ग्रह दोष
इसमें कोई दो राय नहीं है कि ग्रहों का प्रभाव मनुष्य तो क्या देवताओं पर भी पड़ता है और देवता भी उन ग्रहों के प्रभाव से सुख और दुःख को भोगते ही हैं। वैज्ञानिकों ने भी यह सिद्ध कर दिया हैं कि आकाश मण्डल में स्थित ग्रहों का प्रभाव मानव जीवन में पड़ता ही हैं और उसकी वजह से मानव को विविध प्रकार के कष्ट भोगने पड़ते हैं। नवग्रहों में भी सूर्य, मंगल, राहु और शनि अत्यन्त क्रूर एवं घातक ग्रह हैं, इनके प्रभाव से विविध प्रकार के कष्ट एवं दुःख भोगने पड़ते हैं। जब भी शनि ग्रह का प्रभाव मनुष्य जीवन में आता हैं तो उसका घर, उसका परिवार, उसका कुटुम्ब उसका दाम्पत्य जीवन तहस-नहस हो जाता हैं, उसके आर्थिक स्त्रेत समाप्त हो जाते हैं और उसके जीवन में विनाश सी स्थिति आ जाती हैं। एक प्रकार से वह गरीब बनकर दर-दर की ठोकरे खाने के लिये मजबूर हो जाता है।
इतिहास गवाह हैं कि जब नल राजा पर शनि का प्रकोप आया तो उसे दमयन्ती जैसी पतिव्रता स्त्री ने अपने पति को त्याग दिया, जब रावण पर शनि का प्रकोप आया तो रावण जैसे उच्चकोटि के तांत्रिक और विद्वान का भी पूरा परिवार बर्बाद हो गया और वह समाप्त हो गया, यहां तक की उसकी सोने की लंका भी जलकर राख हो गई, जब शनि दशरथ पुत्र राम पर आया तो कहां तो राजमुकुट पहनाने की व्यवस्था हो रही थी और कहां उन्हें दर-दर की खाक छानने के लिये और जंगल-जंगल भटकने के लिए वनवास के रूप में मजबूर होना पड़ा, पत्नी से बिछोह सहन करना पड़ा, शत्रुओं के हाथों में पत्नी उपेक्षित सी पड़ी रही और एक प्रकार से देखा जाये तो राम का पूरा यौवनकाल उस शनि के प्रभाव से बर्बाद हो गया, जब श्रीकृष्ण पर शनि का प्रभाव आया, तो उन्हें मथुरा राज्य को छोड़ करके, सुदूर अंचलों में छुप करके रहना पड़ा और रणछोड़ जैसे उपनामों से संसार में सम्बोधित किया।
ये तो बहुत थोड़े उदाहराण हैं। ऐसे तो हजारों उदाहरण इतिहास में भरे पड़े हैं कि जब-जब भी व्यक्ति के जीवन में शनि का प्रभाव आया, तब-तब व्यक्ति बर्बाद ही हुआ, उपेक्षित ही रहा, उन्नति नहीं कर पाया, भिखारी ही हुआ, सम्पन्न नहीं हुआ, समाप्त ही हुआ, जीवन की श्रेष्ठता और उच्चता को स्पर्श नहीं कर पाया। इन ग्रहों की शांति के लिये पापमोचनी शनि की साधना एक दुर्लभ और तुरन्त अनुकूलता देने वाली साधना है।
पितृ दोष
आज की पीढ़ी इस बात को स्वीकार करे या न करे व्यक्ति को पितृदोष भी भुगतना पड़ता है। हमारे माता-पिता, बड़ा भाई या अन्य कोई सम्बन्धी जब अकाल मृत्यु को प्राप्त हो जाता है या मृत्यु के बाद भी उसकी इच्छायें-भावनायें बनी रहती हैं तो वे उन इच्छाओं की पूर्ति के लिये अपने सम्बन्धियों को यातना, दुःख और कष्ट देकर अपनी बात मनवाने का प्रयत्न करते हैं। जीवन में पितृदोष की वजह से घर में निरन्तर उपद्रव होते रहते हैं, लड़कें या लड़कियां कहना नहीं मानते, पति या पत्नी को एक-एक मिनट में गुस्सा आने लगता हैं और इस प्रकार के कई विघ्नपूर्ण कार्य घर में होने लगते हैं जिसके प्रभाव स्वरूप घर ही नहीं पूरे परिवार का वातावरण दूषित हो जाता है। इसका मूल कारण पितृदोष ही हैं और इसका समाधान भी पापमोचनी शनि साधना से ठीक हो सकता हैं।
रोग दोष
कभी-कभी घर में ऐसी बीमारी घर कर जाती हैं कि घर का कोई न कोई सदस्य बीमार बना ही रहता है और काफी बड़ा बजट उन लोगों की चिकित्सा में व्यय हो जाता है। इलाज कराने पर दो चार दिन तो अनुकूलता दिखाई देती है, इसके बाद फिर वैसा ही दृश्य या वैसी ही स्थिति बन जाती है। इस प्रकार से घर के मालिक को उसकी पत्नी को, बहू को, बेटी को, पुत्र को या पोते-पोतियों को विविध प्रकार के कष्ट भोगने पड़ते हैं और इन बीमारियों से कोई छुटकारा दिखाई नहीं देता हैं। इसके लिये भी शास्त्रें में पापमोचनी शनि साधना ही श्रेष्ठ समाधान है।
