व्यक्ति का आधार स्तंभ संस्कार है। मानव जिन संस्कारों पर चलेगा, उसका व्यक्तित्व स्वयं उनके अनुरूप परिवर्तित हो जायेगा। व्यक्ति में जिस तरह के संस्कार होंगे उसी तरह की मानसिकता उसमें पैदा होगी और वह इंद्रियों द्वारा उसे कार्य रूप में परिणत करेगा। मनुष्य अपने संस्कारों को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में समय-समय पर प्रकट करता रहता है।
जीवन में आगे बढ़ते रहने के लिये शिष्टाचार बहुत ही उपयोगी है। प्रत्येक माता-पिता का यह कर्तव्य है कि वे अपनी संतान को बचपन से ही स्कूली शिक्षा के साथ-साथ कुछ व्यवहारिक ज्ञान भी देते रहें। इस व्यवहारिक ज्ञान में शिष्टाचार का महत्वपूर्ण स्थान है। शिष्ट व्यक्ति का प्रत्येक स्थान पर सम्मान होता है, उसकी बड़ाई होती है तथा परिवार एवं समाज उसकी सराहना करते हैं। फलस्वरूप उसके व्यक्तित्व में विशेष रूप से निखार आता है। व्यक्ति को हंसमुख होना चाहिये, हंसना व्यक्ति के लिये उतना ही जरूरी है, जितना जरूरी आहार एवं जल है। हंसने से मानसिक शक्ति मिलती है। अत: हंसने और हंसाने की कला व्यक्तित्व में और अधिक आकर्षण पैदा करती है।
जीवन अमूल्य है, अत: इसे व्यर्थ की चिंता और तनाव की आग में जला कर समाप्त करना कोई बुद्धिमत्ता नहीं। बुद्धिमत्ता है हंसने-हंसाने में, दूसरे को प्रसन्नचित करने में, व्यक्ति को जो आनन्द मिलता है वह सर्वोच्च है। हंसिये, हंसाइये और प्रसन्नचित रहिये, यही जीवन का मूल संदेश है।
भाग्य की रेखाये व्यक्ति स्वयं अपने कर्मों से बनाता है। मेरा भाग्य ही खराब है- ऐसी लज्जाजनक बातें आत्मविश्वासी, लगनशील और कर्मयोगी कभी नहीं करते हैं। मनुष्य को अपने भाग्य पर नहीं, परन्तु अपने चरित्र पर निर्भर रहना चाहिये।
इस तथ्य को हमेशा याद रखना चाहिये कि आपका कार्य कोई दूसरा व्यक्ति नहीं करेगा। आपको स्वयं पूर्ण विश्वास एवं जोश के साथ अपने काम में लगना है। यह सदा स्मरण रखें कि ईश्वर भी उसी की सहायता करता है जो स्वयं अपनी सहायता करता है। अपने आत्मबल को निरन्तर बरकरार रखिये, परिस्थितियां चाहे कितनी भी विपरीत क्यों न हों, आत्मबल से प्रतिकूलता धीरे-धीरे स्वत: अनुकूलता में परिवर्तित हो जाती है।
दृढ़ता जीवन में सफलता का स्तंभ होती है। इसी के द्वारा इच्छा शक्ति सुदृढ़ होती है, इच्छा शक्ति और ध्येयनिष्ठा मिल कर सफलता निश्चित करती हैं। इनसे बढ़ कर उपलब्धि का उपाय भला और क्या हो सकता है?
