यह साधना आपके जीवन में शान्तमय एवं अनुकूलता युक्त वातावरण बनाने में समर्थ है। आपके चेहरे पर प्रसन्नता, मुस्कान की आभा बिखरने का अनुकूल प्रयोग है यह साधना शनिग्रह द्वारा उत्पन्न दोष को समाप्त करने के लिये है। इसके लिये आपका संकल्प आवश्यक है। साधना के लिये आपका संकल्प आवश्यक है। साधना में इसके बाद हाथ में जल लेकर संकल्प करें कि मैं अमुक गोत्र, अमुक जाति, अमुक नाम के घर का मुखिया, घर के अमुक नाम के सभी सदस्यों के रोगों, ग्रहबाधाओं और बीमारियों को दूर करने के लिये शनैश्चरी अमावस्या प्रयोग सम्पन्न कर रहा हूं।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि ग्रहों का प्रभाव मनुष्य तो क्या देवताओं पर भी पड़ता है और देवता भी उन ग्रहों के प्रभाव से सुख और दुःख को भोगते ही है। वैज्ञानिकों ने भी यह सिद्ध कर दिया है कि आकाश मण्डल में स्थित ग्रहों का प्रभाव मानव जीवन पर पड़ता ही है, और उसकी वजह से मानव को विविध प्रकार के कष्ट भोगने पड़ते है। नवग्रहों में भी सूर्य, मंगल, राहु और शनि अत्यन्त क्रूर एवं घातक ग्रह है, इनके प्रभाव से विविध प्रकार के कष्ट एवं दुःख भोगने पड़ सकते हैं।
जब भी शनि ग्रह का प्रभाव मनुष्य जीवन में आता है तो उसका घर, उसका परिवार, उसका कुटुम्ब उसका दाम्पत्य जीवन तहस-नहस हो जाता है, उसका आर्थिक स्त्रोत समाप्त हो जाता है और उसके जीवन में कुछ नहीं बचता और एक प्रकार से वह गरीब बनकर दर-दर ठोकरे खाने के लिये मजबूर हो जाता है।
इतिहास गवाह है कि जब नल राजा पर शनि का प्रकोप आया तो उसे दमयन्ती जैसी पतिव्रता से हाथ धोना पड़ा, जब रावण पर शनि का प्रकोप आया तो रावण जैसे उच्चकोटि के तांत्रिक और विद्वान का भी पूरा परिवार बर्बाद हो गया और वह समाप्त हो गया, यहां तक कि उसकी सोने की लंका भी जलकर राख हो गई, जब शनि दशरथ पुत्र राम पर आया तो कहां तो राजमुकुट पहनाने की व्यवस्था हो रही थी और कहां उन्हें दर-दर की खाक छानने के लिये और जंगल-जंगल भटकने के लिये मजबूर हो जाना पड़ा, पत्नी से बिछोह सहन करना पड़ा, शत्रुओं के हाथों में पत्नी उपेक्षित सी पड़ी रही ओर एक प्रकार से देखा जाय तो राम का पूरा यौवनकाल उस शनि के प्रभाव से बर्बाद हो गया, जब श्रीकृष्ण पर शनि का प्रभाव आया, तो उसे मथुरा के राज्य को छोड़ करके, सुदुर अंचलों में छुप करके रहना पड़ा, और रणछोड़ जैसे शब्द अपने जीवन में लगाना पड़ा।
ये तो बहुत थोडे उदाहरण है। ऐसे तो हजारों उदाहरण इतिहास में भरे पड़े है कि जब-जब भी व्यक्ति के जीवन में शनि का प्रभाव आया, तब-तब व्यक्ति बर्बाद ही हुआ, सम्पन्न नहीं बना, उपेक्षित ही रहा, उन्नति नहीं कर पाया, भिखारी ही हुआ, सम्पन्न नहीं हुआ, समाप्त ही हुआ, जीवन की श्रेष्ठता और उच्चता को स्पर्श नहीं कर पाया।
इन ग्रहों की शांति के लिये शनैश्चरी अमावस्या की साधना एक दुर्लभ और तुरन्त अनुकूलता देने वाली साधना है।
