अर्थात्-समस्त रोगों को दूर करने वाली, जगत् वन्दनीय, विनम्र तथा दक्ष भक्तों के द्वारा पूजनीय, साधकों के भय का नाश करने वाली, सभी को सुख देने वाली, देव जननी भगवती महाकाली हमारी रक्षा करें। दस महाविद्याओं में सर्वश्रेष्ठ महाकाली कलियुग में कल्पवृक्ष के समान शीघ्र फल देने एवं साधक की समस्त कामनाओं की पूर्ति में सहायक हैं।
महाकाली का अर्थ होता है, जो काल को अपने वश में करके रखें, जिसका काल पर पूर्ण नियंत्रण हो काल अर्थात अंधकारमय समय को समाप्त कर सके। जो आकाश के समान काली के अनंत का प्रतीक है, माँ काली नील वर्ण स्वरूपा हैं, इसलिए माता काली को दिगंबरी भी बुलाते है, जिनके कमर में हाथों की माला शोभा पाती है, जिसका अर्थ है, इन भुजाओं के माध्यम से जीवन में वर प्राप्ति को आत्मसात होना, जिनके गले में मुंडो की माला है, जो इस बात को दर्शाती है, शक्ति द्वारा असुर वृत्तियों का संहार करना, जिनके मस्तक पर अर्धचंद्र इस बात का प्रतीक है, कि माता काली ही कलयुग में जीवन को शीतलता प्रदान करने में सहायक हैं।
महाकाली कलियुग की सर्वश्रेष्ठ देवी है, जिनकी साधना उपासना करने से जीवन की सभी इच्छाएं पूर्ण तो होती ही है, साथ ही साधक के जीवन से भय, अकाल मृत्यु, तंत्र बाधा आदि से भी मुक्ति मिलती है, जो दस महाविद्याओं में प्रथम विद्या है, काली साधना के माध्यम से ही काल ज्ञान की प्राप्ति होती है, भगवान शिव की आधारभूत शक्ति महाकाली है।
हमारे ऋषियों-मुनियों ने भी कहा कि महाकाली की साधना करने से ही जीवन में पूर्णता सुख-शांति, लक्ष्मी, सरस्वती, मेधा आती ही है, कुछ साधकों के मन में यह भय रहता है, इतने डरावने रूप की साधना कैसे करें, जबकि ऐसा नही है, माँ महाकाली का यह रूप तो शक्ति रूप है, जिस रूप को वह पाप रूपी दानवों का नाश कर अधर्म पर धर्म की स्थापना करने के लिए धारण किए हुए है, इसके विपरीत माँ महाकाली तो अत्यंत सौम्य और करूणामयी देवी है, जो अपने उपासक के जीवन में आने वाली समस्याओं का दमन कर अभय प्रदान करती है, महाकाली साधना तो प्रत्येक साधक को करनी ही चाहिये।
एक बार सृष्टि पर अंधकासुर नामक राक्षस ने अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया और सारी सृष्टि में उथल-पुथल मच गई, क्योंकि अंधकासुर राक्षस का जन्म भी शिव के माध्यम से ही हुआ था, एक बार माता पर्वती ने भगवान शिव के साथ क्रीड़ा करते-करते भगवान शिव के नेत्र बंद कर दिए जिससे समस्त ब्रह्माण्ड में अंधकार छा गया क्योंकि भगवान शिव के नेत्रों से संसार प्रकाशमान होता हैं, जैसे ही माता पर्वती ने भगवान शिव के नेत्रों पर हाथ रखा उसी क्षण अंधकासुर का जन्म हुआ जो अत्यधिक शक्तिशाली था, जिसका वध वही कर सकता था, जो स्वयं अंधकारमय काला हो और महाकाली तो स्वयं ही काल स्वरूप है। देवताओं में इतना सामर्थ्य नहीं था, वे उससे युद्ध कर सकें, तभी सारे देवता भगवान शिव के पास कैलाश पहुंचे तब भगवान शिव ने देवताओं की विनती सुन कर महाकाली का आवाहन किया जो देखने में एकदम विकराल रूप धारण कियें हुए थी, जिनको देख कर सभी देवता भयभीत हो गये जिनकी हुंकार से सारा ब्रह्माण्ड कम्पायमान हो उठा, जो अपनी भुजाओ में खड्ग, खप्पर लियें हुए, जो गले में मुंडो की माला धारण कियें है, जिनके बाल सिर से लगाकर पैरों तक फैले हुए है, जिनका रंग काजल समान, जिनका एक पैर भगवान शिव के ऊपर है, जिसका अर्थ है, शक्ति शिव के बिना अपूर्ण है। जहां शिव और काली रूपी शक्ति का सामंजस्य निर्मित होता है। वहीं पूर्णता निरन्तर गतिशील रहती है। अतः माँ महाकाली शक्ति स्वरूपा है व शिव की चेतना के बिना शक्ति गतिमान नहीं होती, दोनो एक दूसरे के पूरक है।
