अर्थात भगवान शिव ही गुरू हैं, शिव ही देवता हैं, शिव ही प्राणियों के बन्धु हैं, शिव ही आत्मा और शिव ही जीवन हैं। शिव से भिन्न कुछ नहीं है। सद्गुरू के साकार रूप की भी पूर्णता उनके शिव स्वरूप में ही होती है। अतः शिव की साधना, शिव की आराधना, उपासना से ही संसार के समस्त पदार्थ प्राप्त हो सकते हैं, समस्त कामनायें पूर्ण हो सकती है। अन्य देवी-देवता तो फिर भी शक्तियों से बन्धे होते हैं और अपनी शक्ति और क्षमतानुसार ही वरदान दे पाते हैं, परन्तु मात्र शिव ही ऐसे देव हैं, भगवान हैं, जो सब कुछ प्रदान करने में समर्थ हैं। संसार के समस्त मंत्र भगवान शिव के डमरू ‘निनाद’ से ही निकले हैं और उन्हीं शिव मंत्रें को गुरू (जिन्हें शास्त्रें में शिव का ही रूप कहा गया है) द्वारा प्राप्त कर साधना सम्पन्न की जाये तो सफलता मिलने में कोई संशय नहीं होगा।
भगवान शिव की चुनी हुई अमोघ, अचूक फल प्रदान करने वाली कुछ साधनायें आगे प्रस्तुत की जा रहीं हैं, जिन्हें साधक यदि शिव कल्प में सम्पन्न करें तो निश्चित रूप से शिव कृपा अनुभूत होती ही है। पूरे वर्ष में 365 दिन होते हैं, कुछ दिवसों को गुरू स्तुति के लिए श्रेष्ठ माना जाता है किसी दिवस को ‘बगलामुखी जयंती’ के रूप में सिद्ध दिवस समझा जाता है, इस प्रकार अलग-अलग देवताओं के अलग-अलग सिद्धि दिवस होते हैं, उन दिवसों पर यदि साधना सम्पन्न की जाये तो फल मिलता ही है। महाशिवरात्रि का दिवस भगवान शिव का सिद्धि दिवस है।
महाशिवरात्रि के पहले पड़ने वाली माघी पूर्णिमा से वसंत ऋतु का प्रारम्भ होता है और इसी दिन से भगवान शिव साधकों के लिए अपने पूर्ण वरदायक रूप में अवस्थित हो जाते हैं। माघी पूर्णिमा से लेकर फाल्गुन शुक्ल अष्टमी तक का समय ‘शिव कल्प’ कहलाता है। इन दिवसों में और शिवरात्रि में कोई भेद नहीं है, इन दिनों में की गई साधना निष्फल नहीं होती, ऐसा भगवान शिव ने स्वयं कहा है। इस बार शिव कल्प दिनांक 16-02-2022 से लेकर 10-03-2022 तक है। यदि इन साधनाओं को शिव कल्प में प्रारम्भ न कर सकें, तो इन साधनाओं को वर्ष के किसी भी माह के प्रदोष से भी प्रारम्भ कर सकते हैं। प्रदोष भी भगवान शिव का प्रिय दिवस है।
भगवान् शिव की आराधना में लाखों करोड़ों श्लोक लिखें गये हैं और यदि साधक भगवान शिव को निरन्तर स्मरण करता है तो उसके सभी कार्य सफल होते हैं। भौतिक और आध्यात्मिक रूप से उसे पूर्ण रूप से सफलता प्राप्त होती है। प्रत्येक साधक और कोई मंत्र जाप करे या नहीं करे लेकिन शिव का पंचाक्षरी मंत्र ‘‘नमः शिवाय’’ का उच्चारण तो अवश्य ही कर सकता है। इस ‘नमः शिवाय’ मंत्र में ही भगवान शिव के स्वरूप सदाशिव, शिव, अर्द्धनारीश्वर, शंकर, गौरीपति, महामेहश्वर, अम्बिकेश्वर, पंचानन्द, महाकाल, नीलकण्ठ, पशुपति, दक्षिणामूर्ति, महामृत्युंजय का सार निहीत है। ऐसे भगवान शिव जो कि शीघ्र प्रसÂ होने वाले और देवों के देव आदि देव हैं। उन महादेव की वन्दना तो ब्रह्मा, विष्णु भी करते हैं। उनकी वन्दना में यह प्रार्थना श्लोक उनके पूरे स्वरूप को स्पष्ट करता है।
