स्त्री को पुरूष की अर्धांगिनी माना जाता है, गौरी-शंकर, राधा-कृष्ण, सीता-राम हमारे जीवन में आदरपूर्वक स्मरण किये जाते है। भारत को इस तथ्य का गर्व है कि हमने नारी शक्ति को प्रधान स्थान दिया है, शक्ति पूजा के महत्व को जाना है।
धार्मिक संदर्भ में, हिन्दुओं ने स्त्रियों को देवत्व के स्तर तक उन्नत किया है। भारत में हिन्दुत्व के बारे में एक भूल है कि यह पुरूष प्रधान समाज है तथा धर्म पर प्रभुत्व है तथा सच्चाई यह है कि वास्तव में ऐसा नहीं है। यह वह धर्म है जो स्त्री की ताकत और बल को सूचित करता है। ‘शक्ति’ का तात्पर्य ‘बल’ और ‘ताकत’ पुरूष में समस्त शक्तियों का कारण स्त्रियां हैं। त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) अपने नारी सहायक अंग के बिना शक्ति विहीन हैं।
‘तुम्हारे द्वारा ही यह सार्वभौम उत्पन्न हुआ। तुम्हारे द्वारा इस सृष्टि की रचना हुई है। तुम्हारे द्वारा ही रक्षित है। अंत में तुम्हारे द्वारा ही यह विनष्ट होता है। हे देवी आप परम विदुषी हो तथा समान रूप में समझदार तथा भाव पुंज हो।’
प्राचीन समय में अन्य देशों की अपेक्षा भारत में नारियों को अधिक आदर सम्मान प्राप्त होता था तथा अन्य धर्मों के वेदों तथा साहित्य की अपेक्षा भारत के प्राचीन साहित्य एवं वेदों में उनकी उच्चतम स्थिति निर्दिष्ट की गई है। हिन्दू नारियां वैदिक काल से धन के अधिकार का आनन्द लेती रही हैं। वे सामाजिक एवं धार्मिक संस्कारों में भाग लेती रही हैं तथा कभी-कभी उसकी पहचान उनकी शिक्षा द्वारा हुई है। प्राचीन काल में भारत में नारियां कभी अकेली नहीं रही।
किसी भी रचना के क्रियान्वहन हेतु ज्ञान, बुद्धि, ताल, लय आदि समस्त आवश्यक अंग हैं। ये सभी गुण शिक्षा, संगीत व कला की देवी सरस्वती में विद्यमान हैं। सरस्वती के बिना ब्रह्मा सृष्टि का उचित कार्य नहीं कर सकते। कोई भी रक्षित क्रिया को अनेक साधनों की अवश्यकता होती है, मुख्यतः राज्यकर सम्बन्धी साधना, अतः धन की देवी लक्ष्मी-विष्णु का अति आवश्यक अंग है। शिव को विनाशकर के रूप में पार्वती द्वारा ही शक्ति व बल उद्भत होता है। पार्वती अथवा दुर्गा को शक्ति कहा जाता है। यह केवल हिन्दू परम्परा है कि जो मन की भावना सम्बन्धी सामग्री उपस्थित करती है, यहां तक कि भावनात्मक स्तर पर स्त्री व पुरूष का एक साथ कार्य करने का सिद्धान्त सार्वभौम में समानता का सूचक है। यह विचार आगे बढ़कर उत्कृष्ट अर्द्धनारीश्वर के रूप में पद धारण करता है। शिव एवं शक्ति का एक शरीर में रूप में संयोग ही अर्द्धनारीश्वर है। प्रत्येक नारी में अर्द्धशरीर बसा हुआ है जो यह निर्दिष्ट करता है कि दूसरे के बिना एक अकेला अपूर्ण है।
