किन्तु वर्तमान समय में यह संस्कार इस प्रकार सम्पन्न नहीं किया जा सकता है, इसके कई ठोस कारण है, जिसमें से एक यह है कि प्रसूति समय की कठिनाईयों के कारण अब अधिकांश प्रसूति अस्पताल में ही होती है, जहाँ अधिकांशतः ऑपरेशन थियेटर में पिता का प्रवेश नही हो सकता और जहाँ घरों में प्रसूति होती है वहाँ भी पुरूष प्रसूति गृह में नहीं जाते। इसलिये अब कुछ बदलाव के साथ यह संस्कार उचित विधि द्वारा सम्पन्न किया जाता है क्योंकि यह संस्कार सम्पन्न किया जाना नवजात शिशु के स्वास्थ्य व सभी प्रकार के विकास के लिये महत्वपूर्ण भी है, इस संस्कार से बालक मेधावी और बलशाली बनता है।
जातकर्म सम्पन्न करने हेतु इस दैवी जगत् से प्रत्यक्ष संपर्क में आनेवाले बालक को मेधा, बल एवं दीर्घायु के लिये स्वर्ण खण्ड से शुद्ध मधु एवं शुद्ध घृत अल्पमात्र में गुरू मंत्र के उच्चारण के साथ चटाया जाता है। इसके बाद पिता शिशु के बुद्धिमान, बलवान, स्वस्थ व दीर्घजीवी होने की प्रार्थना करता है। इसके पश्चात् माता बालक को स्तनपान कराती है।
जातकर्म संस्कार में चटाये जाने वाले मधु व घृत पूर्णतया शुद्ध होने चाहिये, स्वर्ण खण्ड या श्लाका भी शत् प्रतिशत शुद्ध होनी आवश्यक है। इस मिश्रण से माता के गर्भ में जो रस पीने का दोष है, वह दूर हो जाता है, स्वर्ण वातदोष को दूर करता है, रक्त के ऊर्ध्वगामी दोष को भी दूर करता है। मधु लार का संचार करती है यह रक्त की शोधक होने के साथ-साथ बल पुष्टि कारक भी है। जातकर्म संस्कार कर्मो में बच्चे को स्नान कराना, मुख आदि सापफ़ करना, मधु, घृत का मिश्रण कर चटाया जाना, स्तनपान तथा आयुष्यकरण शामिल है।
ऐसी पुरानी मानसिकता है कि जातकर्म पिता को चार तरह के कर्ज से मुक्त करती है, जिसमें पहला है देवताओं का कर्ज, दूसरा साधु या संत का कर्ज, तीसरा पूर्वजों का कर्ज और चतुर्थ है समाज का कर्ज। ऐसा माना जाता है कि अपने पिता को इन कर्ज से मुक्त करना एक संतान का परम कर्त्तव्य है। क्योंकि जन्म से लेकर मृत्यु तक हम भगवान, गुरू, परिवार व समाज पर आश्रित रहते हैं।
जातकर्म एक रिवाज होने से अधिक एक क्रिया है जो संतान के जन्म के पश्चात माँ व शिशु के पूर्णतया स्वस्थ होने पर सम्पन्न किया जाता है। जिसमें सुनिश्चित किया जाता है कि शिशु स्तनपान लेने योग्य हो। शिशु जन्म पश्चात् स्नान कराकर, स्वच्छ वस्त्र पहना कर जब माँ को दिया जाता है तब शुद्ध घी व शुद्ध शहद से निम्न मंत्र उच्चारित करते हुये यह मिश्रण नवजात शिशु का चटाया जाता है-
ॐ भुःस त्वयै दधामि
ॐ भुव स त्वयै दधामि
ॐ स्व स त्वयै दधामि
ॐ भुर्भुवः स्वः सर्व त्वयै दधामि
आयुष्यकरण में शिशु के दाये कान में निम्न 9 मंत्र सही उच्चारण के साथ पिता या किसी भी घर के बड़े सदस्य द्वारा उच्चारित किये जाते है-
ॐ अग्निः आयुष्मन्स वनस्पतिभिः
आयुष्मन्तस तेनत्व आयुष्मन्तम करोमि।
ॐ सोम आयुष्मन्तस औषधिभिः
आयुष्मन्तस तेनत्व आयुष्मन्तम् करोमि।
ॐ ब्रह्मायुष्यमतद् ब्रह्ममाण्ड्
आयुष्मकतेनत्व आयुष्मन्तम् करोमि।
ॐ देव आयुष्मन्ते अमृतेना आयुष्मन्तेन्तव
आयुष्मन्तम् करोमि।
ॐ ऋषयः आयुष्मन्तस्ते व्रतः
आयुष्मन्तस्तेनत्व आयुष्मन्तम करोमि।
ॐ पितृ आयुष्मन्तस्ते स्वधमिः
आयुष्मन्तेनत्व आयुष्मन्तम करोमि।
ॐ यज्ञ आयुष्मन्तस दक्षिणभिः
आयुष्मन्तसतेनत्व आयुष्मन्तम करोमि।
ॐ समुद्र आयुष्मन्तस श्रवणतिभिः
आयुष्मन्तसतेनत्व आयुष्मन्नतम करोमि।
ॐ त्रयाआयुषम जमद्ग्नेह कश्यपस्य त्रयाआयुषम
यद् देवेषु त्रयआयुषम तन्नो अस्तु त्रयआयुषम।
इसके पश्चात् पिता अपनी संतान को आशीर्वाद देते है-
।। अश्मा भव, परशर्भव, हिरण्यस्त्रुं भव।।
अर्थात् तुम पाषाण की तरह बलवान बनो, विरोधियों के समक्ष महान ऋषि परशुराम की तरह अजेय बनो और खरे स्वर्ण के समान हमेशा पवित्र रहो।
इसके पश्चात् परिवार के सभी सदस्य नवजात शिशु व माँ के अच्छे स्वास्थ्य की कामना करते हैं व आशीर्वाद देते हैं।
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