अन्य दिनों में साधक, साधना करने में जितना प्रयास, जितना तपोबल, जितना मंत्र जप करता है उसका शतांश भी इन दिनों में उपयोग करता है तो उसे साधना में सफलता प्राप्त करने से कोई नहीं रोक सकता। भगवती दस महाविद्याओं की साधना का स्वरूप ठीक उसी प्रकार है, जिस प्रकार एक श्रेष्ठ भवन की मजबूत नींव स्थापित करना। यह साधना नूतन वर्ष स्वरूप में जीवन निर्माण की साधना है जो यदि पूर्ण रूप से मजबूत है तो चाहें कितने भी तुफ़ान क्यों न आये, झटके लगे, विपरित स्थितियां आये, पूरे वर्ष भर किसी भी स्वरूप में अहित नहीं हो सकता है क्योंकि इसका आधार साधक व दस महाविद्या स्वरूप सद्गुरू की चेतना होती है।
हमारे जीवन में निरन्तर युद्ध रूपी विषम नाग-पाश और संदेह होते है, उसमें नवरात्रि हमें अपने आप को पुनः विषम स्थितियों से पूर्ण रूपेण निजात प्रदान करने का अवसर प्रदान करती है, कि हम जाग्रत होकर आद्या शक्ति से एकाकार हो जाये। कलीयुग में मनुष्य जीव में अहंकार रूपी अंधकार, विपरीत विचार, कुबुद्धि कभी भी उत्पन्न हो जाते है और उन दुर्गुण रूपी राक्षसों को तत्काल समाप्त करने की आवश्यकता है, इसलिये प्रत्येक नवरात्रि से पहले एक महालय आता है, जिसका तात्पर्य है कि महाविनाश। ऐसे समय में भीतर की विनाशकारी शक्तियों को नष्ट करने का शुभ अवसर नवरात्रि है और नवरात्रि में साधना सम्पन्न कर अपने आप को पुनः सर्व शक्तिमय बनाने का भाव चिन्तन है।
यह पूरा रचना क्रम जो संहार और उत्पत्ति का क्रम, व्यक्ति के जीवन में निरन्तर चलता रहता हैं। दुर्गा के नव स्वरूप इस रचनात्मक प्रक्रिया के भाग है, जो हमारे भीतर एक-एक क्रम का निर्माण करते हुये हमारा पुनः निर्माण करते है। हमारे पास शस्त्र रूपी संकल्प, संस्कार व ज्ञान ही है। ये विचार संस्कार और ज्ञान से निर्मित होते है और जब जीवन में विनाशकारी विचारों को नष्ट करने की भावना आ जाती है, तो आद्या शक्ति स्वयं हमारे भीतर प्रवेश करती है, जिससे हम पुनः आंतरिक और बाह्य रूप से दिव्य भावों को आत्मसात् कर पाते है।
प्रत्येक मनुष्य का जीवन बहुआयामी होता है। इस जीवन में ही विभिन्न प्रकार के रंग, तरंग, उमंग है तो कभी हताशा-निराशा, परेशानी भी है। जहाँ जीवन में सुख है तो दुःख भी है जीवन में पीड़ा है तो आनन्द भी है। ये सारी स्थितियाँ मनुष्य को विचलित भी करती है और ज्यादातर व्यक्ति अपने जीवन में अपनी बाधाओं का समाधान नहीं कर पाते, जिससे उन्हें स्थितियों में अनुकूलता प्राप्त नहीं होती है। अतः इन सब बाधाओं तथा समस्याओं को अनुकूल बनाने का पर्व ही नवरात्रि है।
शक्ति का तात्पर्य केवल बल ही नहीं है वरन् शक्ति एक भाव है जो आपके सामर्थ्य को प्रकट करता है, जिस प्रकार चन्द्रमा का सम्बन्ध चांदनी से है, दीपक का सम्बन्ध प्रकाश से है, यदि दीपक नहीं तो प्रकाश नहीं, इसी प्रकार शक्ति नहीं तो क्रियायें भी नहीं, अतः यदि श्रेष्ठता को आत्मसात् करना है तो शक्ति की आराधना तो करनी ही पडे़गी।