आज की पीढ़ी इस बात को स्वीकार करे या न करे व्यक्ति को पितृ दोष भी भुगतना पड़ता है। हमारे माता-पिता, बड़ा भाई, या अन्य कोई सम्बन्धी जब अकाल मृत्यु को प्राप्त हो जाता है या मृत्यु के बाद भी उसकी इच्छाये भावनायें बनी रहती है तो वे उन इच्छाओं की पूर्ति के लिये अपने सम्बन्धियों को यातना] दुःख और कष्ट देकर अपनी बात मनवाने का प्रयत्न करते है। आपने अपने जीवन में अनुभव किया होगा कि पितृदोष की वजह से घर में निरन्तर उपद्रव होते रहते है, लडके या लड़कियां कहना नहीं मानती, पति या पत्नी को एक-एक मिनट में गुस्सा आने लगता है और इस प्रकार के कई कार्य घर में होने लगते है जिसके प्रभाव स्वरूप घर ही नहीं पूरे परिवार का वातावरण दूषित हो जाता है। इसका मूल कारण पितृदोष ही है, और इसका समाधान भी शनैश्चरी अमावस्या प्रयोग से ठीक हो सकता है।
कभी-कभी घर में ऐसी बीमारी घर कर जाती है कि घर का कोई न कोई सदस्य बीमार बना ही रहता है और काफी बड़ा बजट उन लोगों की चिकित्सा में व्यय हो जाता है। इलाज कराने पर दो चार दिन तो अनुकूलता दिखाई देती है, इसके बाद फिर वैसा ही दृश्य या वैसी ही स्थिति बन जाती है। इस प्रकार से घर के मालिक को, उसकी पत्नी को, बहु को, बेटी को, पुत्र को या पोते-पोतियों को विविध प्रकार के कष्ट भोगने पड़ते है और इन बीमारियों से कोई छुटकारा दिखाई नहीं देता है। इसके लिये भी शास्त्रों में शनैश्चरी अमावस्या प्रयोग बताया है।
ज्योतिष गणना के अनुसार कई वर्षो बाद शनैश्चरी अमावस्या की स्थिति बनती है एवं वर्ष में एक बार शनि जयन्ती आती है। इन दोनों दिनों में से किसी भी दिन उपरोक्त समस्याओं के समाधान हेतु प्रत्येक साधक को इस मुहुर्त का और इस दिन का प्रयोग करना चाहिये और इससे सम्बन्धित साधना सम्पन्न करनी चाहिये। जिससे वे जीवन में रोग, शोक, दुःख] दारिद्रय] पितृदोष आदि से मुक्ति पा सकें और परिवार में सभी दृष्टियों से अनुकूलता आ सकें। इस वर्ष शनि जयन्ती दिनांक 19 मई को है। इस दिन से शनिश्चरी अमावस्या के बीच किसी भी शनिवार को संकल्प लें ले और यह साधना शनैश्चरी अमावस्या का शुभ अवसर इस वर्ष दिनांक 14 अक्टूबर तक अवश्य ही संपन्न कर लें। शनि जयंती और शनि अमावस्या के बीच का पूरा काल शनि साधना काल है।
इसके लिये कोई विशेष साधना सामग्री की आवश्यकता नहीं होती है। घर में जितने भी सदस्य है, उन के लिये ‘तांत्रोक्त शनिश्चरी मुद्रिका’ प्राप्त कर लेनी चाहिये। जो कि तांत्रोक्त दोष निवारण से सिद्ध और रोगादि बाधाओं से निवृत प्राण प्रतिष्ठा युक्त होनी चाहिये। यह मुद्रिका ऐसी होनी चाहियें, जिस पर तांत्रोक्त नवग्रह मंत्र के पांच हजार जप सम्पन्न किये हो। इस प्रकार की सिद्ध मुद्रिका इस अद्भूत अवसर पर प्रयोग की जाती है।
शनि जयन्ती से शनिश्चरी अमावस्या के बीच किसी भी शनिवार के रात्रि को साधक स्नान कर सफेद रंग की धोती पहनकर गुरू चादर ओढकर साधना कक्ष में दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके बैठ जाय। सामने चौकी पर गुरू चित्र स्थापित करें एवं पूजा से सम्बन्धित साधना सामग्री पहले से तैयार करके रखें। एक थाली में परिवार के सभी सदस्यों के लिये मंगायी गई मुद्रिकायें रख लें और तेल का दीपक जलाकर धूप जला दें।
