विद्या ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम् ।
पात्रत्वाद्धनमाप्नोति धनाद्धर्म ततः सुखम ।।
विद्या से विनय आती है, विनय से पात्रता, सज्जनता आती है। पात्रता से धन की प्राप्ति होती है, धन से धर्म और धर्म से सुख की प्राप्ति होती है।
हम सभी ने विद्या-शिक्षा-ज्ञान को प्राप्त कर अपने जीवन में उतारा और उस सन्दर्भ में कार्य कर अपना जीवन यापन कर रहें हैं। चाहे हम डॅाक्टर, इंजीनियर, शिक्षक, किसी फैक्ट्री में या कोई व्यवसाय में कार्यरत हैं, वह हम तभी कर पा रहें हैं, जब हमने उससे सम्बन्धित शिक्षा प्राप्त की, समझा व अपने अन्दर उतारा और जो इस ज्ञान को नहीं उतार पाये वे बेरोजगार हैं या दर-दर भटक रहें हैं, उनके पास डिग्री तो है पर वो ज्ञान नहीं है। वे स्वयं को असमर्थ मान कर लाचार बेबस पड़े हैं क्योंकि उनको अवसर, मार्ग मिला या दिया गया, उसका वह सही रूप से प्रयोग नहीं कर सके, उस मार्ग पर चल नहीं सके।
गरीब घर में पैदा होना आपकी किस्मत है, परन्तु गरीबी में ही जीवन यापन करना आपकी नपुंसकता है क्योंकि जीवन की गरीबी और दरिद्रता समाप्त करने के लिये देवमय देह प्राप्त हुई है और इस देह में सभी कर्मेन्द्रियां-ज्ञानेन्द्रियां जाग्रत हैं। यह आपका भाव-चिंतन है कि इन सभी क्रियाओं का जीवन में विस्तार करते हैं अथवा जैसा जीवन मिला है, वैसी ही स्थिति में बने रहना चाहते हैं अर्थात् अपने आप में किसी भी तरह का परिवर्तन नहीं करके यथा स्थिति ही रखेंगे तो जीवन और अधिक दुःख और दरिद्रमय बन जायेगा और इसका पूरा-पूरा दोष केवल और केवल आपका ही होगा। इसके विपरीत इन सभी सुस्थितियों का सद्पयोग कर जीवन को हर दृष्टि से सुखमय बनाया जा सकता है।
गुरु भी हमें वह ज्ञान प्रदान करते है, हमारा मार्ग प्रशस्त कर हमें वह चेतना देते हैं, जिससे हम अपने जीवन में सफल हो सकें, हमें किसी के आगे हाथ न फैलाना पड़े, हमारे ऋषियों ने, गुरु ने इतनी साधना, तप कर उस ज्ञान का सृजन किया है, जिसे हम अपने जीवन में उतारते हैं- उस ज्ञान का अध्ययन करते हैं, जब हम अपने गुरु को, गुरु ज्ञान को अपने अन्दर उतारते हैं, अपने अन्दर आत्मसात करते हैं, तो हममें विनम्रता का भाव आता है, विनय का भाव आता है, हम एक ज्ञान पूर्ण सज्जन व्यक्तियों में आते है व उन्हीं के साथ हमारी तुलना होती है। आप सभी अपने जीवन में कल्याणकारी इच्छायें रखते हैं, वैभव व धन की कामना करते हैं और लक्ष्मी भी सिर्फ उसी के पास रहती है, जो विनम्र है, सज्जन है, जिसके मन में कर्मरूपी उन्नति का भाव है, वहां लक्ष्मी निश्चिन्त रूप से आती ही है।
नूतन वर्ष 2077 प्रारम्भ हो चुका है और ये नवरात्रि के दिवस सृष्टि के उत्पत्ति के पर्व हैं। हमारे हृदय भाव में भी अपने जीवन रूपी सृष्टि के श्रेष्ठ चिंतन भाव होने चाहिये। साथ ही उसे निरन्तर क्रियान्वित करने का कर्म भाव होगा तब ही यह नूतन वर्ष सर्वश्रेष्ठ बन सकेगा। हम सभी गुरुमय होना चाहते हैं, अपने गुरु की तरह ही ज्ञानवान व सम्पन्न होता चाहते हैं, साथ ही उच्चकोटीमय जीवन में स्थितियां बनें इसी हेतु निरन्तर क्रियाशील रहकर ही अपने जीवन के बहुत ही लघु स्वरूप से विशाल-विशालमय स्थितियां प्राप्त कर सकते हैं।
आप अपने हृदय रूपी मन-मन्दिर से न्यून, मलिन, कुविचारों को निरन्तर निकालने का प्रयास करें व हृदय भाव में गुरु रूपी ज्ञान कमल को पल्लवित करेंगे तो आप सुख-समृद्ध भौतिक व आध्यात्मिक सुख की प्राप्ति कर सकेंगे। यह कोई कोरी कल्पना नही है, एक अटल सत्य है, जिसे पूर्व में कई साधकों ने सम्पन्न कर दिखाया था और आप में से भी कई इसे कर दिखायेंगे, ये मेरा आप में व मेरे सद्गुरुदेव में विश्वास है।
आपका अपना
विनीत श्रीमाली
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