हे देवी दुर्गा! आप समस्त राक्षसी वृत्तियों पर जयी होने के कारण जया है। आप ऋषियों, मुनियों योगियों, देवगणों एवं सिद्धि प्राप्त करने की इच्छा रखने वाले साधक वृन्दों द्वारा पूजनीय एवं वन्दनीय है। आपके शरीर की आभा काले मेघ के समान शान्तिदायक है। आपकी क्रोध दृष्टि शत्रुओं को भयभीत कर देती है, श्रीमस्तक पर चन्द्ररेखा एवं चारों हाथों में शंख, चक्र, कृपाण और त्रिशूल है। सिंह पर आरूढ़ आपके ही तेज से तीनों लोक परिपूर्ण होते है।
माँ भगवती दुर्गा का यह स्वरूप शक्ति का साकार स्वरूप है। जहाँ माँ भगवती की आराधना होती है, वहाँ शक्ति चैतन्य रूप से स्थायी रहती है। शक्ति का तात्पर्य केवल बल ही नहीं, शक्ति की जो व्याख्या मार्कण्डेय ऋषि ने की है, वह शक्ति का सर्वरूप है। शक्ति का तात्पर्य है-वृद्धि, सिद्धि, सौम्यता, रौद्रता, प्रतिष्ठा, चैतन्यता, बुद्धि, तुष्टि एवं इच्छा है।
शक्ति साधना के द्वारा ही जीवन में इन सब शक्तियों की प्राप्ति हो सकती है। इनमें से एक शक्ति की भी कमी रहती है तो जीवन कुछ अपूर्ण सा लगने लगता है। केवल एक रूप में साधना करने से ही शक्ति की पूर्ण सिद्धि सम्भव नहीं है, जीवन में रौद्रता के साथ-साथ अर्थात् उग्रता के साथ शान्ति हो। शत्रुओं के लिये उग्रता, मित्रों के लिये शान्ति, परिवार के लिये लक्ष्मी, ज्ञान के लिए स्मृति, मन के लिये तुष्टि, निर्बल के लिए दया, स्वभाव में नम्रता, क्योंकि नम्र वही हो सकता है, जो शक्ति से परिपूर्ण हो। निर्बल भिक्षुक हो सकता है, याचक हो सकता है, लेकिन सबल अपने स्वाभाविक को सुरक्षित रखते हुये नम्रता से परिपूर्ण हो सकता है।
नवरात्रि ही नहीं जीवन का प्रत्येक दिन साधनाओं के लिये विशेष सिद्धिदायक माना गया है। शक्ति के इन हजारों स्वरूपों में प्रमुख हैं-
1- जीवन में अभय शक्ति,
2- शत्रु बाधा अर्थात् विवाद, मुकदमा, षड्यंत्र इत्यादि में विजय,
3- जीवन में प्रेम और रस में निरन्तर अभिवृद्धि।
इन तीन स्थितियों का जीवन में पूर्ण समावेश होना आवश्यक है।
शाक्त प्रमोद में विवरण है, कि एक बार कार्तिकेय जी कैलाश पर्वत पर शिव की स्तुति करते हुये बोले-‘‘हे देवाधिदेव! तुम्ही परमात्मा हो, शिव हो, तुम्ही सब प्राणियों की गति हो, तुम्हीं जगत के आधार हो और विश्व के कारण हो, तुम्ही सबके पूज्य हो, तुम्हारे बिना मेरी कोई गति नहीं है। कृपया करके मेरे संशय का निवारण करें।
किं गुह्यं परमं लोके किमेकं सर्व सिद्धिदम्।
किमेकं परमं श्रेष्ठं को योगः स्वग्र मोक्षदः।
