अंगूर, जिसे द्राक्ष या दाख भी कहा जाता है- अंगूर से आप सभी परिचित हैं, इसकी आरोहिणी लतांये होती हैं। लताओं का रंग लालिमा लिये होता है, इसके पत्ते 6-8 इंच लंबें-चौड़े, 3-7 कोणीय या खंडित रोम युक्त होते हैं, पुष्पदंड छोटे होते हैं जिन पर तंतु सूत्र नहीं होते हैं, इसके फूल हरे रंग के गुच्छों में लगते हैं, फल गोस्तनाकार गुच्छों में होते हैं, जिनमें 3 से 5 तक बीज होते हैं।
आकार की दृष्टि से अंगूर के फल छोटे और बडे़ दो प्रकार के होते हैं, छोटे अंगूर बीज रहित होते हैं, जबकि बडे़ अंगूर में बीज होते हैं, अंगूर जब सूख जाते हैं, तब इन्हें मुनका या किसमिस कहते हैं, मुनका की अपेक्षा हरा ताजा अंगूर कुछ खट्टा, किंतु अधिक स्वादिष्ट और गुणकारी होता है, अंगूर से अनेक आयुर्वेदिक औषधियों का निर्माण किया जाता है, जिनमें कुछ प्रमुख औषधि हैं- द्राक्षारिष्ट, द्राक्षादि काथ, द्राक्षादिलेह, द्राक्षादि घृत आदि।
शरीर के भीतरी कोष-संघटन, मांसपेशियां तथा तंतुओं को चुस्त, क्रियाशील तथा विकासवान रखने के लिए जिन रासायनिक तत्वों की आवश्यकता होती है, वे प्रायः सभी तत्व अंगूर में पाये जाते हैं, नाड़ी मंडल को पुष्ट रखने के लिए ऑक्सीजन, ग्लूकोज, पोटिशियम और शर्करा युक्त आहार की जरूरत होती है, इन सभी की पूर्ति अंगूर से हो जाती है, मधुर फलों में सर्वाधिक ग्लूकोज अंगूर में होता है, हमारा शरीर अंगूर से शर्करा, ग्लूकोज एवं फ्रूटोज बिना इंसुलिन की सहायता के ग्रहण कर लेता है।
अंगूर को संस्कृत (आयुर्वेद) में द्राक्षा (जो मन को प्रिय हो), मृद्वीका ( जो शरीर को मृदु-स्निग्ध करें), गोस्तनी (गोस्तन के आकार की) तथा मधुरासा कहते हैं, हिंदी में दाख, मुनका, अंगूर, हवुस, जबीब और अंग्रेजी में ग्रेप (Grape)] कहते हैं, इसका लैटिन नाम वाइटिस विनिफेरा (Vitis Venifara Linn) है।
अंगूर रेचक, शीतल, नेत्रें के लिए हितकारी तथा शरीर के लिए पौष्टिक है, इसके सेवन से सदा यौवन बना रहता है और बुढ़ापा दूर भागता है, अंगूर के औषधीय गुणों के बारे में कहा गया है-
अंगूर गुण में स्निग्ध, गुरु व मृदु है, यह रस में मधुर, विपाक में मधुर और वीर्य में शीत है, इसको खाने से गला साफ होता है तथा आवाज सुरीली बनती है, मूत्र, कब्जनाशक तथा पेट की गैस को दूर करता है, यह खाने में स्वादिष्ट, रति शक्ति को बढ़ाने वाला और प्यास को बुझाता है।
यह मधुर होने से वात और शीत होने से पित्त का शमन करता है, किंतु कफकारक, ज्वर, श्वास, उल्टी, पीलिया, मूत्र विकार, मूर्च्छा, जलन तथा मदात्यय रोगों का नाशक है, अंगूर शुक्र-दौर्बल्य एवं गर्भाशय की कमजोरी में अंगूर का सेवन करने से लाभ होता है।
अंगूर का प्रयोग अनेक रोगों में घरेलू एवं आयुर्वेदिक औषधि के रूप में किया जाता है, कुछ रोगों में अंगूर के प्रयोग निम्न प्रकार हैं-
