सूर्य असीम शक्ति और सामर्थ्य से युक्त ग्रह है, जो अत्यधिक ऊष्मा, प्रचण्ड ताप और हिम से भी अधिक शीतलता रखने वाला ग्रह है। संसार के समस्त पदार्थों की सरंचना सूर्य रश्मियों के माध्यम से संभव हैं। यदि सही प्रकार से सूर्य और उसकी रश्मियों के गुणों को समझ लिया जाए तो पूरी पृथ्वी पर आश्चर्यजनक परिणाम केा समझ सकते हैं।
योगी विशुद्धानन्द जी जैसे विशिष्ट सिद्धाश्रम संस्पर्शित योगी ने सूर्य की रश्मियों से कई पदार्थों को मनचाहे पदार्थों में बदल कर दिखाया । पूज्यपाद सद्गुरू के अनुसार किसी पदार्थ में सूर्य किरणों के माध्यम से अणु से परमाणु में परिवर्तन किया जा सकता है, परन्तु इस विद्या में दक्ष होने के लिये योग्य गुरू के निर्देशन में विशेष साधनाओं को सम्पन्न करना अनिवार्य है।
इसलिये तो हमारें भारतीय ऋषि-मुनियों ने एक ही स्वर में कहा है की ग्रहण काल से श्रेष्ठ कोई समय ही नहीं होता। इस समय में पूजा, पाठ, साधना या किसी भी शुभ कार्य को सम्पन्न करने से उसमें हमें शीघ्र सफलता प्राप्त होती ही है।
अवतारों के जीवन में भी ग्रहण की महत्ता के प्रसंग देखने की मिलते है,भगवान राम ने भी अपने गुरू विश्वामित्र से ग्रहण काल में दीक्षा प्राप्त कर रावण से युद्ध में विजय प्राप्त की, भगवान कृष्ण ने भी अपने गुरू सान्दीपन से दीक्षा प्राप्त की थी, ठीक उस समय ग्रहण काल चल रहा था क्योंकि ग्रहण के समय ही तपस्यांश, दीक्षा, साधनात्मक प्रवाह को पूरी तरह ग्रहण किया जा सकता है।
द्वापर युग में जब कौरवों और पाण्डवों का युद्ध शुरू होने जा रहा था। एक तरफ कौरवों की सेना सुसज्जित हो चुकी थी, दूसरी ओर पाण्डवों की भी सेना तैयार खड़ी थी कि कब युद्ध का बिगुल बजे और युद्ध प्रारम्भ हो। पाण्डवों ने श्रीकृष्ण से युद्ध प्रारम्भ करनें की आज्ञा मांगी परन्तु कृष्ण ने उन्हें रोक दिया।
क्योंकि कृष्ण जानते थे कि यदि अभी युद्ध आरम्भ हो गया तो विजय किसकी होगी निश्चित नहीं होगा इसलिये उन्हेाने पाण्डवों से कहा अभी कुछ देर में ही सूर्यग्रहण लगने वाला है, यदि तब युद्ध का शंखनाद किया जाय, तो विजय निश्चित ही पाण्डवों के पक्ष में होगी। भगवान श्री कृष्ण ग्रहण के इन सिद्ध क्षणों को समझ रहें थे और निश्चित समय पर जब पाण्डवों ने युद्ध प्रारम्भ किया तो इतिहास साक्षी है, कि एक-एक कर सारे कौरव काल के गर्त में समा गये और पाण्डवों को श्रेष्ठ काल के प्रभाव से विजय श्री की प्राप्ति संभव हो पायी ।
जीवन में सब कुछ तो दुबारा प्राप्त किया जा सकता है, परन्तु वह क्षण जो बीत गया उसे दुबारा वापस नहीं लाया जा सकता। नक्षत्रों का जो संयोग, ग्रहण का जो प्रभाव इस बार बन रहा है, वह दुबारा नहीं आयेगा, ग्रहण तो जीवन में बहुत आयेंगे पर जो नक्षत्र संयोग इस बार है, वे ठीक उसी प्रकार नहीं होंगे, ना जाने जीवनकाल में काल की कौन सी परिस्थितिया हो और हम साधना कर सकें या नहीं इसलिए श्रेष्ठ साधक वे ही जो इस क्षण के महत्व को पहचान कर निर्णय लेने में विलम्ब नहीं करते है।
