ऐसे व्यक्तित्व की साधना भाद्रपद अष्टमी को उनके अवतरण दिवस पर की जाये तो हर दृष्टि से सफलता प्राप्त होती ही है। कृष्ण-तत्व से जुड़ी कुछ विशेष साधनाये आपके लिये- भगवान विष्णु के अवतरण प्रत्येक युग में सम्भव हुये हैं और होते रहेंगे, किन्तु भगवान श्रीकृष्ण की पुष्टि केवल जन सामान्य की भावनाओं के आधार पर ही नहीं वरन् शास्त्रीय आधार पर भी की जा सकती है, जहां सभी शास्त्रें ने एक मत होकर श्रीकृष्ण अवतरण को ही सम्पूर्ण माना है, जीवन के भौतिक पक्षों के प्रति भी और जीवन के आध्यात्मिक पक्षों के प्रति भी। भगवान श्रीकृष्ण की प्रचलित छवि में उन्हें ईश्वर तो माना गया, किन्तु उनके साथ जुड़े साधना पक्ष और उनकी प्रबल आध्यात्मिकता की उपेक्षा कर दी गई, जबकि इस बात के पूर्ण प्रमाण मिलते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण कुशल तंत्रवेत्ता और साधक भी थे, जिन्होंने शिष्य रूप में अपने गुरू सांदीपन के आश्रम में रहकर अनेक साधनाओं का ज्ञान प्राप्त किया था।
भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी अनेक कथाओं के पीछे भी उनके साधक होने की कथा ही निहित है, जिसे अलौकिकता का आवरण दे दिया गया है, उनसे जुड़ा साधना पक्ष भुला दिया गया है। अनेक राक्षसों का वध या अपने गुरू के मृत पुत्र को जीवित करने जैसी अनेक घटनायें उनकी इसी विलक्षणता की परिचायक हैं और ऐसे अलौकिक युग पुरूष के जन्म का अवसर तो स्वतः सिद्ध मुहूर्त है ही। वस्तुतः ‘कृष्ण’ शब्द ही अपने आप में जीवन का अत्यन्त गंभीर रहस्य समेटे है। इस शब्द में जहां ‘क’ काम सूचक है, वहीं ‘ऋ’ श्रेष्ठ शक्ति का प्रतीक है, ‘ष्’ षोडश कलाओं का रहस्य समेटे है तो ‘ण’ निवार्ण को बोध करने में समर्थ है और इस प्रकार कृष्ण शब्द का तात्पर्य है जो सामर्थ्य पूर्वक पूर्ण भोग व मोक्ष दोनों की समान गति बनाये रखे और इसी कारणवश भगवान कृष्ण की साधना-आराधना अपने आप में सम्पूर्ण साधना कही गई।
प्रत्येक देवी या देवता वस्तुतः मंत्र स्वरूप होते हैं और भगवान श्रीकृष्ण भी इसके अपवाद नहीं है। बीज स्वरूप में भगवान श्रीकृष्ण को ‘क्लीं’ स्वरूप माना गया है अर्थात् उनके स्वरूप में काम तत्व ही सर्वोपरि है। इस कारणवश यदि इस सिद्ध पर्व पर साधक अपने जीवन के इस पक्ष से सम्बन्धित कोई भी साधना करता है, तो वह निश्चय ही सौ गुनी अधिक तीव्र एवं प्रभावशाली होती ही है।
वशीकरण सम्बन्धी साधनाये, शीघ्र विवाह सम्बन्धी साधनाये, कामदेव-रति से सम्बन्धित साधनाओं के साथ-साथ यह दिवस समस्त सौन्दर्य साधनाओं, अप्सरा अथवा यक्षिणी साधनाओं के लिये भी सिद्ध पर्व माना गया है। यदि कोई अप्सरा अथवा यक्षिणी साधना किसी पूर्णिमा अथवा पर्व विशेष पर सम्पन्न करने का निर्देश हो उसे भी उस रात्रि में निःसंकोच सम्पन्न किया जा सकता है।
