नवरात्रि की मूल भावना इन्हीं तीनों शक्तियों की आराधना, साधना एवं इससे भी अधिक उनके वरदायक प्रभाव की प्राप्ति की कामना ही है।
नवरात्रि का यह विशेष पर्व अपने भीतर से अज्ञानता, दोष, कमियां, निकाल बाहर कर अपने भीतर शक्ति भरने का पर्व है, यदि संसार विपति सागर है, तो उसमें से पूर्ण रूप से बाहर निकलने के लिये शक्तिमान होना ही पड़ेगा, अपने भीतर शक्ति सामर्थ्य भरनी पड़ेगी, यह शक्ति ही अपने अलग-अलग रूपों में विद्यमान हो कर साधक के कार्य सम्पन्न करती है।
मां दुर्गा के तीनों महान स्वरूपों के बारें में ‘‘श्री देव्यर्वशीर्ष’ में लिखा है कि ‘‘हे देवी! आप चित्त स्वरूपिणी महासरस्वती है, सम्पूर्ण द्रव्य, धन-धान्य रूपिणी महालक्ष्मी हैं तथा आनन्दरूपिणी महाकाली है, पूर्णत्व पाने के लिये हम सब तुम्हारा ध्यान करते हैं, हे ! महाकाली, महालक्ष्मी स्वरूपिणी चण्डी के, आपको बारम्बार नमस्कार है, मेरे अविद्या, अज्ञान, अवगुण रूपी रज्जु की दृढ़ काट कर मुझे शक्ति प्रदान करें।’’
नवरात्रि की ये नौ रात्रियां अपने आप में तीन आदि शक्तियों अर्थात्- दुर्गा, लक्ष्मी एवं सरस्वरती को शक्ति साधना द्वारा जीवन में अनुकूल करने की रात्रियां है। इन्हीं त्रिशक्तियों से ही जगत की समस्त शक्तियों का उद्भव या संचरण हुआ है। नवरात्रि की प्रथम तीन रात्रियों में दुर्गा की, अगले तीन तीनों में लक्ष्मी की एवं अंतिम तीन रात्रियों में सरस्वती की उपासना की जाती है। इन तीनों शक्तियों द्वारा वह अपनी आंतरिक एवं बाह्य आसुरी शक्ति पर विजय प्राप्त कर सकता है। भौतिक जगत में इस शक्ति का सबसे श्रेष्ठ स्वरूप महालक्ष्मी है, जो सीमा-रहित, नित्य निवासनी विष्णु की नारायणी शक्ति है, और इस शक्ति के विभिन्न स्वरूप-लक्ष्मी, श्री, पद्मा , पद्मालिनी, कमला, इत्यादि है, इस ‘‘अहन्ता’’ शक्ति की सिद्धि ही इस शारदीय नवरात्रि में सम्पन्न करनी है।
और यह विजय शक्ति को तभी प्राप्त हो सकती है, जब वह आश्विन नवरात्रि के इन विशेष क्षणों में देवी के त्रिगुणात्मक स्वरूप की तांत्रोक्त पद्धति से पूजन कर साधना करे। जीवन का श्रेष्ठ निर्माण इन्हीं तीनों शक्तियों से सम्भव है।
नवरात्रि पूजन में मंत्र का, तंत्र का और यंत्र का अद्भूत संयोग है और इन चीजों से ही साधना होती है।
प्रातः स्नानदि से निवृत होकर उत्तर की ओर मुख कर बैठ जाये, सामने चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर गुरू चित्र एवं भगवती दुर्गा का चित्र स्थापित करें।
पवित्रीकरण
बायें हाथ में जल लेकर दायें हाथ से ऊपर छिड़के-
ऊँ अपवित्र: पवित्रों वा सर्वावस्थां गतोपि वा
यः स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स बाह्यभ्यन्तरः शुचिः।।