भगवान! आप सुव्रत और अनन्त तेजोमय हैं, आपको नमस्कार है। आप क्षेत्रधिपति तथा विश्व के बीज-स्वरूप और शूलधारी हैं, आपको नमस्कार है। आप हम सभी भूतों के उत्पत्ति स्थान और वेदात्के सभी श्रेष्ठ यज्ञ आदि कर्मों को सम्पन्न कराने वाले, समस्त द्रव्यों के स्वामी हैं, आपको नमस्कर है। आप विद्या के आदि कारण और स्वामी हैं, आपको नमस्कार है। आप व्रतों एवं मंत्रे के स्वामी हैं, आपको नमस्कार है। आप अप्रेममय तत्व हैं। आप हमारे लिये सर्वत्र कल्याणकारक हों। आप जो हैं, वही हैं अर्थात् अज्ञेय और अगम्य हैं, आपको नमस्कार है।
शिव महाकल्प के शुभ अवसर पर साधकों के लिये विशेष शिव तंत्र साधना प्रयोग दिये जा रहे हैं जिन्हें साधक स्वयं सम्पन्न करें और अपने जीवन में आनन्द रूपी अमृत का सिंचन करें। ये प्रयोग जीवन के विभिन्न पक्षों भौतिक, आध्यात्मिक, दैहिक, मानसिक स्वरूपों से सम्बन्धित हैं। इनसे भगवान शिव का वरदान तो निरन्तर प्राप्त होता ही है। एक-एक करके इन सभी साधनाओं को सम्पन्न करें जिससे शिव रूपी गुरू और गुरू रूपी शिव आपके जीवन में निरन्तर आशीर्वाद प्रदान करते रहें—
परिवार अथवा स्वयं किसी भी व्यक्ति के व्यक्तिगत जीवन का आधार अर्थ ही होता है इस तथ्य को आज के भौतिक युग में नकारा नहीं जा सकता। केवल धन का एक बंधा-बंधाया स्रोत ही नहीं, व्यक्ति के पास धन प्राप्ति के अन्य मार्ग भी हों, उसे जीवन में निरन्तर आकस्मिक धन की प्राप्ति भी होती रहे। इसके लिए यह लघु प्रयोग सम्पन्न करना उचित है। साधक ‘विश्वेश्वर’ को प्राप्त कर उसका पूजन चंदन अक्षत से कर निम्न मंत्र का 101 बार जप करें, तथा दूसरे दिन उसे विसर्जित करे तो उसे विभिन्न रूपों में आकस्मिक धन की प्राप्ति जीवन में निरन्तर होती ही रहती है-
जिस प्रकार चिंता जीवन का अभिशाप है, उसी प्रकार नित्य शरीर में कहीं न कहीं बनी रहने वाली कोई पीड़ा भी अभिशाप होती है, जिससे जीवन की गति ही स्तम्भित हो जाती है। इसके समाधान हेतु साधक एक ‘मधुरूपेण रूद्राक्ष’ प्राप्त कर निम्न मंत्र का 51 बार मंत्र जप सम्पन्न कर अगले बीस दिनों तक रूद्राक्ष गले में धारण किये रहने के पश्चात नदी में विसर्जित कर दें-
जीवन को पूर्णरूप से सकारात्मक बनाने के लिये आवश्यक है कि जीवन के नकारात्मक पक्षों पर प्रहार कर उन्हें जड़ मूल से समाप्त कर निशि्ंचत हो जायें। शत्रु जीवन के ऐसे ही नकारात्मक पक्ष होते हैं भले ही किसी भी रूप में क्यों न हों, इन्हें समाप्त करने के लिये आवश्यक है कि साधक शिवकल्प की चैतन्य रात्रि में अपने समक्ष त्रयक्ष गुटिका’ रखे और फिर
उपरोक्त मंत्र का 101 बार जप करें, तीन दिन बाद में गुटिका नदी में विसर्जित कर दें।
प्रायः अनेक साधनाओं का वांछित फल व्यक्ति को इस कारण नहीं मिल पाता, क्योंकि ग्रहों, नक्षत्रें का कोई विशिष्ट संयोग उसकी भाग्य लिपि में दुर्भाग्य बनकर अंकित हो जाता है। ऐसी स्थिति में जब व्यक्ति के पास जन्मकुण्डली न हो, तो उसके लिए यह प्रयोग सम्पन्न करना अत्यधिक श्रेयस्कर होता है। साधक को चाहिये कि वह मंत्र सिद्ध ‘नील लोहित फल को प्राप्त कर उसके समक्ष निम्न मंत्र का 65 बार जप कर फल को घर से दूर दक्षिण दिशा में उसी दिन या अगले दिन फेंक दे।