पापमोचनी शनि साधना
ज्योतिष गणना के अनुसार कई वर्षों बाद शनैश्चरी अमावस्या की स्थिति बनती है एवं वर्ष में एक बार शनि जयन्ती आती है। अमावस्या हो तो उपरोक्त समस्याओं के समाधान हेतु प्रत्येक साधक को इस मुहूर्त का और इस दिन का पूर्ण लाभ उठाना चाहिये। जिससे वे जीवन में रोग, शोक, दुःख, दारिद्रय, पितृदोष आदि से मुक्ति पा सकें और परिवार में सभी दृष्टियों से अनुकूलता आ सके।
साधना समाग्री-इसके लिये कोई विशेष साधना उपकरणों की आवश्यकता नहीं होती है। घर में जितने भी सदस्य हैं, उनके लिए तांत्रेक्त शनिश्चरी मुद्रिका प्राप्त कर लेनी चाहिये। जो कि तांत्रेक्त दोष निवारण से सिद्ध और रोगादि बाधाओं से निवृत प्राण प्रतिष्ठा युक्त होनी चाहिये और पापमोचनी शनि माला।
इस दिन रात्रि को साधक स्नान कर सफेद रंग की धोती पहनकर गुरू चादर ओढ़कर साधना कक्ष में दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके बैठ जाये। सामने लकड़ी के बाजोट पर गुरू चित्र स्थापित करें एवं पूजा से सम्बन्धित साधना सामग्री पहले से तैयार करके रखें। एक थाली में परिवार के सभी सदस्यों के लिये मंगाई गई मुद्रिकायें रख लें और तेल का दीपक जलाकर धूप जला दें।
सबसे पहले गणेश पूजन-गुरू पूजन कर गुरू मंत्र की 4 माला मंत्र जप करें और पूज्य गुरूदेवजी से अपने परिवार के रोगों, ग्रह की बाधाओं, बीमारियों की समाप्ति के लिए पूज्य गुरूदेव जी से आशीर्वाद की कामना व्यक्त करें।
यह साधना आपके दुःख, रोग, पीड़ाओं को समाप्त करने की पूरी क्षमता रखती है। आपके जीवन में शान्तमय एवं अनुकूलता युक्त वातावरण बनाने में समर्थ है। आपके चेहरे पर प्रसन्नता, मुस्कान की आभा बिखेरने की अनुकूल साधना हैं। इसके बाद थाली में रखी सभी मुद्रिकाओं का सामान्य पूजन, कुमकुम, अक्षत, नैवेद्य से करें। इसके बाद हाथ में जल लेकर संकल्प करें की मैं अमुक गौत्र, अमुक नाम के घर का मुखिया, घर के अमुक नाम के सभी सदस्यों के रोगो, ग्रह बाधाओं और बीमारियों को दूर करने के लिए पापमोचनी शनि साधना सम्पन्न कर रहा हूँ। ऐसा उच्चारण कर जल जमीन पर छोड़ दें।
इसके बाद पुनः जल लेकर विनियोग करें, निम्नलिखित उच्चारण कर जल छोड़ दें।
विनियोग
निम्न उच्चारण करते हुए अपने शरीर के अंगो पर दाहिने हाथ से स्पर्श करें।
फिर हाथ में अक्षत लेकर मुद्रिकाओं के सामने चढ़ाते हुये निम्न ध्यान उच्चारण करें-
जिह्नाग्रमादाय करें देवीं वामेन शत्रुन् परि-पीडयन्तीम् गदाभिधातेन च दक्षिणेन दहतुमेशनि द्विभुजा नमामि।
इसके बाद पापमोचनी शनि माला से निम्न मंत्र की ग्यारह माला मंत्र जप करें।
रात्रि को साधना सम्पन्न करने के बाद साधना करने वाले साधक/साधिका परिवार के सदस्यों में से प्रत्येक को एक-एक मुद्रिका धारण करा दें। जिससे उसके जीवन में आ रही बाधायें दूर हो सकें।
दूसरे दिन सुबह उठकर साधक को चाहिये कि वह सात कुवारी छोटी बालिकाओं तथा एक छोटे बालक का पूजन कर उन्हें भोजन करायें और भोजनोपरान्त उन्हें यथा सम्भव दक्षिणा दें, भोजन में केवल बेसन के लड्डू ही दें, इसके अलावा अन्य किसी प्रकार का भोजन न दें। इस प्रकार यह सम्पूर्ण विधान सम्पन्न करने के बाद आपके जीवन में कई प्रकार की समस्याओं, बाधाओं, असाध्य रोगों की समाप्ति शनैः शनैः होकर अनुकूलता प्राप्त होती ही है तथा किसी भी प्रकार की ग्रह बाधा, पितृबाधा हो उसका इस साधना से निराकरण होगा ही
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