ऐसी एक भी लड़की नहीं मिलेगी, जिसके मन में एक बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न पति को प्राप्त करने की कामना न हो या एक छोटे-से, प्यारे-से घर की कामना न हो और जब उसका विवाह होता है, वह अपने ससुराल में आती है, तब उसे यह एहसास घेरने लगता है, कि अब वह समय आ गया है, जब मैं अपने सपनों को साकार रूप दे पाऊंगी और जब अपने इन सपनों को साकार करने के लिये वह कार्य करना प्रारम्भ करती है, तो सहयोगी के रूप में उसका पति ही सर्वप्रथम उसे दिखाई देता है।
भारतीय नारी के मन में तथा पुरूष के मन में भी यह भावना बहुत ही गहराई के साथ बैठी हुई है, कि पति-पत्नी दो होते हुये भी एक हैं। इसी तथ्य को लेकर कहा गया है- पति-पत्नी एक ही गाड़ी के दो पहिये होते हैं, इस प्रकार गृहस्थ रूपी गाड़ी को कुशलतापूर्वक अग्रसर करने के लिये बराबर का दायित्व दोनों के ही कन्धों पर होता है अतः दोनों को ही अपने दायित्व को अच्छी तरह समझना चाहिये।
पति अर्थोंपार्जन के कार्यों को अच्छी तरह सम्भालता है, समाज में अपनी तथा साथ ही अपनी पत्नी को भी सुप्रतिष्ठित करने का प्रयास करता है और उसके हर प्रयास के पीछे निश्चित रूप से आधार होती है- नारी। नारी को शक्ति रूपा कहा गया है, और यह भी सत्य है, कि नारी जो एक बार निश्चय कर लेती है, उसे पूर्ण करती ही है।
सदियो पूर्व से ही नारी की इच्छा-शक्ति से यह जगत् परिचित होता आया है। नारी रूपी सावित्री के अन्दर इतनी क्षमता है, कि वह अपने पति को यमराज से भी छीन कर वापिस ला सकती है। नारी दृढ़ निश्चय स्वरूप से ही राक्षसों को भस्मीभूत कर देती हैं और काल को भी बाध्य होकर अपनी गति रोक देनी पड़ती है।
वास्तविक सत्य भी यही है कि नारी शक्ति स्वरूपा है। यह बात अलग है, कि आज की नारी अपने इस स्वरूप को बिसरा बैठी है, इसीलिये तो वह तमाम तरह की परेशानियों से घिरी रहती है, किन्तु ऐसा नहीं है, कि आज नारी यदि ठान ले, तो अपने पूर्ण सौभाग्य को प्राप्त न कर सके।
यह बात और है, कि आज की नारी समाज परम्परागत सिद्धांतो पर अधिक आरूढ़ हो रही है और मूल शक्ति, चितंन से विमुख हो रही है। यही कारण है कि उसके जीवन में अधिक विषमतायें बनी हुयी हैं। वैवाहिक जीवन में जिस सुख-समृद्धि, प्रेम, उल्लास, आनन्द, अठखेलियां, आत्मीयता, सम्मान का वर्णन किया गया है, उसका अभाव उनके जीवन में बना हुआ है, आज के पति-पत्नी को देखक लगता है, कि इनके मध्य विवाह नहीं, बल्कि एक समझौता हुआ और उसी समझौते के अनुरूप दोनों अपने-अपने जीवन को घसीट रहें है। इसके कारण अनेक हैं। कभी-कभी ऐसा होता है कि मनोनुकूल जीवन साथी नहीं मिलता। उसका स्वभाव, विचार एकदम भिन्न होता है। उसके आचरण, क्रिया-कलाप, चरित्र सात्विक नहीं होते हैं और आज के समय में तो पुरूष-नारी की समानता की जो वैचारिक लड़ाई है, इससे तो हजारों घर बिखरे पड़े हैं। जबकि पति-पत्नी एक-दूसरे के पूरक हैं, इनके मध्य तो प्रतिस्पर्धा की कोई लड़ाई ही नहीं होनी चाहिये, फिर भी एक-दूसरे से श्रेष्ठ बनने की होड़ में दोनों अपने ही जीवन का विनाश कर रहें है। ऐसे में आवश्यक है कि हम अपने गृहस्थ जीवन को सुरक्षित करने का श्रेष्ठ उपाय करें।
पूर्व समय में पत्नी की सिर्फ एक ही इच्छा होती थी कि उसका पति दीर्घायु हो और जब तक उसका स्वयं का जीवन है तब तक वह साथ रहे। परन्तु समय के अनुरूप मान्यतायें बदल गयी हैं। अब पत्नी की यह इच्छा तो रहती ही है कि वह अखण्ड सौभाग्यवती बनी रहे, साथ ही उसकी यह भी इच्छा होती है कि उसका पति उसके इच्छाओं के अनुकूल हो, श्रेष्ठ आचरण, स्वभाव, सद्गुणों वाला, धन संग्रहित करने वाला हो। यदि ऐसा नहीं होता तो अक्सर दोनों के बीच तना-तनी, क्लेश, कलह, लड़ाई-झगड़ा, मन-मुटाव बना रहता है। वहीं पति भी यदि प्रभावशाली व्यक्तित्व, पूर्ण पुरूषार्थं युक्त, धन की आवश्यकताओं को पूर्ण करने वाला नहीं हो तो वह भी अपनी पत्नी पर प्रभाव नहीं स्थापित कर पाता।
