साधना का तात्पर्य हैं जीवन मतलब अपने अस्त-व्यस्त जीवन को संवारने की विधि जिसके माध्यम से हम अपने जीवन को साध सकें। साधना का मतलब यह नहीं हैं, आप 6 घंटे तक माला लेकर ही बैठे रहें, और जीवन के बाकी कार्यो पर ध्यान ही नही दे साधना का मतलब है, अपने जीवन में आने वाली समस्याओं पर विजय प्राप्त करना। समस्यायें कभी भी आ सकती है, वर्तमान जीवन में और भविष्य में भी इसके लिए हमें हमेशा तैयार रहना चाहिए क्योंकि परेशानियां बता के नहीं आती इसीलिए मनुष्य जो भी अपने जीवन में जो कार्य करता है, वह एक प्रकार से देखा जाये तो साधना ही है। परन्तु जीवन के सभी कार्य व्यवस्थित रूप से क्रियाशील होते हुये पूर्ण सम्पन्न हों वहीं सही अर्थो में साधना है।
साधनायें 3 प्रकार की होती है, 1 मंत्र साधना, 2 योग साधना, 3 तंत्र साधना प्रत्येक साधना हर प्रकार से अपने जीवन में एक अलग ही महत्व रखती है, किन्तु मंत्र साधना का तात्पर्य ही शुद्धता है, मंत्र के माध्यम से जीवन में सात्विक भाव का उदय होता है, व अशुद्धि का नाश होता है।
मंत्र साधना के माध्यम से ही हमें सही अर्थो में शुद्ध और सात्विक जीवन की प्राप्ति होती है, एक प्रकार से देखा जाये तो गृहस्थ जीवन में मंत्र साधना का अधिक प्रचलन होता है, किसी भी शुभ कार्य में हम मंत्र के माध्यम से शादी, हवन आदि क्रियायें सम्पन्न करते है, मांत्रिक साधना बहुत ही सरल और आसान होती है, इन्हें कोई भी व्यक्ति सम्पन्न कर सकता है, मंत्र साधना करने वाले साधक शान्त स्वभाव के होते है मंत्र साधनायें तो देवताओं ने भी अपने जीवन में सम्पन्न की है, और मंत्र साधना की उत्पत्ति ऋषि वशिष्ठ के माध्यम से ही संभव हुई है, उन्होंने अपने जीवन में मंत्र के माध्यम से अनेकों सिद्धियां प्राप्त की क्योंकि ऋषि वशिष्ठ माँ गायत्री के बहुत बडे़ उपासक थें, और माँ गायत्री सूर्य तेजस्वी स्वरूप में तो शुद्ध और सात्विक भावों की देवी है, भगवान विष्णु, विघ्नहर्ता गणपति, माता सरस्वती ये सभी मंत्र साधना के अन्दर ही आते है।
एक बार देवराज इन्द्र के इन्द्रलोक पर दुर्भिक्ष नामक राक्षस ने आक्रमण कर दिया और इन्द्रासान पर कब्जा कर के इन्द्रदेव को बन्दी बना लिया जिसके कारण सारे देवी-देवता बहुत परेशान रहने लगे किसी भी देवता में इतना सामर्थ्य नही था, कि वह उस राक्षस का सामना कर सकें, क्योंकि उस राक्षस को भगवान शिव का वरदान था जो अपने जीवन में मंत्र साधनाओं से सम्पन्न होगा उसी के हाथ से तुम्हारा वध होगा। देवराज इन्द्र बडे परेशान थे। तभी वहां से देवऋषि नारद जी गुजरे उन्होंने देखा कि देवराज इन्द्र बन्दी बने पडे़ है, और उनसे इन्द्र देव की पीडा देखी नहीं गई, और वह चुपके से देवराज के पास पहुंचे और इन्द्र ने देवऋषि नारद जी को देख उनसे दुर्भिक्ष नामक राक्षस को कैसे हराया जाए का उपाय पूछने लगे, देवऋषि ने उन्हे उपाय बताया कि आपको मंत्र साधना सम्पन्न करनी होगी तभी आप राक्षस को हरा पायेगें क्योंकि दुर्भिक्ष बहुत चालाक राक्षस था उसे पता था कि मंत्र साधनाओं में बहुत शक्ति होती है, मंत्र साधनाओं के माध्यम से उसने भगवान विष्णु, माँ गायत्री, विघ्नहर्ता गणपति जी को अपने वश में कर रखा था, भगवान शिव का उसे वरदान प्राप्त था कि जो अपने जीवन में मंत्र साधना सम्पन्न करेगा केवल वो ही तुम्हारा वध कर सकता है।