साधक अपने दाई ओर धूप , दीप जलायें एवं उस निम्न मंत्र बोलकर कुंकुंम, अक्षत अर्पित करें-
भो दीप देव रूपस्त्वं कर्म साक्षि ह्यविघ्न कृत
यावत कर्म समाप्तिः स्यात् तावदत्रा स्थिरों भव।
गणपति स्मरण
अपने सामने गणेश विग्रह/चित्र (अथवा प्रतीक रूप में सुपारी पर मौलि बांधे) पर निम्न मंत्र बोलकर पुष्प चढ़ायें-
ऊँ लक्ष्मी नारायणाभ्यां नमः। ऊँ उमा महेश्वराभ्यां नमः। ऊँ वाणी हिरण्य गर्भाभ्यां नमः। ऊँ शची पुरन्दराभ्यां नमः। ऊँ इष्ट देवताभ्यो नमः। ऊँ स्थान देवताभ्यो नमः। ऊँ वास्तु देवताभ्यो नमः। ऊँ सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः।
सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः।
लम्बोदरश्च विकटो विघ्न नाशो विनायकः।
धूम्रकेर्तुगणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः।
द्वादशै तानि नामानि यः पठेच्छृणुयादपि।।
विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा।
संग्रामें संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायेते।।
सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके,
शरण्ये त्रयम्बे गौरि नारायणि नमोऽस्तुते।।
आसन शुद्धि
अपने आसन के नीचे कुंकुंम से एक त्रिकोण बनाये तथा निम्न मंत्र बोलकर उस पर पुष्प, अक्षत, कुंकुंम चढ़ाये।
ऊँ पृथ्वि त्वया धृता लोका देवि! त्वं विष्णुना धृता ।
त्वं च धरय मां देवी! पवित्र कुरू चासनम।।
दिग्बन्ध्न
बाएं हाथ में अक्षत लेकर निम्न मंत्र बोलकर सभी दिशाओं में अक्षत के दानें फेंके-
अपसर्पनतु ते भूता ये भूता भूमि संस्थिताः,
ये भूता विघ्नकर्तारस्ते ते नश्यन्तु शिवाज्ञया।
अपक्रामन्तु भूतानि पिशाचाः सर्वतो दिशम्,
सर्वेषाम् अविरोधेन पूजा कर्म समारभे।
भैरव स्मरण
हाथ जोड़कर भगवान भैरव का ध्यान करें-
तीक्ष्णदंष्ट्र महाकाय कल्पान्त दहनोपम्,
भैरवाय नमस्तुभ्यंमनुज्ञां दातुमर्हसि।
ऊँ भं भैरवाय नमः।
संकल्प – (दाएं हाथ में जल लेकर संकल्प करें)
ऊँ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरूषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य श्रीब्रह्माणो द्वितीय परार्द्धे श्वेत वाराह कल्पे दैवस्वत मन्वन्तरे अष्टाविंशति कलियुगे कलिप्रथम चरणे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे आश्विन मासे शुक्ल पक्षे अमुक वासरे(दिन का नाम बोलें)अमुक गोत्रोत्पन्नोहं (गौत्र बोलें)अमुक शर्माहं (नाम बोले) भगवती दुर्गा प्रीत्यर्थ गुरोरज्ञया यथा मिलितोपचारेः पूजनं अहं करिष्ये। (जल जमीन में छोड़ दें।)
कलश स्थापन
कलश को जल से भर कर अपनी बाई ओर रखें, उसमें वरूण देवता का आवाहन करें। हाथ जोड कर बोलें-
सर्वे समुद्रा सरिता तीर्थानि जलदा नदाः।
आयान्तु देव पूजार्थं दुरितक्षय कारकाः।।
