संभवतः महामारी पर जल्द नियंत्रण कर लिया जायेगा पर इसका दुष्प्रभाव व इससे हो रहा नुकसान हमारी अर्थ व्यवस्था, दैनिकचर्या, जीवन यापन के संसाधनों, वातावरण समाज, व देश-दुनिया के विकास पर वर्षो तक रहेगा। कुछ दिनों बाद हम अपने सामान्य जीवन पर लौट जायेंगे पर हमारी निर्भरता सरकार, समाज पर अधिक बढ़ जायेगी, हम सभी के देह, मन, विचार पर इसका अत्यधिक प्रभाव पडे़गा।
वैज्ञानिक खोज के बाद कई नये तथ्य हमारे सामने उजागर होगें। गलत कहां हो रहा है? इस महामारी से हमारे जीवन में रोग व पतन का क्या कारण है? ये हम सभी को पता है, परन्तु हमने इसे कभी गंभीरता से नहीं लिया या यह कहकर स्वयं को मना लिया कि इस पतन में मेरा योगदान नहीं है।
परन्तु हमे अपने आपको भ्रम वश बहलाने से महामारी की स्थितियों में विराम नहीं आयेगा। इसके लिये नित्य-प्रतिदिन की क्रियाओं में सुभावमय स्थितियां लानी होंगी। जिस तरह से प्रत्येक क्षण हमारे देह में परिवर्तन होता रहता है और इस परिवर्तन के साथ देह को क्रियाशील रखते हैं। ठीक उसी तरह मन, वचन, कर्म में प्रासांगिकता व निरन्तरता से ही अपने आप में सुधार आयेगा और जब अपने आप में निश्चिन्त रूप से प्रकृति में भी श्रेष्ठता आ सकेगी। प्रकृति के साथ हमारा सामंजस्य बराबर सहयोगात्मक स्वरूप में रहेगा तो देव शक्तियां भी साधक, शिष्य को पूर्णरूपेण सुरक्षा, सुचिता, आनन्द, चेतनामय स्थितियां प्रदान करेंगी।
सम्पूर्ण मानव जाति ने पृथ्वी का क्षय किया है, किसी जीव जन्तु ने नहीं किया। अपने स्वार्थ हित व मनोरंजन आनंद के लिये हमें स्वयं की क्षति करने में इतना आनन्द आने लगा कि हम अपने आस-पास की हर सुन्दर प्राकृतिक सुन्दरता को नष्ट करने में लगे रहें।
हम Aritificial कृत्रिम चीजों के भोग के लिये प्राकृतिक चीजो को नष्ट कर रहें हैं। आज छोटे बच्चे से लेकर बडे़ बुजुर्गों को Sugar, Blood Pressure के रोगो से ग्रसित हैं। सभी की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो गई है और ये सभी हम से प्रकृति द्वारा दिये गये संसाधनो का अपने अनुरुप दुरुपयोग कर उसका नाश करने के फलस्वरूप हो रहा है। इसी तरह से अगर हम भयावह स्थितियों की ओर चलते रहें तो वो समय दूर नहीं जब स्वच्छ हवा डिब्बों में और फलों की इंजेक्शन द्वारा दी जायेगी।
समय रहते अगर हम सुधर जाए तो हम प्रकृति को अपने लिये बचा पायेंगे तो ही हम हर तरह से सुरक्षित रह पायेंगे, अपने आपको महान या सर्वश्रेष्ठ घोषित करने से महान नहीं बन जाते, महानता का तात्पर्य जीवन में हर स्वरूप में सभी को साथ लेकर अनुकूलमय स्थितियों का विस्तार करने पर ही उत्तरोतर श्रेष्ठता की प्राप्ति हो पाती है और जिस क्षण उक्त क्रियायें प्रारम्भ करेंगे और उसमें निरन्तरता बना के रखेंगे तब ही महान-महान स्थितियों की चेतनाओं से अभिभूत हो सकेंगे। अतः हमें अपने आपको देव शक्तियों और प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित कर क्रियाशील रहना है।
इसके लिए हमें अधिक से अधिक प्रकृति के साथ रहना है। अधिक से अधिक वृक्षारोपण करना है, संयमित पौष्टिक व प्राकृतिक आहार ही ग्रहण करना है। अपनी दैनिक जीवनचर्या को ईश्वर, महात्माओं व गुरुओं द्वारा प्रदत्त क्रियाओं के अनुरुप ढ़ालना है। जितना हम प्रकृति परिवार, परिजनो, मित्रों के साथ सहयोग की भावना को क्रियान्वित करेंगे तो ही उसका कोटि गुणा सर्वरूप में सहयोग प्राप्त होगा। तब ही वर्तमान में जो हम एकांकी जीवन, अवसाद, तनाव, अनेक-अनेक मानसिक बीमारियों व मन में हर समय सैकड़ो-सैकड़ो रूप में उत्पन्न् होने वाले कुविचार, ईर्ष्या, वैमनस्यता का पूर्णरूपेण शमन हो सकेगा।
भारतीय मूल, संस्कृति, आध्यात्मिक मूल का संरक्षण करना हैं। क्योंकि ईश्वर ने सृष्टि में हमें पूर्ण आनन्द व वृद्धि के लिये देह प्रदान की है, जो समय रहते वापस भी ले लेता है। इसका तात्पर्य इस सृष्टि में हम स्थायी रूप से नहीं आयें हैं, परन्तु हम अपने जीवन को प्रकृति के उपयोग में नियोजित करेंगे तो सृष्टि में स्वर्ण अक्षरों में हमारा नाम अंकित हो सकेगा।
इस महामारी से निजात ( छुटकारा ) पाने के लिए वैज्ञानिक डॅाक्टर कार्यरत हैं, इससे पूर्ण विश्व में व भारतवर्ष में Spanish Flue] प्लेग, Colura] चेचक जैसी भयावह महामारी हमें प्रभावित कर चुकी हैं, अनेकों वैज्ञानिक विकास व अनुंसधान के बाद भी हम प्लेग, चेचक, कोनोरा जैसी अनेकों महामारी का इलाज नहीं खोज पाए है न ही इसका वास्तविक कारण, पता चल पाया है। वर्तमान में भी कोरोना जैसी महामारी फैलने पर हमारा पूरा ध्यान, चिंतन पेट के भरण-पोषण के लिये व्यवस्था करने में जुट गये, अर्थात् सुपोषण से ही हम स्वस्थ रह सकते हैं। साथ ही साथ अपने आपके प्रति सुविचारों की वृद्धि करना व उन्हें पूर्ण करने के लिये क्रियाशील रहना आवश्यक है।
अतः अपनी जीवनचर्या में कर्मशीलता के साथ अपना जुड़ाव ईश्वर व गुरु की आराधना में नियोजित करेंगे तो भविष्य में इस तरह की महाविनाश की स्थितियां निर्मित नहीं होगी। इसके लिये जो भी संभव होगा उसके लिये कैलाश सिद्धाश्रम आप सभी को निरन्तर सहयोग व मार्गदर्शन प्रदान करता रहेगा।
It is mandatory to obtain Guru Diksha from Revered Gurudev before performing any Sadhana or taking any other Diksha. Please contact Kailash Siddhashram, Jodhpur through Email , Whatsapp, Phone or Submit Request to obtain consecrated-energized and mantra-sanctified Sadhana material and further guidance,