं, यह भारत में सर्वत्र पाया जाता हैं, इसकी कई प्रजातियां होती हैं, उनमें प्रमुख हैं- दशहरी, लंगड़ा, सफेदा, मालदा, नीजम, हापुस आदि, आम की दो जातियां होती हैं- बीजू और कलमी, कलमी आम की अपेक्षा बीजू आम ज्यादा लाभदायक होता है, क्योंकि इसका रस जल्दी पच जाता है, साथ ही मीठा भी अधिक होता है।
स्वाद की दृष्टि से यद्यपि कलमी आम को लोग ज्यादा पसंद करते हैं, परंतु इसमें गूदा अधिक होने के कारण यह पचने में गरिष्ठ होता है, बीजू आम में रस अधिक होता है और गूदा कम अतः जल्दी पचता है, इसलिए ‘आम्रकल्प’ आदि बनाने में बीजू आप का प्रयोग करना चाहिए, इसके फल भी छोटे-बडे़ आदि भेद से कई प्रकार के होते हैं तथा इनके रंगों में भी विविधता पाई जाती है, जैसे- पीला, हल्का पीला, गुलाबी, सफेद, हरा आदि।
आम की जड़, छाल, पत्ते बौर (आम्रमंजरी), फल की गुठली, गुठली की गिरी और गुठली गिरी के तेल आदि औषधीय दृष्टि से अत्यंत उपयोगी अंग हैं अतः इन सब के गुण-धर्म भी अलग-अलग हैं।
आमवृक्ष की जड़ शीतल, आरामदायक, रूचिकारक, मलावरोधक, कसैली, सुगंध युक्त एंव वात-कफ रोगों को दूर करने वाली होती है, इसकी छाल कसैली, दाहकारक तथा प्रमेह, पित्त व कफ दोषों का शमन करती हैं आम के पत्तें रूचिकारक, कीटाणुनाशक, कुकुर खांसी, हिचकी आदि विकारों के निवारण करने में उत्तम है, साथ ही वात, कफ, पित्त को सम रखने में लाभकारी है।
आम्रमंजरी (फूल-बौर) शीतल, रूचि उत्पादक, मलावरोधक, वायुकारक एवं रक्तविकार, अतिसार, कफ, पित्त और प्रमेह को मिटाने वाली हैं, आम की गुठली कसैली, कुछ खट्टी और मधुर होने से उल्टी, अतिसार तथा हृदय की जलन को मिटाती है, गिरी का तेल रूक्ष, कटु, कसैला, स्वादिष्ट तथा मुख् रोग, कफ, वायु विकार एवं केशों को सघन व काला करने में उत्तम है।
आम का कच्चा फल कसैला अत्यंत खट्टा पित्तवर्द्धक तथा कब्ज उत्पन्न करने वाला, मानसिक उत्तेजना बढ़ाने वाला हैं। आयुर्वेद में पकें आमों के गुणों के विषय में कहा गया है कि यह बलप्रद, चर्बी बढ़ाने वाला, आनंददायक, दस्त साफ करने वाला हैं, डाली का पका आम शरीर को नवयौवन प्रदान कर हष्ट-पुष्ट बनाता है, यह प्रकृति में स्निग्ध, मधुर व हृदय को तलप्रदान करने वाला, वृक्ष पर पका आम का फल वातशामक शीतल, कांति एवं बल बढ़ाने वाला होता है, वृद्धावस्था में शरीर की रक्षा और सभी अंग प्रत्यंगों की पुष्टि करना आम का विशेष गुण है।
भोजन के साथ आम का सेवन करने से मेदवृद्धि होती है, हिमोग्लोबिन तथा रक्त के लाल कणों में वृद्धि होती हैं, आम आंतों के लिए उत्तम टॉनिक है तथा आमाशय संबंधी रोगों को दूर करता हैं, जठर में पाचनतंत्र संबंधी रोग, फेफडों के रोग, रक्तविकार पके आम के सेवन से निश्चित रूप से नष्ट हो जाते हैं।
अच्छे पके आम खाने से शरीर की कांति सुंदर और तेजस्वी बनती हैं, आधुनिक चिकित्सा वैज्ञानिकों के अनुसार, आम के पके फल में पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन, वसा, लोहा, चूना तथा जल पाया जाता हैं, इसके अलावा आम में विटामिन ए, बी तथा सी प्रचुर मात्रा में पाई जाती है, इसके सेवन से अत्यंत दुर्बल मनुष्य भी शीघ्र ही नवयौवन प्राप्त कर लेता हैं।
रस चूसकर खाया हुआ आम पचने में हल्का होता है, आम को चूसकर खाना रूचिकर होता है, साथ ही यह बलप्रद, हल्का तथा शीतल होता है, आम का छना हुआ रस बलवृर्द्धक, गरिष्ठ, पुष्टिकारक और कफवर्द्धक है, अगर आम के रस का सेवन दुध के साथ किया जाये तो यह अमृततुल्य होता है, इससे सौंदर्य एवं कांति की वृद्धि होती है, यह प्यास, वमन तथा वातपित्त रोगों को नष्ट करने का प्रभाव रखता हैं।