कलशस्य मुखे विष्णुः कण्ठे रूद्रः समाश्रितः।
मूले तत्रा स्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृ गणा स्थिताः।
कुक्षो तु सागरा सर्वे सप्तद्वीपा वसुन्ध्रा। ग्वेदोथ यजुर्वेदः सामवेदोः ह्यथर्वणः।
अंगैश्च सहिताः सर्वे कलशं तु समाश्रिताः।
‘वं वरूणाय नमः’ मंत्र का 108 बार जप करें। फिर कलश में गंध्, अक्षत, पुष्प डालकर तीर्थो का आवाहन करें-
गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेस्मिन् सन्निधि्ं कुरू।।
ब्रह्माण्डोरदर तीर्थानि करैः पृष्ठानि ते रवेः।
तेन सत्येन में देव, तीर्थं देहि दिवाकर।।
निम्न मंत्र बोलकर कलश की चार दिशा में कुंकुंम से चार बिन्दी लगायें ( पूर्व ) ऋग्वेदाय नमः। दक्षिणे यजुर्वेदाय नमः।
पश्चिमे सामवेदाय नमः। उत्तरे अथर्ववेदाय नमः।
इसके बाद एक नारियल को कलश पर स्थापित करें और कलश पर मौली बांध् दें। नित्य एक नये नारियल की आवश्यकता होती है। कलश पर तिलक, अक्षत, पुष्पादि अर्पित करें और दोनों हाथ जोड़कर प्रार्थना करें-
भो वरूण! प्रसन्नो भव, वरदो भव, अनया पूजया वरूणादि आवाहिता देवता प्रीयन्ताम्।
गणपति पूजन
ऊँ गजाननं भूत गणाधि् सेवितंऽ, कपित्य जम्बू फल चारू भक्षणं।
उमासुतं शोक विनाश कारकं, नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजं।।
ऊँ गं गणपतये नमः स्नानं समर्पयामि। वस्त्रं समर्पयामि नमः।। तिलकं अक्षतान् पुष्पाणि
समर्पयामि नमः। नैवेद्यं निवेदयामि नमः।
(स्नान, वस्त्र, पुष्प, अक्षत, नैवेद्य अर्पित करें)
ऊँ नमस्ते गणपतये त्वमेव प्रत्यक्षं त्वमसि, त्वमेव केवलं कर्तासि, त्वमेव केवलं भर्तासि, त्वमेव केवलं हर्तासि, त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि, त्वं साक्षात् आत्मासि, नित्यमृतं वच्मि, सत्यं वच्मि।
गुरू पूजन (हाथ जोड़कर गुरूदेव से प्रार्थना करें)
गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णुः गुरूर्देवो महेश्वरः।
गुरूः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरूवे नमः।।
ध्यान मूलं गुरो मूर्तिः पूजा मूलं गुरोः पदम्।।
मंत्र मूलं गुरोर्वाक्यं मोक्ष मूलं गुरोः कृपा।
श्री पारमेष्ठि गुरूं निखिलेश्वरानन्दं
आवाहयामि स्थापयामि नमः।
योगेश्वरः योगगम्यः योगक्षेम करस्तथा।
याजुष्यः योग निरतः योगानन्द समाहितः।
गुरू चित्र को स्नान कराकर कुंकुंम, अक्षत, पुष्पदीप अर्पित करें-
स्नानं समर्पयामि गुरूर्देवाय नमः। गन्ध्ं समर्पयामि अक्षतान् समर्पयामि। धूपं दीपं पुष्पाणि समर्पयामि।
निम्न मंत्र बोलकर नैवेद्य अर्पित करें-
जगद्गुरूः जगन्नेता जगदन्तः जनार्दन।
जयनेश्वरश्च जिष्णुर्जगन्मंगल दायकः।
श्री गुरूचरण कमलेभ्यो नमः नैवेद्यं निवेदयामि।
