श्रीराधा महाविद्या के सम्बन्ध में दो प्रमाणिक ग्रन्थ श्री राधोपनिषद एवं नारद पंचरात्र हैं, जिनमें इस महाशक्ति के सम्बन्ध में पूर्ण विवरण हैं।
जब तक मूल शक्ति की साधना नहीं की जाती तब तक साधना में सिद्धि कैसे संभव हैं ? यह शक्ति ही किसी महापुरुष, देव अथवा साक्षात् भगवान का आधार है, अतः साधक को इस मूल रहस्य को समझते हुये मूल शक्ति की आराधना की ओर विशेष ध्यान देना चाहिये। लेकिन जब तक श्रीकृष्ण की शक्ति श्रीराधा महाविद्या की उपासना नहीं की जाती तब तक साधक को कृष्ण भक्ति तथा कृष्ण उपासना में सफलता नहीं मिल सकती। इसीलिये देवी भागवत में लिखा है कि ब्रह्मा आदि सम्पूर्ण देवता नित्य प्रसन्न हो भगवती राधा का ध्यान करते है क्योंकि यदि श्रीराधा की पूजा न की जाय तो पुरूष भगवान श्रीकृष्ण की पूजा का अनाधिकार समझा जाता है।
राध्दनोती सकलान् कामनाओं को सिद्ध करने के कारण इस देवी का नाम श्रीराधा’ हुआ है।
नारद पंचरात्र’ में श्री नारद द्वारा भगवान शंकर की साधनाओं के सम्बन्ध में पूछे गये विशेष प्रश्न और उनके द्वारा दिये गये समाधान का विवरण है। उसमें श्रीराधा के सम्बन्ध में लिखा है कि श्रीराधा प्राण की अधिष्ठात्री देवी है।
श्रीराधा विशेष पूज्य और उपास्य इसलिये है कि श्रीकृष्ण को जगत् पिता और श्रीराधा को जगत् माता माना गया है और माता तो पिता से सौगुना अधिक वन्द्य होती है। जो कार्य बहुत काल तक श्रीकृष्ण की आराधना के बाद सिद्ध नहीं होता है वह श्रीराधा की उपासना से बहुत शीघ्र सम्पन्न हो जाता है।
श्रीकृष्ण भी जिसकी उपासना करते है, वह षड़क्षरी महाविद्या तो कामधेनु स्वरूपिणी है। इसकी उपासना से बल, पुत्र, लक्ष्मी, भक्ति ओर ईशित्व की प्राप्ति होती है, श्रीलक्ष्मी तो श्रीराधा की अंश स्वरुपा है, अतः श्रीराधा की उपासना से लक्ष्मी उपासना अपने आप हो जाती है तथा आल्हादिनी, सन्धिनी, ज्ञान, इच्छा और क्रिया श्रीकृष्ण की शक्तियां हैं, और इसमें प्रमुख आल्हादिनी शक्ति है और यही श्रीराधा स्वरुप है।
राधा रासेश्वरी रम्भा कृष्णमन्त्राधिदेवता।
सर्वथा सर्वबन्द्या च वृन्दावनविहारिणी।।
वृन्दाराध्या रमाशेषगोपीमण्ड़ल पूजिता।
सत्य सत्यपरा सत्यभामा श्रीकृष्णवल्लाभा।।
वृषभानुसुता गोपी मूलप्रकृ तिरीश्वरी।
गन्धर्वा राधिका रम्भा रुक्मिणी परमेश्वरी।।
परात्परतरा पूर्णा पूर्णचन्द्रविमानना।
भुक्तिमुक्तिप्रदा नित्यं भवव्याधिविनाशिनी।।
1- राधा, 2- रासेश्वरी, 3- रम्भा, 4- कृष्णामन्त्राधिदेवता, 5- सर्वाभा, 6- सर्ववन्द्य, 7- वृन्दावनविहारिणी, 8- वृन्दाराध्या, 9- रमा, 10- शेष गोपीमण्ड़लपूजिता, 11- सत्या, 12- सत्यपरा, 13- सत्यभामा, 14- श्रीकृष्ण वल्लाभा, 15- वृषभानुसुता, 16- गोपी, 17- मूलप्रकृति, 18- ईश्वरी, 19- गान्धर्वा, 20- राधिका, 21- आरम्मा, 22- रुक्मिणि, 23- परमेश्वरी, 24- परात्परतरा, 25- पूर्णा, 26- पूर्णचन्द्र निमानना, 27- भुक्तिमुक्तिप्रदा तथा, 28- व्याधिविनाशिनी।
