किसी भी शुभ कार्य हेतु भैरव स्थापना अवश्य की जाती है, क्योंकि भैरव रक्षा कारक देव हैं, जहां भैरव की स्थापना, पूजा होती है, वहां कार्य में कोई विपत्ति, बाधा नहीं आ सकती, शत्रुओं पर वज्र की तरह प्रहार किया जा सकता है।
जो अपने दम पर जिये दुनिया उसी की कहलाती है, जो अपने जीवन में जोखिम उठा कर कार्य हाथ में लेता है, भाग्य उसी का साथ देता है और वही अपने जीवन में सफल होता है, आप जी रहे हैं और मोहल्ले के बाहर आपको कोई पहचानता ही नही है, फिर ऐसा जीवन किस काम का, नये-नये कार्य करने का, नये जोखिम उठाने का उत्साह हर समय होना चाहिये तभी सड़े-गले जीवन से नये जीवन का निर्माण किया जा सकता है।
यहां यह बात ध्यान देने योग्य है कि जो व्यक्ति आगे बढ़ने का प्रयास करते हैं, उनके ही मार्ग में रूकावटे आती हैं, शत्रु उत्पन्न होते हैं, जो अपने जीवन को एक निश्चित गति पर कोल्हू के बैल की तरह चलने देते हैं, उसके शत्रु कैसे होंगे? जो जीवन से भाग कर छुप जाता है, वह साधना का नाटक करता है, उसके भी शत्रु कैसे होंगे इसलिये शत्रु तो जीवन का अंग है, इनसे घबरा कर पैर पीछे हटा लिये तो उन्नति नहीं हो सकती।
इतिहास उठा कर देखें तो हमें यह स्पष्ट मालूम पड़ेगा कि हमने केवल उन्हीं की पूजा की है, जो अपने शत्रुओं से लड़े हैं, और जिन्होंने शत्रुओं पर विजय प्राप्त की है, चाहे वह राम हों अथवा श्रीकृष्ण, हनुमान हो अथवा महाकाली, इनमें से प्रत्येक का जीवन आख्यान राक्षस विजय से जुड़ा है, अतः आवश्यकता है, कि अपने आपको प्रबल बनाया जाय, शत्रु बाधा का वीरता से सामना किया जाय और शत्रुओं पर विजय प्राप्त की जाये, संघर्ष कर जीवन में कुछ प्राप्त करने का आनन्द ही अनोखा होता है।
शिव के अंश, शिव स्वरूप, शक्ति सम्पन्न, शक्ति स्वरूप महाकाली सेवक के रूप में भैरव की मान्यता विख्यात है, भैरव जन-जन के देव हैं, जो साधक विशेष मंत्रों को नहीं जानता, पूजा का विशेष विधान नहीं जानता, वह भी भैरव पूजा कर सकता है और ऐसे एक-दो नहीं हजारों-लाखों उदाहरण हैं जहां समान्य साधक को भैरव कृपा से विशेष सफलता मिली है।
भैरव की मान्यता मूल रूप से रक्षात्मक देव के रूप में ही है, बड़े से बड़े यज्ञ में पहले भैरव स्थापना की जाती है, जिससे कि भैरव अपनी शक्ति से दसों दिशाओं को अपनी शक्ति से आबद्ध कर देते हैं फिर सम्पूर्ण कार्य में कोई विघ्न उपस्थित नहीं हो सकता है, भूत, प्रेत, पिशाच, तांत्रिक प्रयोग कैसा भी प्रबल प्रहार किया जाये तो जहां भैरव की उपस्थिति है, वहां से यह प्रहार उलटे लौट आते हैं और इस प्रकार से गलत तांत्रिक प्रयोग को करने वालों को ही नाश कर देते हैं।
भैरव पूजा का विधान अत्यन्त सरल है और आज पाठकों हेतु काल भैरव के कुछ सरल प्रयोग स्पष्ट किये जा रहे हैं जिनमें सरलता से ही, इनकी सिद्धि और उपयोगिता है।
आप काल भैरवाष्टमी को या किसी भी शनिवार के दिन इस साधना को प्रारम्भ कर सकते हैं। दिनांक 05 दिसम्बर को काल भैरवाष्टमी दिवस है और इस दिवस की मान्यता के सम्बन्ध में विख्यात है कि इस दिन जो साधक भक्तिपूर्वक भैरव साधना सम्पन्न कर लेता है, भैरव साक्षात उस साधक में विराजमान हो जाते हैं।
भैरव साधना के स्वरूप को मूल रूप से तांत्रिक स्वरूप दे दिया गया है, जो कि गलत है, यह तो एक सात्विक जीवन की आवश्यक साधना है, आप अपनी ओर से किसी का बुरा नहीं चाहते हैं, लेकिन क्या आप पर कोई प्रहार करेगा तो उसका जवाब नहीं देंगे? क्या आपको व्यर्थ में मुकदमों की बाधाओं का सामना करना पड़ेगा, तो मुकदमे नहीं लड़ेंगे? क्या आपके विरूद्ध तांत्रिक प्रयोग होंगे और घर में तांत्रिक प्रयोगों के कारण जरा, पीड़ा, बीमारी, मृत्यु, शोक, रोग, दुःख रहेगा तो इसे दूर करने का उपाय नहीं करेंगे?
