तंत्र सार एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जिसको अत्यन्त ही प्रामाणिक माना जाता है, उसमें भगवती भुवनेश्वरी साधना के लाभ स्पष्ट रूप से वर्णित किये गये हैं।
1 भुवनेश्वरी साधना से निरन्तर आर्थिक, व्यापारिक और भौतिक उन्नति होती ही रहती है। जो अपने भाग्य में दरिद्र योग लिखाकर लाया है, जो व्यक्ति जन्म से ही दरिद्र है, वह भी भुवनेश्वरी साधना कर अपनी दरिद्रता को समृद्धि में बदल सकता है।
2 भुवनेश्वरी साधना ही एक मात्र कुण्डलिनी जागरण साधना है। इस साधना से स्वतः शरीर स्थित चक्र जाग्रत होने लगते हैं और अनायास उसकी कुण्डलिनी जाग्रत हो जाती है, और ऐसा होने पर उसका सारा जीवन जगमगाने लग जाता है।
3 एक मात्र भुवनेश्वरी साधना ही ऐसी है, जो जीवन में भौतिक-उन्नति और आध्यात्मिक-प्रगति एक साथ प्रदान करती है।
4 भुवनेश्वरी को आद्या मां कहा गया है, फलस्वरूप भुवनेश्वरी साधना से योग्य संतान प्राप्त होती है और पूर्ण संतान सुख प्राप्त होता है।
5 भुवनेश्वरी साधना इच्छापूर्ति की साधना है। यदि पूर्ण रूप से भुवनेश्वरी को सिद्ध कर लिया जाये तो व्यक्ति जो भी इच्छा या आकांक्षा रखता है, वह इच्छा अवश्य ही पूर्ण होती है।
6 भुवनेश्वरी सम्मोहन स्वरूपा है। तंत्र सार के अनुसार भुवनेश्वरी साधना करने से पुरूष या स्त्री का सारा शरीर एक अपूर्व सम्मोहन अवस्था में आ जाता है, जिसके व्यक्तित्व से लोग प्रभावित होने लगते हैं और वह जीवन में निरन्तर उन्नति करता रहता है।
7 भुवनेश्वरी भोग और मोक्ष दोनों को एक साथ प्रदान करने वाली है, यही एक मात्र ऐसी साधना है जिसको सम्पन्न करने पर जीवन में सम्पूर्ण भोगों की प्राप्ति होती है, और अन्त में पूर्ण मोक्ष प्राप्ति भी होती है।
8 भुवनेश्वरी ‘रोगान् शेशा’ है, अर्थात् भुवनेश्वरी शत्रु संहारिणी है। इसकी साधना करने वाले साधक के शत्रु स्वतः ही समाप्त हो जाते हैं, यहां तक कि जो भी व्यक्ति इस प्रकार के साधक के प्रति दुराग्रह या शत्रु भाव रखते हैं, वे अपने आप समाप्त होते रहते हैं और उनका जीवन बर्बाद हो जाता है।
9 भुवनेश्वरी को योगमाया कहा गया है, इसकी साधना कर जीवन में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों पुरूषार्थों की प्राप्ति निश्चित रूप से होती है। इन सारे तथ्यों को केवल एक ऋषि या एक साधक ने ही स्वीकार नहीं किया है, अपितु जिन-जिन योगियों या महर्षियों ने इस साधना को सम्पन्न किया है उन्होंने यह अनुभव किया है कि यदि साधक अपने जीवन में इस साधना को सम्पन्न नहीं करता, तो वह जीवन ही बेकार चला जाता है। उसके जीवन में कोई रस नहीं रहता और यदि सिद्धाश्रम के द्वारा वर्णित इस साधना का उपयोग नहीं किया जाता, तो ऐसी महत्वपूर्ण साधना कोई कहीं नहीं प्राप्त हो पाती।