ये 28 नाम श्रीराधा के 28 स्वरुप हैं, प्रत्येक स्वरुप विशेष शक्ति युक्त हैं।
इस महाशक्ति की उपासना, स्त्री अथवा पुरूष, विवाहित अथवा अविवाहित, कोई भी साधक सम्पन्न कर सकता है क्योंकि इस साधना हेतु केवल दास्य भाव और भक्ति की आवश्यकता है। इनकी साधना से तो जीवन में प्रेम और आनन्द की वर्षा होती है।
यह साधना किसी भी बुधवार को प्रारम्भ की जा सकती है, इस साधना हेतु विशेष सामग्री स्वरुप में श्रीराधा महाविद्या महायन्त्र’ जो क्लीं’ कृष्ण मन्त्रो से आपूरित हो, इसके अलावा 15 राधा शक्ति चक्र, राधा वशीकरण माला’ आवश्यक है।
इसके अलावा पूजन में सफेद पुष्प, चन्दन तथा दुर्ग की व्यवस्था अवश्य कर लेनी चाहिये। साधक तथा साधिका सुन्दर वस्त्र धारण कर यह साधना करें।
यह साधना सम्पन्न करने हेतु प्रातः काल स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण कर अपने सामने श्रीकृष्ण और राधा का सयुंक्त चित्र स्थापित कर उसके आगे एक थाली के मध्ये में सुगन्धित पुष्प रख कर उस पर श्रीराधा महाविद्या यन्त्र’ स्थापित करे इसके बाद हाथ में जल लेकर संकल्प करें कि मैं (अपना नाम) जीवन की अमुक इच्छाओं की पूर्ति हेतु यह संकल्प लेते हुये यह अनुष्ठान सम्पन्न कर रहा हूँ, कि श्रीराधा षडक्षरी शक्ति मुझ पर प्रसन्न हो, मेरा कार्य पूर्ण हो।
अब हाथ में पुष्प लेकर निम्न स्तोत्र का तीन बार पाठ करते हुये यन्त्र तथा चित्र के मध्य में पुष्प अर्पित करें, चित्र पर चंदन का टीका लगाये तथा यन्त्र पर भी चन्दन, दुर्वा अर्पित करे इसके साथ ही सुगन्धित द्रव्य नैवेद्य अर्पित करें और सुगन्धित अगरबत्ती लगायें।
हे नारायणि! विष्णुमाये महामाये! सनातनि श्रीकृष्ण प्राणप्रिया, संसार सागर की पीड़ाओं से मेरा उद्धार कीजिये, इस संसार सागर के भय से मुझे मुक्ति प्रदान करें, मेरे जीवन में रस, आनन्द, प्रेम और सुख की वर्षा करें।
राधा की शक्तियां उसके दास्य रुप में निवास करती हैं, और उनकी पूजा करना आवश्यक है। इनमें प्रेम, सौन्दर्य, वशीकरण, लक्ष्मी, शक्ति, सरस्वती सभी गुणो से युक्त अलग-अलग शक्तियां हैं, इस हेतु जो 15 श्रीराधा शक्ति चक्र हैं उन्हें चन्दन में डुबो कर क्रमशः इन शक्तियों का ध्यान करते हुये श्रीराधा महायन्त्र’ के आगे स्थापित करें तथा एक श्रीराधा शक्ति चक्र की स्थापना के बाद एक अगरबत्ती जलाये, ये 15 शक्तियां हैं-
इस प्रकार इनका प्रेम सहित पूजन कर ‘श्रीराधा वशीकरण माला’ अपने नेत्रों के तथा मस्तक के लगा कर राधा षडक्षरी महाविद्या मन्त्र की पांच माला का जप उसी स्थान पर बैठ कर सम्पन्न करें।