अंधकासुर के वध के पश्चात माँ ने सभी देवताओं की विनती पर अपने सौम्य रूप के दर्शन देकर सभी देवताओं को विजय श्री का आशीर्वाद् दिया। कहा जाता है, कलयुग में तीन ही ऐसे भगवान है, जो बहुत ही शीघ्र फल देते है, देवी महाकाली, हनुमान, गणेश यही तीन ऐसे भगवान है, जिनकी उपासना कलयुग में महत्वपूर्ण बताई गई है।
आज के युग में जिस प्रकार की स्थितिया बन रही है, अनेकों प्रकार की महामारी जैसी बीमारियां फैल रहीं है, आज के समय काल में सभी के जीवन में विपरीत परिस्थितियां, घर- परिवार में क्लेश का वातवारण बना है, उनसे हम अपने परिवार और स्वयं को काली साधना के माध्यम से सुरक्षित कर सकते है, इन राक्षस रूपी बाधाओं पर विजय प्राप्त कर सकते है।
स्वयं हमारे ऋषि विश्वामित्र, वशिष्ठ, वराहमिहिर, मार्कण्डेय, राजा जनक, आदि ने भी अपने जीवन में महाकाली साधना के माध्यम से ही काल पर विजय प्राप्त की इसलिए उनका नाम हमें आज भी याद है, और यह तभी संभव है, जब आप भी अपने जीवन में महाकाली साधना सम्पन्न करें, और जीवन में आने वाली बाधाओं पर विजय प्राप्त कर अपनी सभी मनोकामनाओं की पूर्ति कर सकें।
काली साधना से साधक समस्त लोकों को वशीभूत करने की क्षमता प्राप्त कर लेता है।
इस साधना को विशेष रूप से नवरात्रि में सम्पन्न करने से जीवन के समस्त विघ्न ठीक उसी प्रकार समाप्त हो जाते हैं, जैसे अग्नि के सम्पर्क में आकर कीड़े-मकोड़े, कीट-पतंगे भस्म हो जाते हैं।
काली साधना करने वाला साधक हर प्रकार के रोगों से मुक्त होकर पूर्ण स्वस्थ जीवन व्यतीत करता है।
काली साधना से वाक् सिद्धि व वाक् चातुर्यता की प्राप्ति होती है।
भगवती काली के मंत्र का अनुष्ठान यदि साधक पूर्ण श्रद्धा एवं भक्ति युक्त होकर करता है, तो उसे चतुर्वर्ग की प्राप्ति होती हे, तथा भगवती का सायुज्य भी प्राप्त होता है।
साधना काल में स्वच्छ वस्त्र धारण करें, पूर्व दिशा की ओर बैठ जाये सामने एक चौकी पर लाल या काला वस्त्र बिछा लें उस पर काली कवच, कामना गुटिका, एक ताम्रपात्र में स्थापित करें, तत्पश्चात इच्छापूर्ति माला को ताम्रपात्र के चारो ओर गोलाकार में रखें व सद्गुरूदेव चित्र व साधना सामग्री का कुंकुम अक्षत से पूजन करें, धूप, दीप, पुष्प, अर्पित कर गणपति और गुरू का ध्यान करें।
गुरू मंत्र की चार माला जप कर दाहिने हाथ में जल लेकर संकल्प लें और जो भी इच्छा, कामना हो बोलकर जल भूमि पर छोड़ दे, फिर महाकाली का ध्यान करें-
शवारूढ़ाम्महाभीमां घोरदंष्ट्रां हसन्मखीम् ।
चतुर्भुजां खड्गमुण्डवराभयकरां शिवाम्।।
मुण्डमालाधरान्देवी लोलजिहृवान्दिगम्बरां ।
एवं संचिन्तयेत्काली इच्छापूर्णत्व धारयामि।।
ध्यान के बाद निम्नलिखित मंत्र का इच्छापूर्ति माला से नवरात्रि के नौ दिन तक नित्य ग्यारह माला मंत्र जप सम्पन्न करें।
मंत्र जप समाप्ति के बाद काली कवच को गले में धारण कर लें, गुटिका को किसी काले कपड़े में बांध कर पीपल के वृक्ष के नीचे रख दें, यह काली कवच आप अपने परिवार के सभी सदस्यों को भी धारण करा सकते हैं।
संभव हो तो नवरात्रि की पूर्णता दिवस के उपरान्त रात्रि काल में प्रत्येक मनोकामना पूर्ति हेतु उक्त मंत्र की एक-एक माला से यज्ञ में आहूति प्रदान करें।
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