दोनों हाथ में पुष्प लेकर ‘ ऊँ गुरूदेवाय नमः’ बोलकर साधना में सफलता की प्रार्थना कर गुरू चित्र पर चढायें।
इस प्रारम्भिक पूजन के बाद विशेष साधना करें-
साधना सामग्रीः त्रिशक्ति साधना हेतु ‘त्रिशक्तियंत्र’, त्रिशक्ति माला’ के अतिरिक्त दुर्गा साधना हेतु ‘महिषी, लक्ष्मी साधना हेतु ‘सिद्धचक्र’ तथा सरस्वती साधना हेतु ‘प्रज्ञिका’ आवश्यक है। यह सब सामग्री मंत्र सिद्ध प्राणप्रतिष्ठा युक्त होना आवश्यक है।
प्रथम तीन दिवस दुर्गा पूजन के लिये है। सामने किसी पात्र में, ‘त्रिशक्ति यंत्र’ स्थापित करें। ‘महिषी’ को अपने सिर से तीन बार घुमाकर यंत्र के सामने स्थापित करें। फिर दोनों हाथ जोड़कर अपने दुर्गुणों के नाश हेतु दुर्गा का ध्यान करें-
दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेष जन्तोः, स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्रय दुःख भय हारिणी कात्वदन्या, सर्वोपकार करणाय सदार्द्र चित्ता।।
ऊँ जगदम्बायै नमः आवाहयामि स्थापयामि।
इदं पुष्पासनं समर्पयामि नमः।
(यंत्र को पुष्पासन दें)
पाद्यं समर्पयामि नमः। (यंत्र पर दो आचमनी जल चढाये)
अर्घ्यं समर्पयामि नमः। (हाथ में जल, कुंकुंम लेकर चढाये)
स्नानं समर्पयामि नमः। (यंत्र को जल से स्नान कराये)
वस्त्र समर्पयामि नमः। (यंत्र पर मौलि अर्पित करें)
गन्ध्ं समर्पयामि नमः। (कुंकुंम अक्षत चढाये)
नैवैद्यं समर्पयामि नमः (नैवेद्य अर्पित करें)
पुष्पांजलि समर्पयामि नमः।
हाथ में जल लेकर अपनी मनोकामना बोलें। ‘त्रिशक्ति सिद्ध माला’ से निम्न मंत्र की 21 माला जप करें-
OM KLEEM KRAM MANOVANCHIT KURU KURU OM PHAT
इसके बाद हवन कुण्ड में सूखी लकड़ी स्थापित करें। उसमें कपूर से या घी की बत्ती से अग्नि प्रज्जवलित करें और उपरोक्त मंत्र द्वारा दशांश आहुति प्रदान करें अर्थात् तीन माला मंत्र आहुति दें। जिस मंत्र का जप किया गया है, हवन करते समय उस मंत्र के अंत में ‘स्वाहा’ जोड़ना चाहिये।
हवन सामग्री का पैकेट बाजार में मिल जाता है, उसे थाली में लेकर घी में मिला लें और आहुति के लिये इसका प्रयोग करें। हवन के बाद दुर्गा आरती करें, फिर हवन कुण्ड में भस्म लेकर कान, ललाट, दोनों बाहें और नाभि में लगायें। कलश के जल को, अपने ऊपर, परिवार जनों तथा पूरे घर में रक्षा हेतु छिड़के, कलश के नारियल को प्रसाद के रूप में लें। कलश के बचे जल को तुलसी या किसी पौधे में डाल दें।
नित्य पूर्वोक्त विधि् से प्रारम्भिक गणेश पूजन/गुरू पूजन/कलश पूजन करें। प्रथम दिवस पर स्थापित किये गये ‘त्रिशक्ति यंत्र’ व महिषी का स्थान परिवर्तन न करें। यंत्र के दाई ओर समृद्धि हेतु ‘सिद्धचक्र’ स्थापित कर लक्ष्मी का आवाहन करें-
सर्व मंगल मांगल्ये विष्णु वक्षः स्थलालये।
आवाहयामि देवि। त्वां क्षीर सागर सम्भवे।।