बिना तीर्थेन तपसा बिना दानेर्विना मखै।।
कस्मादुत्पद्यते सृष्टिः कस्मिं श्व प्रलयो भवेत्।
कौन सी वस्तु संसार में समस्त सिद्धियों को देने वाली है? वह कौन सा योग है जो परमश्रेष्ठ है? कौन सा योग है जो स्वर्ग और मोक्ष देने वाला है? बिना तीर्थ, बिना दान, बिना यज्ञ और बिना लय सा ध्यान के मनुष्य किस उपाय से सिद्धि को प्राप्त कर सकता है? यह सृष्टि किससे उत्पन्न हुई है? किसमें इसका लय होता है? हे देव! किस उपाय से मनुष्य संसार रूपी सागर के पार उतर सकता है? कृपा कर बतायें।
इसके उतर में भगवान शिव बोले कि संसार के सभी पदार्थ जड़ या चेतन, सजीव या निर्जीव मात्र तीन गुणों के संयोजन से ही गतिशील होते है।, मनुष्य की समस्त गतिविधियां जीवन शैली, जीवन में उतार-चढाव, गुण-दोष, स्वभाव मात्र इन तीन गुणों अर्थात्-‘सत्य’,‘रज’ एवं ‘तम’ से ही बनते हैं। इन तीनों गुणों का जिस परा शक्ति से प्रादुर्भाव होता है वही भगवती आधिशक्ति है।
शक्ति के अनेकानेक रूप है, प्रत्येक स्वरूप अपनी विविधता से युक्त मानव के लिये आवश्यक है, एक बार एक शिष्य ने गुरूदेव से प्रश्न किया कि क्या ऐसा संभव नहीं है, हम शक्ति के बहुआयामी स्वरूप की साधना एक साथ करे।
सदगुरूदेव ने अपने शिष्य को आशीर्वाद देते हुये कहा कि शक्ति की श्रेष्ठतम साधना चौसठ शक्ति साधना है, जिसमें मंत्र सहित चौसठ रूप में ध्यान किया जाय तो शक्ति को साधकावरण करना ही पड़ता है, सद्गुरूदेव द्वारा दिया गया विधान-
एक थाली में ‘तांत्रोक्त नारियल’ और ‘चौसठ शक्ति यंत्र’ स्थापित कर देना चाहिये, उपरोक्त दो पदार्थ अर्थात् तांत्रिक नारियल, चौसठ शक्ति यंत्र एवं इसके साथ ही साथ ‘सिद्ध शक्ति माला’ की आवश्यकता होती है और यह सामग्री इस साधना में तो काम आती ही है आगे के जीवन भर के लिये यह सामग्री उपयोगी रहती है।
चैत्र नवरात्रि के दिन साधक स्नान कर उतर दिशा की और मुँह कर लाल आसन पर बैठ जाये और स्वयं लाल धोती धारण कर लें। सामने किसी पात्र में ‘चौसठ शक्ति यंत्र’ और ‘तांत्रोक्त नारियल’ स्थापित कर दे और सामने तेल के नौ दीपक लगा दे फिर चौसठ शक्तियों के नाम लेकर उस यंत्र पर अक्षत चढ़ावें पुष्प समर्पित करें। इस साधना के लिये निम्न सामग्री की आवश्यकता होती है तांत्रोक्त नारियल, चौसठ शक्ति यंत्र तथा विशेष मंत्रों से सिद्ध की गई सिद्धि शक्ति माला।
