यह तो निश्चित सत्य है कि सुन्दरता सब को अपनी और सहज आकर्षित कर लेती है, इसके अतिरिक्त जो व्यक्ति रूप, सौन्दर्य को अपने वश में कर लेने की शक्ति प्राप्त कर लेता है, वह साधना का एक विशेष स्तर प्राप्त कर लेता है, उसके आत्म-विश्वास में कई गुना वृद्धि हो जाती है, उसके कार्य करने की क्षमता बढ़ जाती है, और बड़ी चुनौतियों को पार करने के लिऐ तत्पर हो जाता हैं।
इसी कारण रूप-सौन्दर्य की पूजा-अर्चना और उसे दैहिक अथवा मानसिक रूप से प्राप्त करने की इच्छा अदम्य रूप से रही है, जिसे जब तक सम्पूर्ण रूप से प्राप्त न कर लिया जाये, तब तक शान्ति नहीं मिलती।
द्वापर युग अर्थात् श्री कृष्ण का समय तो नारी-सौन्दर्य की पूजा-अर्चना, साधना का सर्वोत्तम काल कहा जा सकता है, स्वयं श्री कृष्ण ने अपने पूरे जीवन में उसको पूर्ण महत्व दिया हैं, रूप-सौन्दर्य उनके वश में था और इसीलिए वे विभिन्न योग-मायायें करते हुए योगेश्वर श्री कृष्ण कहलाये।
सौन्दर्य को जीवन का उल्लास और उत्साह माना हैं, यदि जीवन में सौन्दर्य नहीं है, तो वह जीवन नीरस और उदास हो जाता है, हममें से अधिकांश व्यक्ति ऐसा ही जीवन जी रहें हैं, हमारे होठों से मुस्कराहट खत्म हो गई है, चेहरे की मांस पेशियां सख्त और निर्जीव सी हो गई है जिसके फलस्वरूप हम प्रयत्न करके भी खिलखिला नहीं सकते, उन्मुक्त रूप से हँस नहीं सकते, मुस्करा नहीं सकते, एक प्रकार से हमारा जीवन बंधा-बंधा सा बन गया है और एक जगह रूके हुए पानी से सड़ान्ध पैदा हो जाती है, उसी प्रकार एक ही चक्र में जीवन चलता रहता है तो वह निराश और बेजान सा प्रतीत होता है।
इसका कारण हम सौन्दर्य की परिभाषा भूल गये है सौन्दर्य हमारे जीवन में रहा ही नहीं है, हम धन के पीछे भागते हुए एक प्रकार से अर्थ लोभी बन गये है, और इस भाग-दौड़ से जीवन के कोई भी कार्य पूर्णता की ओर क्रियाशील नहीं हो रहें हैं और हर तरह से जीवन की अन्य वृत्तियां लुप्त सी हो गई है।
इसके विपरीत यदि हम अपने शास्त्रों को टटोल कर देखे तो हमारे पूर्वज, देवता व ऋषियों ने प्रमुखता के साथ सौन्दर्य साधनाएं संपन्न की, सौन्दर्य को जीवन में प्रमुख स्थान दिया है, देवताओं की सभा में अप्सराएं नृत्य करती थी। वशिष्ठ के आश्रम में स्थायी रूप से अप्सराओं का निवास था। विश्वामित्र ने अप्सरा साधना के माध्यम से जीवन में पूर्णता प्राप्त की थी, यही नहीं अपितु संन्यासी शंकराचार्य ने भी सौन्दर्य प्रदायिनी रम्भा अप्सरा साधना सम्पन्न करने के बाद अपने शिष्यों को संबोधित करते हुए कहा था-
इस साधना के माध्यम से साधक को यह विश्वास हो जाता है कि उसका अपने मन और अपनी इन्द्रियों पर पूर्णतः नियंत्रण है, इसके माध्यम से जीवन की वे प्रमुख वृत्तियां जो जीवन में आनन्द और हास्य का निर्माण करती है, वे वृत्तियां उजागर होती है, और मनुष्य दीर्घायुता के साथ अर्थ सुख, आनन्द और तृप्ति की पूर्णता से सरोबार होता है।
जीवन में नारी शरीर के माध्यम से ही सौन्दर्य की परिभाषा अंकित की गई है। शास्त्रों में सहस्त्र प्रकार की अप्सराओं का विवरण मिलता है और इन सभी साधनाओं के बारे में विस्तार से वर्णन है। रम्भा अप्सरा सौन्दर्य का साकार जीता जागता प्रमाण है। यदि यह प्रश्न पूछा जाये कि सौन्दर्य क्या है, तो उसे हम किसी अप्सरा के माध्यम से ही स्पष्ट कर सकते है।
