मनुष्य जीवन में सबसे अधिक चिंता का कारण आयु, मृत्यु, धन हानि, घाटा, मुकदमा, शत्रुता, महामारी जैसी विषम स्थितियां हैं। ऐसी कुस्थितियां ग्रहों के प्रतिकूल होने के फलस्वरूप प्राप्त होती हैं। शनि ग्रह चतुराई, धूर्तता, लोहा, तिल, तेल, हिंसा आदि का भी कारक ग्रह है। इसलिये शनि ग्रह की शांति सभी मनुष्य चाहते हैं। शनि चिंता प्रदान करने वाला ग्रह है। इस कारण हर व्यक्ति शनि ग्रह के प्रभाव से डरता है शनि सभी ग्रहों में महाशक्तिशाली और घातक हैं।
कहते हैं कि सांप का काटा और शनि का मारा पानी नहीं मांगता। जब शनि की दशा का प्रभाव पड़ा, तो कृष्ण को मूल जन्म स्थान मथुरा का त्याग करना पड़ा और द्वारिका में शरण लेनी पड़ी भीलों के देश में। भगवान श्री कृष्ण के जीवन में शनि के साढ़े साती का प्रभाव समाप्त हुआ तो उन्होंने अपनी ज्ञान, चेतना से कुरुक्षेत्र युद्ध में असुर रूपी कौरवों का संहार कर पांडवों को विजयश्री प्रदान करायी। श्रीराम का राज तिलक होने वाला था, शनि दशा के प्रभाव से उनका त्याग कर नंगे पांव वन में दर-दर भटकने को विवश होना पड़ा।
जबकि शनि की अनुकूलता प्राप्त कर ही भगवान श्रीराम ने राम राज्य की स्थापना की व श्रेष्ठ वर्चस्वता को स्थापित किया। शनि की कुदृष्टि के प्रभाव से जब कर्मयोगी, सत्यवादी, धर्म का आचरण करने वाले सभी शिक्षाओं में पारंगत अवतारी व्यक्तित्व पुरुष भी नहीं बच सके, तो भला सामान्य लोगों का शनि के प्रकोप से बच पाना कहां सम्भव है?
शनि के कमजोर होने से व कुदृष्टि पड़ने पर सारे गुण अवगुण में बदल जाते हैं। विपरीत स्थितियों में मनुष्य धैर्यहीन, कामचोर, निर्बल, कमजोर, चरित्रहीन हो जाता है, कर्म करने की इच्छा शक्ति समाप्त हो जाती है। कमजोर शनि भाव से सांसारिक व्यक्ति के जीवन में विपन्नता, कुविचारों की वृद्धि होती है साथ ही उसका जीवन अनियन्त्रित स्वरूप बन जाता है।
जब भी संसार में शनि का प्रकोप पड़ता है तो अति हानि, विनाश, महामारी आती ही है। वर्तमान में शनि ग्रह का प्रभाव नौ राशियों पर क्रूर रूप में आधिपत्य है, इसीलिये कोरोना जैसी विनाशकारी महामारी लाखों लोगों को अकाल मृत्यु की ओर धकेल रही है और यह महाविनाश अनेक वर्षों तक बना रहेगा। शनि दोष के कारण अनेकों प्रकार की बाधायें जीवन में आयेगी।
शास्त्रों में वर्णित है कि शनि अनुशासित बनाता है, साथ ही नियन्त्रण भी सिखाता है, शनि ग्रह आत्म नियन्त्रण, विचार और सीमा में रहने वाला ग्रह है। इसके प्रभाव में धैर्य, स्थिरता, परिपक्वता व वास्तविकता आती है। इसका प्रभाव ठोस, धैर्य से विचार करने वाला, तीव्र एवं कटु होता है। शनि हमें उतना ही प्रदान करता है, जितना हम अपने नियन्त्रण में रख सकते हैं।
शनि ही एक मात्र ग्रह है जिसके पीछे ईश्वर शब्द जुड़ा हुआ है। अतः शनि ग्रह अति प्रदायक अर्थात अति प्रदान करने वाला और अति विनाशक ग्रह है। शनि दोष निवारण के लिए दीक्षा व नियमित साधनाओं का आश्रय लेना आवश्यक है। जिससे साधक जीवन में अपने सुकर्मों का श्रेष्ठ लाभ प्राप्त कर पाता है।
केवल शनि पर तेल चढ़ा देने अथवा तेल का दीपक प्रज्ज्वलित करने से शनि की कृपा प्राप्त नही होती है। सद्गुरू द्वारा शक्तिपात दीक्षा एवं साधना के द्वारा ही शनि को अनुकूल व महामारी जैसी बीमारीयों से बचा जा सकता है। 22 मई ज्येष्ठ अमावस्या दिवस पर शनि जयंती है। अतः शनि उत्पत्ति पर्व पर सद्गुरु सानिध्य में सांध्य बेला में सपरिवार पूजन, साधना, दीक्षा आत्मसात करने वाले साधक के जीवन में शनि दोष के फलस्वरूप जो भी विषमतायें व्याप्त हैं, वे अवश्य ही समाप्त हो सकेंगी। गुरु सानिध्य में साधना, दीक्षा प्राप्त करने हेतु इच्छुक साधक कैलाश सिद्धाश्रम-जोधपुर 9950809666, 7568939648 पर सम्पर्क करें, जिससे पंजीकरण संभव हो सकेगा।
सामग्री- पुरुष श्वेत व स्त्रियां नीला वस्त्र धारण करें, दीपक, धूपबत्ती, आसन, स्फटिक माला, लकड़ी की चौकी, चौकी पर व्यवस्थित करने हेतु काला वस्त्र, चार लोहे की कीलें, काली उड़द, तिल का तेल, शनि चित्र, हवन पात्र व हवन सामग्री आदि।
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