साथ ही जीवन रूपी मंथन में प्राप्त होने वाले अमृत का लाभ मिल सके, साधक अपने सांसारिक जीवन में कर्म मंथन करते हुये प्रगति की नवीन उच्चता की प्राप्ति कर सकें, यह साधना इन्ही विशेष रहस्यों को स्वयं में समेटे हुये है। जो मूलभूत कर्म प्रभाव प्रकाशिनी रूप में लक्ष्मी तत्त्व रूपी अपार क्रिया शक्ति से आपूरित रहता है, वही जीवन में अमृत की अर्थात् लक्ष्मीमय सुस्थितियों की प्राप्ति कर पाता।
माघ माह को हिन्दू धर्म ग्रन्थों में वंसतोमय पवित्र और पुण्यकारी माना गया है। इस माह का प्रत्येक दिवस साधनात्मक स्वरूप में जीवन को सुख-सम्पदा, सौभाग्य से युक्त करने हेतु शुभमय है, परन्तु माघ माह की अमावस्या जो कि मौनी अमावस्या है। मान्यता है कि इस दिन गंगा का जल अमृतमय हो जाता है और संगम स्थानों पर देवी-देवताओं का वास होता है। इसलिये इस दिन पर गंगा स्नान की बड़ी महत्ता है। जीवन को चैतन्य व वसन्तमय करने हेतु साधना अवश्य ही सम्पन्न करनी चाहिये। इस दिन किसी कारण से तीर्थ संगम में स्नान के लिये ना जा सके तो अपने निकट पवित्र नदी, सरोवर अथवा अपने घर में गंगाजल मिश्रित जल से स्नान करना चाहिये, क्योंकि शास्त्र के अनुसार इस दिन सभी नदी, सरोवर गंगा स्नान के समान पुण्यकारी होते हैं।
साथ ही त्रि-शक्ति की पूजा की जाती है। गंगा जो कि शिव की जटा से आलोकित है। जो कि महालक्ष्मी स्वरूपा है। चन्द्रमा शीतलता का प्रतीक है। अतः त्रि-शक्ति स्वरूप में गंगा, महालक्ष्मी व शिवमय भाव को त्रि-शक्ति कहा गया है। इस दिन चन्द्रमा अस्त होता है, जो मन का प्रतिनिधित्व करता है, चन्द्रमा अस्त होने से मन की चंचलता शांत होती है, इसलिये इस दिन व्रत, ध्यान, साधना, मंत्र जप आदि क्रियायें सम्पन्न करनी चाहिये।
माता महालक्ष्मी के अनेक रूप है जिस में से उनके आठ स्वरूप जिन को अष्टलक्ष्मी कहते है। लक्ष्मी का अभिषेक दो हाथी करते हैं। वह कमल पर विराजमान रहती है। कमल कोमलता का प्रतीक है। लक्ष्मी के एक मुख चार हाथ हैं। वे एक लक्ष्य और चार प्रकृतियों (दूरदर्शिता, दृढ़ संकल्प, श्रमशीलता और व्यवस्था शक्ति) के प्रतीक हैं। दो हाथों में कमल सौन्दर्य और प्रामाणिकता के प्रतीक है। दान मुद्रा से उदारता तथा आशीर्वाद मुद्रा से अभय अनुग्रह का बोध होता है। वाहन उलूक निर्भीकता एवं रात्रि में अंधेरे में भी देखने की क्षमता का प्रतीक है।
माता महालक्ष्मी कोमलता और सुंदरता सुव्यवस्था में ही सन्निहित रहती है। कला भी इसी सद् प्रवृति को कहते हैं। लक्ष्मी का एक नाम कमला भी है इसी को संक्षेप में कला कहते हैं। वस्तुओं को, सम्पदाओं को सुनियोजित रीति से सद्उद्देश्य के लिये सदुपयोग करना उसे परिश्रम एवं मनोयोग के साथ नीति और न्याय की मर्यादा में रहकर उपार्जित करना भी सार्थकता के अंतर्गत आता है। उपार्जन अभिवर्धन में कुशल होना श्री तत्त्व के अनुग्रह का पूवार्ध है। उत्तरार्ध वह है जिसमें एक पाई का भी अपव्यय नहीं किया जाता। एक-एक पैसे को सद्उद्देश्य के लिये ही खर्च किया जाता है।