इस बार 15 दिनों के अन्तराल में दो ग्रहण पड़ रहे है, आषाढ़ मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को सूर्य ग्रहण व ठीक इसके 15 दिवस बाद आषाढ़ी पूर्णिमा पर चन्द्र ग्रहण सम्पन्न होगा। यह आषाढ़ी पूर्णिमा वर्ष का महान पर्व गुरू पूर्णिमा के स्वरूप में सम्पन्न होगा। अतः दोनो विशेष ग्रहण काल युक्त गुरू पूर्णिमा का पर्व साधनात्मक दृष्टि से पूर्ण विजय सिद्ध मुहूर्त है। एक पक्ष के अन्तर में एक साथ सूर्य और चन्द्र ग्रहण पडे़ तो और भी उत्तम होता है।
साधक के जीवन में अनेक प्रकार की इच्छाये होती है, ऐसा स्वर्णिम ग्रहण-संयोग जीवन में हम साधनाओं व शक्तिपात दीक्षाओं कि क्रिया के माध्यम से-धन, पद, प्रतिष्ठा, यश, मान, ऐश्वर्य, कुण्डलिनी जागरण, पूर्णता, श्रेष्ठता, तेजस्विता और जीवन में जो कुछ भी हमें चाहिये वह सब ऐसे अद्वितीय ग्रह संयोग में साधना द्वारा की गयी कोई भी क्रिया कभी निष्फल नहीं होती।
हम जीवन में चाहते है कि दीर्घायु हों, हमारा सुखी परिवार हो, श्रेष्ठ पुत्र-पुत्रियां हो, श्रेष्ठ व्यापार-नौकरी हो, हम आर्थिक दृष्टि से उन्नति करें, किसी प्रकार की कोई बाधा हमारे जीवन में ना रहें, हम पूर्ण स्वस्थ हों, और भी कई प्रकार की मनोकामनाये हो सकती है, ठीक वहीं योगी, यति व संन्यासी भी इन क्षणों के इन्तजार में हैं, कि कब वह क्षण आये और वे अपनी मनोवांछित साधनाओं को पूर्ण मंत्र चेतन्य युक्त कर सकें।
जबकि ग्रहण काल वैज्ञानिक रूप से भले ही अच्छा ना हो पर इसमें एक गुण अवश्य है, कि ग्रहण काल साधना हेतु सर्वश्रेष्ठ पूर्ण उपयोगी काल है। साधारण समय में किया गय एक लाख जप से ग्रहण समय में किये गये कुल मंत्र जप कई गुना अधिक फल देता है।
इसलिये तो ग्रहण का समय हमारे जीवन काल में बहुत महत्व है, वैसे हम उसे समझ नहीं पाते और उस विशेष समय को व्यर्थ की चिन्ता कर उस श्रेष्ठ समय का उपयोग नहीं कर पाते इसलिये मैं इस बार आप सभी को श्रेष्ठ विशिष्ट साधनाये दे रहा हूं, जो कि अपने आप में प्रामाणिक, महत्वपूर्ण और शीघ्र सफलतादायक है। साधकों को साधना प्रारम्भ करने से पहले ही साधना से सम्बन्धित साम्रगी यंत्र आदि प्राप्त कर रख लेना चाहिये।
सबसे पहले स्नान आदि कर पीली धोती पहन कर पीले आसन पर बैठ जाये अपने सामने एक चौकी पर स्वच्छ पीला वस्त्र बिछा लें उसके बाद एक थाली में कुकुंम से त्रिशूल बनाकर उस पर आषाढ़ी कामना यंत्र को स्थापित करें। त्रिशूल के तीनों शूलों पर चावल की एक एक ढेरी बना ले शूलो की तीन ढेरी पर एक-एक गोमती च्रक स्थापित करें।
त्रिशूल के तीनों शूल तीनों देवों ब्रह्मा, विष्णु, महेश के प्रतीक है, और साथ ही साथ उनकी शक्तियां महासरस्वती, महालक्ष्मी, महाकाली का भी प्रतीक है, त्रिदेव व उनकी शक्तियां द्वारा साधक के मनोकामना पूर्ण होती हैं, इसी भाव से त्रिशूल पर स्थापित यंत्र का कुंकुम, अक्षत, पुष्प धूप आदि से पूजन करें इसके पश्चात् साधना में सफलता के लिए 3 माला गुरू मंत्र जप करें।
