सौन्दर्य जीवन की महत्त्वपूर्ण चाहत है, इसके अभाव में हर व्यक्ति अपने-आप को अधूरा महसूस करता है -‘‘सौन्दर्य समुपास्यते ’’अर्थात् ‘‘सभी प्राणि सौन्दर्य प्रिय हैं, क्योंकि यह प्रकृति प्रदत्त स्वाभाविक गुण हैं,’’ अतः यह ‘‘चन्द्र सिद्धि प्रयोग’’ शुभ्र ज्योत्स्नित किरणों की भांति व्यक्ति या साधक के सौन्दर्य को चार चाँद लगाने वाला अचूक प्रयोग है।
चन्द्रमा को सौन्दर्य का प्रतीक माना गया है, किसी भी सुन्दरता को मापने के लिये चन्द्रमा से उपयुक्त और कोई उपमा है ही नहीं। ‘सौन्दर्य’ काव्य का एक अभिन्न अंग है, इसे काव्य का एक मौलिक उपकरण कहा गया है। यह एक ऐसा शब्द है, जो मन में प्रसन्नता, आह्लाद व आनन्द का उद्वेग भर देता है। ‘सौन्दर्य’ शब्द से ही ‘प्रेम’ शब्द बना है और प्रेम ही जीवन है, वस्तुतः सौन्दर्य सम्पूर्ण जीवन का आधार है। तभी तो कहा गया है- ‘जिसे देखकर दिल धड़कना बंद कर दे, नाड़ी का स्पन्दन रुक जाय, वही ‘सौन्दर्य’ है।’
यूं तो पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, कीट-पतंगे और मनुष्य सभी ईश्वर की बनाई हुई सुन्दर कृतियां हैं, किन्तु वह सौन्दर्य तब तक फीका है, जब तक वह सम्पूर्णता लिये हुये न हो…….फूल बगिया में खिलकर, कोयल पेड़ पर स्वर गान करते हुये और नारी अपने पूर्ण यौवन को प्राप्त कर ही सम्पूर्ण सौन्दर्य के प्रतिमान कहलाते हैं।
अनेक ग्रंथों में सौन्दर्य की विस्तृत विवेचना तथा सौन्दर्य-वृद्धि किस प्रकार की जा सकती है, वर्णित है, किन्तु समय के साथ-साथ वह ज्ञान लुप्त होता चला गया, व्यक्ति भौतिकता में इतना लिप्त हो गया, कि वह वास्तविक सौन्दर्य को प्रदान करने वाली औषधियों, ऋषियों-मुनियों द्वारा प्राप्त किये गये उपायों व मंत्र-जप की अपेक्षा नकली सौन्दर्य के भुलावे में पड़कर उसे ही वास्तविक सौन्दर्य जान ब्यूटी पार्लर व नकली सौन्दर्य प्रसाधनों के चक्कर में फंस गया, जिसके परिणामस्वरूप उसे सौन्दर्य तो प्राप्त हुआ, लेकिन कुछ ही क्षणों के लिये, जिसने धीरे-धीरे उसके मूल सौन्दर्य को भी समाप्त कर दिया और सिवाय पछताने के अब उसके पास और कोई उपाय नहीं रह गया, जो उसे पुनः सौन्दर्यवान बना सके।
किन्तु ऋषियों-मुनियों द्वारा प्रदत्त इस ‘चन्द्र सिद्धि प्रयोग’ के माध्यम से असुन्दरता के कारण व्याप्त हीन भावना को मन से हमेशा-हमेशा के लिये दूर किया जा सकता है और वापिस अपने मूल सौन्दर्य को, जो नकली प्रसाधनों के उपयोग से समाप्त हो गया था, प्राप्त किया जा सकता है।
इस प्रयोग के माध्यम से कुरूप को भी सौन्दर्यवान बनाया जा सकता है। जिस प्रकार चन्द्रमा अपनी चांदनी के प्रताप से घोर अन्धकार को भी दूर हटा कर अपनी शुभ्र ज्योत्स्ना से विश्व को प्रकाशवान करता है, उसे रोशनी प्रदान करता है, उसी प्रकार इस प्रयोग के माध्यम से कैसी भी कुरूपता हो मंत्र-शक्ति के प्रभाव से चन्द्र किरणें उस साधक का साधिका की कुरूपता को समाप्त कर उसके शरीर का मानो पूर्ण कायाकल्प ही कर देती हैं। वह स्वयं कुछ ही दिनों के भीतर अपने अन्दर आश्चर्यजनक व अद्भुत परिवर्तन को महसूस करने लग जाता है। ऐसा इसलिये होता है, क्योंकि चन्द्रमा मन का देवता है और केवल उसे ही आयुर्वेदिक औषधियों का सम्पूर्ण ज्ञान है, अतः उसकी उपासना करने पर वह अंदर और बाह्य दोनों प्रकार का सौन्दर्य प्रदान कर साधक को पूर्ण सौन्दर्य युक्त बना देने में सक्षम हैं, क्योंकि वह स्वयं भी सौन्दर्य का एक जीवंत उदाहरण है।