यह बात सुनकर देवराज इन्द्र अहंकार वश बोले कि मैं इन्द्र हुं और मुझको साधना करने की क्या आवश्यकता है। इतना सुनते ही देवऋषि नारद जी बोले साधना तो भगवान शिव, माता पार्वती, भगवान विष्णु को भी करनी पड़ती है, तो तुम क्या हो, साधनाओं के माध्यम से ही हम अपने जीवन में शक्ति प्राप्त कर दानव रूपी बुराईयों पर विजय प्राप्त कर सकते हैं, अपने जीवन की समस्याओं पर जीत हासिल कर अपने जीवन रूपी घर में शुद्धता का वातावरण निर्मित कर सकते है, और यह केवल मंत्र साधनाओं के माध्यम से ही सम्भव है, जब देवऋषि नारद जी ने कहा कि ठीक है, तो मैं चलता हूं आप देवराज हैं, तो अवश्य ही बिना साधनाओं के उसको हरा सकते है, यह बाते सुन कर देवराज इन्द्र को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने देवऋषि नारद जी से क्षमा याचना की उसी समय से वह मंत्र साधना सम्पन्न करने लगें। कुछ वर्ष के तप के बाद देवराज इन्द्र ने मंत्र की शक्तियों को अपने भीतर आत्मसात कर राक्षस से युद्ध किया और विजयी हुए, क्योंकि दुर्भिक्ष राक्षस ने अपनी साधना शक्तियों का गलत उपयोग कर हनन कर लिया और युद्ध में हार कर मृत्यु का ग्रास बन गया, इसलिए जीवन में हर तरह विजयश्री के लिये मंत्र साधना अपने आप में बहुत महत्व रखती है।
2 योग साधना- सदियों से योग विद्या भारत की अमूल्य धरोहर रही हैं और बिना योग के हम सही अर्थ में साधक नहीं बन सकते क्योंकि बिना योग के साधनायें अधूरी होती हैं। क्योंकि श्रेष्ठ साधनाओं के लिये मानसिक-शारीरिक स्वस्थता व बलिष्ठ शरीर भी आवश्यक है। योग शास्त्र के जनक योग गुरू पंतजलि थे, जो भगवान विष्णु के आसन शेषनाग के अवतार थे।
एक बार भगवान विष्णु जी माता लक्ष्मी जी को भगवान शिव के आनन्द तांडव नृत्य की कथा सुना रहे थे, जिसको सुनकर शेषनाग जी के मन में विचार आया कि वह भी भगवान शिव की भक्ति कर उनके आनन्द तांडव रूप के दर्शन कर सकें और वह भगवान विष्णु से आज्ञा लेकर पृथ्वी पर आ गये।
भगवान विष्णु की एक भक्त जो नदी में अर्घ्य दे रही थी, और मन ही मन भगवान से पुत्र प्राप्ति की कामना कर रहीं थी तभी आकाश मार्ग से शेषनाग बालक रूप में उनकी अंजुली में आ गये इसलिए उनकी माता ने उनका नाम पत अर्थात् आकाश और प्रसाद रूप में अपनी माता के अंजुली में गिरे इसलिये उनका नाम पंतजलि पड़ा। क्योंकि उनका जन्म भगवान शिव की कथा सुनते-सुनते ही हुआ था इसलिए वह अपनी माता से आज्ञा लेकर भगवान शिव की तपस्या करने चले गयें।
ऋषि पंतजलि की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अष्टांग योग का ज्ञान प्रदान किया, जो स्वचेतना को परम चेतना से मिलाती है। महर्षि पतंजलि ने कहा है कि- जितना हम अपने आपको योग के माध्यम से अंर्तमुखी करते हैं, उतना ही सत्य का प्रकाश हमारे जीवन में पड़ता है, और अज्ञान, आलस, रोग हमारे जीवन से दूर हट जाते हैं, जिससे हमारे जीवन में निरन्तर क्रियाशील चेतना की वृद्धि होती रहती है।