प्रायः व्यक्ति किसी श्रेष्ठ कुल में जन्म लेने के पश्चात् जब अपने यौवन काल में नौकरी या व्यापार को संभालने की स्थिति में आता है तब तक वह विविध कारणों से जिसमें पितृ दोष आदि सम्मिलित होते हैं, पूर्व की स्थिति को खो बैठता है तथा आर्थिक व सामाजिक रूप से अवनति की ओर अग्रसर होने लग जाता है। यह मन को मथ कर रख देने वाली स्थिति होती है। इसकी समाप्ति के लिए साधना का अवलम्बन लेना ही चाहिये। ऐसे में चाहिये कि वह ‘गुणवा’ को प्रदोष अथवा सोमवार की प्रातः स्थापित कर निम्न मंत्र का 51 बार उच्चारण करे-
अगले पांच दिनों तक नित्य जप करते रहने के बाद गुणदा को नदीं में विसर्जित कर दें।
व्यक्ति जहां रहता है अथवा जिस स्थान पर रहकर वह अपना व्यापार आदि करता है उस भूमि का भी अपना दोष या गुण होता है, जिसकी रश्मियां प्रभावित करती रहती हैं। अनेक बार तो ऐसा भी देखा गया है कि कोई व्यक्ति किसी साधना अथवा जीवन यापन में सब ओर से हार कर असफल होकर बैठ जाने के बाद, जब अपनी भूमि का अथवा गृह या व्यापार स्थल का शोधन करवा लेता है, तो उसे एकदम से आशातीत सफलता मिलने लग जाती है।
महाशिवरात्रि की रात्रि में दस बजे किसी ताम्रपात्र में ‘शण्ड’ को रख कर उस पात्र को काले वस्त्र पर स्थापित कर, निम्न मंत्र का 91 बार मंत्र जप करने के पश्चात् उसी काले वस्त्र में बांध कर घर अथवा व्यापार स्थल पर रखें-
एक माह पश्चात् शण्ड को नदी में प्रवाहित कर दें।
जीवन के विविध सुख जीवन की विविध अवस्थाओं के साथ ही जुड़े होते हैं। उदाहरणार्थ कोई किशोर पिता बनने का सुख उसी प्रकार अनुभव नहीं कर सकता, जिस प्रकार कोई युवा पितामह बनने का। और जीवन में ऐसे सुख से मिली तृप्ति से ही परिपूर्णता का बोध संभव हो जाता है। यूं भी जीवन ऐसा होना चाहिये, जो निरन्तर सुदीर्घ काल तक पूर्ण स्वास्थ्य के साथ विस्तारित हो। इस महाशिवरात्रि के पर्व पर पूरे दिवस कभी भी (दिन में दस बजे से दो बजे के मध्य छोड़कर) श्वेत वस्त्र के ऊपर ताम्रपात्र में ‘मृड’ स्थापित कर उसके समक्ष निम्न मंत्र का 51 बार जप करने से इस अभीष्ट लक्ष्य की प्राप्ति संभव होती है।
अगले दिन मृड को कुछ दक्षिणा के साथ शिव मंदिर में चढ़ा दें।
भगवान शिव की अर्द्धागिनी, उनकी मूलभूत शक्ति, जगत जननी माँ पार्वती का एक स्वरूप अन्नपूर्णा का भी है, जो अपनी समस्त संतानों के पोषण के साथ-साथ निरन्तर उनके हित चिंतन में भी तल्लीन रहती है, किन्तु भगवती अन्नपूर्णा की आराधना-साधना तब तक अधूरी ही है, जब तक उसमें शिवतत्व की समायुक्ति नहीं। जिस प्रकार शिव शिक्त के बिना अधूरे हैं ठीक उसी प्रकार शक्ति का माधुर्य भी शिव की उपस्थिति में प्रस्फुटित हो पाता है। घर धन-धान्य से भरा रहे, अतिथियों का आगमन व सत्कार संभव हो सके, जीवन में पुण्य कार्य हो सके, तीर्थयात्रये हो सके, ऐसे जीवन के विविध उदार पक्षों की पूर्ति के लिए एक लघु प्रयोग का विधान किया जाता है।
साधक जल्दी उठकर नित्य पूजन, शिव पूजन को सम्पूर्ण कर अपने समक्ष सफेद वस्त्र पर एक ताम्रपात्र में ‘श्रीकण्ठ’ को स्थापित कर निम्न मंत्र का 75 बार मंत्र जप सम्पन्न करे-
दूसरे दिन श्रीकण्ठ को कुछ दान के साथ किसी को दे दें अथवा देवालय में रख दें।
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