कहने का तात्पर्य है कि उसकी पत्नी उसका सम्मान नहीं करती है। समाज में, परिवार, मित्रों के समक्ष अक्सर उसे अपमानित होना पड़ता है।
जीवन के इन आभावों को दूर करना अनिवार्य है तभी गृहस्थ जीवन का पूर्णतः भोग किया जा सकता है। इसीलिये महान् दिव्यतम पर्व पर करवा शक्ति प्राप्ति दाम्पत्य सुख-समृद्धि वृद्धि साधना प्रत्येक गृहस्थ के लिये आवश्यक है। जिससे हमारा जीवन साथी हमारे अनुकूल बन सके और उसके जो भी अवगुण हैं, वे सद्गुणों में परिवर्तित हो सके, पति अपनी पत्नी की इच्छा अनुकूल व्यवहार करें और पत्नी अपने पति का सम्मान करे।
इस साधना के माध्यम से पति के अवगुणों का तेजी से ह्रास होता है। यदि वह शराब पीता हो, अर्नगल कार्यों में लिप्त हो, किसी परायी स्त्री अथवा लड़की पर आसक्त हो या अपनी पत्नी से प्रेम ना रखता हो, उससे आत्मीयता ना हो, परिवार के प्रति गैर जिम्मेदार हो, तो धीरे-धीरे उसके स्वभाव में परिवर्तन आने लगता है और वह पूर्ण रूप से अपने गृहस्थ, अपने परिवार के लिये पूर्ण सहयोगी बन जाता है। बच्चों और पत्नी को सुख पहुंचाने और उनकी सुविधाओं का पूरा ख्याल रखने लगता है।
वहीं यदि ये साधना पति सम्पन्न करता है, तो उसकी पत्नी उसके व्यक्तित्व से प्रभावित रहती है, साथ ही उसका सम्मान, प्रेम करती है और उसके परिवार के सभी सदस्यों से अपनत्व का भाव बना रहता है। परिवार के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन सुचारू रूप से करती है।
सबसे बड़ी बात इस साधना को सम्पन्न करने के बाद गृहस्थ जीवन में समझौते का भाव समाप्त होकर आत्मीयता का भाव जाग्रत होता है जो किसी भी रिश्ते का आधार है। अर्थात् हमारे मधुर सम्बन्धों की नींव है। इसलिये यह साधना प्रत्येक गृहस्थ के लिये आवश्यक है। क्योंकि जहां गृहस्थ पति-पत्नि इस साधना को सम्पन्न करते है तो मधुर प्रेम और आत्मीयता में वृद्धि होती है। साथ ही भविष्य में कष्ट, बाधा, तनाव की स्थिति की कोई संभावना नहीं रहती है और गृहस्थ जीवन आनन्दमय रहता है।
करवा शक्ति पर्व गणपति शक्ति ऋद्धि-सिद्धि, शुभ-लाभ युक्त बुधवार को 04 नवम्बर को सायं 08 बजे के बाद स्नान आदि से निवृत्त होकर स्त्री पूर्ण सोलह श्रृंगार कर पूजा स्थान में पूर्ण सर्व सुख प्राप्ति यंत्र, करवा शक्ति लॉकेट और सम्मोहन सावित्री वशीकरण गुटिका स्थापित करें। सभी का अक्षत, धूप, दीप, चंदन और पुष्प से पूजन करें। यदि संभव हो तो पति अथवा पत्नी जिसके लिये साधना सम्पन्न कर रहें हों, उसकी फोटो सामने स्थापित करें, साथ ही पूरे साधना काल में उसी फोटो पर त्राटक करते हुये भावना रखें कि यह पुरूष अथवा स्त्री मेरे मनोनुकूल रहे।
साथ ही जीवन की जो विषमतायें हैं, उसे एक कागज पर लिखकर दीपक के नीचे रख दें। फिर निम्न मंत्र का 25 मिनट तक जप करें।
पति-पत्नी दोनों संयुक्त रूप से साधना करें तो शीघ्र ही गृहस्थ जीवन में श्रेष्ठता आती ही है। जिससे पूर्ण आत्मीय गृहस्थ सुख की प्राप्ति होगी। साथ ही स्त्रियों के अखण्ड सुहाग की रक्षा होती है। करवा चतुर्थी का व्रत रखने पर अपने पति से करवा शक्ति लॉकेट धारण करने का आग्रह करें, अथवा स्वयं साधना सम्पन्न कर धारण कर लें। जिससे पति का अपनी पत्नी के अलावा किसी भी पराई स्त्री की ओर ध्यान नहीं जाये। यही क्रिया पति को भी सम्पन्न करनी चाहिये। साधना समाप्ति पर कागज को प्रज्ज्वलित दीपक से जला दें और सभी सामग्री अगले दिन जल में अथवा मंदिर में अर्पित कर दें।
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