क्योंकि आज के युग में प्रतिस्पर्धा के साथ लोगों में ईर्ष्या एवं द्वेष की भावना भी काफी बढ़ गई है और लोग किसी को भी उन्नति पथ पर देखना नहीं चाहते हैं। इसी ईर्ष्या ओर द्वेष के कारण एक बार मुझे काफी परेशानी एवं कठिनाई से जूझना पड़ा। हुआ यह कि एक दिन में अपने कार्यालय में बैठा था। मेरे नाम से डाक द्वारा एक पत्र मिला, जिसमें लिखने वाले ने अपना नाम तो नहीं लिखा, किन्तु मुझे सतर्क रहने एवं वह स्थान छोड़ने की सलाह दी और स्वयं को मेरा हितैषी बताया।
वैसे तो मैं इस बात से अधिक भयभीत नहीं था, किन्तु दुश्मनों की साजिश से सुरक्षित रहना आवश्यक था। दो दिन यूं ही व्यतीत हो गये। शायद दुश्मन मेरी गतिविधि को नोट कर रहे थे। मैनें अकेले आना-जाना बंद कर दिया था, तीसरे दिन में टहलते हुए कुछ दूर अपने मित्र के साथ निर्जन स्थान तक गया, जहां एक छोटी नदी के किनारे ही एक कुटिया बनी हुई थी, जिसमें कभी-कभी आते-जाते साधु, महात्मा कुछ समय के लिए रूकते थे। उस दिन मैंने देखा कि पांच साधु लम्बें, सांवले रंग के थे एंव उनकी लम्बी-लम्बी जटाएं थी, शरीर पर कोई वस्त्र नहीं था।
मैं जैसे ही कुटिया के पास गुजरा तो मैंने उन संन्यासी जी को देखा तो संस्कारवश उन्हें दण्डवत् प्रणाम किया और आगे बढ़ने लगा। जैसे ही मैं आगे बढ़ा, उन्होंने मेरा नाम लेकर मुझे आवाज दी, मैं चौंका क्योंकि वह मेरा नाम ले रहे थे। मैंने अपने मित्र को वहीं पर रूकने को कहकर स्वयं उन संन्यासी जी के दर्शन हेतु कुटिया के अन्दर गया।
मेरे जाते ही वे बोल पडे़, कि तुम्हें धमकी भरा पत्र मिला है? मैं आश्चर्य में पड़ गया, क्योंकि यह बात मैंने किसी को नहीं बतायी थी। यहां तक की अपने मित्र को भी नहीं। वह पत्र मेरी जेब में ही था, घर पर भी मैंने पत्र को इसलिए नहीं रखा, कि कहीं किसी के हाथ नहीं लग जाए और वे इस बात से परिचित होकर भयभीत न हो।
उनके पूछने पर मैं मौन हो गया तो स्वयं बोले। तुम्हारे लिए षड्यंत्र रचा गया है और तम्हारी सुरक्षा होना आवश्यक है। मैंने उनसे उपाय के लिए निवेदन किया तो उन्होंने कहा कि दो दिन बाद धूमावती जयन्ती है, उसी रात्रि मैं तुम्हें एक प्रयोग सम्पन्न करवाऊंगा, उससे तुम्हारी सुरक्षा तो होगी, साथ ही तुम्हारे समस्त शत्रु निस्तेज हो जाएंगे।
उनसे विदा लेकर मैं घर पर आ गया और मन ही मन इस बात को सोच रहा था, कि वह उच्चकोटि के संत अचानक कहां से आए हैं और मन ही मन बहुत खुश था, क्योंकि मेरी समस्या का समाधान हो रहा था। मेरे मन में फिर यह बात स्पष्ट होने लगी, कि कहीं गुरूदेव जी ने तो इन्हें नहीं भेजा हैं, क्योंकि पूज्यापाद गुरूदेव जी की पूजा, अर्चना नित्य करता रहता हूं और उन्हीं से दीक्षित भी हूं।
दो दिन तक मैं अपने निवास परिसर से कहीं नहीं गया और दूसरे दिन की शाम को मैं स्वामी जी की कुटिया पहुंचा और रात्रि 10 बजे के पश्चात् उन्होंने वहीं बैठकर धूमावती साधना पूर्ण विधि से सम्पन्न करवायी।
तीसरे दिन जब मैं कार्यालय में टहल रहा था, तो मोटर साइकिल पर सवार दो लोगों ने मेरे कार्यालय प्रांगण में प्रवेश किया और ज्योंही उनकी दृष्टि मुझ पर पड़ी, तो वे एकदम भयभीत दिखाई दिए व मोटर साईकिल पर सवार होकर भाग गयें। मै समझ चुका था कि स्वामी जी ने जो धूमावती साधना सम्पन्न करवायी थी, उससे तुरंत अनुकूल परिणाम मिलने लगा है।
