जो भगवान शंकर दक्षिण दिशा में स्थित अत्यन्त रमणीय सदंग नामक नगर में अनेक प्रकार के भोगों तथा नाना आभूषणों से विभूषित हैं, जो एकमात्र सुन्दर पराभक्ति तथा मुक्ति को प्रदान करते हैं, उन्हीं अद्वितीय श्री नागनाथ नामक शिव की शरण में हम जाते है।
नागेश्वर ज्योतिर्लिग गुजरात प्रांत में द्वारकापुरी से लगभग 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस पवित्र स्थल पर केवल मंदिर ही है। आसपास कोई बस्ती आदि नहीं है। इस पवित्र ज्योतिर्लिग के दर्शन की शास्त्रों में बड़ी महिमा बताई गई है। कहा जाता है कि जो भक्त श्रद्धापुर्वक इसकी उत्पत्ति और माहात्म्य की कथा सुनते है, वे अपने सारे पापों से छुटकारा पाकर समस्त सुखों का भोग करते हुए मोक्ष रूप में भगवान शिव के परम पवित्र धाम को प्राप्त करते है। 12 ज्योतिर्लिगों में से 10 वां ज्योतिर्लिग नागेश्वर है। माना जाता है कि सोमनाथ ज्योंतिर्लिग के बाद नागेश्वर ज्योतिर्लिग की स्थापना हुई थी, यहाँ भगवान शिव स्वयं नागेश्वर तथा देवी पार्वती नागेश्वरी के रूप में विराजमान है।
नागेश्वर का अर्थ नागों के ईश्वर से है। इसीलिए शिव भक्त गृहस्थ जीवन रूपी दुख, संतापो, धनहीनता, अकाल मृत्यु स्वरूप विषमय स्थितियों के निवारण के लिये नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन, पूजन करते हैं और श्रद्धा-भाव से चिंतन करने से निश्चिन्त रूप से जीवन की विषमय स्थितियां समाप्त होती ही हैं। शिवपुराण में इस ज्योतिर्लिग की महिमा की वर्णन है और यह ज्योतिर्लिंग दारूक वन में स्थित है। दारूक वन का उल्लेख हमें कई महाकाव्य जैसे ददकावना दैत्यवाना और कम्यकावना में मिलता हैं। काफी दूर-दूर से लोग यहां ज्योतिर्लिग के दर्शन के लिए आते है। इस ज्योतिर्लिगं की अद्भुत छटा देखते ही बनती है, ये शिव भक्तों के लिए कैलाश पर्वत से कम नहीं है। इस मंदिर का जीर्णोद्धार स्व श्री गुलशन कुमार ने करवाया था। इस मंदिर परिसर में भगवान शिव की अति विशाल पद्मासन मुद्रा में प्रतिमा विराजामान है।
यह प्रतिमा 125 फीट ऊँची है और 25 फीट चौड़ी है। मंदिर के अंदर तलघर में नागेश्वर ज्योतिर्लिगं है। यह एक अद्भुत तीर्थस्थल है। यह ज्योतिर्लिगं हैं उतनी ही अदभुत और अद्वितीय इसकी कथा भी है। शिव पुराण कथा के अनुसार वर्तमान में जहां द्वारका नगरी बसी है वहाँ प्राचीन समय में एक विस्तृत जंगल था, जहाँ दारूका नाम की राक्षसी अपने राक्षस पति दारूक के साथ रहती थी। माँ पार्वती ने दारूका को वरदान दिया था कि तुम इस वन को अपने साथ कहीं भी ले जा सकती हो।
उसने व उसके पति ने पूरे वन में उथल-पुथल मचा रखी थी। उनसे आस-पास के सभी लोग परेशान हो गए थे। इसीलिए वे सभी महर्षि और्व के पास गए और दारूका और दारूक के बारे में बताया और समाधान पूछा। तब महर्षि ने लोगों की रक्षा के लिए श्राप दिया कि ये राक्षस पृथ्वी लोक पर जब कभी हिंसा करेंगे या फिर यज्ञ में बाधा डालेंगे तो उसी क्षण नष्ट हो जायेंगे। इस बात की सुचना देवताओं को भी मिल गई तब उन्होने राक्षसों पर आक्रमण कर दिया। अब सभी राक्षस सोचने लगे कि अगर वे देवताओं से लडे़ंगे तो उसी क्षण नष्ट हो जायेंगे और यदि युद्ध नहीं लडे़गे तो युद्ध में परास्त माने जायेंगे।
जिस जंगल में राक्षस रहते थे उसी के आगे पश्चिमी समुद्र का विस्तार था। तब दारूका के मन मे विचार आया और वह तुरत उस जंगल को उड़ा कर बीच में ले गयी और राक्षस समुद्र के बीच आराम से रहने लगे। एक दिन बहुत सी नौकाएं उसी जंगल की और आ रही थी, जिनमें मनुष्य सवार थे।
उन्हें राक्षसों ने देखा और उन सभी मनुष्यों को बंधक बना लिया। उन बंधको में एक सुप्रिय नाम का महान शिव भक्त था, वह वैश्य वर्ण का था। वह बंधक होते हुए भी कारावास में ही शिव भगवान की नियम से पूजा-अर्चना करता रहा। भगवान शिव की पूजा अर्चना किये बिना वह भोजन ग्रहण नहीं करता था। सुप्रिय ने बाकी के बंधक मनुष्यों को भी शिव भगवान की उपासना करना सिखा दिया। वे सभी बंधक भी प्रतिदिन शिव पूजन करने लगे। राक्षस के अत्याचारों और मार-डाँट के बीच भी सुप्रिय तल्लीनता से शिव स्मरण और शिव स्तुति ही करता रहता। दारूक को जब इस बात की सुचना मिली तो वह बहुत क्रोधित हुआ और उसने सुप्रिया की हत्या करने का आदेश दे दिया तब उसी क्षण सुप्रिया ने भगवान शिव को याद किया।
तत्काल ही एक गहरे गडढे से भगवान शिव प्रकट हो गए और समस्त राक्षसों का नाश कर दिया। यह देखकर दारूक दंग रह गया और अपनी पत्नी के साथ भाग गया। भगवान शिव ने वरदान दिया कि आज से चारों वर्ण ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य और शूद्र अपने धर्म का पालन करें। राक्षसों का यहां कोई स्थान नहीं है। भगवान का यह वचन सुनकर दारूका भयभीत हो गई और माँ पार्वती की स्तुति करने लगी दारूका ने माँ पार्वती से कहा कि मेरे वंश की रक्षा कीजिये। तब माँ ने उसे आश्वासन दिया और भगवान शिव से कहा कि इन राक्षसों की जो संताने होगी तो क्या वे इस वन में रह सकते हैं, मै चाहती हूं कि वे भी इस वन में रहे। इन राक्षसो को भी आश्रय दे दीजिये, क्योंकि मैंने ही इस दारूका राक्षसी को वरदान दिया था। तब भगवान शिव ने कहा ठीक है, ऐसा ही होगा। तब से नागेश्वर महादेव स्वरूप में भगवान शिव भी अपने भक्तों की रक्षा के लिए वहीं विराजमान हो गये।
इस प्रकार अपने भक्तों का सदा भला चाहने वाले भगवान शिव वहां सदा के लिए नागेश्वर ज्योतिर्लिग के रूप में स्थापित हुए। इस ज्योतिर्लिग के दर्शन करने से साक्षात् भगवान शिव के दर्शन हो जाते हैं, भक्तगण संकटों से मुक्त होते हैं व मोक्ष की प्राप्ति करते हैं।
निधि श्रीमाली
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