जिस प्रकार मनुष्य योनि होती है, उसी प्रकार नाग योनि भी होती है, पहले नागों का स्वरूप मनुष्य की भांति होता था, लेकिन नागों को विष्णु की अनन्य भक्ति के कारण वरदान प्राप्त होने से इनका स्वरूप बदल गया, और इनका स्थान विष्णु की शय्या के रूप में हो गया। नाग ही ऐसे देव हैं, जिन्हें विष्णु का साथ हर समय मिलता है, ये भगवान शंकर के गले में शोभा पाते हैं, सूर्य रथ के अश्व नाग का ही स्वरूप हैं।
भय एक ऐसा भाव है, जो बली से बली व्यक्ति, बुद्धिमान से बुद्धिमान व्यक्ति की शक्ति भी नष्ट कर देता है, कोई अपने शत्रुओं से, कोई अपने अधिकारी से भय खाता है, तो कोई भूत-प्रेतों से भयभीत होता रहता है, ऐसा व्यक्ति उन्नति की राह पर कदम नहीं बढ़ा सकता है और नाग देवता अभय के प्रतीक हैं, इसीलिये इनकी पूजा का विधान हर जगह मिलता है।
नाग को कुण्डलिनी शक्ति का स्वरूप भी कहा जाता है। इस विशेष पर्व पर छोटा सा प्रयोग कर व्यक्ति किसी भी प्रकार की भय, बाधा, कालसर्प दोषादि समस्याओं से निवृत्त हो सकता है।
नागपंचमी के दिन प्रातः काल उठ कर सूर्योदय के साथ सबसे पहले शिव पूजन सम्पन्न करना चाहिए, शिव पूजा का विधान यदि मालूम न हो तो शिवजी का ध्यान कर शिवलिंग पर दूध मिश्रित जल चढ़ाएं और एक माला ऊँ नमः शिवाय मंत्र का जप अवश्य करें।
नाग पूजा में साधक अपने स्थान पर भी पूजा कर सकते हैं, भगवान शिव का चित्र स्थापित करें, जिसमें नाग उनके गले में लिपटा हो नाग देव के मस्तक पर दो आंखों पर तिलक अवश्य करें, इस चित्र को अपने पूजा स्थान में स्थापित कर सामने सिन्दुर से रंगे चावलों पर कालसर्प दोष निवारण मुद्रिका स्थापित करें और एक पात्र में दूध नैवेध स्वरूप रखें।
इस मुद्रिका को धारण करने से सभी प्रकार के शत्रुओं का नाश होता है।
नाग पंचमी के दिन नाग साधना करने से भूमि में गडे धन की प्राप्ति संभव हो पाती है।
इस मुद्रिका के प्रभाव से कालसर्प योग की समाप्ति होती है।
नाग साधना सम्पन्न व्यक्ति के जीवन में किसी भी प्रकार के भय, तनाव, रोगादि की समस्या नहीं होती है।
सर्वप्रथम अपने गुरू का ध्यान कर, अपनी भय-पीड़ा की शांति हेतु प्रार्थना करें, तत्पश्चत् नाग देव का ध्यान करें, कि- हे विष्णु प्रिय देव! मेरे समस्त भय, मेरी समस्त पीड़ाओं का नाश कर, मेरे शरीर में व्याप्त पीड़ा, कष्ट रूपी विष को दूर कर, मेरे शरीर में व्याप्त दुविधाओं व अनिश्चिंताओ से मेरी व मेरे परिवार की रक्षा करें।
इसके पश्चात् नागदेव के चित्र पर सिन्दूर का लेप करें, तथा इसी सिन्दूर से स्वयं को तिलक लगायें व उसी सिन्दूर से कालसर्प दोष निवारण मुद्रिका पर भी तिलक करें, इसके पश्चात् दोनों हाथ जोड़ कर निम्न मंत्र का 21 बार जप करें-
जरकारू गौरी मनसा पीड़ाहरिणी सिद्धयोगिनी।
वैष्णवी नागभगिनी शैवी दोष निवारिणी नागेश्वरी।।
चिंताहरिणी जरप्रिया स्तीकमाता विषहरोति च।
महाज्ञानयुता चैव सा देवी विश्वपूजिता।।
विष्णुशिवप्रिया द्वादशैतानि पूजाकाले तु यः पठेत।
तस्य नागभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत।।
मंत्र उच्चारण कर कालसर्प दोष निवारण मुद्रिका अपने दायें हाथ में धारण कर लें, और थोड़ी देर शांत होकर बैठ जाये तथा गुरू मंत्र का जप करते रहें, इससे भय का नाश होता है और बड़ी से बड़ी बाधा मे लड़ने की शक्ति प्राप्त होती है।
कालसर्प दोष निवारण मुद्रिका का प्रभाव इतना अधिक तीव्र रहता है, कि यदि आप प्रबल से प्रबल शत्रु के पास भी यह मुद्रिका धारण कर जाते है, तो वह शत्रु आपसे सत् व्यवहार ही करेगा, हानि देने की तो बात ही नहीं है, किसी भी विशेष कार्य पर जाते समय नाग मुद्रिका अपने हाथ में धारण कर ही जाये जिससे कार्य सिद्धि निश्चित रूप से प्राप्त होती है।
आज के युग में संतान होने या ना होने से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है संतान का संस्कारी होना, क्योंकि यदि संतान कुसंस्कारी, कुमार्गी हो तो संतानहीनता से कहीं अधिक पीड़ा ऐसे संतानों से प्राप्त होती है। इसलिये आज के युग में संतान के सद्गुणों में उच्च मूल्य होना आवश्यक है।
इसीलिये स्त्रियों के लिये नाग पंचमी का विशेष महत्व है, क्योंकि नागपंचमी पर संतान सुखों की कामना से स्त्रियां नाग पंचमी के दिन नागदेव की विधि-विधान सहित पूजन करती हैं और उनका जीवन संतान सुखों से युक्त रहे। साथ ही यह साधना, पूजा करने से संतान व सुहाग की रक्षा होती है।
श्रावण माह के इस दिव्यतम दिवस पर साधना, उपासना प्रत्येक व्यक्ति को सम्पन्न करना ही चाहिये। यह साधना नजर दोष, भय, बाधा आदि विपरीत परिस्थितियों में रक्षा करने में सहायक है। साथ ही इसके द्वारा जीवन में सफलता का मार्ग प्रशस्त होता है।
नागपंचमी के दिन सांयकाल श्रृंगार कर सुन्दर वस्त्र धारण कर सर्वप्रथम शिव का ध्यान कर नागदेव का पंचोपचार पूजन करना है, पश्चात् संतान प्राप्ति तथा संतान रक्षा हेतु नागार्जुन कवच स्थापित करें तथा निम्न मंत्र का 21 बार जप सम्पन्न करें-
अनन्तं वासुकिं शेषं पद्यनाभं च कम्बलम।
शंखपालं असुरराक्षसे तक्षकं कालियं तथा।।
एतानि नव नामानि नागनां च महात्मनाम।
सुहाग संतान प्राप्यते संतान रक्षा कर
सर्व भय बाधा नास्ति सर्वत्र सिद्धि भवेत।।
मंत्र जप पश्चात् नागार्जुन कवच को काले या लाल धागे में बांधकर अपनी बाह अथवा कमर पर धारण कर लें।
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