इसलिये गुरू पूर्णिमा के दिन गुरू की पूजा अर्चना कर साधक गुरू के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रगट करता है, व शिष्य का हित इसी में है कि वह अपने गुरू से निरन्तर सम्पर्क साधना-दीक्षा के माध्यम से बनाये रखें जिससे वह गुरुमय बन सकें अर्थात जिस तरह से गुरू पूर्ण है ठीक उसी तरह साधक भी हर स्वरूप में पूर्णमय बन सकें।
गुरू पूर्णिमा का भावार्थ यही है कि अपने आपको सद्गुरु स्वरूप में पूर्णता से सरोबार करना, अतः गुरू का अर्थ ही है- ज्ञान, तृप्ति, आनन्द, मस्ती, सिद्धता और पूर्णता जिसकी खोज सदैव इस जीवात्मा को रही है और रहेगी।
शास्त्रों में गुरू को जीवन्त-जाग्रत देव स्वरूप के सम्पूर्ण व्यक्तित्वमय स्वीकार किया है जो देवता और मनुष्य के बीच जुड़ाव की कड़ी है, अतः गुरू सानिध्य में गुरू साधना करने से ही जीवन में असुरमय विषाद्, रोग, कष्ट, बाधायें और भटकाव समाप्त होते हैं।
नूतन चेतनाओं की प्राप्ति की क्रिया हेतु इस दिव्यतम चन्द्र ग्रहण युक्त गुरू पूर्णिमा के विशेष महोत्सव पर गुरुत्व शक्तियों को साधना, पूजा, मंत्र जप, हवन व दीक्षा द्वारा आत्मसात करने से जीवन में असत्य व अधर्म युक्त विषम क्रियायें समाप्त होती हैं। इसी से सांसारिक गृहस्थ जीवन में सत, रज, ओज युक्त सभी सुलक्ष्मियोंमय क्रियाशील स्थितियां निर्मित होती हैं, इसी हेतु विशेष आषाढ़ी चन्द्र ग्रहण गुरू पूर्णिमा महापर्व के शुभ अवसर पर फोटो द्वारा दीक्षा ग्रहण करने से परिवार में नारायण भगवती शिवमय स्थितियां निर्मित होंगी। सभी साधको को विशिष्ट चन्द्र ग्रहण पर्व पर प्रातः 08:38 AM से 11:21 AM में लक्ष्मी मंत्रों से आपूरित नारायण भगवती शक्तिपात दीक्षा प्रदान की जा सकेगी।
साधना सामग्री-सद्गुरू रक्षा सूत्र, श्री लक्ष्मीमय लघु नारियल, निखिल ज्योति दीपक, अष्ट गन्ध, कुंकुंम सामग्री न्यौ रूपये 600 उक्त साधना सामग्री प्राप्त करने पर एक वर्षीय पत्रिका सदस्यता प्रदान की जायेगी।
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