जीवन को श्रेष्ठ रूप से जीने के लिये इन सब बाधाओं को हटाना आवश्यक है, और इसके लिये सरल से सरल अचूक से अचूक प्रयोग काल भैरव प्रयोग ही है, जो आपके हाथ में शक्ति का, उत्साह का वह वज्र थमा सकते हैं, जिसके बलबूते पर आप अपना जीवन अपनी इच्छानुसार जी सकते हैं, अपने व्यक्तित्व को पराक्रमी बना सकते हैं, अपनी श्रेष्ठता स्थापित कर सकते हैं।
मूल रूप से चार बाधाये व्यक्ति के जीवन को दीमक की तरह खा जाती है, ये हैं-
1 शत्रु बाधा, 2 रोग-बीमारी, 3 मुकदमेबाजी, 4 तांत्रिक बाधा, भय आदि है।
इनमें से कोई भी एक बाधा रहने पर व्यक्ति अपना जीवन सही ढंग से नहीं जी सकता, इसके चक्र में उलझता हुआ अपनी शक्ति क्षीण करता रहता है, काल भैरवाष्टमी पर इन्हीं चार बाधाओं के निवारण हेतु किया जाने वाले विशेष साबर प्रयोग पाठकों के लिये प्रस्तुत किये जा रहे हैं, इन महत्वपूर्ण प्रयोग को निष्ठा से सम्पन्न कर तत्काल प्रभाव का लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
प्रति रविवार भैरव साबर मंत्र प्रयोग सम्पन्न करने से ही जीवन में भैरव रक्षा का पूर्ण वर निश्चित रूप से प्राप्त हो जाता है।
भैरवाष्टमी के दिन प्रातः साधक स्नान कर लाल वस्त्र धारण करें सिन्दूर का तिलक लगायें अपने सामने एक मिट्टी की ढेरी बनाकर उस पर पानी से धो ले, फिर उसके ऊपर सिन्दूर से तिलक करे और उस पर ‘काल भैरव गुटिका’ स्थापित करें, ढेरी के चारों ओर ‘पांच आकान्त चक्र’ तिल की ढेरियां बना कर रखें, प्रत्येक चक्र पर सिन्दूर लगायें, अब अपने पूजा स्थान में दीप और गुग्गुल का धूप तथा अगरबत्ती इत्यादि जला दें, अपने हाथ में जल लेकर संकल्प करें कि मैं अपनी अमुक शत्रु बाधा के निवारण हेतु काल भैरव प्रयोग सम्पन्न कर रहा हूँ।
अब एक पात्र में सरसों, काले तिल मिलायें, उसमें थोड़ा तेल डालें, थोड़ा सिन्दूर डालकर उसे मिला दें, इस मिश्रण को निम्न भैरव मंत्र का जप करते हुये काल भैरव गुटिका के समक्ष अर्पित करते रहें-
इस प्रकार 51 बार इस मंत्र का जप कर पूजा में रखें, धूप और दीप से भैरव आरती सम्पन्न करें, अब भैरव गुटिका को छोड़ कर बाकी सब सामग्री काले कपड़े में बांधकर जमीन में गाड़ दें और उस पर भारी पत्थर रख दें।
आगे दो रविवार तक भैरव गुटिका के समक्ष इस मंत्र का जप करते रहे।
यह प्रयोग इतना प्रबल है, कि प्रबल से प्रबल शत्रु भी तीस दिन के भीतर शांत हो जाता है, उसकी शक्ति क्षीण हो जाती है, इसमें कोई संदेह नहीं।
इस प्रयोग की प्रामाणिकता साधक स्वयं प्रयोग सम्पन्न कर ही जान सकते हैं कि इस प्रयोग में कितना अधिक प्रभाव है, काल भैरव प्रसन्न होने पर साधक को हर प्रकार का वरदान प्रदान कर देते हैं, उसकी रक्षा करते हैं और अपनी शरण में पूर्ण अभय प्रदान करते हैं, साधक की शक्ति में वृद्धि हो कर स्वयं भैरव समान श्रेष्ठ हो जाते है।
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