सबसे पहले गुरू पूजन-गणेश पूजन कर गुरू मंत्र की चार माला जप करें और पूज्य गुरूदेव जी से अपने परिवार के रोगों, ग्रह की बाधाओं, बीमारियों की समाप्ति के लिये पूज्य गुरूदेवजी से आशीर्वाद की कामना व्यक्त करें।
यह छोटा सा प्रयोग आपके दुःख, रोग, पीड़ाओं को समाप्त करने की पूरी क्षमता रखता है। आपके जीवन में शान्तमय एवं अनुकूलता युक्त वातावरण बनाने में समर्थ है। आपके चेहरे पर प्रसन्नता, मुस्कान की आभा बिखरने का अनुकूल प्रयोग है।
इसके बाद थाली में रखी सभी मुद्रिकाओं का सामान्य पूजन, कुमकुम, अक्षत नैवेद्य से करें। इसके बाद हाथ में जल लेकर संकल्प करें कि मैं अमुक गोत्र, अमुक जाति, अमुक नाम के घर का मुखिया, घर के अमुक नाम के सभी सदस्यों के रोगों, ग्रहबाधाओं और बीमारियों को दूर करने के लिये शनैश्चरी अमावस्या प्रयोग सम्पन्न कर रहा हूँ। ऐसा बोल कर जल जमीन पर छोड़ दें।
ऊँ अस्य श्री बगलामुखी मन्त्रस्य, नारद ऋषि, त्रिष्टुप छन्द, बगलामुखी देवता, ह्री बींज, स्वाहा शक्तिः मम शरीरे एवं समस्त परिवार शरीरे नाना ग्रहोपग्रह सम्पूर्ण रोग-समूह नाना दुष्ट रोग शान्तयर्थ सर्व दुष्ट बाधा कष्ट कारक ग्रहस्य उच्चाटनार्थ शीघ्रारोग्य लाभार्थे कार्ये सिद्धयर्थे मन्त्र जपे विनियोगः।
त्रिष्टुप्छन्दसे नमः मुखे।
बगलामुखी देवतायै नमः हृदि।
ह्रीं बीजाय नमः गुहृो।
स्वाहा शक्तयै नमः पादपोः।
निम्न उच्चारण करते हुये अपने शरीर के अंगो पर दाहिने हाथ से स्पर्श करें।
ऊँ ह्री अंगुष्ठाभ्यां नमः।
बगलामुखी तर्जनीभ्यां नमः।
सर्वदुष्टानां मध्यमाभ्यां नमः।
वाचं मुखं स्तम्भय अनामिकाभ्यां नमः।
जिह्वां कीलय कीलय कनिष्ठिकाभ्यां नमः।
बुद्धि नाशक ही ऊँ स्वाहा करतल करपृष्ठाभ्यां नमः।
न्यास हृदयादि न्यास
ऊँ ह्रीं हृदयाय नमः।
बगलामुखी शिरसे नमः।
सर्व दुष्टानां शिखाये नमः।
वाचं मुखं स्तम्भय कवचाय नमः।
जिह्वा कीलय कीलय नैत्र त्रयाय वौषट्।
बुद्धि नाशक ह्री ऊँ स्वाहा अस्त्राय फट्।
फिर हाथ में अक्षत लेकर इन यंत्रो के सामने चढ़ाते हुये निम्न ध्यान उच्चारण करें-
इसके बाद ‘मूंगामाला’ से निम्न मंत्र की 11 माला मंत्र जप करें।
रात्रि को साधना सम्पन्न करने के बाद साधना करने वाला साधक/साधिका परिवार के सदस्यों में से प्रत्येक को एक-एक मुद्रिका धारण करा दें। जिससे उसके जीवन में आ रही बाधायें दूर हो सकें।
दूसरे दिन सुबह उठकर साधक को चाहिये कि वह सात कुंवारी छोटी बालिकाओं तथा छोटे बालक का पूजन कर उन्हें भोजन करायें और भोजनोपरान्त उन्हें यथा शक्ति दक्षिणा दें, भोजन में केवल बेसन के लड्डू ही दें, इसके अलावा अन्य किसी प्रकार का भोजन न दें। इस प्रकार यह सम्पूर्ण विधान सम्पन्न करने के बाद आपके जीवन में कई प्रकार की समस्याओं, बाधाओं, असाध्य रोगों की समाप्ति शनैःशनै होकर अनुकूलता प्राप्त होती ही है। तथा किसी भी प्रकार की ग्रह बाधा, पितृबाधा हो उसका इस प्रयोग से निराकरण होगा ही।
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