यह बात मिथ्या नहीं है, कि ‘‘चन्द्र सिद्धि प्रयोग’’ के माध्यम से रूप, यौवन, सौन्दर्य एवं सम्मोहकता को प्राप्त किया जा सकता है, क्योंकि इसका प्रमाण हैं वे लोग, जिन्होंने इस प्रयोग को सम्पन्न किया है और अद्भुत एवं विलक्षण सफलता को प्राप्त किया है। यह एक-दो नहीं, अपितु हजारों लोगों द्वारा प्रमाणित एवं सुपरीक्षित सिद्धि प्रयोग है, जिसे सम्पन्न करें और लाभ प्राप्त न हो, ऐसा तो सम्भव ही नहीं है।
प्रयोग विधि- यह साधना सम्पन्न करने हेतु दिव्य मंत्रों से प्राण-प्रतिष्ठा युक्त ‘चन्द्रेश यंत्र’, ‘चन्द्रकला गुटिका’ तथा ‘दिव्य आह्लादिनी माला’ की आवश्यकता होती है।
– इस साधना को चन्द्र ग्रहण की रात्रि को या किसी सोमवार की रात्रि को सम्पन्न किया जा सकता है।
साधना प्रारम्भ करने के पूर्व साधक स्नान आदि से निवृत्त होकर शुद्ध श्वेत वस्त्र धारण कर श्वेत आसन पर पश्चिम दिशा की ओर मुंह कर बैठें, जहां चन्द्रमा की किरणें उस पर पड़ सकें। सर्वप्रथम चन्द्रमा की ओर मुंह कर खड़े होकर एक लोटे में जल लें, उसमें अक्षत और पुष्प डाल दें, चन्द्रमा को निम्न मंत्र बोलकर 7 बार अर्घ्य दें-
इसके बाद कुंकुम, अक्षत व पुष्प समर्पित कर चन्द्रमा का पूजन करें। पूजन के बाद शांत भाव से खड़े होकर ही चन्द्रमा पर 10 मिनट तक त्राटक करते हुये अपने इष्ट सद्गुरू देव का चिन्तन करें।
इसके पश्चात् आसन पर बैठ कर अपने सामने एक बाजोट पर ‘चन्द्रेश यंत्र’ को स्थापित कर दें, फिर उसे शुद्ध जल से धोकर, पोंछकर केसर का तिलक करें तथा अक्षत चढ़ाये, फिर गुलाब की पंखुड़ियों की यंत्र पर वर्षा करें तथा धूप व दीप दिखायें। इसके पश्चात् उस यंत्र पर 108 बार निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुये दुर्वा और अक्षत चढ़ायें-
अब ‘चन्द्रकला गुटिका’ अपने दाहिने हाथ में लें लें तथा चावल के कुछ दाने भी साथ रखें, फिर चन्द्रमा की ओर दाहिना हाथ बढ़ाकर यह चिन्तन करें, कि चन्द्रमा की दिव्य कलायें इसमें समाहित हो रही हैं, तत्पश्चात् गुटिका को यंत्र के ऊपर स्थापित कर दें। गुटिका का भी कुंकुम से तिलक कर अक्षत व पुष्प से पूजन करें।
इसके बाद शुद्ध दूध से बनी खीर को ऐसे स्थापन पर रख दें, जहां चन्द्रमा की किरणें उस पर सीधे पड़े, पूरे साधना काल तक, जब तक कि मंत्र जप समाप्त न हो। फिर दोनों हाथों में श्वेत पुष्प लेकर निम्न मंत्र को बोलते हुए यंत्र पर पुष्पांजलि समर्पित करें।
पूजन के बाद साधक दत्त चित्त होकर ‘दिव्य आह्लादिनी माला’ से निम्न मंत्र का 11 माला मंत्र जप करें-
OM SAUNDARYAPRADAYAE CHANDRAYAE SHREEM HREEM SHREEM NAMAH
मंत्र जप करते समय साधक मन में यह भाव अवश्य रखें, कि चन्द्रमा की अमृतमय किरणें उस यंत्र से टकराकर सीधे हृदय में प्रवेश कर रही हैं।
जप समाप्ति के बाद भगवान चन्द्रदेव को दोनों हाथ जोड़कर श्रद्धापूर्वक नमन करें और प्रार्थना करें, कि हे चन्द्रेश! इस प्रयोग से मेरी इच्छित मनोकामना शीघ्र ही पूर्ण हो, ऐसा कहकर, उस गुटिका को लाल धागे में बांधकर अपने गले में धारण कर लें। इसके बाद उस माला को भी इसी भावना के साथ तीन महीने तक धारण किये रहें, किन्तु यंत्र को प्रयोग समाप्ति के पश्चात् दूसरे दिन प्रातः किसी नदी, तालाब या कुंए में प्रवाहित कर दें, तीन महीने बाद गुटिका और माला को भी इसी प्रकार प्रवाहित कर दें।
ऐसे गोपनीय एवं दुर्लभ प्रयोग से अवश्य ही साधक के सौन्दर्य में अभिवृद्धि होगी ही और वह एक दिव्य, ओजस्वी एवं तेजयुक्त व्यक्तित्व को प्राप्त करने में सक्षम हो सकेगा।
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