शनि ग्रह कांति हीन अत्यन्त धीरे चलने वाला तथा वात प्रकृति प्रधान ग्रह है। इस ग्रह के द्वारा शारीरिक बल, विपति योग, ऐश्वर्य के साथ-साथ मानसिक चिंतन, धोखा, छल, कपट, क्रूरता का विचार भी इसी ग्रह से किया जाता है। इसके अलावा सबसे प्रधान बात यह है कि जीवन में शनि का प्रभाव ही सर्वाधिक पड़ता है। व्यक्ति के चिंतन का योग शनि के द्वारा ही बनता है।
अतः दुर्घटना, मृत्यु, आकस्मिक घटना का विवेचन भी इसी ग्रह से किया जाता है। यदि आप किसी ज्योतिषी के पास अपनी जन्म कुंडली लेकर जाते है तो सबसे पहले वह शनि की स्थिति का विवेचन करता है और शनि की महादशा जीवन में 19 वर्ष तक रहती है। विंशोतरी महादशा के अनुसार सारे ग्रहों की दशायें कुल 120 वर्षो की मानी गई है। इसमें सूर्य महादशा 6, चन्द्र महादशा 10, मंगल महादशा 7, राहु महादशा 18, गुरू महादशा 16, शनि महादशा 19, बुध महादशा 17, केतु 7 और शुक्र महादशा 20 वर्ष रहती है। इसमें भी प्रत्येक महादशा में इन्हीं नवग्रहों की अन्तर दशा भी आती है।
हमारे जीवन की समस्याओं का ग्रहों से सीधा सम्बन्ध होता है, आपसी स्नेह में कमी, रोगों में वृद्धि, मानसिक अशांति, क्रोध, हिंसा का भाव इत्यादि क्रियाये हमारे जीवन के अंग बन चुके हैं, इसका कारण यही है कि हमने ग्रहों के प्रभाव की अपेक्षा की है। पल-पल जिन ग्रहों का प्रभाव जीवन की घटनाओं पर, मन, विचारों भावों पर पड़ता है, उसे छोड़ना किसी भी तरह से हित में नहीं है। समस्त ग्रह-देवताओं का अलग-अलग अस्तित्व है, सब का प्रभाव क्षेत्र, शक्ति, क्रिया-स्वरूप इत्यादि भिन्न-भिन्न है, उसी के अनुरूप वे शुभ-अशुभ फल प्रदान करते है। मनुष्य जीवन में सबसे अधिक दुष्प्रभाव मंगल, शनि, राहु का होता है, जो सर्वाधिक पीड़ा, कष्ट उत्पन्न करते है, ऐसा भी नहीं है कि ये ग्रह केवल कष्ट ही प्रदान करते है, कहने का तात्पर्य यह है कि इनकी प्रतिकूलता अधिक ह्रास, कष्टदायी, अधोगति व जीवन को भौतिक-आध्यात्मिक शारीरिक-मानसिक रूप से हानि पहुँचाती है। अन्य ग्रहों की प्रतिकूलता इतनी पीड़ादायी नहीं होती अन्य ग्रहों के दुष्प्रभाव अधिक कष्ट नहीं पहुँचाते परन्तु मंगल, शनि व राहु यदि अनुकूल ना हो या ये नीच भाव में स्थित हो तो जीवन को कष्टमय बना देते है।
इस अशुभ प्रभाव को दूर करने के अनेकों उपाय हमारे ऋषियों द्वारा बताये गये है, जिनके द्वारा शनि ग्रह के विनाशक प्रभाव को नष्ट किया जा सकता है, साथ ही साथ इस ग्रह को पूर्णतः अनुकूल एवं शुभ प्रभावयुक्त बनाया जा सकता है। शनि ग्रह सदैव वक्र गति से चलता है। इसका प्रभाव अत्यन्त महत्वपूर्ण होता है, शनि को तीव्र ग्रह माना गया है, क्योंकि यह तामस स्वभाव वाला ग्रह है। इसके अलावा चतुराई, धूर्तता, हिंसा, कलह, विद्वेषण आदि का भी यह कारक ग्रह है। विपरीत शनि मनुष्य को उन्मादी, रोगी, अकारण क्रोध करने वाला बना देता है। शनि कुपित होने पर सुख-चैन, आनन्द को छीन लेता है और दरिद्रता, दुःख, कष्ट, बाधायें आदि का कारण होता है। शनि का मंगल के साथ संबंध होने पर व्यक्ति अत्यधिक क्रोधी, चिड़-चिड़ा, हठी हो जाता है।