गुरू मंत्र जप करने के बाद दोनों हाथ जोड़कर तीनों देवता का ध्यान करें-
अब सूर्य सिद्धि माला से निम्न मंत्र की 21 माला जप सम्पन्न करें-
मंत्र जप के बाद दो माला गुरू मंत्र की और जप करें, अगले दिन सभी साधना सामग्री को किसी वस्त्र में बांध कर नदी या तालाब में विसर्जित कर दे।
एक और सामाजिक उपयोगिता से सम्बन्धित प्रयोग है, जो शत्रुहन्ता प्रयोग है, अर्थात् इस साधना से हम शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर सकते है।
इस साधना में तीन लघु नारियल अपने पूजा स्थान में किसी थाली में चावल की ढेरी बनाकर उस पर स्थापित करें। साधक लाल या पीली धोती पहन कर, दक्षिण दिशा की और मुंह कर इस साधना को सम्पन्न करे ।
सर्वप्रथम गुरू पूजन करें उसके बाद 2 माला गुरू मंत्र जप कर साधना सामग्री को कुंकुम अक्षत से पूजन सम्पन्न करें यह एक गोपनीय तिब्बती प्रयोग है। जिसे ग्रहण काल में ही सम्पन्न किया जाता है, जिससे हमारे जीवन में जो शत्रु है उन सभी शत्रुओं का नाश हो सकें।
हाथ में जल लेकर संकल्प करें जो भी आपके जीवन में शत्रु रूपी बाधाये है, उन पर विजय प्राप्त हो और जीवन में निश्चिंत, निर्भीक होकर अपने जीवन में आगे बढ़ सके। इसके बाद देवी कालरात्रि का ध्यान करें-
ध्यान के बाद शत्रुहन्ता माला से निम्न मंत्र की 7 माला जप करें-
मंत्र जाप के बाद सभी सामग्री को किसी मंदिर या पेड़ के नीचे अर्पित कर दे।
अब मैं एक विशिष्ट साधना आपके सामने स्पष्ट कर रहा हूं, जिसे सूर्य सम्मोहन युक्त तेजस्विता प्राप्ति साधना कहते है। जिसके माध्यम से हम किसी को सम्मोहित कर सकते है, वह चाहे कोई पुरूष हो या स्त्री हो, या उच्चकोटि का व्यक्तित्व हो। इस साधना के माध्यम से हम उसको अपनी और आकर्षित कर सकते है।
इस साधना में साधक स्वच्छ लाल या पीले रंग की धोती धारण कर पीला आसन बिछाकर अपने सामने एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछा कर उस पर 5 दीपक प्रज्ज्वलित करें उसके बाद एक पात्र में सूर्य सम्मोहन कवच स्थापित कर गुरू पूजन सम्पन्न करे इसके बाद साधना सामग्री को कुंकुम अक्षत से पूजन कर गुरू मंत्र की 3 माला जप सम्पन्न कर सूर्य का ध्यान करें-
ध्यान के बाद तेजस्वी माला से निम्न मंत्र की ग्रहण काल में 21 माला जप सम्पन्न करें-
इस साधना की दो स्थितियां है, एक आपके घर में आपके बच्चे आपकी बात नहीं सुनते है, और वह गलत रास्तो पर जा रहे है, तो आप उनके नाम से संकल्प लेकर भी ये साधना सम्पन्न कर सकते है, यह अपने आप में एक प्रामणिक और महत्वपूर्ण साधना है।
साधना समाप्ति के बाद सभी सामग्री को किसी लाल वस्त्र में बाँध कर नदी या तालाब में विसर्जित कर दे।
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