जन्माष्टमी के पर्व को सही रूप में उत्साह, उल्लास व विविध सौन्दर्य साधनाओं के द्वारा मनाया जाना चाहिये और शास्त्रें का कथन है कि साधक इस दिवस विशेष का प्रयोग एक से अधिक साधनाओं में करे। यह प्रबल तांत्रेक्त पर्व भी है, किन्तु साधक जहां तक संभव हो इस दिवस का प्रयोग सौन्दर्य साधनाओं हेतु ही करे। बिना अपने मनोभावों को दबाये अथवा मन पर कोई बोझ रखे यदि साधक उन्मुक्त भाव से इस दिवस पर साधनाये सम्पन्न करता है तो कोई कारण ही नहीं कि वह सफलता के अत्यन्त निकट न हो।
यहां हम इस दिवस विशेष की चैतन्यता से मेल खाती हुई कुछ ऐसी गोपनीय साधनाये प्रकाशित कर रहे हैं जो भगवान श्री कृष्ण के स्वरूप की भांति ही विविधता को समेटे हुये हैं। जिस प्रकार वे कूटनीतिज्ञ, योद्धा, प्रेमी, कला प्रवीण, वाक्पटु एवं मनोहर थे, उसी अनुकूल साधक के जीवन में भी विविध कलाओं से सौन्दर्य भर सके इसका ही प्रयास इन साधनाओं के चयन में किया गया है।
यह भगवान श्रीकृष्ण से सम्बन्धित प्रारिम्भक साधना है। भगवान श्रीकृष्ण का सम्पूर्ण स्वरूप ‘क्लीं’ स्वरूप होने के कारण एक प्रकार से आवश्यक ही होता है कि साधक इस प्रारम्भिक साधना को अवश्य ही करे। जीवन की प्रत्येक सौन्दर्य साधना का मूल भी यही साधना है और इस साधना को विशेष रूप से जन्माष्टमी की रात्रि में ही सम्पन्न करने के कारण साधक को अवश्य ऐसी प्रबलता मिल जाती है जिससे वह स्वयं रूप-सौन्दर्य के साथ-साथ एक विचित्र प्रकार के सम्मोहन से भरे चुम्बकत्व को प्राप्त करने में समर्थ हो जाता है।
भगवान श्री कृष्ण का रोम-रोम इस ‘क्लीं’ कामबीज से इस प्रकार आबद्ध था, जिससे उन्हें कुछ करने की अथवा किसी पर अपना प्रभाव डालने की आवश्यकता शेष नहीं रह जाती थी। व्यक्ति स्वतः उनका प्रशंसक और अनुयायी हो जाता था। केवल मनुष्य ही नहीं पशु-पक्षी भी, केवल उनके मित्र पांडव ही नहीं, उनके विरोधी कौरव भी उनके आकर्षण में समान रूप से बंधे थे।
इस साधना के लिये आवश्यक है कि साधक के पास ताम्र पात्र पर अंकित प्रामाणिक ‘क्लीं यंत्र’ अवश्य हो, जो गोपाल मंत्रें से मंत्र-सिद्ध हो तथा सहयोगी रूप में ‘कामकला माला’ हो। इन दोनों सामग्रियों को साधक जन्माष्टमी की रात्रि में अपने समक्ष पीले वस्त्र पर स्थापित कर दे, वह स्वयं भी पीले वस्त्र धारण करे और पीले आसन पर पश्चिम की ओर मुख करके बैठे। सामने राधा-कृष्ण का संयुक्त चित्र स्थापित करे और कक्ष को सुसज्जित करें। साधक यथासंभव रात्रि के दस बजे के बाद ही यह साधना प्रारम्भ करें। तदुपरान्त भोज पत्र पर निम्न प्रकार से अष्टदल कमल बनाकर उसके प्रत्येक दल में चित्र के अनुसार केसर से काम गायत्री मंत्र को अंकित करे तथा मध्य में क्लीं बीज अंकित करें।
यह भी यंत्र ही है और इसका भी पूजन साधक ‘क्लीं’ यंत्र के साथ करे। घी का दीपक लगाये और सुगन्धित अगरबत्ती प्रज्ज्वलित करे। यंत्र, चित्र, माला आदि का पूजन केसर, पुष्प की पंखुडि़यों व अक्षत से कर, ‘कामकला माला’ से निम्न मंत्र की एक माला मंत्र-जप करें।