आनन्द की अनुभूतियां प्राप्त होती हैं। हमारे ऋषि-मुनियों ने योग के माध्यम से ही जीवन में साधना के मार्ग पर चल कर पूर्णता प्राप्त की है, साधना के मार्ग में आगे बढ़ने के लिए जीवन में कुछ योग बहुत जरूरी है, जिसके बिना आप साधना के क्षेत्र में कभी आगे नही बढ़ सकते हो, जैसे- सूर्य नमस्कार, प्राणायाम, भ्रसिका और हमारा खान-पान की सुस्थितियों को अपने जीवन में उतार लें तो हम निश्चित ही ध्यान में उतर सकते हैं, क्योंकि हम खाना तो खाते है किन्तु उस खाने को पचाने के लिए योग का सहारा लेना पड़ता वैसे ही ठीक मंत्र जप तो आप कर रहें किन्तु आपने कभी सोचा ही नहीं की आपको साधना में ही इतना क्रोध और आलस क्यों आता है? उसका कारण है, किसी नाली का मुंह अगर आगे से बन्द हो और हम उसमें पानी डाले तो क्या होगा, उलटा पानी वापस हमारे घर में ही आयेगा और पूरे घर को बदबू से भर देगा जिससे हमारे सिर में दर्द और अनेको प्रकार की बीमारियां फैल जाएंगी, क्योंकि नाली आगे से बन्द है, ठीक उसी प्रकार जब हम मंत्र जप या कोई भी साधनात्मक क्रिया करते हैं, तो हम चिडचिडें हो जाते हैं हमारे मन में अनर्गल विचार, आलस, काम, क्रोध अपना घर बन लेते है, हमारे शरीर की अनेकों नाडियां बन्द पड़ी हैं, कई-कई वर्षों से हमने कभी उन्हें खोलने का प्रयास ही नहीं किया और योग के माध्यम से ही हम उन बन्द पड़ी नाडि़यों को खोलकर पूरे शरीर के रोम-प्रतिरोम को चैतन्य कर सकते हैं, उन बन्द पड़ी नसों में जो गन्दगी इक्ठ्ठा हो गई हैं।
जिसे हम योग के माध्यम से ही निकाल सकते है। जब योग के माध्यम से निकाल कर जब शुद्ध वायु का प्रभाव होगा तभी मंत्र जप शक्ति अपना काम कर पायेगी इसलिए जीवन में योग का बहुत महत्व होता है, हनुमान जी भी अपने बाल्यकाल में ही भगवान शिव से अष्टांग योग का ज्ञान प्राप्त कर अपने जीवन में बल-बुद्धि, ज्ञान-शक्ति से परिपूर्ण हो पाये। योग के माध्यम से ही आप अपने जीवन की सभी बीमारियों पर विजय प्राप्त कर सकते है, साधनात्मक जीवन में सर्वश्रेष्ठता प्राप्ति हेतु योग प्राणायाम आवश्यक है। जीवन की दैनिक क्रियाओं की पूर्णता हेतु योग व प्राणायाम सहयोग करते हैं। एक स्वस्थ और श्रेष्ठ शरीर में ही देवी-देवताओ का वास होता है, शुद्ध और शाकाहारी भोजन कीजिए और स्वस्थ रहियें ।
3 तंत्र साधना- तंत्र की उत्पति ही भगवान शिव से हुई है। तंत्र का नाम सुनकर बहुत लोग भयभीत हो जाते है, जबकि तंत्र तो हमारे जीवन का एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, तंत्र शब्द से घबराने या विचलित होने की जरूरत नहीं है। तंत्र का तात्पर्य देह के भीतर में जो भी कर्मेन्द्रियां-ज्ञानेन्द्रियां हैं, उन्हें पूर्ण रूप से नियंत्रित रखकर जीवन में अग्रसर होना हैं। कलयुग में एक तंत्र ही ऐसी विद्या है, जिसके माध्यम से हम अपने जीवन में कुछ भी प्राप्त कर सकते हैं, गुरू गोरखनाथ अपने समय के प्रसिद्ध आचार्य थे, जिन्होंने अपने जीवन में तंत्र की ऊंचाईयों को पार किया, जहां तक आज भी कोई नहीं पहुंच सका है।
