मानव शरीर की पूर्णता हमारी 6 इंद्रियो में समाहित है पांच तो सभी में एक सी है- देखना, सुनना, छूना, सूंघना व चखना परन्तु वो छठी योग्यता हमें दूसरों से भिन्न बनाती है और ये छठी योग्यता ही है जो हम स्वयं विकसित कर सकते हैं और निरन्तर सही दिशा में प्रयत्न कर उसे ओर निखार सकते है उसे और उन्नोतर बना सकते है।
हमारा नियन्त्रण उस छठी योग्यता पर, उस कौशल पर, उस कला पर होना चाहिये जो हमें अपनी पहचान देती है, जो हमें दूसरों से अलग बनाती हैं। जो ईश्वर ने आंख, नाक, कान दिये आप उसे परिवर्तित या सुधार नहीं सकते -जिसका जो आकार है, जो व्यवहार है वो ही रहेगा। परन्तु आप स्वयं के कौशल को निखार व सवार सकते हो। सफल व्यक्तियो ने अपने इसी कौशल पर निरन्तर कार्य किया है, उसे सुधारा है तभी आज वो बाकियों से समृद्ध व परिपूर्ण है।
जब हम अपनी पूरी निष्ठा से, नियमित रूप से किसी को पूर्णता से पाने की क्रिया करते है व उसको साधने के लिये प्रयत्न करते है तो अवश्य ही पा लेते है-बस प्रयत्न सही दिशा में व सही समय करना होगा। हमारे अन्दर छिपे उस कौशल की उस चेतना की खोज तो हमें स्वयं की करनी होगी। गुरू आपको इस खोज में एक सार्थक सारथी बन सकते हैं।
इस ज्ञान दिवस- वसंत पंचमी पर्व 16 फरवरी पर माँ सरस्वती की चेतना व गुरू के ज्ञान से आप जीवन के हर उस कौशल के विकास व पूर्णता के लिये कार्यरत हो सकते हो। मानव के लिये असम्भव कुछ भी नहीं है यद्यपि वो कार्य सही उद्देश्य, सही तरीके व सही समय पर हो। एक दिन में कोई IAS सफ़ल नही बन सकता ना ही एक दिन में Doctor.
इस ज्ञान पंचमी पर आपमें गुरू ज्ञान, गुरू चेतना का विकास हो व आप अपने जीवन व साधनात्मक पथ पर सफलता प्राप्त करें।
आपका अपना
विनीत श्रीमाली
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