मंत्र जप के उपरान्त कुछ देर वहीं स्थिर चित्त बैठे रहें और भावना करें कि इस तेजस्वी मंत्र का प्रभाव आपके रोम-रोम में व्याप्त हो रहा है। यदि संभव हो तो रात्रि शयन भी वहीं करें। दूसरे दिन प्रातः जल्दी उठकर ताम्र पत्र पर अंकित ‘क्लीं यंत्र’ एवं कामकला माला किसी पवित्र सरोवर में विसर्जित कर दें, जबकि भोजपत्र पर अंकित यंत्र को ताबीज में भर कर दाहिनी भुजा में अथवा गले में धारण कर लें। साधक कुछ समय के बाद ही अपने रोम-रोम में होने वाले परिवर्तन और लोगों के व्यवहार में परिवर्तन देखकर खुद ही साधना की अनुकूलता को समझ सकता है। यद्यपि यह साधना वर्ष में कभी भी की जा सकती है, किन्तु जन्माष्टमी के अवसर पर करने से इसके प्रभाव में अतिरिक्त तीव्रता और तीक्ष्णता उभर आती है।
यदि साधक किसी स्त्री अथवा व्यक्ति विशेष को सम्मोहित करने के स्थान पर इस बात में रूचि रखता हो कि समाज के प्रत्येक वर्ग के व्यक्ति उससे प्रभावित हों, उसकी आज्ञा का पालन करें या स्पष्ट शब्दों में कहें कि उसे देखकर सम्मोहित हों, तो उसे यह प्रयोग करना ही चाहिये। इस प्रयोग की विशेषता यह है कि इसे सामान्य रूप से सिद्ध किया जाता है, फलस्वरूप व्यक्ति को चतुर्दिक् सफलता और ख्याति तो मिलती ही है साथ ही उसके अंदर चुम्बकीय और अधिकार तत्व भी पुष्ट होता है, जिससे उसकी वाणी और व्यक्तित्व में एक अनोखी सी गंभीरता और आकर्षण उतर आता है।
यह प्रयोग केवल जन्माष्टमी की रात्रि में ही सम्पन्न किया जा सकता है। साधक को चाहिये कि वह इस दिवस विशेष की रात्रि में दस बजे के बाद सर्वथा एकांत में साधनारत हो। उसके वस्त्र, आसन, सामने बिछा कपड़ा सभी पीले रंग के हों और वह स्वयं गोरोचन अथवा केसर का तिलक करके साधना में प्रवृत्त हो। इस साधना में एकाग्रता का विशेष महत्व है। साधना कक्ष में एक बड़े घी के दीपक के अतिरिक्त प्रकाश की कोई भी व्यवस्था न रखें और इसी प्रकाश में अपने सामने हषिकेश यंत्र स्थापित कर उस पर काजल का टीका लगाये एवं विश्व मोहिनी माल्य से निम्न मंत्र को 108 बार जप करें।
इस मंत्र को एक साफ कागज पर लिख कर उसे दीपक के समीप ही रख लें। जहां तक संभव हो, मंत्र-जप के काल में यंत्र पर ही दृष्टि टिकाये रहें। मंत्र-जप के उपरांत यंत्र पर लगे सम्पूर्ण काजल को सम्भाल कर रख लें और कुछ भाग अपने मस्तक पर लगा लें। यंत्र एवं माला को भविष्य में पुनः प्रयोग में न लें तथा जब कोई विशेष आवश्यकता हो, किसी सभा आदि में प्रवेश करना हो तो इस काजल की बहुत थोड़ी सी मात्र अपने माथे अथवा वक्षस्थल पर लगा लें। समूह सम्मोहन का यह अचूक एवं अद्वितीय प्रयोग माना गया है।
इस साधना हेतु साधक रात्रि का प्रथम प्रहर बीत जाने के पश्चात् साधना क्रम प्रारम्भ कर अर्धरात्रि के साथ पूर्ण कर मंत्र जप सम्पन्न करें, इस साधना हेतु इच्छा पूर्ति गोविन्द यंत्र, दो गोविन्द कुण्डल तथा आठ शक्ति विग्रह आवश्यक है। अपने सामने सर्वप्रथम बाजोट पर पुष्प ही पुष्प बिछा दें और उन पुष्पों के बीचों-बीच इच्छा पूर्ति यंत्र स्थापित करें तथा इस यंत्र का पूजन केवल चन्दन तथा केसर से ही सम्पन्न करें, अपने सामने कृष्ण का एक सुन्दर चित्र स्थापित करें, चित्र पर भी तिलक करें तथा प्रसाद स्वरूप पंचामृत हो, जिसमें घी, दूध, दही, शक्कर तथा गंगाजल हो। इसके अतिरिक्त अन्य नैवेद्य भी अर्पित कर सकते हैं, इच्छा पूर्ति यंत्र के दोनों ओर गोविन्द कुण्डल पर केसर का टीका लगायें और दोनों हाथ जोड़कर कृष्ण भगवान का ध्यान करें। कृष्ण का ध्यान कर इनके शक्ति लक्ष्मी, सरस्वती, रति, प्रीति, कीर्ति, कान्ति, तुष्टि एवं पुष्टि हैं, प्रत्येक शक्ति विग्रह को स्थापित करते हुए निम्न मंत्र का उच्चारण करें-