जिस प्रकार भगवत्पाद शंकाराचार्य भगवान शिव के अवतार थे, उसी प्रकार त्रिजटा अघोरी गुरू गोरखनाथ के अवतार थे, जिन्हें तंत्र के क्षेत्र में अद्वितीय माना गया है, जिनके पास तंत्र के अनेकों प्रकार की साधनाओं का ज्ञान था, जिन्हें तंत्र के क्षेत्र में अन्तिम नाम माना जाता है, यूं तो देखा जाये तंत्र के बिना जीवन अधूरा सा है, तंत्र साधना से जीवन सभी दृष्टियों से सुखमय, आनन्ददायक और तनावरहित रहता है। तंत्र में न तो शराब की आवश्यकता होती है, न ही मलिन, गन्दगी पूर्ण सामाजिक नियमों के विरूद्ध क्रियाओं की। तंत्र का सही अर्थ है, जीवन का सौन्दर्य, जीवन का आनन्द, जीवन की पूर्णता एकमात्र तंत्र से ही प्राप्त होती है।
भारतवर्ष में विविध प्रकार की साधना पद्धतियां है, जिनमें अनेक प्रकार के विधि-विधान है, और वह सभी लम्बी विधान और यज्ञ, हवन युक्त बताई गई है, जबकि तंत्र साधना सीधा, और सरल प्रभाव साधक के जीवन में तुरन्त प्रदान करती है, जिसका प्रयोग हम भुला चूके है, और यहां-वहां तांत्रिकों के पास जाकर तंत्र से भयभीत हो गये है, क्योंकि तंत्र का बहुत गलत प्रयोग कुछ पाखण्डी तांत्रिकों ने डराने और पैसे कमाने के लिए किया जिससे आज का समाज तंत्र के नाम से भयभीत हो गया है, जबकि तंत्र साधना देह के भीतर व मानस चिंतन में सुस्थितियां लाना ही तंत्र का भाव है। जिसके माध्यम से हम अपने जीवन में आने वाली जटिल समस्याओं को सुलझाकर सफलता प्राप्त कर अपने जीवन की सभी मनोकामनाओं की पूर्ति कर सकते हैं।
आज का युग बहुत ही पेचीदा बन गया है, हर तरफ सिर्फ और सिर्फ झूठ, छल-कपट, असत्य और धोखाधड़ी, विश्वासघात, मुकदमेबाजी आदि से जीवन एकदम असुरक्षित सा हो गया है, ऐसी स्थिति में एकमात्र तंत्र साधना से ही हम अपने जीवन में सुरक्षित रह सकते हैं, तंत्र साधनाओं के माध्यम से ही आप अपने जीवन में लक्ष्मी को आबद्ध कर सकते हैं, जैसे रावण ने तंत्र साधनाओं के माध्यम से सोने की लंका बनायी थी और अपने जीवन में पूर्ण सुख के साथ अपने जीवन के सभी शत्रुओ का नाश किया। तंत्र का मतलब होता है, सीधा और एकदम सटीक मार्ग।
जब हम किसी साधना में बार-बार असफल हो रहे हों तो तंत्र के माध्यम से हम उस साधना में सफलता प्राप्त कर सकते है, तंत्र साधनाओं से हम किसी देवी-देवता को अपने अधीन कर उनसे मनचाहा वर प्राप्त कर, अपने जीवन की सारी इच्छाओं को पूर्ण कर जीवन के सभी शत्रुओं का नाश कर, सुखमय जीवन व्यतीत कर सकते हैं, शत्रुओं का मतलब यह नही कि आप तंत्र का प्रयोग किसी व्यक्ति पर करने लगे शत्रु अर्थात हमारे भीतर जो शत्रु रूपी काम, क्रोध आलस, रोग रूपी आदि शत्रुओं को समाप्त कर अपने जीवन को सुखी आनन्ददायक और जीवन में सभी इच्छाओं की पूर्ति कर सकते हैं। इसलिए तंत्र से हमे घबराने की जरूरत नहीं है, तंत्र हमारे पूर्वज व ऋषि-मुनियों की धरोहर है, जिसका उपयोग हमें अवश्य करना चाहिए। आप भी अपने जीवन में तंत्र साधनायें सम्पन्न कर अपने जीवन के शत्रुरूपी काम, क्रोध, आलस, मोह पर विजय प्राप्त कर जीवन की सभी मनोकामना पूर्ण कीजिए सद्गुरूदेव की शक्ति आपके साथ है।
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