आधुनिक युग में भी ‘रामचरित मानस’ हिन्दू धर्म का प्राण माना गया है। वृद्ध, युवा तो क्या एक दस वर्ष का बच्चा भी रामचरित मानस से परिचित पाया जाता है। इसका इतना गहन प्रभाव है, कि धर्मावलम्बी इस पर अत्यन्त श्रद्धा रखते हैं।
रामचरित मानस लगभग प्रत्येक घर में पाया जाता है। इस श्रेष्ठ ग्रंथ को व्यक्ति प्रत्यक्ष दैवीय शक्ति के रूप में मानकर नित्य पाठ करते हैं। इसके दोहे तथा चौपाइयां वेद मंत्रों के समान तेजस्विता युक्त हैं। रामचरित मानस की एक-एक पंक्ति अपन आप में मंत्र है और ईश्वर के अंश से अनुप्राणित है, जिसके कारण सम्पूर्ण रामचरित मानस में दिव्यता तथा चैतन्यता समाई हुई है। व्यक्ति अपने जीवन की तमाम प्रतिकूलताओं को इसके माध्यम से अनुकूलता में परिवर्तित कर सकता है।
श्रीराम के जीवन चरित्र पर आधारित इस ग्रंथ में वेद, उपनिषद् तथा पुराणों को सरल व सहज कर जीवन में इनके महत्व को पूर्णरूप से हृदयंगम कर लें, तो अपने साधनात्मक जीवन तथा सामाजिक जीवन का विकास तथा दिशा निर्धारण कर, विकारों को तथा पशुत्व को समाप्त कर अपने जीवन को देवत्व की ओर अग्रसर कर सकते हैं।
आज के इस भौतिक प्रधान युग में यदि इस पवित्र व श्रेष्ठ ग्रंथ के सार को व्यक्ति अपने हृदय में, अपने जीवन में उतार लें, तो हिंसा, द्वेष, छल, झूठ, पाप, अनाचार, अधर्म की समाप्ति सम्भव हो सकेगी। इस ग्रंथ में पवित्रता, चैतन्यता तथा आध्यात्मिकता का वर्णन होने के कारण व्यक्ति इसका पाठ करता है तो उसके हृदय में भी पवित्रता का भाव संचारित होता है, इसकी प्रत्येक पंक्ति ऊर्जावान व प्राणवान है।
रामचरित मानस एक साधनात्मक ग्रंथ भी है, अतः इसके मंत्रे का पाठ एकाग्र चित्त भाव से ही करें, तो ज्यादा फलप्रद होता है, निष्काम पाठ सिर्फ पाठ ही होता है, अतः व्यक्ति इसके पाठ को सकाम फल के लिये भी करें।
साधना विधान
साधक प्रातः उठकर स्नानादि कर पीले रंग के वस्त्र धारण करें तथा पीले आसन पर बैठ जायें। अपने सामने लकड़ी के बाजोट पर पीले रंग का वस्त्र बिछाकर उस पर राम, लक्ष्मण, सीता तथा हनुमान का संयुक्त चित्र स्थापित करें। चित्र के सामने पुरूषोत्तम यंत्र चावल की ढेरी पर स्थापित करें।
कुंकुम व अक्षत से यंत्र व चित्र तथा रामचरित मानस ग्रंथ का पूजन करें। बाजोट के बगल में लाल रंग का वस्त्र बिछायें। इस पर एक गुलाब का पुष्प तथा अक्षत रख दें। यह आसन हनुमान जी के लिये माना गया है। अपना मनोरथ बोलकर संकल्प लें।
इसके बाद रामचरित मानस का पाठ सम्पन्न करें। यथा सम्भव प्रयास करें, कि पाठ 24 घंटों में ही पूर्ण रूप से समाप्त हो जाये। रामचरित मानस का पाठ स-स्वर तथा लय बद्ध होना चाहिये। जब पाठ समाप्त हो तब आरती सम्पन्न कर समस्त परिवार में प्रसाद वितरित करें तथा विभिन्न प्रकार का भोजन ग्रहण करें तथा किसी ब्राह्मण अथवा पांच बालकों को भोजन करायें। पुरूषोत्तम यंत्र को अगले दिन ही ब्राह्मण को दान दें या राम मन्दिर में चढ़ा दें।
मनोरथ सिद्धि हेतु
साधक राम मंत्रों से प्रतिष्ठित मनोरथ सिद्धि राम यंत्र का पूजन करें, एक कागज में अपनी मनोकामना लिख कर कागज को यंत्र के नीचे रख दें। यंत्र को देखते हुये निम्न चौपाई का 51 बार उच्चारण कर, कागज पर सिन्दूर पोतकर तथा दो गेंदे के फूल तथा दीपक लगाकर रात्रि के समय किसी चौराहे पर घर से दूर रख दें।
चौपाई
भव भेषज रघुनाथ सुनहि जे नर अरू नारि।
तिन्ह कर सकल मनोरथ सिद्धि करहिं त्रिपुरारि।।
उच्चारण समाप्ति के तीन दिन पश्चात् यंत्र को नदी में प्रवाहित कर दें।
सम्पत्ति प्राप्ति हेतु
साधक सम्पत्ति प्राप्ति के लिये इस प्रयोग को सम्पन्न करें। अपने सामने लाल रंग का वस्त्र बिछा लें, उस पर कुंकुम से त्रिकोण बनाकर, सम्पदा यंत्र स्थापित करें।
यंत्र का पूजन केसर, पुष्प व अक्षत से करें। फिर तुलसी के 75 पत्ते लेकर उसे क्रमशः निम्न चौपाई का उच्चारण करते हुए यंत्र पर चढ़ायें-
चौपाई-
जिमि सरिता सागर मह जाहीं।
यद्यपि ताहि कामना नाहीं।।
जे सकाम नर सुनहिं जे गावहिं।
सुख संपति नाना विधि पावहिं।।
प्रयोग समाप्ति पर तुलसी के सभी पत्तों को तथा यंत्र को किसी लक्ष्मी मन्दिर में चढ़ा दें।
बल, बुद्धि प्राप्ति, शत्रुहन्ता साधना
बालाजी शक्ति यंत्र को एक सफेद वस्त्र पर स्थापित करें। बालाजी शक्ति यंत्र का पूजन करें। बेसन के लड्डू को भोग लगाये। निम्न चौपाई का क्रमशः 51 बार उच्चारण करते हुये प्रत्येक बार यंत्र पर सिन्दूर की बिन्दी लगायें-
चौपाई-
सुमरि पवन सुत पावन नामू।
अपने वश करि राखे रामू।।
मंत्र जप के पश्चात् यंत्र को हनुमान मन्दिर में चढ़ा दें।
प्रत्येक प्रयोग राम जानकी विवाह पंचमी के दिन या फिर किसी भी पंचमी को सम्पन्न कर सकते हैं। रामचरित मानस एक प्रामाणिक व श्रेष्ठ ग्रंथ है, इसका प्रत्येक प्रयोग साधकों द्वारा अनुभव सिद्ध है। अनेक व्यक्तियों ने इसे परखा है तथा इसकी सत्यता को अनुभव किया है।
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