अक्षय तृतीया तो सौभाग्य सिद्धि दिवस है इस कारण स्त्रियाँ इस पर्व पर व्रत-पूजन करती है जिससे सुख, समृद्धि सौभाग्य की वृद्धि हो, पारिवारिक सुख-समृद्धि के लिये पूर्वजों का आशीर्वाद और पुण्य से परिवार वृद्धि की कामना करती हैं। अनेक पर्वो पर तिथि क्षय होती ही है कई बार नवरात्रि में तिथि क्षय हो जाती है, होली पर्व भद्रा में भी सम्पन्न करना होता है। दीपावली, अमावस्या के स्थान पर चर्तुदशी को सम्पन्न करनी पड़ती है, लेकिन अक्षय तृतीया की तिथि कभी क्षय नहीं होती।
प्रत्येक व्यक्ति की यही इच्छा रहती है कि उसके पास लक्ष्मी रूप में धन का स्थायी भाव हो और येन-केन-प्रकारेण आर्थिक दृष्टि से संबलमय बनू। लक्ष्मी का तात्पर्य केवल धन ही नहीं है, यह तो लक्ष्मी का एक अत्यन्त छोटा सा रूप हैं, महाकाव्यों आदि ग्रन्थों में लक्ष्मी के विभिन्न नामों का जो वर्णन आया है, उसे पूर्ण रूप से प्राप्त करना ही सही रूप में लक्ष्मी को प्राप्त करना हैं। जो व्यक्ति लक्ष्मी का अर्थ केवल धन, मुद्रा और पैसे से ही लेते है तो बहुत गलती करते हैं, पूर्ण लक्ष्मी होने का तात्पर्य केवल पैसा ही नहीं है। सही रूप में निरन्तर सुकर्म करते हुये अपने जीवन के लक्ष्यों को पूर्ण रूपेण प्राप्त करना व उन्नति के पथ पर निरन्तर अग्रसर बने रहना ही शुभ लक्ष्मी का भाव है।
यह पर्व जीवन रस की अक्षय खान हैं, अतः इस पर्व पर साधना दीक्षा से जितना प्राप्त कर सको, उतना ही यह रस बढ़ता जाता है। अक्षय तृतीया लक्ष्मी का पूर्ण पर्व है, शारीरिक सौन्दर्य, लावण्य, आभा प्राप्त करने का पर्व है। गृहस्थ पत्नी को गृह लक्ष्मी कहता है, उसके लिये अक्षय तृतीया अनंग साधना का पर्व है। अर्थात् वह अखण्ड सुहाग सौभाग्य युक्त चेतना से अभिभूत हो। सांसारिक गृहस्थ व्यक्ति की यही इच्छा रहती हैं, कि उसके पास लक्ष्मी का स्थायी भाव चिन्तन हो और उसे हर स्वरूप में आर्थिक दृष्टि से पूर्णमय सिद्धि प्राप्त हो।
अक्षय लक्ष्मी तो मन्थन अर्थात् प्रयत्न अथक प्रयत्न, गहनतम साधनाओं का वह सुन्दर परिणाम हैं, जो साधक को उसकी साधनाओं के उसके कार्यो के श्रीफल के रूप में उसे प्राप्त होती है, उस लक्ष्मी को वह अपने पास स्थायी भाव से रख सकता है, आवश्यकता इस बात की है कि वह ईश्वरीय आस्था, विश्वास युक्त साधना की चेतन्यता से निरन्तर क्रियाशील रहे और साथ ही उसके पास उचित दीक्षा का भाव होना चाहिये और यह उचित भाव उसे जीवन्त जाग्रत गुरू के निर्देश से ही प्राप्त होता हैं।
लक्ष्मी के सम्बन्ध में जितने ग्रंथ लिखे गये हैं, उतने ग्रंथ शायद ही किसी अन्य विषय पर लिखे गये हों। पुण्योदय और भाग्योदय जाग्रत होने पर ही साधना पूजा दीक्षा व ईश्वर के प्रति सच्ची श्रद्धा उत्पन्न होती है तब ही जीवन में श्रेष्ठ स्थितियां आती है और अक्षय तृतीया तो भगवान विष्णु नारायण व माँ भगवती लक्ष्मी का संयुक्त फलदायक स्वरूप पर्व है। लक्ष्मी का तात्पर्य-सौभाग्य, समृद्धि, धन, वैभव, सफलता, सम्पन्नता, प्रियता, लावण्यता, आभा, कान्ति तथा राज योग।