तांत्रिक ग्रंथों में बताया जाता है, कि भुवनेश्वरी साधना किसी भी सोमवार से प्रारम्भ की जा सकती है।
यों तो भुवनेश्वरी साधना की अनेक विधियां शास्त्रों में प्रचलित है, परन्तु इस बार सर्वथा गोपनीय, महत्वपूर्ण और दुर्लभ साधना प्रयोग दे रहे है, जो कि अपने आप में तंत्रात्मक प्राणस्वरूपा भुवनेश्वरी साधना कही जाती है।
साधक प्रातः काल उठकर, स्नानादि से निवृत्त होकर पूर्व की ओर मुंहकर आसन पर बैठ जाये। इस साधना में सफेद ऊनी आसन प्रयोग करें। साधक स्वयं सफेद धोती धारण करें, साधिका यदि इस साधना को सम्पन्न करना चाहती हैं तो सफेद साड़ी धारण करें, प्रातः काल अपने सिर के बाल धो लें और बिना तेल लगाये बालों को खुला रखें।
इसके बाद साधक अपने सामने तांत्रोक्त सिद्ध ‘भुवनेश्वरी यंत्र’ को स्थापित करें, जो प्राण प्रतिष्ठित हो। अब अपने सामने लकड़ी के बाजोट रख कर उस पर सफेद रेशमी वस्त्र बिछाये और उस पर थाली रखें, थाली के चारों कोनों पर कुंकुंम से पंचकोण बनायें और थाली में मध्य में त्रिकोण अंकित करें। इसके बाद थाली के मध्य में इस यंत्र को स्थापित करें, और उसे ।। ऊँ भुवनेश्वर्ये नमः।। मंत्र का उच्चारण करते हुये शुद्ध जल से स्नान करायें। इसके बाद इसी मंत्र का उच्चारण करते हुये, उसे दूध, दही, घृत, मधु और शर्करा से स्नान कराये, फिर इन पांचों चीजों को मिलाकर पंचामृत से स्नान कराये। स्नान कराते समय बराबर इसी मंत्र का उच्चारण करें। इसके बाद पुनः शुद्ध जल से यंत्र को स्नान करा कर अलग किसी पात्र में रख दें, और उस पात्र का जल अलग कटोरे में ले कर एक तरफ रख दें, जिसे पूजा समाप्त होने के बाद जमीन में गाड़ दें।
तत्पश्चात् उस थाली को मांज पोंछ कर सिन्दूर से मध्य में पंच कोण बनाये और थाली के अन्दर ही चारों कोनों पर सिन्दूर से ही त्रिकोण अंकित करें और मध्य में चावल की ढ़ेरी बनाकर उस पर यंत्र को स्थापित करें।
इसके बाद यंत्र पर सिन्दूर से ही दस बिन्दियां लगाये और यंत्र पर अक्षत तथा पुष्प चढ़ाने के बाद सुगन्धित पुष्पों की माला यंत्र पर अर्पित करें, सामने अगरबत्ती लगाये, शुद्ध घृत का दीपक प्रज्ज्वलित करें और यंत्र पर जहां दस स्थानों पर सिन्दूर की दस बिन्दियां लगाई थीं, वहां से थोड़ा-थोड़ा सिन्दूर लेकर अपने ललाट के मध्य में तिलक करें।
इसके बाद थाली में जो चारों कोनों पर त्रिकोण बनाये हैं, उनमें से प्रत्येक त्रिकोण पर छोटी-छोटी चावल की ढेरियां बनाकर प्रत्येक लघु नारियल पर सिन्दूर का तिलक करें। यंत्र के सामने दस हकीक पत्थर रख दें, जो कि मंत्र सिद्ध हो। प्रत्येक हकीक नग पर भी सिन्दूर का तिलक करें।