निम्न मंत्र बोलकर यंत्र पर कुंकुंम, अक्षत, पुष्प दीप आदि अर्पित करें और अपनी मनोकामना का उच्चारण करें-
श्री महालक्ष्म्यै नमः आवाहनं समर्पयामि।
गंध्ं, अक्षतान्, पुष्पाणि, धूपं ,दीपं समर्पयामि नमः।
निम्न मंत्र बोलकर विविध् भोज्य पदार्थ, मिष्ठान, फलादि यंत्र पर चढ़ायें-
नाना मोदक भक्ष्यैश्च फल लड्डू समन्वितं
नैवेद्यं गृह्यतां देवि नारायण कुटुम्बिनी।
श्री महालक्ष्मयै नमः, नैवेद्यं समर्पयामि।
नाना ऋतु फलानि च समर्पयामि।
इसके बाद पांच बत्तियों का दीपक जलाकर महालक्ष्मी की निम्न प्रकार से आरती या नीराजन करें-
नीराजनं समानीतं क्षीरसागर सम्भवे, गृह्यतां अर्पितं भक्तया गुरूड़ध्वज भामिनी।
श्रीमहालक्ष्म्यै नमः नीराजनं समर्पयामि।
दोनों हाथ में खुले पुष्प लेकर पुष्पाजंलि दें।
पुष्पांजलि गृहाण मम पुरूषोत्तम वल्लभे।
भक्तया समर्पित देवि! सुप्रीता भव सर्वदा।
श्री महालक्ष्म्यै नमः पुष्पाजलिं समर्पयामि नमः।
अब ‘त्रिशक्ति माला’ से निम्न मंत्र की 21 माला जप करें-
OM SHREEM HREEM SHREEM MAHALAXMI AAGACHA OM NAMAH
फिर पहले बताई विधि् अनुसार उपरोक्त मंत्र की दशांश आहुति दें। लक्ष्मी आरती कर प्रसाद ग्रहण करें।
प्रारम्भिक पूजन के बाद ‘त्रिशक्ति यंत्र’ के बाई ओर समृद्धि हेतु ‘प्रज्ञिका’ स्थापित करें। सरस्वती आवाहन करें-
चतुर्भुजां चतुर्वर्णां चतुरानन वल्लभां।
आवाहयामि वाग्देवी वीणा पुस्तक धरिणी।।
श्री सरस्वत्यै नमः आवाहनं ध्यानं च समर्पयामि।
गन्ध्ं पुष्पं, धूपं, दीपं, नैवेद्यं समर्पयामि श्री सरस्वत्यै नमः।
( यंत्र पर कुंकुंम, पुष्प, दीप, नैवेद्य अर्पित करें )
निम्न मंत्र बोलते हुये पुष्प की पंखुडियां अर्पित करें-
ऊँ ऐं श्रौं नमः। ऊँ ऐं श्रीं नमः। ऊँ ऐं हसं नमः।
ऊँ ऐं हों नमः। ऊँ ऐं ह्रीं नमः। ऊँ ऐं अं नमः।
ऊँ एं क्लीं नमः। ऊँ ऐं चां नमः। ऊँ ऐं नमः।
ऊँ ऐं डां नमः। ऊँ ऐं यै नमः। ऊ ऐं वि नमः।
इसके बाद दोनों हाथ में पुष्प लेकर भगवती सरस्वती को पुष्पांजलि समर्पित कर अपनी मनोकामना बोलें-
पुष्पांजलिं मया दत्तां गृहाण वर्ण मालिनि।
शारदे लोक मातस्तवां आश्रितेष्ठ प्रदायिनि।।
श्री सरस्वत्यै नमः पुष्पांजलिं समर्पयामि।
‘त्रिशक्ति माला’ से निम्न मंत्र की 21 माला मंत्र जप करें-
OM AEM AEM VAAGISHVAYAE AEM AEM OM NAMAH
फिर पहले बताई विधि् के अनुसार उपरोक्त मंत्र की दशांश आहुति दें। गुरू आरती कर प्रसाद ग्रहण करें।
इसके अलावा नित्य दुर्गासप्तशती के अध्यायों का पाठ, भजन इत्यादि भी संपन्न करना चाहिये। नवरात्रि में साधक को पूर्ण स्वाध्याय के साथ साधना सम्पन्न करनी चाहिये। नवरात्रि में की गई साधना का प्रत्यक्ष फल होता ही है।
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