भिन्न-भिन्न स्थानों पर आज भी ‘कृष्णलीला’, ‘श्रीमद् भागवत कथा’ तथा ‘रासलीला’ जैसे कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है और इन कार्यक्रमों के अन्तर्गत कृष्ण के जीवन पर तथा उनके कार्यों का विवेचन किया जाता है। देव पुरूषों के सद्गुणों को कोई बिरला ही आत्मसात् कर पाता है। परन्तु समाज ‘देव पुरूषों व देव शक्तियों’ का सही ढंग से आकलन ही नहीं कर पाया। जो समाज वर्तमान तक कृष्ण को नहीं समझ पाया, वह समाज उनकी उपस्थिति के समय उन्हें कितना जान पाया होगा, इसकी तो कल्पना ही की जा सकती है। सुदामा जीवन पर्यन्त नहीं समझ पाये कि जिन्हें वे केवल मित्र ही समझे थे, वे कृष्ण एक दिव्य विभूति हैं और उनके माता-पिता भी तो हमेशा उन्हें अपने पुत्र की ही दृष्टि से देखते रहे तथा दुर्योधन ने उन्हें हमेशा अपना शत्रु ही समझा।
इसमें कृष्ण का दोष नहीं कहा जा सकता, क्योंकि कृष्ण तो अपना सम्पूर्ण जीवन पूर्णता के साथ ही जिये कहीं वे माखन चोर के रूप में प्रसिद्ध हुये तो कहीं प्रेम शब्द को सही रूप में प्रस्तुत करते हुये दिखाई दिये। कृष्ण के जीवन में राजनीति, संगीत जैसे विषय भी पूर्णरूप से समाहित थे और वे अपने जीवन में षोडश कला पूर्ण होकर योगेश्वरमय कहलाये। जहां उन्होंने प्रेम, त्याग और श्रद्धा जैसे दुरूह विषयों को समाज के सामने रखा वहीं जब समाज में झूठ, असत्य, व्यभिचार और पाखंड का बोलबाला बढ़ गया, तो उस समय कृष्ण ने जो युद्धनीति, रणनीति तथा कुशलता का प्रदर्शन किया, वह अपने-आप में आश्चर्यजनक ही था।
श्रीकृष्ण के जीवन का एक-एक क्षण मानव जीवन के लिये प्रेरणादायक है, वे केवल सम्मोहन, वशीकरण, सौन्दर्य तक ही सीमित नहीं हैं। उनके विराट् व्यक्तित्व के फलस्वरूप नरकासुर राक्षस के बन्धन से 16 हजार गोपिकाओं को असुरों से मुक्त किया और सभी को आत्मीय भाव से अपनी शरण में लिया। भगवान श्री कृष्ण तो पूर्ण योगेश्वरमय हैं, पूर्णता के परिचायक हैं, जिनकी साधना, उपासना कर साधक अपने सांसारिक जीवन को योग-भोग से परिपूर्ण कर सकता है।
भोग का तात्पर्य केवल वासना नहीं होता, भोग का तात्पर्य है कि आपके जीवन में कोई अभाव ना हो, आप समाज में पूज्य हों, आपके ज्ञान का स्तर उच्चतम हो, जिससे स्वयं के साथ-साथ जनमानस का कल्याण हो सके। ऐसे जगद्गुरू महापुरूष की साधना करने से साधक अपने जीवन में अनुकूलता प्राप्त करता है। उसके जीवन में भोग के साथ ही साथ योग का मार्ग भी प्रशस्त होता है। जिसकी पूर्णता के लिये बड़े से बड़ा साधक, योगी, संन्यासी भी प्रयत्न करते हैं, क्योंकि बिना योग-भोग के मेल से इच्छायें अतृप्त रह जाती है और यदि एक भी इच्छा रह गयी तो पुनः जन्म-मरण की क्रियाओं से गुजरना ही पडे़गा।
