दीक्षा तो एक संस्कार है, जिसके माध्यम से कुसंस्कार का क्षय होता है, अज्ञान, पाप और दरिद्रता का क्षय होता है तथा ज्ञान शक्ति और सिद्धि प्राप्त होती है।
गुरु के निर्णय और आदेश के अनुसार दीक्षा ग्रहण की जाये तो श्रेष्ठ रहता है।
जीवन के रहस्य को समझने के लिए, उच्चता प्राप्ति के लिये तथा बार-बार जन्म-मरण के बन्धन से मुक्ति के लिये दीक्षित होना आवश्यक है।
जितने भी महापुरुष हुये हैं, चाहे वह कृष्ण हो, चाहे वह राम हो अथवा विश्वामित्र हो, सबने सद्गुरु से दीक्षा प्राप्त कर पूर्णता प्राप्त की।
दीक्षा संस्कार आज के युग में जीवन का अद्वितीय सौभाग्य है, जिसके माध्यम से आज के युग में मुरझाये लोगों के चेहरों पर नई उमंग व चेतना आ सकती है।
दीक्षा के माध्यम से भोग तथा मोक्ष दोनों की प्राप्ति सम्भव है।
दीक्षा का उद्देश्य जीवन का ऊंचाई पर उठना है, जो कि प्रत्येक व्यक्ति का लक्ष्य होना चाहिये और जीवन में यदि सार्थकता प्राप्त नहीं कर सके तो जीवन का कोई अर्थ नहीं।
दीक्षा के प्राप्त होने से व्यक्ति जब अपने दैनिक मंत्र जप साधना में बैठता है, साधक में अदम्य साहस, सब कुछ करने की क्षमता आ जाती है और वह निर्भय होकर कार्य करने लगता है, साथ ही गृहस्थ की सभी समस्याओं का निराकरण होने लगता है।
वे साधक सौभाग्यशाली होते हैं, जो सद्गुरु से श्रेष्ठ दीक्षाये प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त करते है।
आज के युग में जब सर्वत्र भयावह स्थिति बनी हुई है, कब क्या घटना हो जाये; ऐसी स्थिति में दीक्षाये प्राप्त करनी चाहिये ताकि व्यक्ति विषम से विषम परिस्थितियों में भी सुरक्षित अनुभव कर सके तथा सफलता प्राप्त कर सके।
अगर व्यक्ति समय-समय पर श्रेष्ठ गुरु से उचित दीक्षाये प्राप्त करता रहे तो असफलता एवं बाधाये उसके जीवन में व्याप्त हो ही नहीं सकती तथा वह निरंतर उच्चता एवं श्रेष्ठता की ओर बढ़ता रहता है।
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