क्या आप भी घटनाओं के बारे में कुछ इस तरह सोचती हैं, मसलन ‘मैंने पार्टी के बारे में ठीक से योजना नहीं बनाई थी, इसलिये यह पूरी तरह बोर रही—’, ‘मैं शायद खाना अच्छा नहीं बना पाती क्योंकि मेरे पति कभी तारीफ नहीं करते— ।’ क्या आप भी ऐसी हैं कि प्रशंसाओं को नजरअंदाज करके सिर्फ नकारात्मक बातों को याद रखती हैं? मान लें आपने हेयर कलर आजमाया, आपके कुछ करीबी दोस्तों ने उसकी तारीफ की, लेकिन आपके पति को वह कुछ जमा नहीं, उन्हें लगता है कि बाल तो प्राकृतिक तौर पर काले ही अच्छे लगते हैं। आप अपने दोस्तों की तारीफ तो भूल गई मगर पति की आलोचना आपको याद रह गई। हो सकता है मन में आप भी यही सोच रही हों कि सचमुच बाल अब सुंदर नहीं लग रहे और इसे लेकर बार-बार खुद को कोस रही हों।
मगर क्या यह जरूरी है कि आपकी हर बात सब को अच्छी लगे। ज्यादातर महिलाये एक खास उम्र में पहुँचकर अपने सौंदर्य के प्रति सजग रहने लगती हैं। उन्हें लगता है उनका फिगर खराब हो रहा है, उनके चहरे पर उम्र की लकीरें पड़ने लगी हैं, उन पर अब साड़ी या जीन्स नहीं फबती। लेकिन उम्र एक सच्चाई है जिसे स्वीकारना यथार्थ को स्वीकारना होगा। इसके लिए आप भला कहां उत्तरदायी हैं, आप यह क्यों नहीं सोच पातीं कि उम्र के साथ आप में जो परिपक्वता आई है वह पहले नहीं थी।
आप अपने अच्छे कार्यों व सफलताओं को नहीं पहचान पाती हों। केवल यही सोचती रह जाती हों कि क्या गलत हो गया और क्या और बेहतर हो सकता था। आप कई कार्यों की विफलता पर खुद को दोष देने लगती हों, बगैर यह सोचे-समझे कि इसके लिये आप ही उत्तरदायी नहीं थीं। हो सकता है कुछ स्थितियां ही ऐसी हों कि आपको विफलता का सामना करना पड़ता हों।
अगर इन बातों में से कुछ या सभी बातें आपके व्यक्तित्व में है तो फिर आपके लिये जरूरी है कि खुद के बारे में अपनी राय बदलें। खुद से कहें कि आप अच्छी हैं, आप खुद को बदल सकती हैं, सकारात्मक ढंग से सोच सकती हैं। खुद के प्रति सकारात्मक नजरिया न सिर्फ आपको तनाव से उबारेगा, बल्कि आप जो चाहती हैं, उससे ज्यादा ही दे देगा।
कई लोगों को अपने सर्वश्रेष्ठ विचारों का ज्ञान स्नानगृह या खेल के मैदान में हो पाता है या फिर सुबह ही सैर के वक्त। आप अपने बारें में तभी ठीक से सोच पाते हैं जब चैन में होते हैं। खासतौर पर यदि आप सुबह पैदल चलने की शौकीन हैं तो यह बेहतरीन समय होता है अपने बारे में सोचने का। इस समय दिलोदिमाग ताजगी से भरा होता है। आप तनावमुक्त होकर सोचते हैं तो आशावादी विचार मन में पनपते हैं।
इसलिये अपनी दिनचर्या में अपने लिये समय जरूर निकालें। इस वक्त चाहे आप संगीत सुनें, ध्यान करें, पार्क में टहलें या फिर गहरी नींद में सो जाये। सुकून के पलों में जब आप दिमाग से कुछ प्रश्नों का हल चाहती हैं तो वह जरूर मिलता है।
कई बार आप आगे सिर्फ इसलिये नहीं बढ़ पाते क्योंकि अतीत की भूलें आपका पीछा नहीं छोड़ती। आप उन भूलों के लिए खुद को माफ नहीं कर पाते। डर, भ्रम, गलतफहमी, दुःख, तनाव, गुस्से और अपराधबोध के कारण आप घटनाओं का सही पक्ष नहीं जान पाते। जब आप किसी दूसरे के गलती के लिये उसे क्षमा कर पाते हैं तो यह व्यवहार न सिर्फ आपको खुद की नजरों में उठाता है, बल्कि यह सामने वाले को शर्मसार करने के लिये भी काफी होता है। लेकिन जब आप गुस्से व गलती का बदला क्रोध भरे व्यवहार से देते हैं तो दरअसल आप खराब प्रवृत्तियों को बढ़ावा दे रही होती है।
गलतियों के लिए खुद को क्षमा करना सीखें। अतीत की भूलों के बारे में सोचने के बजाय भविष्य की ओर उन्मुख हों। तभी आप अपने जीवन को सकारात्मक दिशा की तरफ ले जा सकेंगी। याद रखें कि इंसान ही गलतियां करता है और सिर्फ यही उन्हें सुधार भी सकता है।
