मनुष्य जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिये जिन गुणों की आवश्यकता होती है, उन्हें भगवान गणेश की चेतना को आत्मसात करने से ही प्राप्त किया जा सकता है। भगवान गणेश का स्वरूप शक्ति और शिवतत्व का साकार स्वरूप है, और इन दोनों तत्वों का सुखद स्वरूप ही किसी कार्य में पूर्णता ला सकता है।
जीवन में सुख-सौभाग्य, समृद्धि, ऐश्वर्य, धन, सम्पन्नता से परिपूर्णता प्रदान करने वाले और जीवन के समस्त विघ्नों का नाश करने वाले एकमात्र देव गणपति ही हैं। जो रिद्धि-सिद्धि, शुभ-लाभ और नवनिधि-पदम निधि, महापद्मनिधि, नील निधि, मुकुंद निधि, नन्द निधि, मकर निधि, कच्छप निधि, शंख निधि, खर्व निधि के प्रदाता हैं, जिन्हें गणराज, अग्रराज कहा गया है।
सभी गणों के अधिपति, बुद्धि के अधिष्ठातृ देव, देवताओं और मुनियों के हित चिन्तक, अपने बुद्धि वैभव से सर्वत्र सम्मानित, नवनिधियों के दाता, मंगलमूर्ति साधक के जीवन के सभी विघ्नों को दूर करने वाले सर्वत्र विजय प्रदाता, अपने भक्त को ब्रह्मत्व प्रदाता करने वाले देव को नवनिधि स्वरूप में आत्मसात करने से सर्व स्वरूप में जीवन सुमंगलमय बनता है।
इस दीक्षा से साधक में सात्विक विचारों और सात्विक वातावरण का निर्माण होता है, पुत्र-पुत्रियों में सदाचार एवं शुद्ध विचारों का उदय होता है। वे सुसंस्कारों से युक्त होकर श्रेष्ठ कार्यों में संलग्न होते हैं। जिससे अभिभावकों की यशवृद्धि होती है। पत्नी पतिव्रत्य और कुटुम्ब धर्म के प्रति चेतना प्रबल होती है, उसमें संतान के कल्याण के प्रति जागरूकता बढ़ती है। ऐसे घर में देवताओं का वास होने लगता है।
लक्ष्मी के मूल स्वरूप नवनिधि को निर्विघ्न रूप से ग्रहण कर साधक सुख-समृद्धि, धन-ऐश्वर्य, प्रेम, बुद्धि, वाहन, भू-भूवन से युक्त हो सकेंगे, साथ ही सतत् रूप में अर्थ को अपने जीवन में स्थापित कर कुबेरवत् बन सकेंगे। जिससे जीवन में सभी दृष्टि से अनुकूलता प्राप्त होगी और घर-परिवार में समृद्धिशाली चेतना का विस्तार होगा साथ ही परिवार के प्रत्येक सदस्य का जीवन सुमंगलमय रूप में निर्मित हो सकेगा।
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