पंचमुखी रुद्राक्ष के कम से कम तीन दाने धारण करना चाहिये। यह रूद्राक्ष पापनाशक, पिशाच बंधन मुक्ति, तंत्र बाधा निवारण में सहायक होता है, इसी के प्रभाव से जीवन में यह श्री समृद्धिदायक और आध्यात्मिक चेतना जागृत करने वाला श्रेष्ठ फल है।
हारं वा कटकं वापि सुवर्ण वा द्विजोत्तम,
रूद्राक्षसहितं भक्तया धारयनरूद्रतभियात्।
जो साधक हार, कंटक या सुवर्ण को रूद्राक्ष सहित धारण करता है, वो रूद्र तत्व को प्राप्त होता है।
पंचवक्त्रः स्वयं रूद्रः कालाग्निनमि नामतः
अभक्ष्यभक्षणोद् भतैरगम्यागमनोद्भवै,
मुच्यते सर्वपापैस्तु पंचवक्त्रस्य धारणात्।
पंचमुखी रूद्राक्ष स्वयं रूद्र कालाग्नि नामक है। यह अभक्ष्याभक्ष्य और अगम्यागमन के अपराध से मुक्त करता है। सभी प्रकार के पाप पंचमुखी रूद्राक्ष के धारण करने से समाप्त होते हैं।
हस्ते चोरसि कंठे च कर्णयोर्मस्तकके तथा ।
रूद्राक्षंधारयेद्यस्तु स रूद्रो नात्र संशयः ।।
अवध्यः सर्वभूतानां रूद्रवद्धि चरेद्भुवि ।
सुराणाम्सुराणांम च वंदनीयो यथा शिवः ।।
हाथ, हृदय, कान और मस्तक में जो रूद्राक्ष धारण करता है, वो निःसंदेह शिव है। वो सर्व प्राणियों में श्रेष्ठमय स्थितियों को प्राप्त और उसका जीवन शिव-परिवारमय सुस्थितियों से युक्त होता है।
साक्षात् रूद्र का प्रतीक, काल अग्नि-शक्ति का केन्द्र पंचमुखी रूद्राक्ष जहां एक ओर भाग्य को उज्ज्वल बनाता है। वहीं अशांत आत्माओं से भी बचाता है तथा स्वस्थ व आरोग्य जीवन प्रदान करता है। यह मस्तिष्क और हृदय को शक्ति देता है। रक्त स्त्रोत व स्नायु को स्निग्धता प्रदान करता है। रुद्राक्ष धारण करने से जीवन में शान्ति और आत्मशक्ति की प्राप्त होती है। यह लघुता से गरिमा और प्रतिष्ठा की ओर ले जाता है।
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