ऊॅं लक्ष्म्यै नमः पूर्वदले, ऊॅं सरस्वत्यै नमः आग्नेयदले, ऊॅं रत्यै नमः दक्षिणदले, ऊॅं प्रीत्यै नमः नैऋत्यदले, ऊॅं किर्त्ये नमः पश्चिमदले, ऊॅं कान्त्यै नमः वायव्यदले, ऊॅं तुष्टयै नमः उत्तरदले, ऊॅं पुष्टयै नमः ईशानदले।
शक्ति पूजन के पश्चात् इच्छा पूर्ति मंत्र का जप प्रारम्भ किया जाता है, इसकी भी विशेष विधि है, इसमें अपने दोनों हाथों में एक पुष्प अथवा पुष्प की पंखुडी लें, और इच्छा पूर्ति मंत्र का उच्चारण करते हुए उसे अर्पित कर दें।
इस प्रकार 108 बार यह मंत्र उच्चारण इसी विधि से सम्पन्न करना है, यह अर्पण प्रयोग पूर्ण हो जाने के पश्चात् पहले से जला कर रखे हुये दीप, अगरबत्ती तथा धूप से आरती सम्पन्न कर प्रसाद ग्रहण करें।
यदि कोई साधक एक महीने तक प्रतिदिन एक माला मंत्र जप सम्पन्न करे, तो उसका इच्छित कार्य अवश्य ही सम्पन्न हो जाता है।
कृष्ण का पूरा जीवन शत्रुओं को कभी नीति से परास्त कर, शांति स्थापित कर धर्म की स्थापना करना रहा है। जहां धर्म है, वहीं श्रीकृष्ण हैं।
जब शत्रु बाधा बहुत बढ़ जाये, तो अपने सामने इस साधना दिवस के दिन अर्द्धरात्रि के पश्चात् शत्रुहन्ता प्रयोग सम्पन्न करना चाहिये, श्री कृष्ण सुदर्शन यंत्र के साथ मंत्र-सिद्ध कृष्ण पाश तथा कृष्ण अंकुश की स्थापना कर विधि-विधान सहित पूजन करना चाहिये, अर्द्धरात्रि के पश्चात् साधक अपने पूजा स्थान में एक बड़ा दीपक लगायें, दूसरी ओर धूप, अगरबत्ती जलाये, दक्षिण दिशा की ओर मुंह कर सर्वप्रथम कृष्ण आयुधों का पूजन करें, प्रथम पूजन कृष्ण पाश और द्वितीय पूजन कृष्ण अंकुश का करें और पूजन करते समय पूरे समय ‘ऊॅं सुचक्रायै स्वाहा’ का मंत्र जप करते रहें।
इस पूजन के पश्चात् सामने चावल की ढेरी पर श्रीकृष्ण सुदर्शन यंत्र स्थापित करें तथा चारों ओर कृष्ण के अस्त्र-शस्त्र प्रतीक आठ लघु नारियल स्थापित करें, ये आठ लघु नारियल आठ हाथों में स्थित शंख, चक्र, गदा, पद्म, पाश, अंकुश, धनुष तथा शर के प्रतीक हैं तथा प्रत्येक लघु नारियल पर कुंकुम, केसर, चावल चढ़ाते हुए निम्न मंत्र का उच्चारण करें-
अब अपनी बाधा निवारण तथा शत्रु नाश की इच्छा व्यक्त करते हुए सुदर्शन यंत्र का अपनी सारी पूजन सामग्री से पूजन सम्पन्न कर निम्न मंत्र का जप सम्पन्न करें-
इस मंत्र की 5 माला उसी स्थान पर बैठकर जप करें तथा दूसरे दिन प्रातः राई मिला कर कृष्ण आयुधों तथा आठों लघु नारियलों को एक लाल कपड़े में बांध कर शत्रु के घर की दिशा में गाड़ दें तो प्रबल से प्रबल शत्रु भी शांत हो जाता है।
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