उस दिन शाम को मैं उन स्वामी जी से भेंट करने हेतु कुटिया पर गया, तो वे लौटने की तैयारी कर रहे थे। मैंने उन्हें अपने निवास पर आमंत्रित करना चाहा, तो वे बोले-फिर कभी आऊंगा। मैं अपने गुरू की आज्ञा से यहां आया था और जिस कार्य से आया था वह सम्पन्न हो गया है, अब मैं निश्चित हूं।
मैं सुनकर एकदम अवाक् हो गया, मैं इस बारे में जो सोच रहा था, वह बिल्कुल सत्य प्रतीत हो गया, कि यह केवल गुरू कृपा से ही सम्भव हुआ है। उनकी कितनी बड़ी कृपा हमारे ऊपर है और कितनी सूक्ष्मता से गुरूदेव अपने शिष्यों की रक्षा-सुरक्षा करते हैं, यह उनकी करूणा है। उनकी दया से मैं हर मुसीबत से सुरक्षित हो पाया हूं।
साधनाओं का क्षेत्र अपने आप में बड़ा व्यापक है, जिसकी थाह पाना सम्भव नहीं है। यह एक ऐसा विज्ञान है, जिसमें प्रामाणिक विधि-विधान एवं योग्य मार्गदर्शन द्वारा साधना सम्पन्न करने पर निश्चित ही सफलता प्राप्त होती है, जिससे व्यक्ति अपने कल्याण के साथ जन कल्याण करने में भी सक्षम हो पाता है। जीवन में सभी दृष्टियों से ज्यादा सुखमय, आनन्ददायक और तनावरहित रहता है।
दस महविद्याओं के क्रम में धूमावती सप्तम् महाविद्या है। ये शत्रु का भक्षण करने वाली महाशक्ति और दुःखों की निवृत्ति करने वाली हैं। बुरी शक्तियों से पराजित न होना और विपरित स्थितियों को अपने अनुकूल बना देने की शक्ति साधक को इसी साधना से प्राप्त होती हैं।
धूमावती साधना करने से भूत-प्रेत, पिशाच व अन्य तंत्र बाधा का साधक व उसके परिवार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
इस साधना से जीवन में धन का अभाव नही रहता क्योंकि धूमावती व्यापार, नौकरी में आने वाली बाधाओं को समाप्त कर देती है।
धूमावती दारूण विद्या हैं, सृष्टि में जितने भी दुःख हैं व्याधियां है, बाधायें है इनके शमन हेतु यह श्रेष्ठतम साधना हैं।
इस साधना को किसी भी माह कि अष्टमी, अमावस्या अथवा रविवार के दिन सम्पन्न करें। यह रात्रिकालीन साधना है, इसे रात्रि 9 बजे से 1 बजे के मध्य सम्पन्न करें।
साधक स्नान आदि से पवित्र होकर, साधना में उत्तर या पश्चिम दिशा की ओर मुख कर आसन पर बैठकर जायें। अपने सामने एक लकड़ी की चोकी पर किसी स्टील की थाली में भगवती धूमावती यंत्र स्थापित करें, उसके बायीं और किसी पात्र में वज्र दण्ड गुटिका स्थापित कर दें और सामने धूमावती माला को स्थापित करें।
सर्वप्रथम गुरू का ध्यान करें गुरू पूजन कर फिर धूमावती यंत्र पर कुंकुम से तीन बिन्दु लगा दे, अक्षत धूप व दीप दिखायें। दोनों हाथ जोड़कर धूमावती का ध्यान करें।
इस प्रकार भगवती के स्वरूप का चिन्तन करते हुए सर्वप्रथम गुरू मंत्र की 1 माला मंत्र जाप करें फिर धूमावती माला से धूमावती मंत्र की 7 माला जप करें।
यह 11 दिवस की साधना है नित्य 7 माला मंत्र जप करना अनिर्वाय है, 11 वें दिन साधना समाप्ति के बाद सामग्री को चौकी पर बिछे कपडे़ में ही लपेट कर किसी शून्य स्थान में जाकर या मन्दिर में रख दे।
यह साधना दुर्भाग्य की गूढ़ रेखाओं को मिटाकर सौभाग्य में बदलने की दिव्य क्रिया है। इस साधना के बाद निश्चय ही जीवन में सौभाग्य का सूर्योदय होगा और सम्पन्नता युक्त एवं सुखी जीवन का प्रादुर्भाव सम्पन्न होगा।
It is mandatory to obtain Guru Diksha from Revered Gurudev before performing any Sadhana or taking any other Diksha. Please contact Kailash Siddhashram, Jodhpur through Email , Whatsapp, Phone or Submit Request to obtain consecrated-energized and mantra-sanctified Sadhana material and further guidance,