सोठ, काली मिर्च, पीपर और सेंधा नमक-प्रत्येक 10-20 ग्राम लेकर सूक्ष्म चूर्ण बना लें, फिर इसमें आधा किलो बीजरहित काला अंगूर मिलाकर चटनी की तरह पीसकर किसी कांच के बर्तन में रख दें, अवस्था और बलानुसार इसे 5 से 15 ग्राम तक प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन करें, इससे पाचक अग्नि तेज होती है तथा अरूचि, कब्ज, पेट दर्द, गैस आदि उदर रोग दूर हो जाते हैं।
छोटे बच्चों को कब्ज की शिकायत होने पर प्रतिदिन सुबह 5-10 अंगूर बच्चे को खिलाएं, इससे मल की शुद्धि होकर कब्ज दूर होती है।
पचास काले अंगूर रात को पानी में भिगो दें, सुबह मसल-छान कर पीने से कब्ज की शिकायत दूर हो जाती है।
अंगूर और अमलतास के काढ़े में गुड़ मिलाकर पीने से गर्मी व थकान से उत्पन्न् बुखार का शमन होता है।
अंगूर, पित्तपापड़ा और धनिया इन तीनों को पानी में भीगों दें, फिर इन्हें पीस व छानकर पीने से आमजन्य ज्वर शांत होता है तथा ज्वर के कारण उत्पन्न घबड़ाहट, सिरदर्द, बेचैनी आदि लक्षण भी दूर हो जाते हैं।
खासी में भी लाभकारी है, इसके लिए बीज रहित मुन्न्का 15 ग्राम, बादाम गिरी 15 ग्राम और मुलहठी 15 ग्राम लेकर सबको एक साथ पीस लें फिर मटर के बराबर गोलियां बनाकर छाया में सुखाकर रख लें, इसे 1-2 गोली मुख में रखकर दिन में 3-8 बार चूसें, ऐसा करने से खांसी ठीक हो जाती है।
मूत्र रोगों में 50 ग्राम अंगूर को रात को ठंडे पानी में भिगों दें, सुबह उसे मसलकर छान लें, फिर उसमें थोडा सा जीरे का चूर्ण मिलाकर कुछ दिनों तक नियमित पीने से पेशाब की जलन दूर हो जाती है।
कमजोरी में बीजरहित द्राक्ष 20-25 ग्राम खाकर ऊपर से दूध पीने से शारीरिक कमजोरी दूर हो जाती है तथा शक्ति में वृद्धि होती है।
यद्यपि अंगूर में लौह तत्व की मात्रा कम होती है, फिर भी रक्त की कमी के कारण उत्पन्न पांडुरोग में यह उपयोगी है, अंगूर का रस खून की कमी को रोकता है, इसके सेवन से लौह तत्व की कमी तथा विटामिन और क्षारों की कमी के कारण उत्पन्न विकार दूर हो जाते हैं, अधिकांश बीमारियां पोषण की कमी, विटामिनों व क्षारों की न्यूनता से उत्पन्न होती है, अंगूर इन कमियों को दूर करता है।
वैज्ञानिक शोध से भी पता चला है कि अंगूर में स्थित मैलिक एसिड, सायट्रिका एसिड और टार्टरिक एसिड जैसे तत्वों से रक्त की शुद्धि होती है। अंगूर के सेवन से रक्त संचार तीव्र और सुचारू रूप से होता है, इससे नया ताजा रक्त पुरानी पेशियों को बदलकर नयी पेशियां उत्पन्न करता है, द्राक्षशर्करा ग्लूकोज के रूप में होने के कारण आसानी से पच जाती है, जिससे पाचन तंत्र पर किसी प्रकार का दबाव नहीं पड़ता है।
अंगूर मानसिक विकार, श्वास आदि रोगों से भी रक्षा करता है, अंगूर में उत्तेजना और ताजगी देने का भी गुण है, अंगूर से आयुर्वेदिक आसव, अरिष्ट और अवलेह बनाये जाते हैं, जो अनेक रोगों में सर्वोत्तम औषधि का काम करता है। इनके अतिरिक्त अंगूर और भी कई रोगों को दूर करता है, वैज्ञानिक शोधों से पता चला है कि अंगूर के सेवन से कैंसर जैसे असाध्य रोगों से भी बचाव होता है, अतः जो लोग आजीवन स्वस्थ रहना चाहते हैं, उन्हें अंगूर का सेवन नियमित रूप से अवश्य करना चाहिए।
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