जो दुर्बल है उसका जीवन तो व्यर्थ है, जो अपने सामर्थ्य से शक्ति आराधना करता है उसका घर धन-धान्य, पुत्र, स्त्री, लक्ष्मी से कभी रिक्त नहीं हो सकता इसी प्रकार शक्ति तो सबल के घर पराक्रम रूप में, विद्वानो के हृदय में बुद्धि रूप में, सज्जन लोगों में श्रद्धा के रूप में निवास करती है, शक्ति का साकार रूप सब जगह, सब में है। इसकी साधना-आराधना से ही जाग्रत किया जा सकता है।
नवरात्रि का यह विशेष पर्व अपने भीतर से अज्ञानता, दोष, कमियां निकाल बाहर कर अपने भीतर शक्ति भरने का पर्व है। यदि संसार विपत्ति सागर है, तो उसमें से पूर्ण रूप से बाहर निकलने के लिये शक्ति समर्थ होना ही पड़ेगा, अपने भीतर शक्ति सामर्थ्य भरना पडे़गा, यह शक्ति ही अपने अलग-अलग रूपों में विद्यमान हो कर साधक के कार्य सम्पन्न करती है।
त्रिपुर सुन्दरी साधना
जो व्यक्ति अपने जीवन मे त्रिपुर सुन्दरी की साधना कर उनकी कृपा प्राप्त कर पाता है वह व्यक्ति अपने जीवन में सर्व विजयश्री से युक्त होता है, क्योंकि यह शक्ति शिव स्वरूप में इच्छा, ज्ञान, क्रिया तीनों स्वरूपों को पूर्णता प्रदान करने वाली है। अक्सर ज्ञान और लक्ष्मी का मेल नहीं होता है। व्यक्ति ज्ञान प्राप्त कर लेता है, तो वह लक्ष्मी की कृपा प्राप्त नहीं कर सकता है जबकि यह सत्य नहीं है क्योंकि बिना ज्ञान के लक्ष्मी को आत्मसात् नहीं किया जा सकता।
त्रिपुर सुन्दरी की साधना, जो कि श्री विद्या की भी साधना है, स्पष्टतः जो व्यक्ति पूर्ण एकाग्रचित होकर यह साधना सम्पन्न करता है, उसे शारीरिक, मानसिक रोग, और भय नहीं रहता है, वह दरिद्रता व मृत्यु रूपी स्थितियों का संहार करता है। साधक जीवन में पूर्ण रूप से धन, यश, आयु, भोग और मोक्ष को प्राप्त करता है।
यह शक्ति वास्तव में त्रिशक्ति स्वरूपा है। त्रिपुर सुन्दरी साधना कितनी महान साधना है, इसके बारें में ‘वामकेश्वर तंत्र’ में लिखा है- जो व्यक्ति यह साधना जिस मनोभाव से करता है, उसका वह मनोभाव पूर्ण होता है। काम की इच्छा रखने वाला व्यक्ति पूर्ण कामदेव अनंग शक्ति प्राप्त करता है, धन व विद्या की इच्छा रखने वाला व्यक्ति पूर्ण धनी व विद्वानमय श्रेष्ठता से युक्त होता है।
यह साधना करने वाला व्यक्ति कामदेव के समान तेजस्वी हो जाता है और वह साधारण व्यक्ति न रहकर लक्ष्मीवान, पुत्रवान होता है। उसे वशीकरण की विशेष शक्ति प्राप्त होती है, उसके भीतर एक विशेष आत्मशक्ति का विकास होता है और उसके जीवन में पाप संताप का क्षय हो जाता है।
वाणी की सिद्धि प्राप्त होती है और उसको समस्त देव शक्तियों की स्थिती प्राप्त होती है और व्यक्ति इस जीवन में ही देवमय स्थितियों से युक्त होता है।
साधना विधान
प्रातः काल स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण कर पूजा स्थान में संकल्प भाव के साथ अपनी मनोकामना व्यक्त करते हुये तीन आचमनी जल ग्रहण करे। अपने सामने एक बाजोट पर लाल वस्त्र बिछाकर ‘त्रिपुर सुन्दरी महायंत्र’ कामदेव अनंग जीवट और दस महाविद्या त्रिभुवन मोहिनी माला स्थापित कर पंचोपचार पूजन कर त्रिपुर सुन्दरी का ध्यान करे।
बालार्कद्युतितेजसं त्रिनयनां रक्ताम्बरोल्लासिनीं
नानालंकृतिराजमानवपुषं बालोडुराट्शेखराम।
हस्तैरिक्षुधनुः सृणिं सुमशरं पाशं मुदा विभ्रतीं
श्री चक्रस्थित सुन्दरी त्रिजतामाधारभूतां स्मरेत्।।