सामाजिक जीवन जीने के लिये जिन शक्तियों, गुणों की आवश्यकता है, उसके प्रदाता भगवान कृष्ण ही हैं। जीवन में कदम-कदम पर जो असुररूपी कंसमय राक्षसों द्वारा दुःख संताप, कष्ट पीड़ा, शत्रुमय स्थितियों का विस्तार कर जीवन में अंधकारमय स्थितियां निर्मित करते है जिससे जीवन निरन्तर कष्टमय बना रहता है। साथ ही पशुवत स्थितियों से भी बदतर जीवन व्यतीत करना पड़ता है। सही रूप में तो जीवन का भाव चिन्तन योग-भोग की सुस्थितियों से निरन्तर क्रियाशील रहें। वैसे भी जीवन में कभी भी थोड़ा सा ही संताप दुःख आता है तो उसके निवारण हेतु अपने माता-पिता संतान परिजनों मित्रें का स्मरण नहीं करते बल्कि ईश्वर से ही प्रार्थना की जाती है की वे मेरे संकटों का निदान करें।
जीवन का सारभूत तथ्य यही है कि जीवन में निरन्तर आनन्द प्रसन्नता, सुख, भोग-विलास के साधन प्रचुर मात्रा में प्राप्त हो तब ही साधनात्मक रूप में योगमय स्थितियों का विस्तार हो सकेगा। अतः निरन्तर जीवन्त जाग्रत कर्मशील रहते हुये उक्त सुस्थितियों की पूर्णता से प्राप्ति के लिये कृष्णमय सम्मोहन युक्त वसन्तोमय चैतन्य महापर्व पर साधना सम्पन्न कर साधक अपनी मनोकामनायें सरलता से पूर्ण करने में समर्थ होते हैं। साथ ही जीवन की कालिमा को समाप्त कर प्रकाश से ओत-प्रोत हुआ जा सकता हैं।
साधना विधान-
ललिताम्बा जयन्ती युक्त माघ शुक्ल पक्षीय वसन्त पंचमी 16 फरवरी को उक्त महापर्व पर उक्त विशिष्ट साधना सम्पन्न करें तो निश्चिन्त रूप से कृष्णमय सौन्दर्य सम्मोहन वर्चस्व युक्त जीवन निर्मित हो सकेगा।
स्नान कर शुद्ध धुले हुये वस्त्र धारण कर, पूजा स्थान में अपने सामने एक बाजोट पर श्रीकृष्ण सम्मोहन शक्ति यंत्र, योग-भोग प्रदायक जीवट व सोलह कला शक्ति माला स्थापित कर, पंचोपचार पूजन कर भगवान कृष्ण का ध्यान करें-
स्मरेद् वृक्ष वने रम्ये मोहनकृष्णेरतम्। गोविन्द पुण्डरीकाक्षं गोपकन्याः योग-भोग।।
ऊँ नमों भगवते वासुदेवाये आत्मनों वदनां। पीडि़ता कामबाणेना विवरामा श्लेष्णोत्सुकाः।।
निम्न मंत्र के साथ संकल्प कर जल ग्रहण करें।
मंत्र: कराग्रे वसते लक्ष्मिः करमध्ये सरस्वति। करमूले तु गोविन्दः
अपने जीवन को वसन्तमय निर्मित करने हेतु अपनी कामना का स्मरण कर सोलह कला शक्ति माला से चार माला का मंत्र जप करें।
।। ऊँ नमो योगेश्वर कृष्णत्त्व सर्व सम्मोहनाय् नमः।।
सांध्य बेला में सद्गुरू आरती व समर्पण स्तुति के पश्चात् पांच मिनट तक निम्न मंत्र का बिना माला के अजपा जाप करें।
मंत्र जप समाप्ति के बाद माला को धारण करें जिससे की सद्गुरूदेव कैलाश श्रीमाली जी द्वारा योग-भोग प्रदाता कृष्ण सम्मोहन दीक्षा प्रदान की जायेगी।
वसन्त पंचमी सरस्वती शक्ति ललिताम्बा जयन्ती महापर्व पर उक्त साधना दीक्षा आत्मसात् करने से निरन्तर जीवन में सुस्थितियों का विस्तार होगा। साधना सामग्री के साथ ही पत्रिका सदस्यता उपहार स्वरूप प्रदान की जा रही है। जिससे कि आपका और सद्गुरूदेव जी का आत्मीय संबंध निरन्तर बना रहे और उनकी चेतना से जीवन में लघु रूप में भी कष्ट-पीड़ा नहीं आ सकेगी। आवश्यक है कि ऐसे विशेष महापर्व को अक्षुण्ण रूप में अवश्य ही आत्मसात् करें। समस्त साम्रगी को 27 फरवरी माघी पूर्णिमा पर विसर्जित कर दें।
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