पूर्व जन्म के गुण तथा कर्म दोष वर्तमान जीवन पर अपना पूर्ण प्रभाव डालते ही हैं, इसमें कोई संदेह नहीं है। इन कर्म दोषों के कारण जीवन में व्यापार बाधा, आर्थिक अवनति, स्वास्थ्य समस्या, निरन्तर असफलता, शत्रु बाधा, संतान की कुप्रवृत्तियां, पारिवारिक कलह आदि विषम स्थितियां नित्य उत्पन्न होती हैं। अर्थात पाप दोष के कारण जीवन का कोई भी पक्ष सही दिशा में आगे नहीं बढ़ पाता है।
पूर्व जन्म व इस जन्म के दोषों से निवृत्ति के लिये एकादशी का पर्व सर्वश्रेष्ठ माना जाता है, जिसे श्रद्धापूर्वक सम्पन्न कर व्यक्ति अपने पाप-दोषों से मुक्त हो पाता है। जिस एकादशी व्रत से पापों को अंकुश लग जाये उसे पापांकुशा एकादशी कहा जाता है। पापाकुंशा एकादशी सम्पन्न करने से तीन पीढ़ियों के पापों से मुक्ति मिलती है और साथ ही चंद्रमा के अशुभ प्रभाव से भी मुक्ति मिलती है। इस एकादशी पर भगवान पद्मनाभ का पूजन करने से अक्षय पुण्य, सुख-समृद्धि, सौभाग्य व अश्वमेघ और सूर्य यज्ञ के पुण्य की प्राप्ति होती है।
पापाकुंशा एकादशी पर्व पर साधनात्मक क्रियाओं द्वारा पाप-दोष से मुक्ति प्राप्त होती है और यही सुफल पापाकुंशा पापक्षय मुक्ति दीक्षा ग्रहण करने से जीवन में सुकर्म भावों का जागरण होता है और पूर्व जन्मकृत कर्मदोष के क्षय से जीवन में सुस्थितियों की प्राप्ति होती है। सद्गुरूदेव जी अपने तपो बल के अंश से साधक के पूर्व जन्मों के दुषकर्मों का क्षय करते हैं और अपने ज्ञान और चिन्तन से शिष्य का सिंचरण कर नूतन ऊर्जा प्रवाहित करते हैं। जिसकी शक्ति से व्यक्ति पूर्णता प्राप्त करने में सफल हो पाता है।
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