जो भगवान शंकर सुन्दर ताम्रपर्णी नामक नदी व समुद्र के संगम में श्री रामचन्द्र जी के द्वारा अनेक बाणों से या वानरों द्वारा पुल बांधकर स्थापित किये गये है उन्हीं श्री रामेश्वर नामक शिव को हम आत्मीयता से प्रणाम करते हैं।
रामेश्वरम् ज्योतिर्लिंग तमिलनाडु राज्य के रामनाथ पुर नामक क्षेत्र में स्थित है। भारत के दक्षिण समुद्र के तट पर स्थित श्री रामेश्वरम् धाम का महत्व केवल धार्मिक या पौराणिक न होकर ऐतिहासिक एवं सामाजिक भी है। नगर की हर दिशा से इस मंदिर के सम्मुख समुद्र की अपार जलराशि है और पीछे गन्धमादन पर्वत है। भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग में श्री रामेश्वर ज्योतिर्लिंग ग्याहरवां ज्योतिर्लिंग है।
इस ज्योतिर्लिंग की बहुत मान्यता है। इस धाम के नाम में श्री राम का नाम भी समाहित है। मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम ने स्वयं अपने हाथों से इस ज्योतिर्लिंग को प्रतिष्ठित किया था।
श्री रामेश्वर ज्योतिर्लिंग के कारण ही यह सारा क्षेत्र चारों धाम में परिमाणित है। वर्तमान में कला एवं शिल्प की दृष्टि से अत्यन्त मनोरम मंदिर में एक विशाल काले लिंग रूप में भगवान शिव की आराधना होती हैं। मंदिर के पहले परकोटे में घुसते ही दोनों ओर दूर तक लंबे स्तम्भों की शिल्प कला विश्व प्रसिद्ध हैं। मंदिर के परकोटे में परिक्रमा के रूप में बने हुए बाईस कुण्डों में स्नान करके ही भक्तजन शिवलिंग के दर्शन करते है। प्रातः काल तीन चार बजे से ही स्तुतियां प्रारंभ हो जाती है।
प्रत्येक पूजा के बाद नीरजना होती है। अनेक प्रकार के दीपाधारों से भगवान की आरती सम्पूर्ण वातावरण को भक्तिमय कर देती है। रात में शयन से पूर्व की जाने वाली आरतियों का प्रकाश और स्तुतियों का नाद मंत्र मुग्ध कर देता है। गंगोत्री अथवा हरिद्वार से गंगाजल लाकर श्री रामेश्वर ज्योतिर्लिंग पर चढ़ाने से अक्षय पुण्य माना जाता हैं।
इस स्थान पर भगवान शिव के भव्य मंदिर व ज्योतिर्लिंग के अतिरिक्त धनुष्कोटि नामक स्थान है। जहां से राम ने लंका को जोड़ने वाला सेतु बनाना प्रारंभ किया था। पर्वत की ऊँचाई पर ‘राम झरोखा’ या रामजी रोका’ नामक एक स्थान पर मंदिर है। जिसमें यज्ञवेदी तथा शिवलिंग स्थापित हैं।
ऐसा माना जाता है, कि लंकाविजय के बाद जब श्री राम सीता लक्ष्मण, सहित वापस अयोध्या चले, तो ऋषियों के आग्रह पर वे इस स्थान पर रूके थे। रावण ब्राह्मण कुल का था। अतः श्री राम ने ब्रह्म हत्या से मुक्त होने के लिए यहाँ यज्ञ किया, शिवलिंग स्थापित किया और भगवान शिव के अनुग्रह से पातक से मुक्त हुए।
स्कन्द पुराण की कथा के अनुसार हनुमान जी से लंका में सीता माँ की स्थिति को जानकर श्री राम वानरों की सेना लेकर जब समुद्र तट पर आकर रूके, तो सामने समुद्र की विशालता, अपनी साधनहीनता और रावण के पराक्रम को सोचकर चिन्तित हुए। उन्होंने समुद्र तट पर ही एक पार्थिव लिंग स्थापित करके उनकी षोडशोपचार पूजा, आराधना, स्तुति की और रावण पर विजय पा सकने की प्रार्थना की। श्री राम की पूजा-उपासना से प्रसन्न भगवान शिव प्रकट हुए और श्री राम को लंका विजय का वरदान दिया।
संसार के कल्याण के लिये भगवान शिव ने उस पार्थिव लिंग में ही ज्योतिर्लिंग रूप में प्रकट हुये, जिससे सांसारिक प्राणी पूजा, अर्चना कर संतापों से निवृत्ति प्राप्त कर सके। एक अन्य कथा भी मिलती है श्री राम ने जब शिव पूजा का संकल्प किया, तो हनुमान जी को कैलाश पर्वत से शिवलिंग लाने का निर्देश दिया। पर्याप्त समय बीत चुका था परन्तु हनुमान जी नहीं लौटे, तब श्री राम ने शुभ मुहूर्त में मिट्टी से निर्मित पार्थिव लिंग की स्थापना करके पूजन कर लिया और दर्शन कर वरदान भी पा लिया।
पर लौटने पर यह सब देखकर हनुमान जी बहुत दुखी हुए। तब श्री राम ने हनुमान जी द्वारा लाये गये शिवलिंग को अपने पार्थिव लिंग के पास ही स्थापित किया और उसे हनुमदीश्वर नाम दिया।
निधि श्रीमाली
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