जिस किसी भी दिन प्रयोग करना हो उस दिन साधक स्नान आदि नित्य क्रिया से निवृत होकर उत्तर दिशा की और मुख करके लाल आसन पर बैठ जाये और लाल धोती पहन ले अपने सामने गुरू चित्र स्थापित करके किसी प्लेट पर या थाली पर ‘चौसठ शक्ति यंत्र’ तथा ‘तांत्रोक्त नारियल’ को उस पात्र पर स्थापित कर दे ओर अक्षत पुष्प आदि से पंचोपचार पूजन करे इसके बाद तेल के नौ दीपक लगा दें। फिर चौसठ शक्तियों के मंत्र के साथ उस यंत्र पर कुंकुम, अक्षत और एक लौंग प्रत्येक नाम के साथ चढ़ावें चौसठ शक्तियों के मंत्र-
ऊँ पिं पिंगलाक्ष्यै नमः
ऊँ विं विडालाक्ष्ये नमः
ऊँ सं समृद्धये नमः
ऊँ वृं वृद्धयै नमः
ऊँ श्रं श्रद्धायै नमः
ऊँ स्वं स्वाहायै नमः
ऊँ स्वं स्वधायै नमः
ऊँ मं मातृकायै नमः
ऊँ वं वसुन्धरायै नमः
ऊँ त्रिं त्रिलोकरात्र्यै नमः
ऊँ सं सावित्र्ये नमः
ऊँ गं गायत्र्ये नमः
ऊँ त्रिं त्रिदशेश्वर्यै नमः
ऊँ सुं सुरूपाये नमः
ऊँ बं बहुरूपायै नमः
ऊँ स्कं स्कन्दाये नमः
ऊँ अं अच्युतप्रियायै नमः
ऊँ विं विमलायै नमः
ऊँ अं अमलायै नमः
ऊँ अं अरूणायै नमः
ऊँ आं आरूण्यै नमः
ऊँ प्रं प्रकृत्यै नमः
ऊँ विं विकृत्यै नमः
ऊँ सृं सृत्यै नमः
ऊँ स्थिं स्थित्यै नमः
ऊँ सं संहृत्यै नमः
ऊँ सं सन्धाये नमः
ऊँ मं मात्र्यै नमः
ऊँ सं सत्यै नमः
ऊँ हं हंस्यै नमः
ऊँ मं मर्दिन्यै नमः
ऊँ रं रंजिकायै नमः
ऊँ पं परायै नमः
ऊँ दं देवमात्र्यै नमः
ऊँ भं भगवत्यै नमः
ऊँ दं देवक्यै नमः
ऊँ कं कमलासनायै नमः
ऊँ त्रिं त्रिमुख्ये नमः
ऊँ सं सप्तमुख्यै नमः
ऊँ सुं सुरायै नमः
ऊँ अं असुरमर्दिन्यै नमः
ऊँ लं लम्बोष्ठयै नमः
ऊँ ऊं ऊर्ध्वकेशिन्यै नमः
ऊँ बं बहुशिखायै नमः
ऊँ वृ वृकोदरायै नमः
ऊँ रं रथरेखायै नमः
ऊँ शं शशिरेखायै नमः
ऊँ अं अपरायै नमः
ऊँ गं गगनवेगायै नमः
ऊँ पं पवनवेगायै नमः
ऊँ भुं भुवनमालायै नमः
ऊँ मं मदनातुरायै नमः
ऊँ अं अनंगायै नमः
ऊँ अं अनंगमदनायै नमः
ऊँ अं अनंगमेखलायै नमः
ऊँ अनंग कुसुमायै नमः
ऊँ विं विश्वरूपायै नमः
ऊँ अं असुरायै नमः
ऊँ अं अनंगसिद्धयै नमः
ऊँ सं सत्यवादिन्यै नमः
ऊँ वं वज्ररूपायै नमः
ऊँ शं शुचिवृत्तायै नमः
ऊँ वं वरदायै नमः
ऊँ वं वागीश्वर्यै नमः
इन चौसठ शक्तियों के नाम से अक्षत, पुष्प चढा कर फिर साधक एकाग्र मन से दीपक की लौ पर नजर रखते हुये निम्न मंत्र की 11 माला मंत्र जप करें यह मंत्र जप सिद्धि माला से ही सम्पन्न करे उसके बाद उस माला को धारण कर लें।
मंत्र जप समाप्ति के बाद यंत्र को अपने पूजा स्थान में स्थापित कर दें तथा माला को सवा महीने तक गले में धारण करके रखे और नित्य 1 माला मंत्र जप करते रहे सवा महीने के बाद माला को नदी में प्रवाहित कर दें।
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