प्रथम सूत्र- चरित्र सुप्त अवस्था से जाग्रत अवस्था में लाता है चरित्र के द्वारा ही तीव्र बलवती भावना हमें क्रियाशील बनाती है, और अनुशासन हमें किसी मार्ग पर आगे निरन्तर चलाता रहता है। इसीलिये जीवन में सबसे पहले चरित्र चरित्र के साथ क्रियाशीलता और उसके साथ स्वअनुशासन जीवन में बहुत जरूरी होता है।
द्वितीय सूत्र- अत्यन्त बुद्धिमान गुणी व्यक्ति की सभी प्रशंसा कर सकते है, धनी व्यक्ति को आश्चर्य से देखते है, शक्तिशाली व्यक्ति को देखकर भय या डर उत्पन्न हो सकता है लेकिन विश्वास आप केवल चरित्रवान पर ही कर सकते है। आप का सच्चा मित्र वही हो सकता है जो चरित्र का खरा हो।
तृतीय सूत्र- ध्यान रहे जब आप उन कार्यों को करने के लिये अनुशासित और क्रियाशील करते है जिन्हें उसी समय करना आवश्यक है तो निश्चय ही एक समय ऐसा आता है जब आप उन कार्यों को सम्पन्न कर सकते है, जिन्हें आप सम्पन्न करना चाहते हैं। अनुशासन के द्वारा कार्य की आवश्यकता देखते हुये क्रियाशील हो जाने से धीरे-धीरे व्यक्ति असंभव कार्य भी सम्पन्न कर सकता हैं।
चतुर्थ सूत्र- यह ध्रुव सत्य है कि जिनके जीवन में निश्चित दिशा, निश्चित लक्ष्य होता है, वे ही अपने जीवन में बहुत तेजी से बहुत आगे आ सकते है, और अपने जीवन के सभी क्षेत्रें में सपफ़लता प्राप्त कर सकते है। लक्ष्यहीन, दिशाहीन जीवन पशु के समान होता है।
पांचवा सूत्र- आपकी विचार धारा का आपकी क्रियाशक्ति पर सीधा प्रभाव पड़ता है, अतः आपकी विचार धारा ठोस एंव सही विचारों से ही युक्त होनी चाहिये। विचार धारा पल-पल बदलती है तो क्रियाशक्ति से कुछ भी प्राप्त नहीं कर सकते है।
विद्या अर्थात् ज्ञान ऐसा धन है जिसे कोई आपसे छीन नहीं सकता, अतः निरन्तर प्रयत्न कर अधिक ज्ञान, अधिक जानकारी प्राप्त करने का प्रयास अवश्य करते रहना चाहिये। अपने बारे में दूसरों से राय जानने के बजाय आप अपने बारे में जो राय रखते है वह महत्वपूर्ण है जो आप अपने आप से करना चाहते हैं।
छठा सूत्र- सज्जनों के साथ मित्रता की इच्छा पराये गुणों से प्रेम, गुरूजनों के प्रति विनम्रता, विद्या के प्रति अनुराग, लोक निन्दा से भय, शिव और शक्ति की भक्ति, इन्द्रिय दमन की शक्ति और दुष्टों की संगति का त्याग सर्वोतम गुण माने गये है।
सातवां सुत्र- जिनके साथ आप अपना लक्ष्य निश्चित करते है वे आपके जीवन में मुख्य भूमिका निभाते हैं कि आप जीवन में अपना लक्ष्य प्राप्त कर सकते है या नहीं। अतः आपके सहयोगी, मित्र कैसे है, आपके आदर्श कैसे है इन पर बार-बार विचार कर ही निश्चित करना चाहियें।
आठवां सूत्र- तपते हुये लोहे पर पड़ने से जल तत्काल नष्ट हो जाता है। वही जल कमल के पत्तों पर गिरकर मोती जैसा चमकता है, और वही जल स्वाति नक्षत्र में सीप के मुंह में गिर कर मोती बन जाता है। अतः व्यक्ति में अधम, मध्यम और उत्तम गुण संसर्ग से ही अर्थात मित्रता से ही उत्पन्न होते है। जैसे मित्र रहेंगे वैसे ही आप बन जाएगें।
नौवां सूत्र- कार्य विशेष की स्थिति में लगा हुआ व्यक्ति क्षणिक दुःख और सुख की परवाह नहीं करता जैसी भी स्थिति है। वह उसे लक्ष्य प्राप्त के मार्ग में आने वाली क्रियाओं को समझता है और व्यथित नहीं होता वही व्यक्ति जीवन में लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है।
दसवा सूत्र- मनुष्य शरीर में रहने वाला आलस्य ही उसका प्रमुख शत्रु है, और पुरूषार्थ के बराबर उसका कोई मित्र नहीं है क्योंकि पुरूषार्थ के रहने पर ही मनुष्य कभी दुःखी नहीं रह सकता।
ग्यारहवां सूत्र- कर्म को बार-बार नमस्कार है, क्योंकि कर्म ही ब्रह्माण्ड रूपी पात्र है ब्रह्मा को कुम्हार के समान नियुक्त किया, कर्म ने ही विष्णु को दशावतार धारण करने में घोर संकट में डाला, कर्म ने ही रूद्र को खप्पर हाथ में देकर भिक्षा के लिये बाध्य किया। कर्म ने ही सूर्य को रोज आकाश में भ्रमण करने का कार्य सौंपा, उस कर्म को महान् ही कहा जा सकता है।
बारहवां सूत्र- जो भाग्यहीन अभागा मनुष्य इस कर्म प्रधान संसार में जन्म लेकर भी अकर्मण्य रहता है उसका तो परमात्मा भी भाग्योदय नहीं कर सकते। जीवन में ये सिद्धांत कोई कठिन सिद्धांत नहीं है ऐसी नीति भी नहीं है जिनकी पालना नहीं की जा सके। जिसके जीवन में कर्म है, लक्ष्य है, क्रियाशीलता है, बुद्धि है वह व्यक्ति अपने जीवन में पूर्णता प्राप्त कर सकता है इसीलिये कहा गया है कि हाथों की प्रसन्नता दान में है, सिर की शोभा गुरूजनों के चरणों में प्रणाम और नमन में है, मुख की शोभा सत्य भाषण में, भुजाओं की शोभा बल प्रदर्शन में, हृदय और मन की शोभा स्वच्छता में, कानों की शोभा श्रेष्ठ शास्त्रों को सुनने में हैं।
जीवन में दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलना कोई महान् कार्य नहीं है यह तो प्रत्येक व्यक्ति के हाथ में है। उसके जीवन के प्रति अनुराग, जीवन के प्रति प्रेम, जीवन में एक ईष्ट, एक ही गुरू को मानते हुये निरन्तर क्रियाशील रहने में है। जीवन को श्रेष्ठ मार्ग की ओर अग्रसर करने के लिये इसी अनुशासन और निष्ठा के साथ जीवन संग्राम में प्रबल क्रियमाण कर्म करें, तो इसी जीवन में स्वर्ग प्राप्त हो सकता है और इन्ही स्थितियों से जीवन का वास्तविक आनन्ददायक स्वरूप प्राप्त होता है।
शोभा श्रीमाली
It is mandatory to obtain Guru Diksha from Revered Gurudev before performing any Sadhana or taking any other Diksha. Please contact Kailash Siddhashram, Jodhpur through Email , Whatsapp, Phone or Submit Request to obtain consecrated-energized and mantra-sanctified Sadhana material and further guidance,