पूर्ण शांत भाव से प्रत्येक कामना के साथ एक-एक माला दस महाविद्या त्रिभूवन मोहिनी माला से निम्न मंत्र का 7 माला सप्त कामनाओं की पूर्ति हेतु जप करें-
नित्य रात्रि काल में 13 अप्रेल से 21 अप्रेल तक निरन्तर उक्त विधान से मंत्र जप करने से सर्व सुकामनाओं की पूर्णता की ओर क्रियाशील हो सकेंगे। नवरात्रि की पूर्णता के बाद सम्पूर्ण सामग्री को किसी मंदिर या गुरू चरणों में अर्पित करें।
यक्षिणी साधना
यदि यह कहा जाये कि तंत्र के क्षेत्र में यक्षिणी साधना का आश्रय लिये बिना पूर्णता प्राप्त की ही नहीं जा सकती, तो यह कोई अनुचित बात नहीं होगी। यक्षिणी साधना पूर्णता से केवल और केवल प्रेमिका के रूप में ही सिद्ध की जा सकती है। प्रेमिका का तात्पर्य यहां प्रचलित अर्थों से नहीं, अपितु इस रूप मे है कि साधक को एक ऐसी अभिन्न सहयोगिनी प्राप्त हो जाती है, जिसके माध्यम से वह तंत्र की विशिष्ट क्रियाये सम्पन्न कर सकता है। योग और साधना के क्षेत्र में पूर्ण सफलता प्राप्त करने के इच्छुक साधक स्पष्टता और दृढ़ता से यक्षिणी साधना सम्पन्न कर अपने आप को साधक रसमयता से परिपूर्ण होते हुये मार्गदर्शिका के रूप में यक्षिणी को आत्मसात् कर सकते है।
यक्षिणी की रूप राशि किसी भी वर्ग की स्त्री से सर्वथा अलग हट कर इस रूप में मनोहर होती है, कि उनमें एक प्रकार की चुम्बकीयता और मादक गंध समायी होती है, जिसके आकर्षण मे साधक मुक्त हो ही नहीं पाता। केवल शारीरिक सौन्दर्य और अत्यन्त आकर्षण ही नहीं यक्षिणी अपने आप में पूर्णरूप से साधक के गुणों से भी सुसज्जित होती है, जिससे उसके अन्दर एक अतिरिक्त अपनत्व, मृदुता, शीतलता होती है। इस साधना के द्वारा वास्तव में साधक को ऐसा सहचर्य और मधुरता मिलती है, जिससे वह साधनाओं में तीव्रता से गतिशील हो सकता है।
तंत्र की उच्चकोटि की साधनायें तो यक्षिणी के सहचर्य के बिना पूर्ण होती ही नहीं। तिब्बत के लामा प्रख्यात तांत्रिक एवं सिद्ध साधक हुये, उसके मूल में यही यक्षिणी साधना ही है, क्योंकि तिब्बत मे लामा संप्रदाय के अन्तर्गत ‘तंत्र दीक्षा’ केवल मात्र यक्षिणीयों से ही प्राप्त होती थी तथा उनके सहचर्य में रहकर ही कोई साधक तंत्र की साधनायें सम्पन्न कर सकता था।
यक्षिणी साधना को प्रचलित रूप से अलग हटकर समझने से साधक अपने जीवन में बहुत कुछ हासिल कर सकता है, और जीवन के दोनों पक्ष अर्थात् योग व भोग एक साथ प्राप्त कर पाने का अधिकारी बन जाता है, क्योंकि तभी उसके अन्दर उस तंत्रमयता का उद्भव होता है, जो जीवन के दोनों पक्षों को लेकर चलने की स्पष्ट धारणा रखती है। जो दुर्गा सप्तशती जैसे प्रतिष्ठित ग्रंथ में मिलता है।
पार्वती ने भगवान शिव से निवेदन किया कि देवताओं के लिये तो सभी प्रकार के सुख स्वर्ग में उपलब्ध हैं अप्सरायें उनकी सेवा में रहती हैं, देवताओं का यौवन हर समय अक्षुण्ण रहता है तथा समस्त इच्छायें पूर्ण होती हैं, लेकिन पृथ्वी पर रहने वाले सभी मनुष्यों की इच्छायें पूर्ण नहीं हो पाती है, वे मानसिक रूप से अपनी अधूरी इच्छाओं के जाल में फंसे रहते हैं। इस पर भगवान शिव ने कहा, कि मनुष्य को यक्षिणी साधना सम्पन्न करना चाहिये, यक्षिणी साधना करने पर मनुष्य को तत्काल फलस्वरूप अतृप्त इच्छाओं को तृप्त करने में पूर्ण समर्थ प्राप्त होता है।