आम से कई तरह के व्यंजन बनाए जाते हैं, कच्चे आम से चटनी, अमचूर, रायता बनाया जाता है, कच्चे आमों के छिलके निकाल कर सुखाकर अमहर और अमचूर बनाया जाता है, इसके कई तरह के अचार बनाए जाते हैं जो मीठे और नमकीन दोनों तरह के होते हैं, गुड़ या शक्कर डालकर आम का स्वादिष्ट पना बनाया जाता है, आम से कढ़ी, सॉस तथा अन्य स्वादिष्ट पेय तैयार किए जाते हैं।
आम की गुठली सेंककर खाने में मीठी लगती है, यह खूनी बवासीर, दस्त, पेचिश में बहुत उपयोगी है, हृदय के दाह को मिटाती है, कच्चे आम को सेंककर उसे नरम करके तथा चीनी मिलाकर अवलेह बनाया जाता है जो हैजा और प्लेग रोग की उत्तम दवा है।
आम के वृक्ष की भीतरी छाल का स्वरस तथा आम के छिलके का रस सम मात्रा में निकालें, इसमें से एक चाय के चम्मच भर रस 40 ग्राम ठंडे जल में मिलाकर रोगी को पिलाने से गर्भाशय, फेफडें तथा आंतों से होने वाला रक्तड्डाव शीघ्र रूक जाता है, इसे दो-दो घंटें के अंतराल से देने चाहिए।
आम वृक्ष की आंतरिक त्वचा 20 से 40 ग्राम लेकर अधकुटी करें, फिर उसका क्वाथ बनाकर शहद मिलाकर पीने से अतिसार और पेचिश दूर होता है।
बालकों को आंव मिले दस्त की शिकायत होने पर निम्न लाभप्रद है, आम की गुठली की गिरी, सौंफ, इन्द्र जौ तथा बेलिगिरी समभाग लेकर चूर्ण बनाएं, गाय के दूध अथवा शहद के साथ 3 रत्ती चूर्ण में दिन में चार बार चटाने पर अत्यंत प्रभावी सिद्ध होता है।
आम की गुठली दही में पीसकर सेवन करने से पतली दस्त ठीक होती है।
गुठली की गिरी का महीन चूर्ण रक्तप्रदर खूनी बवासीर और उदरकृमियों मे लाभदायक होता है, इसे 3 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम जल के साथ सेवन करना चाहिए।
देशी पके आम का समूचा गूदा निकाल कर गुठलियों को साफ जल से धो कर सुखा लें, सूख जाने पर इनके ऊपर का रोआं किसी चाकू से खुरच लें, फिर इसे जलाकर भस्म बनाएं, हठीली कुक्कर खांसी में इस भस्म की मात्रा 2 से 3 रत्ती, मधु रस में मिलाकर सेवन करने से शीघ्र लाभ होता है।
आम के बौर को पीसकर, एरंड तेल में उबालकर तथा उसे छानकर उसकी दो बूंदें कान में डालने से कान का दर्द दूर हो जाता है, आम के पत्तों का रस भी थोड़ा गर्म कर कान में डालने से दर्द शांत हो जाता है।
नक्सीर के लिए आम का ताजा बौर सुंघना एक सरल उपचार है।
मकडी के विष पर अमचूर को किसी लोहे के पात्र में घिसकर लगाने से तुरंत लाभ होता है।
आम, जामुन, नीम, परवल तथा मालती इन सभी के कोमल पत्तों का काढ़ा बनाकर उससे कुल्ला करने से मुख पाक से छुटकारा मिलता है।
आम में मौजूद विटामिन सी बालों को मजबूत और काला करता है। झड़ते हुए बालो को रोकता है।
अच्छे किस्म के बड़े कच्चे आमों को लेकर उनका छिलका निकाल दें, फिर उसे चाकू से काटकर धीमी आंच पर उबालें, अधपके होने पर उतार लें और कपड़े में रखकर पानी निकाल दें, इन टुकडों से तीन गुनी शक्कर की चाशनी बनाकर आम के टुकड़े उसमें डाल दें, ऊपर से इलायची, केशर भी डाल दें, अब आपका मुरब्बा तैयार हो गया।
यह मुरब्बा 20 से 30 ग्राम प्रतिदिन खाने से पित्त दोष का शमन होता है, यह रूचिकारक तो है ही, पौष्टिक भी है। आम गर्मी के मौसम का महत्वपूर्ण फल है, यह शरीर को नवयौवन प्रदान कर हष्ट-पुष्ट बनाता है तथा शरीर की सुंदरता को निखारता है, वृद्धावस्था में शरीर की रक्षा और सभी अंग-प्रत्यंगों की पुष्टि करना आम का विशेष गुण है।
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