जीवन का कोई भी मोड़ क्यों न आ गया हो, आयु किसी भी पड़ाव पर पहुँच कर कुछ थक कर और कुछ रूक कर पीछे मुड़ कर देख रही हो, बस अभी-अभी बचपन के दूधिया कोहरे को छांटकर यौवन के सूर्य की ऊष्मा देखनी प्रारंभ की हो या दिन भर की यात्रा के बाद सूरज की ढलती गहरी लाली जैसा यौवन हो गया हो, ऐसा हो ही नहीं सकता कि मन थक गया हो। मन तो खड़ा रहता है, मन कभी नहीं थकता, यदि थकता है तो शरीर पर पड़ गई सलवटों को देखकर।
… और तब मन स्वयं को समझाने लगता है, कि अब हमारे यौवन के दिन लद गये। परन्तु सौन्दर्य और यौवन ढ़लता नहीं है। सौन्दर्य निर्भर करता है, आंतरिक सौन्दर्य पर और आंतरिक सौन्दर्य आता है देवत्व पूर्ण चिन्तन से, निश्छलता से और सरलता से।
पुरूष हो, तो देवत्व पूर्ण मुख मुद्रा लिये बलिष्ठ शरीर और स्त्री हो तो- सुगठित शरीर, चेहरे पर लावण्य, उभरा हुआ सीना, गुलाबी आभा लिये सुगठित चेहरा, दृढ़ ठोढ़ी, लम्बी नासिका और कजरारी आंखें, लम्बे बाल, होठों पर सलज्ज मुस्कान यही तो है सौन्दर्य की झलक।
जीवन में इसको प्राप्त करने का एक ही उपाय है- सौन्दर्य आकर्षण तिलोत्तमा दीक्षा से। जब गुलाब के अधखिले पुष्प की भांति तिलोत्तमा का साहचर्य प्राप्त होता है तो व्यक्ति अपने सभी तनाव, क्लेश और परेशानिया भुला बैठता है और एक नवीन उमंग, जोश, हास्य, विनोद से आप्लावित हो जाता है।
सौन्दर्य व आकषर्ण के गुणों से स्त्रियों के सौन्दर्य में गजब का निखार आने लगता है, काया कंचन हो जाती है, वहीं पुरूषों के मुखमण्डल पर तेजस्विता और रौब आ जाता है। बड़े-बड़े नेताओं, अफसरों, सुन्दरियों में यह गुण प्राकृतिक रूप से व्याप्त होता है। इस दीक्षा के माध्यम से आप स्वयं अपने चेहरे पर आकर्षण और सम्मोहन ला सकते हैं। ऐसे व्यक्ति को हर किसी से अनुकूलता ही प्राप्त होती है। इसके साथ ही आपके व्यक्तित्व में निखार आता है।
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