ये दस महाशक्तियों के प्रतीक चिन्ह हैं। इसके बाद यंत्र के बांई ओर चावल की ढेरी बनाकर मोती शंख स्थापित करें और दाहिनी ओर चावल की ढेरी बनाकर सिद्धि फल स्थापित करें। फिर इन दोनों की संक्षिप्त पूजा करें, सिन्दूर का तिलक करें और पुष्प समर्पित करें। इसके बाद यंत्र के सामने दूध का बना हुआ प्रसाद अर्पित करें तथा एक पात्र में पंचामृत बनाकर रखें, इसके पास ही पानी से भरा हुआ लोटा रख दें और फिर प्रयोग प्रारम्भ करें।
साधक सबसे पहले अपनी चोटी को गांठ लगायें, अपने अंगूठे से अपने ललाट पर सिन्दूर का तिलक करें और फिर सिन्दूर से अपने सिर के मध्य भाग में, हृदय पर तथा नाभि पर भी तिलक करें। इसके बाद हाथ में जल लेकर संकल्प करें।
विनियोग
ऊँ अस्य श्री भुवनेश्वरी पंजर मंत्रस्य श्री शक्तिः ऋषिः।
गायत्री छन्दः। श्री भुवनेश्वरी देवता। हं बीजं। ईं शक्तिः।
रं कीलकं। सकल-मनोवांछित-सिद्धयर्थे पाठे विनियोगः।।
ऐसा कह कर हाथ में लिया जल जमीन पर छोड़ दें और इसके बाद न्यास करें।
ऋष्यादिन्यास
श्री शक्ति-ऋषये नमः शिरसि।।
गायत्री-छन्दसे नमः मुखे।।
श्री भुवनेश्वरी-देवतायै नमः हृदि।।
हं बीजाय नमः गुह्यये।।
ईं शक्तये नमः नाभौ।।
रं कीलकाय नमः पादयोः।।
सकल-मनोवांछित-सिद्धयर्थे पाठे विनियोगाय नमः सर्वांगे।।
इसके बाद साधक षडंग न्यास करें-
षडंग न्यास अंग-न्यास कर-न्यास
ह्रीं श्रीं ऐं अंगुष्ठाभ्यां नमः हृदयाय नमः
ह्रीं श्रीं ऐं तर्जनीभ्यां स्वाहा शिरसे स्वाहा
ह्रीं श्रीं ऐं मध्यमाभ्यां वषट् शिखायै वषट्
ह्रीं श्रीं ऐं अनामिकाभ्यां हुं कवचाय हुं
ह्रीं श्रीं ऐं कनिष्ठिकाभ्यां वौषट् नेत्र-त्रयाय वौषट्
ह्रीं श्रीं ऐं करतल करपृष्ठाभ्यां नमः अस्त्राय फट्
इस प्रकार से न्यास करने के बाद दोनों हाथ जोड़ कर भगवती भुवनेश्वरी का ध्यान करें।
ध्यान
ध्यायेद् ब्रह्मादिकानां कृत-जनि-जननी योगिर्नी योगयोनिम्।।
देवानां जीवनायोज्ज्वलित-जय-पर ज्योतिरूपांगधात्रीम्।।
शंख चक्रं च बाणं मनुरपि दधतीं दोश्चतुष्काम्बुजातैः।।
मायामांद्यां विशिष्टां भव-भव-भुवनां भू-भवा भार-भूमिम्।।
ध्यान करने के बाद साधक सफेद स्फटिक माला से वही पर बैठे-बैठे निम्न दुर्लभ गोपनीय मंत्र की 21 माला मंत्र जप करें।
जब मंत्र जप पूरा हो जाये तब साधक दस बत्तियां लगाकर भगवती भुवनेश्वरी की आरती सम्पन्न करें।
इसके बाद पूर्ण सिद्धि हेतु किसी पात्र में समिधायें (लकड़ियां) जला कर इसी मंत्र की पूरी एक सौ आहुतियां दें, यह प्रयोग पूर्ण माना जाता है।
भुवनेश्वरी यंत्र के आस-पास जो लघु नारियल आदि सामग्री है, उसे एक सफेद रेशमी वस्त्र में बांधकर घर के भण्डार गृह में या जहां धनराशि आदि रखी जाती है अथवा तिजोरी में सम्मानपूर्वक स्थापित कर दें और यंत्र को पूजा स्थान में सफेद रेशमी वस्त्र बिछाकर स्थापित करें तथा किसी छोटी बालिका को भोजन, भेंट सम्मान पूर्वक प्रदान करें।
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