अप्सरा का तात्पर्य एक ऐसी देवत्व पूर्ण सौन्दर्य युक्त सोलह वर्षीय नारी प्रतिमा है, जो मंत्रों के माध्यम से पूर्णतः आधीन होकर साधक के घोर कष्ट, दुःख में भी सुख की पूर्णता प्रदान करने में समर्थ होती है तथा तनाव के क्षणों में आनन्द प्रदान करने का सामर्थ्य रखती है। वह नित्य साधक के साथ दृश्य और अदृश्य रूप में बनी रहती है और प्रियतमा के रूप में उसकी प्रत्येक प्रकार की इच्छा पूर्ण करती रहती है।
प्रिया का तात्पर्य प्रदान करना होता है, जो लेने की इच्छा नहीं रखता, जिसमें केवल सामने वाले को सुख और आनन्द देने की भावना होती है, और अप्सरा अपने विचारों से अपने कार्यों से अपने व्यवहार से और अपने साहचर्य से साधक को वह सब कुछ प्रदान करती है, जो उसकी इच्छा होती है। मधुर वार्तालाप, सही मार्गदर्शन भविष्य का पथ प्रदर्शन, निरन्तर धन प्रदान करने की क्रिया भी अप्सरा के माध्यम से ही संभव है।
अर्थात पूर्णरूपेण अप्सरा सौन्दर्य की साकार प्रतिमा होती है। एक ऐसा सौन्दर्य युक्त शरीर, एक ऐसा महकता हुआ, फूलों की डाली की तरह लचकता हुआ कमनीय नारी देह, जो साधक को सभी दृष्टियों से पूर्णता प्रदान करने में सुख और आनन्द देने में समर्थ है, यदि देवताओं ने, हमारे पूर्वजों ने, ऋषियों ने और सन्यासियों ने अप्सरा साधना को उचित और जीवन में आवश्यक बताया है, तो मेरी राय में यह साधना जीवन का आवश्यक तत्व होना चाहिए।
मैनें अपने जीवन में कई साधनाएं सम्पन्न की है, जब तक साधना क्षेत्र में उतरते नहीं, तब तक उसका अहसास भी नहीं होता और जब हम साधना क्षेत्र में प्रवेश करते हैं, अपने मन को एकाग्र करते हैं, अपने मन को एकाग्र कर साधना क्षेत्र में आगे बढ़ते हैं तो विविध प्रकार के अनुभव होते रहते हैं, विविध प्रकार के दृश्य और बिम्ब दिखाई देते रहते हैं और जब हमें साधना में सफलता मिल जाती है तो हमारे जीवन में निश्चितता प्राप्त हो जाती है कि हम वर्तमान युग में भी साधना कर सकते है, और उसमें पूर्ण सफलता प्राप्त कर सकतें है।
यह एक अनुभूत तथ्य है कि यदि अप्सरा साधना सम्पन्न करने के उपरान्त अन्य साधनाओं को प्रारम्भ किया जाए तो उनमें अपेक्षाकृत अधिक तीव्रता से सफलता प्राप्त होने की स्थिति बन जाती है क्योंकि अप्सरा साधना करने के पश्चात निश्चय ही साधक के शरीर में ऐसे परिवर्तन हो जाते हैं जो आन्तरिक रूप से उसे नित्य यौवनवान बनायें रखने में सहायक सिद्ध होते हैं।
किसी भी साधना की विशिष्टता जिस बात में निहित होती है वह मात्र यही है कि मंत्र प्रासंगिक अर्थात् सहज शब्दों में गुरु प्रदत्त हो। वर्ष के सबसे बड़े ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्ष की रम्भा तृतीया 25 मई चन्द्र दिवस पर सौन्दर्य वृद्धि रम्भा साधना सम्पन्न करना सर्वश्रेष्ठ रहेगा।
उच्चकोटी की अप्सराओं की श्रेणी में रम्भा का प्रथम स्थान है, जो शिष्ट और मर्यादित मानी जाती है, सौन्दर्य की दृष्टि से अनुपमेय कही जा सकती है। शारीरिक सौन्दर्य वाणी की मधुरता नृत्य, संगीत, काव्य तथा हास्य और विनोद यौवन की मस्ती, ताजगी, उल्लास और उमंग ही तो रम्भा है। जिसकी साधना से वृद्ध व्यक्ति भी यौवनवान होकर सौभाग्यशाली बन जाता है, योगी भी अपनी साधनाओं में पूर्णता प्राप्त करता है। पूर्ण पौरूष शक्ति एवं सौन्दर्य प्राप्ति के लिए प्रत्येक पुरूष एवं नारी को इस साधना में अवश्य रूचि लेनी चाहिए।