साथ ही बलवान शनि मनुष्य को विपत्ति में भी लड़ने की क्षमता और ऐसे गुणों का विकास करता है, जिससे वह व्यक्ति दूसरों पर हावी रह सकता है और यदि शनि के साथ अन्य ग्रहों की अनुकूलता हो तो व्यक्ति अपने जीवन में सर्वाधिक उन्नति करता है। इसीलिये कहा जाता है कि यदि शनि अनूकूल हो तो रंक को भी राजा बना देता है। शनि की प्रधानता वर्चस्व का द्योतक है अर्थात् शनि प्रबल व्यक्ति समाज, परिवार का नेतृत्व करता है और सभी जगह वर्चस्व प्राप्त करता है।
साधना विधान
यह साधना शनि जयंती, 10 जून को रात्रि 09 बजे के पश्चात् प्रारम्भ करें। स्नान कर काले रंग के वस्त्र धारण करें। गुरू पीताम्बर ओढ़ कर पूर्व दिशा की ओर मुख कर बैठ जाये। पंचोपचार गुरू पूजन सम्पन्न कर 1 माला गुरू मंत्र जप करें, साधना में सफलता के लिये गुरूदेव से प्रार्थना करे और अपने सामने भूमि पर काजल से त्रिभुज बनायें और उस पर ताम्र पत्र रखें ताम्र पात्र पर काजल से ही अष्टदल कमल बनाये और उस पर ‘शनि यंत्र’ स्थापित करें। यंत्र पर काजल से रंगे हुये चावल चढ़ाते हुये ‘ऊँ शं ऊँ’ मंत्र का उच्चारण करते रहें, इसके पश्चात् निम्न करन्यास तथा हृदयादिन्यास सम्पन्न करें-
करन्यासः–
श्नैश्चरायं अंगुष्ठाभ्यां नमःमन्दगतये तर्जनीभ्यां नमः
अक्षजाय मध्यमाभयां नमः कृष्णंगाय अनामिकाभ्यां नमः।
-: हृदयदिन्यास :-
श्नैश्चराय हृदयाय नमः मन्दगतये शिरसे स्वाहा।
अक्षजाय शिखाये वषट्। शुष्कदराय नेत्रत्रयाय वौषट्।
छायात्मजाय अस्त्रय फट्।।
मंत्र जप पूर्ण होने के बाद यंत्र पर तीन पीले रंग के फूल चढ़ाकर शनि देव की प्रार्थना करें-
कोणस्थः पिंगलो वभ्रुः कृष्णों रोद्रान्तको यमः
सौरि शनिश्चरो मन्दः पिप्पलादेन संस्तुतः।
एतानि दश नामानि प्रातरूत्थाय यः पठेत्।
शनिश्चर कृता पीड़ा न कदाचित भविष्यति।।
इसके पश्चात् हाथ में जल लेकर संकल्प करें तथा ‘शनि वशीकरण माला’ से निम्न मंत्र की 5 माला जप करे।
अब हाथ जोड़कर श्रद्धापूर्वक निम्न वन्दना करे।
नीलद्युतिं शूलधरं किरीटिनं, त्रसकरं धनुर्द्धरम्।
चतुर्भुजं सूर्यसुतं प्रशान्तं, वन्दे सदाऽभीष्टकरं वरेण्यम्।।
साधना समाप्ति के बाद यंत्र तथा माला को उसी स्थान पर रहने दीजिये तथा अगले दिन सायं काल यंत्र के सम्मुख हाथ जोड़कर पुनः उपरोक्त श्लोक का उच्चारण करें तथा ‘ऊँ शं ऊँ’ मंत्र बोलते हुय यंत्र व माला को किसी काले वस्त्र में लपेट कर वस्त्र सहित किसी मंदिर में अर्पित करें।
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