प्रत्येक व्यक्ति को सफलता नहीं मिल पाती, वह जी तोड़ परिश्रम करने के बाद भी जीवन में सफल नहीं हो पाता। जिस हिसाब से प्रति वर्ष उन्नति होनी चाहिये, नहीं हो पाती है, केवल व्यापार प्रारम्भ कर देने से या नौकरी पर जाने से ही भौतिक सम्पन्नता नहीं आती है। इसके लिये किसी दैवीय ऊर्जा शक्ति की भी आवश्यकता पड़ती है, जो कि संभव है गुरू कृपा से, गुरू के ज्ञान व चेतना को आत्मसात करके ही हम दैवीय ऊर्जा शक्ति से आपूरित हो सकते हैं।
शिष्य के जीवन में यदि कोई होता है, तो मात्र गुरू ही होते हैं। जब शिष्य की दृष्टि में देवी-देवताओं का कोई विशेष महत्व नहीं रह जाता, उसका मस्तक यदि कहीं झुकता है, तो माता-पिता, इष्ट और गुरू चरणों के अलावा अन्य कहीं भी नहीं झुकता है और इससे भी ऊपर जब शिष्य के लिये इष्ट और गुरू में भी विभेद समाप्त हो जाता है, तब वह गुरू की शक्ति को आत्मसात करने का अधिकारी हो जाता है, क्योंकि उसके मानस में तो यह स्पष्ट होता है कि समस्त देवी-देवताओं की यदि कहीं उपस्थिति है, तो साक्षात् गुरूदेव में है। फिर उन्हें छोड़कर अन्य कहीं भटकने से क्या लाभ?
शक्ति उस शाश्वत निखिल तत्व से है, उस गुरूत्व शक्ति से है, जिससे समस्त ब्रह्माण्ड गतिशील है, जिसके फलस्वरूप दिन और रात होती है, ऋतुये बदलती है, जन्म और मृत्यु होती है— और वह शक्ति जिसके पूंजीभूत होने से अनेक देवी-देवताओं का प्रादुर्भाव हुआ है। अतः इस माघी गुप्त नवरात्रि के विशिष्ट दिवसों पर सद्गुरूदेव द्वारा तेजमय नवोदय गुरू आद्या शक्ति दीक्षा ग्रहण करने पर शिष्य शक्ति युक्त हो सकेगा। साथ ही उपरोक्त बाधाओं और परेशानियों से शीघ्र ही निजात अनुभव कर सकेगा।
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