हिन्दुत्व में शक्ति का समस्त बल नारी में है। शक्ति स्त्री जाति का मूल बल है जो कि समस्त जीवन में प्रविष्ट है। शक्ति दिव्य स्त्रीत्व की ताकत है जो प्रत्येक वस्तु में पाई जाती है। वह देवी है अतः वास्तव में भारत में काली एक महान् देवी है। भगवान शिव शक्ति के संग जुड़े हुये एक ही शरीर में प्रकट होते हैं। पति या पत्नी के रूप में वह दायीं तरफ तथा पत्नी बायीं तरफ है। स्पष्ट रूप से वे अर्द्धनारीश्वर के रूप में जाने जाते हैं, आधे पुरूष एवं अर्द्धनारी के रूप में भगवान का अवतार। उनमें से प्रत्येक भगवान ब्रह्मा सृष्टिकर्त्ता, विष्णु रक्षक तथा शिव विनाशक के रूप में हिन्दुओं के सब देवताओं के मन्दिर में शक्ति के साथ विद्यमान है। वह उनका नारी के रूप में दुर्गा तथा शक्ति के रूप में स्पष्ट है। ऋग्वेद भी नारी के उच्च गौरव का आधार प्रदान करता है, ‘यत्र नार्यस्तु पूजयन्ते रमन्ते तत्र देवता’ जहां नारियों की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं।
जहां नारी के सम्बन्ध में पीड़ादायी व्यवहार होते हैं, वह परिवार शापित निर्णय होते है और एक चमत्कार की तरह श्राप से घर पूर्ण रूप से नष्ट हो जाते हैं, परन्तु वे परिवार जहां वे प्रसन्न होती हैं, हमेशा सफल होते हैं। जो पुरूष अपने सुख की इच्छा करते हैं, उन्हें सदैव स्त्रियों को अवकाश तथा उत्सवों में आभूषण, वस्त्र तथा स्वादिष्ट भोजन से सम्मान प्रदान करना चाहिये।
रामायण में प्रत्येक व्यक्ति जानता है कि राजा दशरथ की मृत्यु के पश्चात् उसकी पत्नियों को कभी भी दशरथ की चिंता में जलने के लिए नहीं कहा गया। वस्तुतः वे परिवार में पूर्ण सम्मान के साथ रही तथा राम सदैव सम्मान पूर्वक अपनी माताओं के समक्ष नत-मस्तक रहे। महाभारत में कुंती, पाण्डवों की माता सती नहीं हुई इस प्रकार रामायण, महाभारत, गीता में सती होने का कहीं कोई उल्लेख नहीं है।
जहां नारी का सम्मान होता है वहां ईश्वर की अनुकम्पा रहती है, परन्तु जहां उनका सम्मान नहीं होता, कोई पवित्र संस्कार, पुरस्कृत स्वीकार नहीं होते है। विश्व के सम्पूर्ण धार्मिक इतिहास में कोई दूसरी सीता प्राप्त नहीं होगी, उसका जीवन अद्भुत था, उसकी ईश्वर के अवतार के रूप में आराधना की जाती है। भारत ही केवल ऐसा देश है जहां पर पुरूष के समान स्त्री भी अवतार लेती है, ऐसा मत प्रचलित है। महाभारत में हम सुलभ के बारे में पढ़ते हैं, महान् नारी योगिनी, जो राजा जनक के दरबार में आई तथा आश्चर्यजनक शक्तियों तथा बुद्धि का प्रदर्शन किया जो उसने योग के अभ्यास द्वारा प्राप्त किया। इससे प्रदर्शित होता है कि नारियों हेतु योग के अभ्यास की अनुमति थी।
भारतीय नारी हेतु मातृत्व सबसे महान गौरव माना जाता है तैतरय उपनिषद् शिक्षा प्रदान करता है, ‘मातृदेवो भव’ अपनी माता को अपने लिये ईश्वर होने दो। हिन्दू परम्परा माता तथा मातृत्व को स्वर्ग से भी उच्चतम मान्यता प्रदान करता है। महाभारत महाकाव्य में कहा गया है, ‘वेदों में शिक्षित दस निपुण पुजारियों की अपेक्षा पिता को श्रेष्ठतम माना गया है। एक माता ‘सम्पूर्ण विश्व अथवा ऐसे दस पिताओं से श्रेष्ठतम हैं।’
हिन्दुत्व केवल एक धर्म है जिसका लक्षण स्त्री को पुरूष के तुल्य परत आदरणीय शिव-शक्ति की परमकोटि की अर्द्धनारीश्वर के रूप में कल्पना की गई है। अपने राष्ट्र का नाम हमने मातृभूमि ‘भारतमाता’ तथा हमारे राष्ट्र का मूल मंत्र ‘वन्दे मातरम्’ है।
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