यह मानव जीवन हर क्षण चिंताओं और परेशानियों के बवंडर से घिरा रहता है, जिसके लिये हर किसी को जीवन में सुख शांति हेतु किसी ऐसी सुरक्षा की आवश्यकता महसूस होती है, जो इस बवंडर से उसको निकाल सके।
इस मानव जीवन में व्यक्ति को तीन प्रकार के परिताप ही प्रमुख रूप से दृष्टिगोचर होते हैं, जो उसके जीवन को कष्टप्रद बना देते हैं-
दैविक का अर्थ है- देवताओं से सम्बन्धी कष्ट, जैसे भूकम्प का आ जाना, अकाल पड़ जाना, अकस्मात् आग लग जाना तथा इसके अतिरिक्त भूत-प्रेत का प्रभाव व्याप्त होना या पितृ दोष आदि लगा होना, इस प्रकार के दुःख व्यक्ति को भोगने पड़ जाते हैं और ऐसी महामारी या छुआछूत की बीमारी, जिससे गांव के गांव समाप्त हो जाये, यह सब भी ‘दैवी प्रकोप’ ही कहा जाता है।
दैहिक का अर्थ है- देह से सम्बन्धित, अर्थात् देहगत्। किसी भी प्रकार के रोग से होने वाले शारीरिक दुःख को ‘दैहिक’ कहा जाता है, जैसे पेट दर्द, सिर दर्द आदि।
भौतिक कष्ट अर्थात् ऐसे कष्ट, जो भावनात्मक रूप से, मानसिक रूप से व्यक्ति को कष्ट देते हैं, जिनका प्रभाव उसके निजी जीवन में , उसके पारिवारिक जीवन में पड़ता ही है, जैसे- मुकदमेबाजी, बेरोजगारी, धन का अभाव, रोजमर्रा की छोटी-बड़ी समस्यायें, लड़ाई-झगड़े इत्यादि, जिनसे व्यक्ति पीड़ित व दुःखी हो जाता है।
इस प्रकार व्यक्ति का पूरा जीवन ही इन तीन प्रकार के परितापों से ग्रसित रहता है, जिसके कारण उसका जीवन कष्टप्रद एवं निराशाजनक बन जाता है और वह अपने आप को हर पल असुरक्षित सा महसूस करने लग जाता है, फिर उसके जहन में यही प्रश्न उठते हैं कि-
– क्या इन दुखों से छुटकारा पाया जा सकता है ?
– क्या अपने जीवन को सुखी या समृद्ध बनाया जा सकता है ?
– क्या अपने जीवन में जानमाल की सुरक्षा प्राप्त की जा सकती है ?
… और इसके लिये व्यक्ति को आवश्यकता पड़ती है एक ऐसे ढाल की, जो उसके जीवन को सुखमय बना सके और उसके दुःखों का नाश कर सके।
‘आरक्ष साधना’ भी एक ऐसी ही साधना है, जो प्रभावपूर्ण एवं पूर्ण फलदायक है। इस साधना में एक विशेष प्रकार के यंत्र का उपयोग किया जाता है, जो कि अपने-आप में ही अद्भुत एवं निश्चित सफलतादायक यंत्र है, जिसे प्राप्त करने पर व्यक्ति अपने जीवन के समस्त पापों, संतापों से मुक्ति प्राप्त कर लेता हैं।
‘आरक्ष साधना’ इस दृष्टि से प्रत्येक व्यक्ति के लिये महत्वपूर्ण है और रक्षाबंधन के दिन इस साधना को सम्पन्न करने पर व्यक्ति को इसका आश्चर्यजनक परिणाम मिलता है।
सामग्री- आरक्ष यंत्र, सुरक्षा माला, तीन अभय गुटिका
दिवस- रक्षाबंधन या किसी गुरूवार को
समय- प्रातः 05:00 बजे से 08:00
साधक सर्व प्रथम स्नानादि एवं नित्यकर्म से निवृत होकर, शांत एवं प्रसन्न मन से इस विशेष दिन के महत्त्व को समझकर व साधना से होने वाले लाभ के प्रति आशान्वित होकर अपने पूजागृह में काले रंग के अतिरिक्त अन्य किसी भी रंग के आसन पर बैठ जाय तथा दक्षिण को छोड़कर किसी भी दिशा में अपनी इच्छानुसार बैठ जायें।
फिर अपने सामने गुरू चित्र स्थापित कर, उसके सामने किसी प्लेट पर कुमकुम से त्रिकोण बनाकर उस पर ‘तीनों अभय गुटिकाओं’ को और ये तीनों गुटिकाये तीनों परितापों की निवारक है, जो हमें सतत सुरक्षा प्रदान करती हैं तथा पुनः हमारे जीवन में इन बाधाओं का प्रवेश नहीं होने देती, एक-एक कोण पर रख दें, तथा मध्य में ‘आरक्ष यंत्र’ को स्थापित कर दें, इसके बाद चित्र, यंत्र एवं गुटिकाओं पर कुमकुम, अक्षत चढ़ा दें और तीनों कोणों में तीन तेल के दीपक प्रज्जवलित करें, जिसका आशय है, तीनों प्रकार के ताप से परिमुक्त होकर साधक के जीवन में सौभाग्य रूप प्रकाश का विस्तारित होना। इसके पश्चात् साधक अपने इष्ट या गुरू का मन ही मन ध्यान करें तथा 5 माला गुरू मंत्र जप करें। आरक्ष यंत्र और तीनो अभय गुटिकाओं का धूप, दीप, पुष्प आदि से यथाविधि पूजन करके शुद्ध घी का हलवा बनाकर भोग लगायें। इसके बाद साधक ‘सुरक्षा माला’ से निम्न मंत्र का 11 माला जप करें।
मंत्र जप की समाप्ति के पश्चात् वह जल अपने दायें-बाये थोड़ा-थोड़ा गिरा दें और आरक्ष यंत्र को लाल धागे में पिरोकर तथा सुरक्षा माला को गले में धारण कर लें, परन्तु तीनों गुटिकाओं को घर से बाहर किसी भी एकान्त जंगल या सुनसान जगह पर गाड़ आयें, लौटते समय पीछे मुड़कर न देंखें। हलवे के भोग को स्वयं ग्रहण करें तथा परिवार में वितरित कर दें। माला तथा यंत्र को पन्द्रह दिन तक धारण करने के पश्चात् उन्हें नदी या तालाब में विसर्जित कर दें।
इस प्रकार यह साधना अपने-आप में अद्वितीय एवं प्रभावकारी है, जो शीघ्र ही लाभ देकर साधक को समस्त पापों-तापों से मुक्त कर सुख, सौभाग्य और अभय प्रदान करती है। प्रत्येक साधक को समय विशेष का महत्व समझते हुये, उसका लाभ उठाकर इस एक दिवसीय साधना को अवश्य ही सम्पन्न करना चाहिये।
साधना में स्थापित यंत्र प्राण-प्रतिष्ठित एवं मंत्र सिद्ध होना चाहिये। ध्यान रखें कि साधना काल में वे तीनों दीपक बराबर जलते रहें।
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