यह एक साधक का शिष्य का दायित्व है कि वह अपने गुरू की चेतना, अपने अन्दर प्रज्जवलित रखे, आप अपने जीवन में किसी भी क्षेत्र में होंगे चाहे व कृषि हो, व्यापार या कोई भी व्यवसाय में हो तो स्वयं के अन्दर गुरू की शक्ति को समाप्त नहीं होने दे। गुरू पूर्णिमा के इस दिवस पर आप अपने लिये, अपनी आत्मा के लिये, अपने जीवन के ज्ञान के लिये, अपने जीवन के हर उस क्षण के लिये जब आप अपने गुरू की चेतना, अपने गुरू की शक्ति से समस्याओं का अन्त कर सकेंगे।
इस हेतु अपने दिन के कुछ क्षण विधिवत गुरू पूजन के लिये निकाल कर पूर्ण वैदिक मंत्रों से, सभी देवी-देवताओं का आवाह्न कर अपने गुरू को अपने मन में आत्मसात् करे। जब एक साधक पूर्ण रूप से गुरू को अपने मन में, अपने प्राण में समा सके तभी वह जीवन में आने वाली हर विषम परिस्थिति का सामना धैर्य से, विवेक से कर सकता है।
इस हेतु प्रत्येक साधक को इस गुरू पूर्णिमा 24 जुलाई को गुरू आत्मिक्य दीक्षा अवश्य ही आत्मसात् करनी चाहिये। जिससे गुरू शिष्य का आत्मीय जुड़ाव व अपने गुरू के प्रति साधक का जुड़ाव अटूट हो सके।
आपका अपना
विनीत श्रीमाली
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