1 कुश आसन– वेद-पुराणों में कुश को पवित्र माना गया है। कुश विद्युत का कुचालक होता है। कुश आसन पर बैठकर पूजन करने से पूजन से प्राप्त ऊर्जा जमीन में नहीं जाती। हमारे शरीर में ही बनी रहती है। देवी भागवत में उल्लेख है कि कुश को धारण करने वाले व्यक्ति के बाल नहीं झड़ते तथा हृदयाघात की संभावना कम हो जाती है।
2 दीपक– दीपक ज्ञान और रोशनी का प्रतीक है। दीपक विषम संख्या में लगाने की परंपरा चली आ रही है। दीपक जलाने से वातावरण शुद्ध होता है। दीपक में गाय के दूध से बना घी प्रयोग हो तो और भी अच्छा। घी-अग्नि के सम्पर्क से घर के वातावरण में व्याप्त समस्त जीवाणु नष्ट हो जाते हैं। इससे घर का प्रदुषण समाप्त होता है।
3 चंदन– पूजन-हवन-आरती के समय चंदन लगाया जाता है। इसके पीछे भाव है कि हमारा जीवन ईश कृपा से सुगधिंत हो जाये। वहीं चंदन का गुण शीतल होता है। इसलिये मस्तक पर जीवन में सब रंग भरती है चंदन धारण करने से हमारे स्वभाव में शीतलता आती है। शांति एवं तरावट का अनुभव होता है। मस्तिष्क में सेराटोनिन व बीटाएंडोरफिन नामक रसायनों का संतुलन होता है। चंदन से मेधा-शक्ति बढ़ती तथा मानसिक थकावट नहीं होती।
4 पंचामृत– पंचामृत का अर्थ है, पांच अमृत। दूध, दही, घी, शहद, शक्कर मिलाकर पंचामृत बनाया जाता है। इसी से भगवान का अभिषेक किया जाता है। दरअसल पंचामृत आत्म-उन्नति के पांच प्रतीक हैं। ये पांचों सामग्री किसी न किसी रूप में उन्नति का संदेश देती हैं। दूध पंचामृत का प्रथम भाग है। यह शुद्धता का प्रतीक है। अर्थात् हमारा जीवन दूध की तरह निश्कलंक होना चाहिये। दही अर्पण का अर्थ है कि पहले हम निष्कलंक होने का सदगुण अपनाये और दूसरों को भी अपने जैसा बनाये। घी स्निग्धता एवं स्नेह का प्रतीक है। सभी से हमारे स्नेह युक्त सम्बन्ध हों, यही भावना है। शहद मीठा होने के साथ ही शक्तिदायक भी होता है। निर्बल व्यक्ति जीवन में सफलता नहीं पा सकता तन और मन से ऊर्जावान व्यक्ति ही सफल होता है। शहद इसी का प्रतीक है। शक्कर अर्पण करने का अर्थ है, जीवन में मिठास घोलना तथा मधुर व्यवहार करना। हमारा जीवन शुभ रहे, स्वयं अच्छे बनें, अपने तथा दूसरों के जीवन में मधुरता लाये, मधुर व्यवहार बनाये। इससे सफलता हमारे कदम चूमेगी साथ ही हमारे भीतर महानता के गुण उत्पन्न होंगे।
5 यज्ञोपवीत- यज्ञोपवीत देवताओं को अर्पण किया जाता है। देवी पूजन में इसका प्रयोग नहीं होता। यह दो शब्दों से मिलकर बना है। यज्ञ और उपवीत। यज्ञ अर्थात शुभ और पवीत का मतलब सूत्र इसे जनेऊ भी कहते हैं। यज्ञोपवीत धारण करने से उम्र, ताकत, बुद्धि और विवेक में वृद्धि होती है। यज्ञोपवीत पवित्रता का प्रतीक है। इसको कान पर लपेटकर मल-मूत्र का त्याग करने से कब्ज का नाश होता है। कान के पास नस के दबने से यह एक्युप्रेशर का कार्य करता है। ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, प्रमेह, बहुमूत्र रोगों में बचाव करता है।
6 आभूषण- शोडशोपचार में देवताओं पर स्वर्ण आभूषण अर्पण किया जाता है। यह धन संपदा एवं सौन्दर्य का प्रतीक है। स्वर्ण आत्मा का प्रतीक है जिस तरह आत्मा अजर-अमर-शुद्ध है, उसी तरह स्वर्ण भी सदैव शुद्ध है। स्वर्ण के रूप मे अपनी आत्मा को ही भगवान को अर्पण किया जाता है। जिस तरह स्वर्ण मूल्यवान है। हमारा शरीर भी मूल्यवान होता है। हमारा शरीर भगवान को