जीवन में विनम्र या निरंहकार होना बहुत बड़ा गुण है, परन्तु इस गुण की अधिकता व्यक्तित्व के विकास में बाधा होती है। यदि आपमें कोई खास गुण हैं, चाहे वह ललित कला, व्यावसायिक प्रतिभा या शैक्षणिक जीवन से ही संबंधित क्यों न हो उसे छिपायें नहीं, उजागर करें ताकि व्यक्ति उक्त क्षेत्र में आपकी उपलब्धि को मात्र मान्यता ही न दे, बल्कि उसे एक उदाहरण के रूप में भी पेश करे। व्यक्ति के पास न तो इतना वक्त होता है और न ही उसमें इतनी रूचि होती है कि वह अपने मित्रों की प्रतिभा को खोजे। अत: आपको स्वयं ही अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन एवं प्रचार करना होगा ताकि आप अपने क्षेत्र के लोगों को प्रभावित कर प्रेरित कर सकें। आपका यह कदम निश्चय ही आपको एक विशेष व्यक्ति बना देगा, अत: दूसरों पर अपना प्रभाव बनाने के लिये किसी एक काम में महारथ हासिल करना चाहिये, जिससे कि कोई साधारण व्यक्ति उस काम में आपकी बराबरी न कर सके।
अनुभव, अधिक कष्ट सहन करना है और अधिक अध्ययन- यही विद्वता के तीन स्तंभ हैं। सदैव सत्साहित्य को अपनाना चाहिये। घर में भी बच्चों को इस बात की शिक्षा देनी चाहिये कि वे हमेशा अच्छी ज्ञानवर्द्धक पुस्तकें एवं पत्रिकाये पढें। प्रत्येक घर में अपने-अपने धर्म के अनुकूल ग्रंथ रखने, नियमपूर्वक पढ़ने एवं उनका मनन करते रहना चाहिये। भगवदगीता, रामायण समेत अन्य धार्मिक ग्रंथ प्रत्येक को अपने घर में अवश्य ही रखना एवं पढ़ना चाहिये, साथ ही मनन करते रहने से सुविचारों एवं सुंदर भावों का उदय होता है, जिससे मन पवित्र होता है। मस्तिष्क में सुंदर विचार रहने से विकास का पथ प्रशस्त होता है और घर में खुशहाली, प्रसन्नता एवं सुस्थितियों में निरन्तर वृद्धि होती रहती है। तन-मन निरोग एवं प्रसन्न रहता है, जिससे जीवन के परम लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता प्राप्त होती है। सांप्रदायिक सद्भाव को बढ़ाने में भी इन ग्रंथों की अहम भूमिका रहती है, क्योंकि सभी धर्म एकता एवं भाईचारे का ही उपदेश देते हैं, अत: इन ग्रंथों को पढ़ने एवं मनन करने से प्राणिमात्र के प्रति सद्भाव बढ़ेगी जो विश्वबंधुत्व का पथ प्रशस्त करेगी।
मनुष्य को वह आचरण करना चाहिये जो कम-से-कम विकार पैदा करे और बुद्धि उसके प्रति सावधान करती रहे।
जीवन में एक श्रेष्ठ गुरू का चुनाव करें, क्योंकि श्रेष्ठ गुरू ही अपनी ज्ञान, चेतना व शक्ति से हमारे जीवन को सुमार्ग की ओर प्रशस्त करते हैं। गुरू से जुड़ाव नित्य जुड़ाव बनाये रखने से सुसंस्कार, सुविचार व सुकर्म का ज्ञान प्राप्त होता है। जीवन को सही रूप में हर्ष, आनन्द, उत्साह के साथ जीने का ज्ञान प्राप्त होता है। गुरू ही हमें जीवन में पूर्णता प्रदान करते हैं, जो मानव जाति के लिये परम आवश्यक है।
हमारे जीवन में अभ्यास का बड़ा महत्व है। किसी भी कार्य में परांगत होने के लिये उस काम को जल्द-से-जल्द करना एवं करते रहना अत्यावश्यक है। किसी भी जानकारी को स्मरण रखने यानी बेहतर जानकारी के लिये उस जानकारी को दुहराते रहना भी अत्यावश्यक है। ठीक इसी प्रकार व्यक्ति को भी निरन्तर अपने गुरू के सानिध्य में शामिल होना चाहिये।
इसी तरह इन उपायों को अपना कर हम अपने व्यक्तित्व का विकास बेहतर ढंग से करके जीवन को सुखमय और सार्थक बना सकते हैं।
सस्नेह आपकी माँ
शोभा श्रीमाली
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