साधना विधि
नवरात्रि के पंचमी तिथि 17 अप्रेल शनिश्चरीय चिन्तन पर्व पर रात्रि काल में स्नानादि से निवृत होकर संकल्प के साथ सम्पूर्ण सामग्री को दुग्ध व गंगा जल से पवित्रमय करे। अपने सामने किसी बाजोट पर लाल वस्त्र बिछाकर चावलों को लाल रंग से उसकी ढ़ेरी बनाकर उस पर ‘यक्षिणी महायंत्र’ स्थापित कर दीपक व धूप प्रज्जवलीत करे, यक्षिणी माला से 7 माला 21 दिन तक सम्पन्न करें-
साधना समाप्ति के बाद सम्पूर्ण सामग्री को किसी मंदिर में या गुरू चरणों में अर्पित करें।
ललिताम्बा साधना
जीवन में महालक्ष्मी सभी शक्तियों का केन्द्र बिन्दु है। इस एक शक्ति से ही सारी शक्तियों का महाविद्याओं का प्रादुर्भाव हुआ है। नूतन वर्ष के किसी भी रात्रि को भगवती ललिताम्बा साधना, पूजा आराधना सम्पन्न कर साधक अपने जीवन में महालक्ष्मीयों को समाहित कर सकता है।
नवरात्रि में की गयी साधना पूजा से पूरे वर्ष साधक का जीवन प्रकाशित, ऊर्जावान रहता है। इन्ही स्थितियों से लक्ष्मीवान की चेतनाओं से आपूरित होता है। साथ ही यश, प्रसिद्धि, उन्नति, कामना पूर्ति की प्राप्ति सम्भव हो पाती है। यह सौभाग्य, सुन्दरता, श्रेष्ठ गृहस्थ जीवन प्रदान करने की महाविद्या है। भगवती ललिताम्बा लक्ष्मी भोग, यश, सम्मान की अधिष्ठात्री देवी है। इनकी साधना से ही जीवन में सभी भौतिक व आध्यात्मिक सुख सुविधाओं की प्राप्ति होती है। गृहस्थ जीवन को सुचारू रूप से गतिशील रखने के लिये नित्य नूतन वस्तुओं की आवश्यकता पड़ती है। यह सब केवल और केवल भगवती ललिताम्बा पूजन साधना से ही सम्भव है। जिनमें देवी की नव शक्तियां विभूति, नम्रता, कान्ति, तुष्टी, कृति, उन्नति, पुष्टी तथा ऋद्धि सिद्धि से जीवन युक्त होता है।
ललिताम्बा साधना मस्तक पर पड़ी दुर्भाग्य की लकीरों को मिटा देने का सर्वश्रेष्ठ उपाय है, जिसे सम्पन्न कर रंक भी राजा की उपाधि प्राप्त कर सकता है। इस महत्वपूर्ण साधना को सम्पन्न करने के पश्चात् लक्ष्मी का आगमन स्थायी रूप से साधक के जीवन में होता ही है। इस साधना के प्रभाव से शीघ्र ही धनागमन के नये-नये स्त्रोत खुलते है, व्यापार में वृद्धि होने लगती है। ललिताम्बा साधना से व्यक्ति के जीवन के समस्त पूर्व जन्मकृत पाप दोषों का नाश होकर व्यक्ति सौभाग्यता से युक्त होता है।
साधना विधि
नवरात्रि के किसी भी दिवस पर रात्रिकाल में स्नानादि से निवृत होकर शुद्ध धुले हुये लाल वस्त्र धारण कर पूजा स्थान में उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुंह कर लाल आसन पर बैठ जाये, अपने सामने बाजोट पर लाल या श्वेत वस्त्र बिछाकर उसके ऊपर किसी तांबे या स्टील की थाली रख कर उस पर कुंकुंम से स्वस्तिक बनाकर ललिताम्बा यंत्र को स्थापित करे।
पूर्ण मनोभाव से संकल्प लेकर पूजन सम्पन्न करे व लक्ष्मी माला से निम्न मंत्र का 11 माला मंत्र जप सम्पन्न करे-
साधना समाप्ति के बाद नवरात्रि काल में निम्न मंत्र का 11 बार उच्चारण करते रहे। साधना सामग्री को हनुमान जयन्ती चैत्रीय पूर्णिमा 27 अप्रेल को लाल कपडे़ में बांध कर किसी मन्दिर या गुरू चरणों में अर्पित करे।
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