समर्पित हो यही भावना होती है।
7 तिलक- पूजन-हवन के अवसर पर भगवान के साथ-साथ, उपस्थित लोगों को भी कुंकुम, गुलाल, अबीर, हल्दी, सिन्दूर आदि का तिलक-टीका लगाया जाता है। कुंकुम सम्मान, विजय और आकर्षण का प्रतीक है। हल्दी, चूना, नींबू से मिलाकर कुंकुम का तिलक बनता है। ये तीनों वस्तुयें त्वचा का सौन्दर्य बढ़ाने का काम करती हैं। इनसे रक्त शोधन होता है और मस्तिष्क के तंतु स्वस्थ होते हैं।
पूजन में लाल गुलाल का प्रयोग होता है। यह पृथ्वी तत्व का प्रतीक है। इसमें तरंग शक्ति अधिक होती है और यह तेज वर्ण, ऊर्जा, साहस और बल का प्रतीक है। अबीर देवों को अर्पण करना वस्तुतः विज्ञान एवं मनोविज्ञान का समन्वय है। यह सुगंध देता है, जिससे प्रातः अच्छी सुगंध से मन एवं वातावरण स्वच्छ होता है एवं प्रसन्नता प्राप्त होती है और इसकी सुगंध से कीटाणु नष्ट होते हैं। हल्दी एक एंटिबायोटिक एंटिसेप्टिक औषधि है। इस गुण के कारण इसका पूजन में प्रयोग होता है। हल्दी का पीला रंग हमारे मस्तिष्क में शक्ति का संचार करता है। हल्दी से त्वचा के रोगों में लाभ होता है। हल्दी का रंग शुभ होता है। प्रातः इसको देखने से दिन शुभकारक होता है।सिन्दूर का प्रयोग भी पूजन में होता है। सिन्दूर को सुख और सौभाग्य दायक माना जाता है। इसको महिलायें मांग में भी धारण करती हैं, इससे महिलाओं में वैद्युतिका उत्तेजना नियंत्रित होती है। डैंड्रफ, जूं आदि नहीं होते। इसमें पारा होता है जो शरीर के लिए लाभकारी होता है।
8 अक्षत- अक्षत (चावल) का अर्थ होता है, जो टूटा न हो। यह पूर्णता का प्रतीक है। इसका सफेद रंग शुभता का प्रतीक है। इसको अर्पण करने का अर्थ है, पूजन का फल हमें प्राप्त हो। इसमें स्टार्च होता है, जो हमें पौष्टिकता प्रदान करता है।
9 दूर्वा- दूर्वा यानी दूब यह एक तरह की घास है। विशेषतः गणेशजी के पूजन में प्रयोग होता है। यह एक औषधि है। यह मानसिक शांति के लिये बहुत लाभप्रद है। विभिन्न बीमारियों में एंटीबायोटिक का काम करती है। दूर्वा को देखने और छूने से मानसिक शांति प्राप्त होती है एवं जलन शांत होती है। वैज्ञानिकों ने इसको कैंसर में भी उपयोगी माना है।
10 हार-फूल- पूजन के बाद भगवान को हार-फूल अर्पित किये जाते हैं। पुष्प चढ़ाने का भाव है, हमारे जीवन में सुगंध का वास हो, पुष्प रंग-बिरंगे और सुन्दर होते हैं। इन्हें देखकर मन प्रसन्न होता है। पूजन में भी सुन्दरता दिखाई देती है। वातावरण सुगंध पूर्ण हो जाता है। ये जीवन में सौन्दर्य बढ़ाने और उसे खुशमय बनाने का प्रतीक है।
11फल- फल पूर्णता का प्रतीक होते हैं। उन्हें अर्पित कर हम भगवान से अपने कार्य को पूर्णफल प्राप्त होने की कामना करते हैं।फल पूर्ण रसदार, रंग और सुगंध से पूर्णता का प्रतीक है। हम भी रसदार, मीठे, नये रंग भरा जीवन यापन करें। फल सद्गुण, पौष्टिकता और शक्ति से पूर्ण है। दुर्बल को शक्तिशाली और रोगी को नीरोग बनाते हैं, वैसे ही हम भी बनें, ऐसे भाव प्रदर्शित
करते हैं फल।
12 तांबूल (पान)- पूजन-हवन में पान मुख्य रूप से काम में आता है। वृहत्संहिता में वर्णित है कि पान सुगंध, मधुरता, प्रेम और सौन्दर्य का प्रतीक है। वहीं यह कफ जनित विकारों में लाभप्रद और पाचन क्रिया सुधारने में सहायक होता है।
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