अब जप अनुष्ठान पूर्ण हो जाने के पश्चात् श्रीराधा स्तोत्र का पाठ करें।
राधा रासेश्वरी रम्भा रामा च परमात्मनः।
रासोभ्दवा कृष्णकान्ता कृष्णवक्षःस्थलस्थिता।।
कृष्णप्राणाधिदेवी च महाविष्णोः प्रहर्षिणी।
सर्वथा विष्णुमाया च सत्या नित्या सनातनी।।
ब्रह्मस्वरुपा परमा निर्लित्पा निर्गुणा परा।
वृन्दा वृन्दावने सा च विरजातटवासिनी।।
गोलोकवासिनी गोपी गोपीशा गोपमातृका।
सानन्दा परमानन्दा नन्दनन्दनकामिनी।।
वृषभानुसुता शान्ता कान्ता पूर्णतमा च सा।
काम्या कलावती कन्या तीर्थपूता सती शुभा।।
जो साधक श्रीराधा के इन 37 नामों से युक्त स्तोत्र का नित्य प्रति पाठ करता है वह अचल लक्ष्मी सभी सुखों सहित प्राप्त करता हैं।
स्तोत्र पाठ के पश्चात् राधा कवच अर्थात् परमानन्द संदोह कवच का पाठ अवश्य ही करना चाहिये, जिसके पठन से परमानन्द अर्थात् परम आनन्द की प्राप्ति होती है, नारद पंचरात्र’ में लिखा है कि श्रीकृष्ण ने तो इस कवच को अपने कण्ठ में धारण कर लिया और इसीलिये श्रीकृष्ण को राधा की सभी शक्ति निर्विध्न रुप से प्राप्त है।
सर्वाद्या मे शिरः पातु केशं केशकामिनी।
भालं भगवती लोला लोचनयुग्मकम्।।
नासां नारायणी पातु सानन्दा चाधरोष्ठकम्।
जिव्हां पातु जगन्माता दन्तं दामोदरप्रिया।।
कपोलयुग्मं कृष्णेशा कण्ठं कृष्णप्रिया तथा।
कर्णयुग्मं सदा पातु कालिन्दी कूलवासिनी।।
वसुन्धरेशा वक्षो मे परमा सा पयोधरम्।
पद्मनाभप्रिया नाभि जठरं जाव्हवीश्वरी।।
नित्या नितम्बयुग्मं मे कंकालं कृष्ण सेविता।
परात्परा पातु पृष्ठं सुश्रोणी श्रोणिकायुगम्।।
परमाया पादयुग्मं नखरांश्च नरोत्तमा।
सर्वागं मे सदा पातु सर्वेशा सर्वमंगला।।
पातु रासेश्वरी राधा स्वप्ने जागरणे च माम्।
जले स्थले चान्तरिक्षे सेविता जलशायिनी।।
प्राच्यां मे सततं पातु परिपूर्णतमप्रिया।
वहतीश्वरी वहितकोणे दक्षिणे दुःखनाशिनी।।
नैर्ऋत्ये सततं पातु नरकार्णवतारिणी।
वारुणे वनमालीशा वायव्यां वायुपूजिता।।
कौवेरे मां सदा पातु कूर्मेश परिसेविता।
ईशान्यामीश्वरी पातु शतभृंग निवासिनी।।
वने वनचरी पातु वृन्दावनविनोदिनी।
सर्वत्र सततं पातु सर्वेशा विरजेश्वरी।।
प्रथमे पूजिता या च कृष्णेन परमात्मना।
षडक्षर्या विजया च सा मां रक्षतु कातरम्।।
अब श्रीकृष्ण और राधा की आरती सम्पन्न कर साधक प्रणाम कर प्रसाद ग्रहण करें- ‘त्रिलोक्यपावनीं राधां सन्तो सेवन्त नित्यशः’ श्रीराधा की साधना से इस लोक की तो बात ही क्या तीनों लोक पावन हो जाते हैं, वास्तव में श्रीकृष्ण आराध्या शक्ति षडक्षरी महाविद्या श्रीराधा की साधना, उपासना तो परम सिद्धिप्रदा एवं परमानन्द परम सुखदायिनी है। साधक को श्रीराधा की कृपा का फल नित्य प्रति प्राप्ति होता ही रहता है। प्रेम सौन्दर्य की इससे श्रेष्ठ कोई उपासना नहीं है।
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