यदि आप जुनून की हद तक परफेक्शन या पूर्णतावाद के शिकार हैं तो इससे बचें। ‘मैं बहुत अच्छी कुक नहीं हूं’, मैं बेहद खूबसूरत नहीं हूं, लोग मुझसे बात करना पसंद नहीं करते क्योंकि अक्सर मैं कुछ गलत बोल जाता हूं’, ‘मेरे बिस्तर की चादर पर सलवट कैसे पड़ी रह गई’, ‘मेरी क्रॉकरी में इतनी धूल कैसे जमी कि मैं मेहमानों के सामने शर्मिंदा हुई—’ इस तरह की सोच से बचें। क्योंकि आप सारे कार्य शत-प्रतिशत सही नहीं कर सकते। प्रकृति के अलावा कोई भी दूसरी चीज पूर्ण नहीं है। कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं है, जिसमें सारे गुण भरे हो और न कोई पूरी तरह अवगुणों से भरा है।
अपने मन में कुछ संकल्प लें। कोई एक संकल्प दोहराते ही आपके अवचेतन मन पर इसका संदेश जाता है और नकारात्मक विचार सकारात्मक संदेशों व विचारों में बदल जाते हैं। आप किसी भी तरह का संकल्प ले सकते हैं, चाहे वह लक्ष्य प्राप्ति के लिये हो, किसी स्थिति को बदलने के लिये या फिर किसी भय, दबाव, दुःख व गुस्से से निकलने के लिये। संकल्प लें और उस पर दृढ़ रहें। जैसे ‘मैं शांत व संयत रहूंगा’, ‘मैं अब दूबारा गुस्सा नहीं करूंगा’, ‘मैं आगे अपने संबंधों को सुधारने की कोशिश करूंगी’, ‘मैं आइंदा दूसरों के पचड़ों में खुद को बुरा नहीं बनाऊंगी—’ इस तरह की सकारात्मक बाते सोचें। अपने दिमाग को वस्तुस्थिति को स्वीकारने के लिए तैयार रखें। कुछ बातों पर गौर करें और उनके बारे में सोंचें, ‘मेरी जिंदगी में जो भी स्थितियां आये, मैं उन पर नियंत्रण कर लूंगा। मैं अपने पूरे जीवन की जिम्मेदार खुद हूं, चाहे वह मेरे मन के भीतर के विचार हों या फिर मेरी बाहरी वास्तविकता। मेरा जीवन प्रेम, शांति व खुशियों से भरा है और रहेगा।’ ये विचार आपको प्रेरित करते रहेंगे।
आप खुद को ठीक ढंग से दूसरों के सामने अभिव्यक्त न कर पाती हों इसके चलते दूसरे आपको नजरअंदाज कर जाते हैं। हो सकता है आप गोष्ठियों, बैठकों व सेमीनारों में खुलकर न बोल पाते हों और दूसरों से बेहतर होते हुए भी पीछे रह जाती हो तो इसके लिये खुद को दोष देने के बजाय कुछ बातें अपनायें। आप खुद के प्रति जो महसूस करते हैं या जो कुछ भी कहना चाहते हैं ऐसी कुछ पंक्तियां रोज अपनी नोटबुक में लिखें। आइने के सामने खड़े होकर उन पंक्तियों को पढ़ें। अपने चेहरे पर प्रभाव पैदा करें। याद है बचपन में जब आप रंगमंच या वाद-विवाद प्रतियोगिताओं के लिये तैयारी करते थे तो कितनी-कितनी बार शीशे के सामने खड़ी होकर बोलने का अभ्यास करते थे। यह प्रयोग फिर करें। लगातार इसका अभ्यास करने से आगे आपको खुद को ज्यादा बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलेगी।
नकारात्मक लोगों को नजरअंदाज करें, वे आपकी सभी सकारात्मक बातों को कमतर कर देतें हैं। ध्यान रखें की दूसरों को कोई अधिकार नहीं कि वे आपका दिन खराब करें। सिवा आपके यह कोई तय नहीं कर सकता कि आप अपना दिन कैसे बिताना चाहती हैं, इसलिये फिजूल की बातें सोचकर व्यर्थ परेशान न हों।
कठोर शब्दावलियों से बचें, आप कैसा महसूस करते हैं इसके बजाय अपने प्रति कैसा महसूस करना चाहिये इस बारे में सोचें। ‘ऐसा होना ही चाहिये’, ‘अब तक क्यों नहीं किया’, ‘क्यों मैंने गलत किया’ जैसे शब्दावलियां सिर्फ तकलीफ देती हैं। इनके बारे में सोचने के बजाय क्या कर सकती हैं इनके बारे में सोंचे।
केवल आप ही अकेले नहीं है जो भय या कठिनाइयों से घिरी है और दूसरे के साथ उसे बांटना चाहती हैं, दूसरे भी आपसे कुछ बांटना चाहते हैं। इसलिये मित्रें के साथ अपनी बातें बांटना सीखें। उन बातों के बारे में सोचें जो आपको तोड़े नहीं बल्कि जोडें, जो आशावादी बनाये। हर काम की जिम्मेदारी खुद पर लेने से बचें। सभी लोगों की मदद लेने के बारे में सोचें। यथार्थवादी होकर सोंचे कि कौन सी जिम्मेदारियां आपकी हैं और कौन सी दूसरों की।
परनिंदा ही बुरी नहीं होती, आत्मनिंदा भी कई बार आपको पीछे धकेलती है। अपने प्रति जरूरत से ज्यादा आलोचनात्मक न बनें सकारात्मक सोच अपनाये और अपने गुणों को महत्त्व देना सीखें क्योंकि यदि आप अपना सम्मान करना नहीं जानती तो दूसरा कोई आपका सम्मान नहीं कर सकता।
सस्नेह आपकी माँ
शोभा श्रीमाली
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