इसका प्रादुर्भाव किस प्रकार से हुआ इस विषय में कूर्म पुराण में एक रोचक कथा आती है, जब कूर्मावतार विष्णु की पीठ पर मंदराचल पर्वत रखा गया और वह स्थिर नहीं हो रहा था, तो एक ओर सूर्य ने और दूसरी ओर से चन्द्र ने सहारा देकर उसे संभाल लिया। समुद्र मंथन के बाद कूर्मावतार ने उन दोनों को आशीर्वाद दिया और कहा- जिस प्रकार से तुम दोनों ने मिलकर लोकहित के लिए यह कार्य किया है, उसी प्रकार जब कभी तुम दोनों एक-दूसरे में समहित होगे, तो वह दिवस अमृत तत्त्व से पूर्ण होगा और उसका महत्त्व एक सिद्ध दिवस के समान होगा।
तभी से आज तक सोमवती अमावस्या को साधना के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है, क्योंकि इस दिन भगवान शिव चन्द्र शक्तियों से युक्त साधक को श्रेष्ठ चिंतन व शिवत्व भाव प्रदान करते हैं, इसी सुप्रभाव से प्रत्येक साधना में सफलता मिलती ही हैं। सोमवती अमावस्या सौभाग्य प्राप्त करने का दिवस हैं, सौभाग्य का अर्थ होता है, वे समस्त उपलब्धियां, जिन्हें प्राप्त कर हम अपने जीवन को आनन्दित और तरंगितमय बना सकें।
सोमोवश्या म्धा चैव सिंह राश्ये गतं शशिः।
दुर्लभ दर्लभो योग प्राप्यत्वं श्रेष्ठतव नरः।।
अर्थात् सोमवती अमावस्या के अवसर पर यदि मेधा नक्षत्र हो और सिंह राशि पर चन्द्र हो, तो ऐसा योग दुर्लभ ही नहीं, दुर्लभतम है और प्रत्येक साधक को इस योग का उपयोग कर लेना चाहिए।
व्यक्ति के जीवन में सबसे अधिक आवश्यकता धन की होती है, क्योंकि धन की वजह से ही व्यक्ति अपनी समस्त इच्छाओं को तृप्त कर सकता है, धन हो तो व्यक्ति का मान सम्मान, आदर होता है।
लोग धन के लिए परिश्रम करते हैं, परन्तु मात्र शारीरिक परिश्रम से ही धन प्राप्त होता, तो सारे मजदूर कभी के लखपति हो गए होते।
व्यक्ति के जीवन में स्थिति ऐसी होनी चाहिए, कि वह खर्च करता रहे साथ ही निरन्तर धन का आगमन जीवन में होता ही रहें।
उक्त साधना हेतु स्नान कर पीले वस्त्र धारण कर पश्चिम दिशा की ओर मुंह कर बैठें और अपने सामने ऐर्श्वय लक्ष्मी यंत्र स्थापित कर उसका अक्षत कुंकुंम से पूजन करें। फि उसके सामने निम्न मंत्र का ध्यान करें-
सौवर्णे पद्म पद्मामल कमल कृतं युग्मशः पाणियुग्मे
विभुन्ती शोभयोद्गा सहित जलधिगा सज्जलोच्छत्र गात्री।
वैधात्री बाहु द्वन्द्व करा भयार्द्र हृदया भक्त प्रयोल्लासिनी
लक्ष्मी मे भवने वसत्वनुदिनं चन्द्रा हिरण्मययापि।।
इसके बाद दुर्भाग्य नाशिनी माला से निम्न मंत्र की 5 माला जप सम्पन्न करें।
मंत्र जप समाप्त होने पर यंत्र व माला को किसी मंदिर में रख दें।
हिन्दू धर्म में अनेक व्रत, उपवास बताये गए हैं, व्रत उपवास करने से शारीरिक, मानसिक, आत्मिक शुद्धि संभव हो पाती है। साथ ही मनोकामनाओं की प्राप्ति के लिए भक्त और ईश्वर का तारतम्य जुड़ पाता है। हिन्दू संस्कृति में अधिकांश व्रत सौभाग्य से सम्बन्धित होते हैं अर्थात् हर स्वरूप में जीवन की दुर्गति को समाप्त करना और गृहस्थ जीवन को श्रेष्ठमय बनाना और यह कार्य स्त्री स्वरूपा मां ही श्रेष्ठ रूप में करती है। इसलिये स्त्रियों का जीवन धार्मिक कार्य, नित्य पूजन, उपवास, व्रत आदि की क्रियाओं में अत्यधिक रचा-बसा होता है। अपने प्राकृतिक स्वभाव के कारण स्त्रियों को इन धार्मिक क्रियाओं में संतुष्टि, संतोष व आनन्द भी प्राप्त होता है।
हरितालिका तीज यह तीज व्रत भाद्रपद (भादो) शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है। स्त्रियां इस व्रत को अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए रखती हैं, तो वहीं कुंवारी कन्यायें योग्य वर प्राप्ति के लिए इस व्रतीय नियम का पालन करती हैं। यह व्रत निराहार व निर्जला स्वरूप रखा जाता है।
कथा अनुसार मां गौरी ने सती के बाद हिमालय की पुत्री पार्वती के रूप में जन्म लिया। बाल्यावस्था से ही पार्वती भगवान शिव को वर रूप में प्राप्त करने के लिए संकल्पित थीं। जिसके लिए उन्होंने कठोर तप करने का मानस बनाया और बर्फीली पहाडि़यों, कड़कती ठण्ड में जल में खड़े रहकर तपस्या की, उन्होंने 12 वर्ष तक निराहार रहकर केवल सूखे पत्तों को खाकर व्रतीय नियम का पालन किया।
भगवान शिव ने उन्हें दर्शन देकर पत्नी रूप में स्वीकार किया। इसीलिए यह मान्यता है कि इस दिन व्रत के साथ-साथ श्रद्धा भाव से महादेव-गौरी का विधि से पूजन, व्रतीय नियम का पालन व मंत्र जाप आदि साधनात्मक क्रियाओं द्वारा स्त्रियां अखण्ड सौभाग्य, संतान सुख, आरोग्यता, सौन्दर्य, सम्मोहन चेतनाओं से युक्त होती है।
अपने सामने एक चौकी पर रंगोली बनायें, उस पर एक थाली में स्वस्तिक बना लें उसमें गौरी शंकर रूद्राक्ष स्थापित करें, गणेश व सद्गुरुदेव का पंचोपचार पूजन करें, फिर भगवान शिव का पूजन कर गौरी शंकर रूद्राक्ष को पूरा श्रृंगार का सामान अर्पित कर सिन्दूर लगायें। हलवे का भोग लगाकर अपने अखण्ड सौभाग्य व इच्छाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करें, भगवान शिव-गौरी का ध्यान करें।
श्रणु भद्रऽत्रे सततमावा भ्यामखिलं जगत्।
तस्य सिद्धिर्भवेत्तिष्ठ मया येषां प्रभावकम्।
अन्न पानं शिवगौरी हि सौभाग्यं दत्तं तुभ्यं प्रदायां।।
इसके बाद शिव गौरी सौभाग्य माला से निम्न मंत्र की 5 माला जप करें-
मंत्र जप के बाद शिव आरती सम्पन्न करें। गौरी शंकर रूद्राक्ष को किसी लाल धागे में डाल कर गले में धारण कर लें व माला को पूजा स्थान में रख दें।
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