लक्ष्मी का जल अभिषेक करने वाले दो गजराजों को परिश्रम और मनोयोग कहते हैं। उनका लक्ष्मी के साथ अविच्छिन्न संबंध है। यह युग्म जहां भी रहेगा वहां वैभव की श्रेय सहयोग की कमी रहेगी ही नहीं। प्रतिभा के धनी पर सम्पन्नता और सफलता की वर्षा होती है और उन्हे उत्कर्ष के अवसर पग-पग पर उपलब्ध होते हैं।
गायत्री के तत्त्वदर्शन एवं साधना क्रम की एक धारा लक्ष्मी है। इसका शिक्षण यह है कि अपने में उस कुशलता की क्षमता की अभिवृद्धि की जाये तो कहीं भी रहो लक्ष्मी के अनुग्रह और अनुदान की कमी नही रहेगी। उसके अतिरिक्त गायत्री उपासना की धारा श्री साधना है। उसके विधान अपनाने पर चेतना केन्द्र में प्रसुप्त पड़ी हुई वे क्षमतायें जागृत होती है। जिनके चुम्बकत्त्व से खिचंता हुआ धन वैभव उपयुक्त मात्र में सहज ही एकत्रित होता रहता है। एकत्रित होने पर बुद्धि की देवी सरस्वती उसे संचित नहीं रहने देती वरन् परमार्थ प्रयोजनों में उसके सदुपयोग की प्रेरणा देती है।
लक्ष्मी प्रसन्नता की, उल्लास की, विनोद की देवी है। वह जहाँ रहेगी हँसने, हँसाने का वातावरण बना रहेगा। अस्वच्छता भी दरिद्रता है। सौन्दर्य एवं स्वच्छता एवं कलात्मक सज्जा का ही दूसरा नाम लक्ष्मी है। लक्ष्मी सौन्दर्य की देवी है। उसी से स्वच्छता एवं प्रसन्नता एवं सुव्यवस्था श्रमनिष्ठा एवं मितव्ययिता का वातावरण बना रहेगा।
इस साधना को 11 फरवरी मौनी अमावस्या को सम्पन्न करें। प्रातः काल स्नान जल में थोड़ा गंगाजल मिश्रित कर गंगा, यमुना व सरस्वती देवमय शक्ति नदियों का आवाहन व चिंतन करते हुये स्नान करें, तत् पश्चात् शुद्ध वस्त्र धारण कर अपने पूजा स्थान में पूर्व दिशा की ओर मुंह कर बैठ जायें।
अपने सामने बाजोट पर पीला वस्त्र बिछाकर कुंकुम से ऊँ अंकित करें अब ऊँ के ऊपर त्रि-शक्ति यंत्र स्थापित कर दें, यह त्रि-शक्ति यंत्र ब्रह्माण्ड के तीनों महा-शक्ति जिससे सम्पूर्ण सृष्टि का संचालन होता है, यही तीन शक्तियां ब्रह्मा, विष्णु, महेश, महागौरी, महालक्ष्मी, महासरस्वती, गंगा, यमुना सरस्वती, क्रिया, ज्ञान, इच्छा और सत्, रज, तम स्वरूप में विद्यमान है। संसार की सभी क्रियायें तीनों महाशक्तियों के सहयोग से संचालित हैं।
यंत्र के बायीं ओर त्रिभुज बनाकर उस पर त्रिवेणी गंगा गुटिका स्थापित करें जो कि महालक्ष्मी, शिवमय, गौरी गंगा का प्रतीक है। लक्ष्मी प्राप्ति माला स्थापित कर सभी सामग्री का पंचोपचार पूजन कर जीवन अविरल रूप से गंगा स्वरूप में गतिशील रहें। इस हेतु संकल्प ग्रहण कर गुरू मंत्र की 1 माला मंत्र जप सम्पन्न कर लक्ष्मी प्राप्ति माला से निम्न मंत्र का 1 माला मंत्र जप 3 दिनों तक सम्पन्न करें-
साधना समाप्ति के बाद सम्पूर्ण सामग्री को किसी पवित्र जलाशय में प्रवाहित करें।
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