क्योंकि सम्पूर्ण प्राकृतिक सौन्दर्य को समेट कर यदि साकार रूप दिया जाये तो उसका नाम रम्भा होगा। सुन्दर मांसल, शरीर, उन्नत एवं सुडौल वक्ष, काले घने और लम्बे बाल, सजीव एवं माधुर्य पूर्ण आंखों का जादू मन को मुग्ध कर देने वाली मुस्कान दिल को गुदगुदा देने वाला अंदाज यौवन भार से लदी हुई रम्भा बड़े-बडे़ योगियों के मन को विचलित कर देती है। जिसकी देह यष्टि से प्रवाहित दिव्य गन्ध से आकर्षित देवता भी जिसके सानिध्य के लिये लालायित देखे जाते हैं।
अप्सरा साधना में संलग्न साधक के व्यक्तित्व में ऐसा आकर्षण आ जाता है कि वह जिस व्यक्ति को भी अपने अनुकूल बनाना चाहता है, उसे अपने प्रभाव में करने में समर्थ हो जाता है, और उसकी वाणी में ऐसा प्रभाव आ जाता है कि उसके सभी कार्य सफल होते रहते हैं।
उसके यौवन में एक विशेष प्रकार की स्फूर्ति आ जाती है, शरीर के रोग स्वतः ही समाप्त होने लगते हैं, तथा आगे भी किसी प्रकार की रोग-बाधा नहीं रहती। लक्ष्मी की उस पर विशेष कृपा हो जाती है।
वैवाहिक, पारिवारिक, सामाजिक जीवन में क्लेश व तनाव की स्थिति उत्पन्न हो, तो इस साधना के प्रभाव से उसके वैवाहिक, पारिवारिक व सामाजिक जीवन में प्रेम सौहार्द की स्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं।
इस साधना के प्रभाव से मन के अनुकूल संस्कारित सौन्दर्य युक्त जीवन साथी की प्राप्ति होती है।
साधना प्रारंभ करने से पूर्व साधक को चाहिये कि स्नान आदि से निवृत्त होकर अपने सामने चौकी पर स्वच्छ वस्त्र बिछा लें, पीले आसन पर बैठ कर पीली धोती पहन लें और पूर्व दिशा की ओर मुख कर बैठ जायें। घी का दीपक जला लें। सामने चौकी पर एक प्लेट रख लें, दोनों हाथों में गुलाब की पंखुडि़यां लेकर रम्भा का आवाहन करें।
यह आवश्यक है कि यह आवाहन कम से कम 51 बार अवश्य हो प्रत्येक आवाहन मंत्र के साथ एक पंखुडी़ थाली में रखें इस प्रकार आवाहन से पूरी थाली पुष्प पंखुडियों से भर दें। अब अप्सरा माला पंखुडियों के ऊपर रख दें, इसके बाद अपने आसन और स्वयं के ऊपर इत्र छिड़कें। अप्सरा यंत्र माला के साथ स्थापित करें। सौन्दर्य गुटिका यंत्र के बायीं ओर स्थापित करें।
सुगन्धित अगरबती एवं घी का दीपक साधना अवधि तक प्रज्जवलित रखें।
सबसे पहले गुरु पूजन और गुरु मंत्र जप करें। फिर यंत्र तथा अन्य साधना सामग्री का पंचोपचार पूजन सम्पन्न करें। स्नान, तिलक, दीपक एवं पुष्प चढ़ायें इसके बाद बायें हाथ में पीले रंग से रंगा हुआ चावल निम्न मंत्रों का उच्चारण करते हुये यंत्र पर चढ़ायें-
ऊँ दिव्यायै नमः।
ऊँ प्राण्प्रियायै नमः।
ऊँ वागीश्वयै नमः।
ऊँ ऊर्जस्वलायै नमः।
ऊँ सौन्दर्य प्रियायै नमः।
ऊँ देवप्रियायैं नमः।
ऊँ यौवनप्रियायै नमः।
ऊँ ऐश्वर्यप्रदायै नमः।
ऊँ सौभाग्यदायै नमः।
ऊँ धनदायै रम्भायै नमः।
ऊँ आरोग्य प्रदायै नमः।
इसके बाद अप्सरा माला से निम्न मंत्र की 11 माला प्रतिदिन मध्य रात्रि में जप करें।
प्रत्येक दिन अप्सरा आवाहन करें और हर शुक्रवार को दो गुलाब की माला रखें, एक माला स्वयं पहन लें, दूसरी माला को यंत्र पर पहना दें। यह 11 दिन की साधना हैं। साधना में प्रत्येक दिन नये-नये अनुभव होते है चित्त में सौन्दर्य भाव बढने लगता है स्त्रियों द्वारा इस साधना को सम्पन्न करने पर चेहरे की झाईयां व शरीर का थुलथुलापन इत्यादि दूर होने लगती है।
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