ये सब लक्ष्मी के स्वरूप हैं और जो इनको प्राप्त कर लेता है, वही वास्तविक रूप से लक्ष्मीपति है। ये सभी लक्ष्मी के स्वरूप केवल भीतर में विचार करने से चेतन्य नहीं होते। उन्हें क्रियाशील करने के लिये मनुष्य के भीतर में निरन्तर ललक ईच्छा रूपी अग्नि निरन्तर प्रज्जवलित होनी चाहिये। इसलिये कहा गया है कि भोर काल में सपना देखने से वह पूर्ण नहीं होता सपनो की पूर्णता के लिये निरन्तर जाग्रत रहना पड़ता है। ठीक उसी तरह उक्त सुस्थितियों को प्राप्त करने के लिये अपने भीतर में जाग्रतमय चेतन्यता का भाव होना चाहिये।
अनेक प्रयास करने के बाद भी इनको प्राप्त करने में यदि बाधा हो। यदि आपके पास धन धान्य हैं आयु और आरोग्य नहीं हैं, तब भी धन व्यर्थ हो जायेगा। पत्नी, पुत्र के अभाव में जीवन का वास्तविक सुख हो ही नहीं पायेगा। ऐसी सामान्य-सामान्य स्थितियों से भी परिवार कष्ट से जीवन व्यतीत करता है, जब साधक में धर्म, अर्थ, काम व पूर्णता का भाव चिन्तन होगा तब ही लक्ष्मी को पूर्ण रूप से प्राप्त कर सकेगा और सांसारिक भौतिक जीवन परिपूर्ण होने पर ही आध्यात्मिक श्रेष्ठता से युक्त होता है और उसी के फलस्वरूप ईश्वर से साक्षीभूत होने की ओर क्रियाशील होता है अर्थात् तब वह साधनाओं में सिद्धि प्राप्ति की ओर अग्रसर हो पाता है।
लक्ष्मी के स्वरूपों को पूर्ण क्रियाशील करने के लिये सद्गुरू कृपा व उनका पूर्ण आशीर्वाद ऐसे महान पर्व पर प्राप्त हो तो ही सर्व स्वरूप में इन श्रेष्ठ स्थितियों को प्राप्त किया जा सकता है। इसी हेतु लक्ष्मी के जो 108 स्वरूप है, उनमें धन-धान्य, भू-भवन, वाहन, पत्नी, पुत्र, आयु और आरोग्य सौभाग्य में वृद्धि हो, धन में वृद्धि, राजकीय सुख, यश, पद प्रतिष्ठा एवं शक्ति प्राप्त हो, वह जो कार्य करे, उसी के अनुरूप उसे पूर्ण सद्गुरू के आशीर्वाद से श्रेष्ठता की प्राप्ति हो। ये मुख्य लक्ष्मी के स्वरूप हैं जो कि प्रत्येक साधक को प्राप्त हो सकेंगे।
अतः अक्षय तृतीया महापर्व हर रूप में पूर्णता को आत्मसात् करने का महोत्सव है। लक्ष्मी शक्ति युक्त शुक्रवार वैशाखी शुक्ल पक्षीय अक्षय तृतीया पर्व पर स्वर्ण खप्पर अक्षय धनदा लक्ष्मी दीक्षा फोटो द्वारा सद्गुरूदेव कैलाश श्रीमालीजी प्रत्येक साधक को चेतन्य स्वरूप में प्रदान करेंगे। साधक अपने आप अनुभव कर सकेगा इससे पूरे वर्ष भर में जो भी न्यूनतायें रही है। अथवा पिछले वर्ष में महामारी स्वरूप में जो विलगताये प्राप्त हुयी है, वे पूर्णरूपेण समाप्त होकर निरन्तर अक्षय रूप में मनोकामना युक्त साधक सभी सुस्थितियों से परिपूर्ण हो सकेगा साथ ही दिव्यता, चैतन्यता, सुगन्ध, पूर्णता युक्त जीवन की ओर क्रियाशील हो सकेंगे। अर्थात् जीवन की उच्चता प्राप्ति में किसी भी तरह का क्षय नहीं होगा।
इस महापर्व पर स्वर्ण खप्पर स्वरूप मोती शंख, अक्षय यंत्र और अक्षय धनदा माला से सद्गुरू सानिध्य में साधना सम्पन्न करने से जीवन में अनेक तरह के सुसाधनों की वृद्धि होगी।
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